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Kishore Sharma Saraswat

Kishore Sharma Saraswat Matrubharti Verified

@kishoresharmasaraswat6429
(64)

उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 33 की

कथानक : राधोपुर गाँव की घटना से सम्बन्धित जाँच की संचिका जिला प्रशासन के आग्रह पर कविता को सौंपी गई थी अत: कविता ने केहर सिंह को निर्देश दिया कि वह निर्धारित तिथि को लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह में जाँच के मामले में प्रस्तुत हो।
केहर सिंह विश्राम गृह पहुँचा तो कविता ने उसे चाय पिलाई तथा अपनेपन से कहा कि वह सच्चाई से न भागे क्योंकि सच का साथ भगवान भी देता है। यदि वह ऐसा करेंगे तो वह उनका पूरा साथ देगी। इससे केहर सिंह पिघल गया और बोला कि वह भी अब गलत मार्ग पर चलते हुए थक चुका है और शाँति चाहता है। कविता ने कहा कि दोनों पक्ष चाहें तो आपस में समझौता करके मुझे लिखित में दे सकते हैं कि वे सरकार की ओर से इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं चाहते।
केहर सिंह ने कविता से कहा कि वह माफी चाहता है कि आपको अब तक गलत समझता रहा।
कविता ने केहर सिंह को कहा कि वह गाँव में एक एकड़ जमीन खरीदना चाहती है। केहर सिंह खुश हो गया और इसके लिए कविता को शीघ्र बात करके अवगत कराने की बात कही।
केहर सिंह ने सचमुच बुराई का रास्ता छोड़ दिया था और अब वह सबको कविता की प्रशंसा करते नहीं थकता था। उसने कविता की अभिलाषा अनुसार माधो से जमीन को लेकर बात की। वह और ननकी तैयार हो गए क्योंकि यह जमीन परोपकार हेतु ली जा रही थी। अन्तत: माधो के साथ ही केहर सिंह ने भी अपने एक हजार वर्ग गज के भूखण्ड को प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र के नाम पर हस्तान्तरण करने के इंद्राज संबंधित रजिस्टर में दर्ज करवा दिए।

उपन्यासकार ने इस लंबे अंक में पूर्व में बुराई के प्रतीक खलनायक केहर सिंह का हृदय परिवर्तन दिखाया है जो कविता के कारण ही संभव हो पाया क्योंकि वह अब इस सिद्धांत पर काम करने लगी थी कि बुराई पर जितना चाबुक चलाया जाए, वह उतनी ही अधिक नासूर बनकर उभरती है। जबकि दयालुता के दो शब्द भी उस नासूर को मिटाने के लिए मरहम का काम करते हैं।
प्रस्तुत है, केहर सिंह के हृदय परिवर्तन को दर्शाते अंश:
- 'भाई, मैं आज जाँच के सिलसिले में शहर गया था। जाँच अधिकारी वही लड़की है जो पहले यहाँ पर एसडीएम हुआ करती थी। बहुत नेक और बुद्धिमान अधिकारी है। मुझे तो साक्षात किसी देवी का अवतार लगती है। लगे भी क्यों न, उसकी बातों का मुझ पर ऐसा जादू चढ़ा जिसे बतलाने की जरूरत नहीं है। सब कुछ आपके सामने है। काश! मैं उसे पहले समझ पाता तो इतनी देर न होती।' (पृष्ठ 557)
- 'बहुत लंबे अर्से से इस गाँव को आपसी नफरत का ग्रहण लगा हुआ था। परन्तु एक दिन अंत तो हर एक चीज का लिखा हुआ है। केहर सिंह भाई आज हमारे बीच में है।हमें पिछले सभी कटु अनुभवों को भूलकर गाँव के हित में नए सिरे से पहल करनी होगी। एक और एक मिलकर ग्यारह होते हैं। इसी तरह केहर सिंह के साथ आने से हमारी सोच, हमारी क्षमता और हमारा हौंसला भी दोगुना हो गया है।' (पृष्ठ 559)
- 'भाइयो! मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा है। इतना कुछ होते हुए भी आपने मुझे माफ कर दिया। शायद इस जन्म में मैं इसका ऋण न उतार सकूँ। जीवन में नैतिक मूल्यों की कमी और कुसंग का प्रभाव, दो ऐसी बलाएँ हैं जो इंसान को हैवान बना देती हैं। मैं भी इनसे अछूता नहीं रहा। अब जब होश आया तो मालूम हुआ कि पाया कम और खोया अधिक है। उस खोई हुई अमूल्य सम्पदा को पुन: पाना चाहता हूँ, जो आपके सहयोग के बिना असम्भव है।' (पृष्ठ 561)
लेखक ने जीवन के संघर्षों के बाद अब इस अंक से निगेटिव लोगों को भी सकारात्मकता की ओर धकेला है जो उपन्यास को सुखद अंत की ओर ले जाएगा। हालांकि उस चरम बिंदु पर पहुँचने के लिए हमें 42 अंकों तक पहुँचना होगा।

