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हिजाब ना मैं हूं किसी तन की रवानी ना मैं हूं किसी लिबास की कहानी बहते हर्फ को मिले जो सीमा बन जाए हिजाब उसकी निशानी उठे जो नैन अपनी शर्म छोड़े कर्ण जो रोज़ हर किसी को सुने जान सके जो अपनी सीमा बन जाए हिजाब उसकी निशानी चहुं ओर जो मगरूर बने मूर्ख हुए खुद को पंडित कहे भेद सके जो अपनी सीमा बन जाए हिजाब उसकी निशानी खलीफा बन हुआ न मसीहा ताकत जो औरों पे कहर बने खोज सके जो अपनी सीमा बन जाए हिजाब उसकी निशानी मज़रूम हर दर्द सहता रहा धनी किसी और को न जान सका कुमार देख दोनो की सीमा क्या यही हिजाब बना - कुमार
अभी तो आधा दिन और पूरी रात है बाकी नैनों के सपने पूरे होना है बाकी, कर्मों का फल अभी मिलना है बाकी इतनी जल्दी मैं कैसे रुक जाऊ, अभी तो आधा दिन और पूरी रात है बाकी वक्त भी अपनी ही वस्ल में रहा, मुकदर भी अपने ही निशां बना रहा इतनी जल्दी मैं कैसे उम्मीद खो दूं, अभी तो आधा दिन और पूरी रात है बाकी साहिल पे रेत के निशान है बने , समुंदर की लहरों में समा गए सब निशान अब उन अवशेषों के साथ कैसे जीऊं, अभी तो आधा दिन और पूरी रात है बाकी महका है दिल फूलों की तरह, खिला है जीवन गुलाब की तरह काटों से मिले दुःख को कैसे संभालुं, अभी तो आधा दिन और पूरी रात है बाकी राह में खड़े है सप्त ऋषि, उम्मीद है मिली जुगनुओं सी यहीं मन के अमावस से कैसे बाहर आऊं, अभी तो आधा दिन और पूरी रात है बाकी मौसम ने भी रुख है बदला, फिज़ा भी मेरी बादशाहत में चला इतनी जल्दी आब्दारी हिया में कैसे उतरे, अभी तो आधा दिन और पूरी रात है बाकी इम्तेहां ले चुका है पल, सब्र सिखा गया है वक्त जीवन का सफर है कर्मठपन का, अभी तो आधा दिन और पूरी रात है बाकी कुमार
टाइगर बाघ ये सिर्फ एक नाम नहीं है, पहचान शौर्य की, ताक़त की, हिम्मत की, शक्ति का प्रतीक है टाइगर। आज भी लोग सिर्फ इस की आहात से डर जाते है , इसकी एक दहाड़ से काँप जाते है , आज भी जब ये पास से गुज़र ता है, तो सांसें थम जाती है लोग सिहर जाते है। ये दस्तक है उस डर की जिसे लोग सताते है उसकी तन्हाई में अकेले पैन में और थर्रा उठ ते है उसके प्रहार से। ये दहशत आज भी कायम है हर उस जंगल में जहाँ हर वन्य जीव अपनी जान डाव पे लगा के निकल ता है खुले जंगल में, अपना जीवन आचरण करने और रहता है तैयार शिकारी बाघ अपने सिखर के तलाश में। असुरो के विनाश से लेके दुर्गा की पूजा तक इसने हमेशा हमारा साथ दिया है। बंगाल से लेके कैलिफ़ोर्निया के जंगलों तक, अफ्रीका के वाइल्डलाइफ से लेके चीन के ओपन ज़ू तक सब की शान रहा है। पर क्या एक मॉस के टुकड़े ने हमे इतना बेबस और मजबूर बना दिया है जो किसी के जान की एहमियत तक भुला चुके है। केवल उस एक शौक कीमत हम जानते है पर उस बेज़ुबान के प्राणो का एहसास भुला बैठे है। यह मत भूलो की श्रिष्टि की हर एक चीज़, एक दूसरे पे आधारित है कोई एक भी चक्र अगर टूट जाये, तो जन जीवन बेहाल हो जाता है। जिस तरह शरीर को अवयवों की ज़रुरत है उसी तरह यह वन्य जीव औरो के लिए ज़रूरी है। इस लिए जीयो और जीने दो। - कुमार