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 32 की

कथानक : राजू बैंक में ड्यूटी ज्वाइन करने शिमला पहुँच गया जहाँ उसे मकान भी किराए पर मिल गया तो अब अपनी पत्नी जयवंती यानी रमन की बहन को लेने शिमला से वापस आया। इस बार उसके घर पर दिल्ली में मेडिकल की पढ़ाई कर रही उसकी बहन रंजना को भी बुला लिया था। दूसरे दिन वह पत्नी को लाने अपने ससुराल गया और फिर उसके साथ शिमला।
राजू, रमन को भी कुछ दिनों के लिए शिमला ले जाना चाहता था लेकिन अगले सप्ताह न्यायालय में रमन की पेशी होने से उसका जाना टल गया।
रमन को पेशी में दोषमुक्त कर दिया गया था। अब पाठशाला को पुन: चालू करने से पहले अपने साथियों की सहमति लेकर रमन थोड़े समय के लिए शिमला के लिए रवाना हो गया जहाँ वह शाम होते-होते पहुँच गया।
अगले तीन दिनों में रमन शिमला के दर्शनीय स्थलों को देखने के बाद जयवंती के आग्रह पर संजौली में स्थापित देवी माँ के मंदिर में जाने का प्रोग्राम बना।
रमन हैरान रह गया क्योंकि मंदिर के प्रांगण में कविता अपनी मम्मी के साथ दिखाई दी। वहाँ जिस तरह मृदु वाणी में रमन व कविता में संवाद हुआ, उससे कविता की मम्मी सुशीला के मन में दोनों को लेकर शंका हुई।
सुशीला ने उन सबको अगले दिन घर आने का न्योता दिया। सुशीला ने रमन व उसके परिवारजनों का विवरण जाना। जयवंती ने भी उन्हें घर पर आमंत्रित किया।
दो दिन बाद जयवंती व राजू को बैंक की एक पार्टी में जाना था। राजू घर पर ही रहा। कुछ ही देर में कविता अकेले रमन के यहाँ पहुँच गई। उनके बीच पहले मीठी तकरार, गिले-शिकवे फिर भविष्य के बारे में परस्पर गंभीर मंत्रणा हुई। रमन का कहना था कि वह उसके बराबरी का नहीं है। कविता ने कहा कि वह नौकरी छोड़ रही है। रमन ने इसके लिए मना किया तो कविता गंभीरतापूर्वक बोली कि उसने सोच-समझकर ही निर्णय लिया है। मुझे विश्वास है कि मम्मी-पापा भी मान जाएँगे।
इस बीच दो घंटे बीत गए थे। राजू व जयवंती के भी लौटने का समय होने वाला था। कविता जाने को हुई तो जाते-जाते तेज बारिश होने लगी। उसे लौटना पड़ा।
जयवंती खाना बनाकर गई थी जिसे दोनों ने मिलकर खाया। इस बीच दोनों के बीच अपनेपन से भरी बातें हुईं जो बारिश रुकने तक जारी रहीं।
अब कविता को यह कहकर उठना पड़ा कि वह कल एसी बस से जाएगी, सी ऑफ करने जरूर आना।
कविता के जाते ही रमन के बहन-बहनोई आ गए थे।
घर जाकर कविता व उसके मम्मी-पापा की रमन को लेकर बात भी हुई और बहस भी। कविता ने जब उन्हें बताया कि वह नौकरी छोड़कर देहात में शिक्षण कार्य करेगी। अविश्वास और आश्चर्य के बीच उसने पापा और मम्मी को अपने तर्कों से शांत कर दिया।
दूसरे दिन रमन व जयवंती कविता को सी ऑफ करने बस स्टैंड गए थे, तब कविता, रमन को यह कहने में सफल हो गई थी कि उसके मम्मी-पापा का आशीर्वाद उनके साथ है।

*उक्त 59 पृष्ठीय 32 वाँ भाग अब तक का सबसे लंबा किन्तु सर्वश्रेष्ठ बन पड़ा है।* उपन्यासकार की लेखनी का जादू पाठकों के मन-मस्तिष्क पर अपना प्रभाव जमाने में सक्षम है। इस अंक की कई पंक्तियाँ उद्धृत करने योग्य हैं किन्तु समीक्षक की भी अपनी सीमाएँ होती हैं।
यहाँ प्रस्तुत हैं केवल चंद संदर्भों की पंक्तियाँ:
- 'आपके गाँव में कविता नहीं बल्कि राज्य सरकार की एक जिम्मेदार अधिकारी गई थी, जिसका अधिकार क्षेत्र तय करना दूसरों के नियंत्रण में था। कर्तव्यों को रिश्तों की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता है।' (पृष्ठ 533)
- 'मम्मी, सुनो! मेरे सामने दो ही विकल्प हैं। पहला, मैं शादी न करूँ और आपके पास रहूँ। दूसरा, शादी वहाँ करूँ जहाँ मेरी अंतरात्मा मुझे कहती है। फैसला आपको करना है।' (पृष्ठ 543)
- 'पापा, आपके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं है। क्यों न उसमें से कुछ हिस्सा उस नेक काम में लगा दिया जाए तो अनेकों जिंदगियों के परोपकार के साथ-साथ आपकी पहचान को भी उन लोगों के जीवन में बनाए रखे। पापा, रमन एक बहुत ही बुद्धिमान और नेक इंसान है। मैं उसके साथ मिलकर और आपके सहयोग से गाँव के बच्चों के लिए एक ऐसा स्कूल स्थापित करना चाहती हूँ जिसमें नवीनतम आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने के लिए सभी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध हों...' (पृष्ठ 544)
- एक प्रतिष्ठित पद को त्यागकर दूरवर्ती देहात में जाकर पुरुषार्थ का कार्य करना त्यागी साधु, महात्माओं का काम होता है। लाड़-प्यार और सभी सुख-सुविधाओं के साथ पली-बढ़ी यह लड़की वहाँ जाकर कैसे खुश रहेगी? (पृष्ठ 544)
- 'मम्मी जी, याद करो, कभी आपने ही कहा था कि एक शिक्षक देश और समाज के उत्थान में अधिक योगदान दे सकता है। आपने यह भी तर्क दिया था कि एक अधिकारी का दायरा सीमित होता है, जो कि उसके अपने विभाग के अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों तक ही सीमित होता है। आपने यह भी कहा था कि एक शिक्षक अपने सेवा-काल में न जाने कितनी भावी प्रतिभाओं के चरित्र निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान देता है। आपने यह भी कहा था कि समाज के निर्माण की चाबी शिक्षक के हाथ में है, न कि प्रशासक के। मैंने आपको वचन दिया था कि अगर मैं अपने लक्ष्य की प्राप्ति में नाकामयाब रही तो अवश्य एक शिक्षक बनकर आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करूँगी। मम्मी जी, वो समय अब आ गया है। मैं अपने काम का दायरा बढ़ाना चाहती हूँ। मैं एक शिक्षक बनना चाहती हूँ।' (पृष्ठ 545)
- 'देखो सुशीला! भगवान, इंसान के भाग्य की लकीर उसी दिन खींच देता है, जिस दिन इंसान धरती पर पैदा होता है। कोई माने या न माने, मैं तो इस उपपत्ति पर यकीन करता हूँ। त्याग की भावना उसी में होती है जो महान होता है। इसलिए हमारे लिए यह समय खुशी का होना चाहिए, न कि पश्चाताप का।' (पृष्ठ 546)
कहना होगा कि इतना वृहद अंक, जो महत्वपूर्ण घटनाओं से ओत-प्रोत है; में एक तरह से लेखक की भी अग्नि-परीक्षा होती है, लेखक ने संवादों, कथोपकथनों, परिवेश के चित्रण सभी में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है। अस्तु, एक प्रकार से उपन्यासकार पाठकों का दिल जीतने में सफल रहे हैं।
अभी उपन्यास की 10 और कड़ियाँ शेष हैं जो 400 पृष्ठों में समाहित होंगी, में भी श्री किशोर शर्मा जी सारस्वत की लेखनी का जादू देखना शेष है।
तो आनन्द लीजिए, उपन्यास के 10 और खूबसूरत अंकों का।

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 31 की

कथानक : कविता के स्थानान्तरण पर विदा होते समय भीतर से उसके हृदय में एक तड़प थी। रमन और उसके बीच जो दीवार खड़ी हो गई थी, वह स्थानान्तरण से और भी मजबूत होनी थी।
रमन की पाठशाला बंद हो गई क्योंकि किसी उसके अपने ने ही पाठशाला में शराब का कार्टून रख दिया था। आखिर वह कौन था? इसका पता रमन के साथियों ने लगा लिया और यह भी उससे लिखवा लिया कि किस तरह केहर सिंह ने उसे 500 रुपये का लालच देकर यह काम कराया था। यद्यपि जिसने यह किया, उसके लिए अब बहुत शर्मिंदा था। बहरहाल, छांगू राम नाम के उस आदमी की लिखित मूल प्रति वकील को सुपुर्द कर दी गई।