सैनिक तुम सुत भारत माता के, तुम पूत वीर माता के। तुम साश्वत हो इस धरती के, तुम योद्धा हो इस भूमी के। कठिनाइयों से भरा है जीवन तुम्हारा, पर सदा किया है सम्मान इस पद का। सर्दी हो, गर्मी हो, या हो फिर बारिश, अपने कर्तव्य से कभी हट्टा नही ये खालिस। चहु और से सुरक्षित कर, ली है हमारे सुरक्षा की कसम पर हर बार कम पड़ जाता है तुम्हारा नमन। परायों के बीच ढूंढते हो अपनो का प्यार, अकेले में रह कर करते हो अपनो को याद। औरो के घर दीवाली के दीप सजाते हुए, न जाने कैसे सूनी रह जाती है राखी पे बाँहें। चाहे कितनी भी विकट परिस्तिथि हो, हस्ते मुस्कुराते उसे पार कर जाते हो। रहा न अफ़सोस किसी बात का हम्मे, आखिर सुरक्षा में खड़े है "सैनिक" हमारे। दुश्मन के बेहद करीब रह कर भी बिना किसी असमंजस में फस कर भी दुश्मनो की आंखों से सुरमा चुराके सदा बढ़ाए रखी अपनी जीत की हुंकार तुम्हारे इस पराक्रम को करता हु शत शत प्रणाम भर आता है मन, आंखें हो जाती है नम, होती है जब कोई अनहोनी तो कचोट ता मेरा मन। युद्ध की यलगार में रहता है एक ही नारा, तिरंगा लहराते नज़र आऊंगा या लहराते तिरंगे में नज़र आऊंगा। बहा जो लहू तुम्हारा, तो सीना चन्नी मेरा हुआ। चोट जो तुम्हे पोहची, तो दर्द मुझे हुआ रुक जाती है साँसें मेरी, सेहेम जाता है दिल आती है जब ख़बर तुम्हारी, की हो गए तुम देवलीन। रो उठी है धरती माँ, देख के तुम्हारा फ़र्ज़ आज देश की खातिर हुआ एक और "कुमार" शहीद शुक्रिया करू कैसे तुम्हारा, मांगी जो मदद हमेशा रहे तत्पर। जब भी मांगा तुमसे एक योद्धा, तुमने भर के मुझे झोलिया दि। कभी निष्फल न होगा तुम्हारा कर्म, करेंगे सदा हम इसका यतन। आज फ़र्ज़ की खातिर फिर लड़ना है हम्मे, परिवार की सुरक्षा, आत्मसम्मान के लिए लड़ना है हम्मे। बनाए रखना देश का सम्मान, आखिर तुम्ही हो हम्मरी आन बान और शान। जय हिंद - कुमार
समय समय सब के जीवन में काफ्ही एहमियत रखता है कोई पांच मिनट जल्दी जाने से परेशान हो जाता है तो कोइ पांच मिनट लेट पोहच ने से हताश हो जाता है वक़्त सब के पास रह के भी किसी के पास नही रुकता कलाई पे रह के भी कभी साथ नही चलता ज़िन्दगी को सी सॉ की तरह कभी ऊपर की ओर ले जाता है तो कभी नीचे की ओर छोड़ता है किसी के लिए रुका नही किसी के लिए थमा नही जिसको दिया जितना दिया अपनी गति से दिया ये वक़्त बड़ा बलवान है अच्छा चले तो फलक पे बिठा दे ओर बदल जाए तो ख़ाक में मिटा दे इसको जितना मुठ में कसना चाहो उतना ही ये रेत की तरह फिसल ही जाता है बचपना बीता शरारतो में जवानी बीती आवारापन में जब आँख खुली तो पाया खुद को वक़्त के तराजू में कहत कवि कुमार रुक जा संभाल जा ज़िन्दगी ने एक मौका तुझे फिर है दिया ये वक़्त मत गंवा इसे काम में लागा ये अगर बदल जाए तो इतिहास बन जाए और ये बन जाए तो भविष्य सुधार जाए उठ जा लड़ जा कुछ कर दिखा अपनी मेहनत से पहचान बना अपनी जीत से दुनिया को दिखा अपने नाम का हुंकार बजा - कुमार
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