उपन्यासकार ने अब दोषियों की परतें खोलने का काम आरम्भ कर दिया है अत: कथानक में रोचकता बढ़ती जा रही है।
इस अपेक्षाकृत छोटे अंक में दो महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुई हैं- 1.कविता का स्थानान्तरण होने से उसका कार्यमुक्त होना तथा 2.पाठशाला में शराब की बोतलों के पाए जाने के कांड का भंडाफोड़ होना।
कार्यमुक्त होने के बाद कविता के मन में उमड़े विचार यहाँ द्रष्टव्य हैं:
रमन की बेरुखी उसे और भी परेशान किए जा रही थी। आखिर ऐसा कब तक चलेगा? उसे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था। मेरी और उसकी स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर है। मुझे मेरे पद की गरिमा बनाए रखने का बंधन है, परंतु वह तो बंधनमुक्त है। मैं तो उससे मिलने राधोपुर नहीं जा सकती, परन्तु उसे यहाँ पर टोकने वाला कोई नहीं है। एक स्त्री होने के नाते मेरी कुछ मजबूरियाँ हैं, परन्तु उस पर तो कोई ऐसी विवशता नहीं है। कितना अच्छा होता, आज वह मेरे बगल में या सामने बैठकर इन पलों की तन्हाई में मेरे साथ होता। आदमी कितना भी कठोर हो, स्त्री का हृदय कोमल होता है। वह कठोरता में भी उस कोने को तलाशती है, जिसमें प्यार की जरा सी भी आहट हो। कविता आज उसी आहट को महसूस करना चाहती थी, एक मृगतृष्णा की तरह। (पृष्ठ 480-81)
लेखक ने यहाँ कविता के मन को टटोल कर उसके मन की परतें खोली हैं। आज दो व्यक्ति मन के साथ स्थान से भी दूर हो गए हैं लेकिन कविता के मन के उद्गार उसके मन को प्रतिबिंबित कर रहे हैं। देखना यह है कि इस कपल का मिलन अब कहाँ होता है।

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
1.1. 2025
5:30 a.m.

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 30 की

कथानक : पाठशाला बंद होने के साथ ही झूठी बदनामी होने से रमन टूट गया था। हालांकि उसके शुभचिंतक उसके साथ खड़े थे। लेकिन बहुत दिनों तक घर में बंद रहने के बाद एक दिन औयखेतों की तरफ क्या गया, वह सब कुछ भूल कर आगे बारिश में भी बढ़ता चला गया और एक पहाड़ी पर बने मंदिर में पहुँच कर वहाँ अर्धचेतन अवस्था में पहुँच गया।
उधर, रमन की माँ बदहवास हालत में माधो के घर पहुँची। बाद में रमन के दो दोस्तों- राकेश और जसवंत ने उसे ढूँढ निकाला व उसे किसी तरह घर लेकर आए।
इधर बहनोई राजू की नियुक्ति शिमला होने से राजू व जयवंती उससे मिलने राधोपुर आए तो उन्हें रमन बुखार से ग्रस्त मिला। रमन को शहर में डाॅक्टर से उपचार लेकर राजू पुन: राधोपुर ले आया और जयवंती को कुछ दिनों के लिए राधोपुर ही छोड़ दिया।
रमन के कहने पर राजू कविता से मिलने गया तो पता चला कि वह अपना कार्यभार छोड़कर नये पदस्थापन के लिए जा चुकी है।

उपन्यासकार ने इस अंक में मुख्यत: रमन की वर्तमान शारीरिक व मानसिक अवस्था से परिचय कराया है। इस बीच एक दिन उसकी माँ ने विवाह करने की जिद की तो उसके सामने मानो कविता उपस्थित हो गई और वह कविता का नाम जैसे निद्रावस्था में बड़बड़ाने लगा।
उसी संदर्भ के माँ-बेटे के बीच संवादों के कुछ अंश प्रस्तुत हैं:
- 'बेटा, तू धीरे से क्या बोल रहा था? मुझे कुछ समझ नहीं आय। क्या कह रहा था तू?'
- 'कुछ नहीं अम्मा जी, आपको भ्रम हुआ है। मैंने तो कुछ भी नहीं कहा।'
- 'न बेटा न, मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ है। तू कुछ कविता-कविता कह कर बोल रहा था...अब बोल, पकड़ा गया न? कौन है यह कविता?"
- 'अम्मा जी, कविता सुरम्य और सरस शब्दों का संगम है, मन की भावनाओं का उद्गम है। एक ऐसा शब्द है, जिसका विच्छेद करो तो गागर में सागर है।'
- 'न...न...न...बेटा, मेरी समझ में कुछ नहीं आया। तू मुझे सीधी सरल भाषा में समझा।'
- 'इसमें मुश्किल क्या है अम्मा जी? सीधी सी बात है, खुशी के मौके पर गाँव की औरतें गीत गाती हैं न, वे कविता ही तो होती हैं, एक प्रकार की। लयात्मक शब्दों के जोड़ को ही कविता कहते हैं।' (पृष्ठ 467)
लेखक शनै:शनै: उपन्यास के कथानक को विस्तार दे रहे हैं जिसमें जीवन को संघर्ष का पर्याय बताने की कवायद इस अंक में अत्यधिक मुखर हो उठी है।

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
31.12.2024

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 29 की

कथानक : रमन जमानत पर छूट कर आया तो उसके समर्थन व स्वागत में उसके घर पर समर्थकों का हुजूम था। लेकिन रमन को वहाँ नंदू ताऊ दिखाई न देने पर शंका हुई तो उसके घर पर एक व्यक्ति को भेजने पर पता चला कि ताऊ के बाएँ हिस्से में लकवा हो गया था। बाद में उसे गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ उसे वेंटिलेटर पर रखा गया यद्यपि ताऊ के बचने की आशा न थी।
उधर एसडीएम कविता को राधोपुर जाकर भारी मन से ऊपरी आदेश की पालना में पाठशाला को सील करना था। उस समय रमन वहाँ नहीं था क्योंकि रमन को ताऊ के पास अस्पताल जाना पड़ा था।
पाठशाला को सील करते समय कविता का रमन की माँ से सामना हुआ था, इन विकट परिस्थितियों में। हालांकि ग्रामीणों के भारी आक्रोश के बीच विनम्रता से समझा कर कविता ने उन्हें शांत कर दिया था। उधर नंदू ताऊ को डाॅक्टर ने घर ले जाने की सलाह दे दी थी अत: घर लाते-लाते ताऊ के प्राण-पखेरू उड़ गए थे।
कविता दो सप्ताह के अवकाश पर अपनी मम्मी-पापा के घर चली गई जहाँ उसकी भुवा सुमित्रा को भी बुला लिया गया था। शिमला में कविता के मन को कुछ शांति मिली किन्तु तभी उसे ऑफिस से फोन आया कि उसे स्थानांतरित कर दिया गया है अत: उसे तुरंत नये स्थान पर कार्यग्रहण करना था।
कविता ने स्वयं को प्रथम बार इतना अकेला और कमजोर अनुभव किया था।

उपन्यासकार द्वारा इस अंक में रमन व कविता की विषम परिस्थितियों का कारुणिक वर्णन अंकित है। इन स्थितियों में रमन व कविता ही नहीं, बल्कि रमन के परिवारजन दुष्चक्रों में फंसकर तो कविता के परिजन उसकी व्यस्तता तथा विवाह के लिए हाँ न करने को लेकर परेशान थे।
यहाँ प्रस्तुत हैं, बुआ सुमित्रा व कविता के बीच के वार्तालाप के अंश क्योंकि कविता के मम्मी-पापा ने उसके विवाह सम्बन्धित प्रकरण की जिम्मेदारी सुचित्रा को सौंप दी थी:
- 'शादी के बारे में तेरा क्या विचार है?'
- 'जरूरी है?'
- 'यह तो जमाने का दस्तूर है। राजा की बेटी को भी पराये घर जाना पड़ता है। हर चीज उम्र के लिहाज से ही अच्छी लगती है।'
- 'बुआ जी, इस समय मैं ऐसी स्थिति में नहीं हूँ कि आपको कोई सीधा जवाब दे सकूँ। यह ऐसा विषय है, जिस पर तुरंत निर्णय कर पाना सम्भव नहीं है।'
- 'परन्तु कब तक? भैया और भाभी तेरी शादी को लेकर चिंता में हैं। हर माँ-बाप का एक सपना होता है, औलाद की खुशी का। तू नहीं जानती, वे इस घड़ी के लिए कितने उत्सुक हैं।'
- 'बुआ जी, मैं किसी के दिल को ठेस पहुँचाना नहीं चाहती हूँ। परन्तु फिलहाल मैं अपनी जिन्दगी की किताब में कोई नया पन्ना नहीं जोड़ना चाहती। कार्यालय में घटित कुछ ऐसी बाते हैं, जिनका मुझ पर काफी मानसिक दबाव रहा है और उसी से उबरने के लिए मैं यहाँ पर आई हूँ।' (पृष्ठ 457-58)
लेखक ने कविता का स्थानांतरण करवा कर एक नई विषम स्थिति पैदा कर दी है। अब यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि वे अपनी कल्पनाशक्ति से किस प्रकार उपन्यास के नायक-नायिका में पुन: सामंजस्य बिठाते हैं।

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया
30.12.202

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 28 की

कथानक : रमन कविता के राधोपुर आने और पाठशाला देखने के समाचार से अत्यधिक उत्साहित था। अभी रमन की बहन भी पीहर आई हुई थी।
रात हुई तो जब सभी सो रहे थे कि कुत्तों के भौंकने का स्वर बुलंद हुआ। अचानक रमन के घर के गेट को पुलिस ने डंडे से खटकाया। पुलिस ने रमन के घर पर एक कमरे में पाठशाला की तलाशी ली तो उसमें शराब की बोतलों का एक कार्टून रखा था जो वस्तुत: विरोधियों की रमन को गिरफ्तार करने व पाठशाला बंद करने की साजिश थी। पुलिस वालों को रमन को गिरफ्तार कर ले जाने में बहुत सारे लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। बदतमीज एएसआई के तेवर लोगों के आक्रोश को देखते हुए ही कुछ ढीले पड़े थे।
रमन को जीप में ले जाते समय रात्रि के तीसरे पहर में ड्राइवर भी उनींदी आँखों से गाड़ी चला रहा था। अचानक ड्राइवर ने पूरी शक्ति से ब्रेक लगाए और जीप गीली मिट्टी में धँस गई। एएसआई आगे की ओर औंधे मुँह गिरा, लहूलुहान हो गया। रमन को खरोंच तक न आई, शेष सभी के हल्की चोटें आईं। रमन ने जेब से रुमाल निकाल कर एएसआई के माथे पर बाँध दिया। अब एएसआई ने रमन से माफी माँगी। दूसरे दिन रमन को जमानत मिल गई।
उधर स्थानीय विधायक के पाला बदल कर सत्ता पक्ष में शामिल होने से केहर सिंह फिर विधायक के पास पहुँच गया और उन्हें झूठ परोस कर रमन की पाठशाला में मिली शराब की बरामद बोतलों की अखबार में छपी खबरों के आधार पर रमन की पाठशाला को दारू का अड्डा मानते हुए उसे बंद करने की जिला प्रशासन को हिदायत दी।
उधर एसडीएम कविता तो राधोपुर ग्राम जाकर पाठशाला का अवलोकन करना चाह रही थी लेकिन उसे पाठशाला तुरन्त बंद करने सम्बनधी जिलाधीश से आदेश प्राप्त हुए। कविता जानती थी कि इन सबके पीछे किनकी साजिश थी। उसने राजू को कहा कि वह रमन को संदेश पहुँचाने का काम करे कि वह चिंता न करें, झूठ और पाखंड अधिक दिन तक नहीं टिकते क्योंकि जीत सच्चाई की ही होती है।

उपन्यासकार ने फिर से दिखाया कि जीवन में पग-पग पर संघर्ष झेलने पड़ते हैं और यही रमन व कविता के साथ भी हो रहा था।
नीचे कुछ महत्वपूर्ण अंशों की बानगी प्रस्तुत है:
- कुत्ता कितना वफादार जानवर है। रोटी का एक टुकड़ा मिलने पर भी सब्र कर लेता है। कोई अगर डंडा मार दे तो भी प्रतिशोध की भावना नहीं रखता। इंसान पर जब भी कोई बाहरी खतरा आता है, वह (कुत्ता) आगे होकर उसकी रक्षा करता है। इन्हें देखकर तो इंसान को सभ्य कहलाने में भी शर्म आनी चाहिए। (पृष्ठ 429)
- एएसआई खुश्क और रौबदार आवाज में बोला, 'रमन पुत्र जगपाल, निवासी राधोपुर कौन है?'
- 'मैं हूँ।'
- 'पढ़े-लिखे हो?'
- 'जी हाँ।'
- 'क्या काम करते हो?'
- 'अशिक्षित प्रौढ़ लोगों को पढ़ाता हूँ।'
- 'इसके अलावा कोई और भी काम करता है क्या?'
- 'जी नहीं।'
- 'क्यों झूठ बोलता है।'
- 'आप कहना क्या चाहते हो?'
- 'बतलाने में शर्म आती है क्या? शराब का धंधा कब से चालू किया है?'
- 'शराब, मैं?'
- 'और क्या मैं अंग्रेजी बोल रहा हूँ। समझ नहीं आती मेरी बात? सच-सच बतला दे, नहीं तो मेरे पास दूसरा तरीका भी है। मेरे आगे तो भूत भी नाचते हैं। बड़े-बड़े अकडू सीधे कर दिए हैं, तू तो चीज़ ही क्या है?' (पृष्ठ 431)
लेखक ने समाज का वह सच दिखाया है जिसमें झूठे राजनेता अपराधी बनकर अच्छे, भले लोगों के विरुद्ध थाने व प्रशासन को भी पंगु बना देते हैं। समझ नहीं आता, यह कैसा लोकतंत्र है?

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
29.12.202

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 27 की

कथानक : कविता की मम्मी का शिमला से फोन आया था तो कविता ने उन्हें अगले सप्ताह आने की हामी भर दी। यह समाचार सुनकर तो कविता के मम्मी-पापी का मन खुश हो गया। लेकिन दूसरे ही दिन कविता को अगले सप्ताह से प्रारंभ होने वाले चार सप्ताह के प्रशिक्षण की सूचना प्राप्त हो गई। अब कविता को वापस फोन कर मम्मी को मना करना पड़ा।
चूँकि गाँव में अभी फोन की सुविधा उपलब्ध न थी अत: कविता ने राजू को फोन कर कहा कि वह उसकी चार सप्ताह की प्रशिक्षण अवधि की सूचना रमन तक पहुँचा दें ताकि वह उस दौरान यहाँ आने की परेशानी न उठाएँ। साथ ही कहा कि प्रशिक्षण का विषय ग्रामीणों की भलाई से जुड़ा है अत: वह वापस आने पर राधोपुर का दौरा कर सकेगी।

आइए, इस छोटे से अंक के कुछ भावनात्मक संवादों व तथ्यों पर दृष्टिपात करें :
- 'मम्मी! बेटी बोझ तो तब होती है जब वह छोटी होती है। उसे हर समय गोद या कंधों पर उठाना पड़ता है। अब तो मैं अपने पाँवों पर खुद चल सकती हूँ तो बोझ की बात कैसे बन गई?' (पृष्ठ 424)
- जब प्राणी बेबस हो जाता है तो प्रकृति सहारा बनकर उसका साथ देती है। आखिर प्राणी जगत प्रकृति का ही तो एक अंश है। जैसे निद्रा में देखा गया स्वप्न जागने पर यादों से विलुप्त हो जाता है उसी प्रकार गुजरते समय की भूलभुलैया में खोकर इंसान बीते वक्त के दु:ख-दर्द को अपने जेहन से उतार देता है। (पृष्ठ 425)
उपन्यासकार कई स्थानों पर अपनी गंभीर विवेचना से सूक्ति वाक्य रच देते हैं जो उपन्यास के शिल्प और कथ्य की शोभा बढ़ाते प्रतीत हो रहे हैं।

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
28.12.2024

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 26 की

कथानक : अन्तत: ज्ञात हुआ कि जगपाल केस की जाँच का काम अतिरिक्त उपायुक्त को दिया गया जो अगले ही दिन राधोपुर आ भी गए। लेकिन केहर सिंह बीमारी का बहाना बनाकर पंचायत भवन नहीं पहुँचा ताकि जगपाल को चुनाव लड़ने से रोका जा सके। उसने अपने भतीजे के जरिए कहलवा दिया कि सुनवाई दोनों पक्षों के सामने ही होनी चाहिए। उसकी यह अपील मानकर सुनवाई अगली अघोषित तिथि तक टाल दी गई।
एक दिन रमन शहर अम्मा को यह कह कर गया कि वह अपनी बहन जयवंती से मिलना चाहता है। इस तरह उसे जाँच की प्रगति बताने के नाम पर कविता से भेंट करने का बहाना भी मिल गया लेकिन वह अकेले जाकर कविता से मिलना नहीं चाहता था क्योंकि ऐसा करने से कविता की ही स्टाफ के सामने छवि खराब होती।
पहले रमन बहन से मिला और बाद में बहनोई बने मित्र राजू को साथ लेकर कविता से मिलने ऑफिस में पहुँचा।
जब कविता को पता चला कि रमन की बहन का ससुराल इसी शहर में है तो उसने उलाहना दिया कि बहन को क्यों साथ नहीं लाए? साथ ही कहा कि अब छुट्टी के दिन घर लाना, उसे प्रतीक्षा रहेगी। रमन को कहना पड़ा कि उसकी बहन इस इतवार को तो राधोपुर आएगी।
हँसी-मजाक के बीच रमन ने केस की प्रगति के सम्बन्ध में भी अवगत कराते हुए कहा कि सरपंच ने बीमारी का बहाना बनाकर एडीसी साहब को गच्चा दे दिया।
अब राजू ने मैडम से निवेदन किया कि आप राधोपुर जाकर रमन द्वारा विद्या मंदिर को देखने का समय निकालें।
एसडीएम से मिलने कोई अन्य आ गए तो राजू व रमन जाने के लिए उठ खड़े हुए थे। रमन व कविता दोनों ने आँखों ही आँखों में एक दूसरे के प्रति आसक्ति दिखाते हुए विदा ली।

उपन्यासकार ने इस अंक में एक नई बात यह दिखाई कि राजू भी रमन व कविता के बीच के सामीप्य व अपनेपन से अवगत हो गया। शनै:शनै: दोनों के बीच प्रीत की डोर सुदृढ़ होती जा रही है। इस अंक में रमन व उसकी माँ के बीच संवाद तथा रमन की सोच दिखाती पंक्तियाँ पाठकों को परोसी जा सकती हैं:
'क्यों हँस रहा है बेटा?'
'अम्मा जी, आप तो मुझे अभी भी छोटा बच्चा समझ रही हो। मैं अब बड़ा हो गया हूँ, अपनी जिम्मेदारी को समझता हूँ। मेरे होते हुए आपको मन पर बोझ लाने की जरूरत नहीं है।'
'अच्छा! बड़ा हो गया है तो शादी क्यों नहीं करवा लेता? माँ सारा दिन घर में अकेली रहती है।'
'फिर तो अम्मा जी, आप भी मेरे साथ शहर चलो। बहू पसंद कर लेना, साथ लेते आएँगे।'
'तू पहले ढूँढ तो ले बेटे, मैं बाद में पसंद कर लूँगी।'
वह सोचने लगा माँ को क्या मालूम है, जिस बात को वह हँसी में कह रही है वह कितनी सच्ची और कितनी अधूरी है। सच्ची इसलिए कि उनके प्यार की डोर अविचल, अविरत, अविरुद्ध, निश्चल और निस्वार्थ है। उसमें न तो कोई गाँठ है और न ही खण्डित होने का भय। शारीरिक लोलुपता से कहीं दूर दो आत्माओं का मिलन। मीमाँसा पूर्ण सोच, जिसमें हृदय और मस्तिष्क दोनों एक साथ हैं। आधुनिक पाश्चात्य सोच के विपरीत विशुद्ध भारतीय सभ्यता की देन। अधूरी इसलिए कि यथार्थ को परवान चढ़ाने की डगर केवल लंबी ही नहीं, अपितु कठिन भी है।
कविता के माता-पिता की इच्छा क्या है? वह नहीं जानता, वे कौन लोग हैं? उसका भी उसे पता नहीं। क्या ऐसी स्थिति में उनका परिवार, उनकी बिरादरी और समाज इस रिश्ते को स्वीकृति देगा? बेशक, उसकी अपनी ओर से कोई बाधा नहीं है। वह हर बंदिश को तोड़ने के लिए तैयार है..परन्तु यह तो उसकी अपनी सोच है। दूसरे पक्ष का निर्णय तो उसके वश में नहीं है। (पृष्ठ 408-09)
लेखक ने रमन के बारे में यहाँ सब-कुछ स्पष्ट कर दिया है। क्या कविता का भी यही रुख होगा? यह आगामी अंकों में ही स्पष्ट ही सकेगा।

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
27.12. 202

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 25 की

कथानक : राधोपुर ग्रामवासी नेक जगपाल को ग्राम प्रधान (सरपंच) बनाना चाहते थे और बेईमान केहर सिंह को पटखनी देकर सबक सिखाना। लेकिन एसडीएम से मिलकर आए रमन व दो साथियों से पता चला कि इस केस की जाँच का काम केहर सिंह द्वारा जिलाधीश को अनुरोध पत्र के कारण कविता से किसी अन्य को दे दिया गया है। अब जाँच की प्रतीक्षा करने के सिवाय कोई विकल्प न था।
रमन व कविता असमान पद व व्यक्तित्व होने के बावजूद दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे। दोनों के मन एक दूसरे के लिए व्याकुल थे लेकिन भविष्य में कविता कहाँ स्थानांतरित कर भेज दी जाएगी आदि सब कुछ अनिश्चित होने से वे न तो अधिक मिल सकते थे और न अपने मन की बात किसी से साझा कर सकते थे।
केवल वैचारिक आँधियाँ दोनों के मन में उमड़ती-घुमड़ती रहतीं और वे इस पूरे अंक में व्यथित दिखाई दिए।

उपन्यासकार ने कविता की नौकरानी जिसे वह माई कहती थी, से उसके वार्तालाप तथा रमन की अम्मा की बेटे से बातचीत निम्न संवादों के अंशों द्वारा द्रष्टव्य है:
*कविता व माई:*
- 'क्या बात है माई? आप अभी तक यहीं पर खड़ी हो।'
- 'साहिब, अगर आप हुक्म करें तो बोलूँ?'
- 'हाँ...हाँ, बोलिए क्या बात है?"
- 'आप बहुत बड़ी अफसर हैं, मैं एक छोटी सी नौकरानी हूँ। आपके सामने बोलना मुझे शोभा नहीं देता। फिर भी उम्र में बड़ी होने के नाते मेरा भी कुछ फर्ज बनता है। आपका अकेले कई बार यूँ चुपचाप रहना मुझे अच्छा नहीं लगता, इससे सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए मेरा तो यह मानना है, दफ्तर की बातें वहीं पर छोड़ देनी चाहिए और घर पर सुकून की जिंदगी जीनी चाहिए।' (पृष्ठ 393)
*रमन व अम्मा:*
- 'बेटा, क्या हो गया है तुझे? तेरी तबीयत तो ठीक है न? अँधेरे में किस लिए बैठा है? रोशनी तो जला ली होती। मुझे बता, क्या बात है?'
- 'मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मेरी तबीयत को कुछ नहीं हुआ है।'
- 'बेटा, माँ हूँ न, मैं नहीं मान सकती। शहर गया था, क्या वहाँ पर कोई ऊँच-नीच हो गई है?'
- 'अरे नहीं अम्मा जी! ऊँच-नीच किस बात की।'
- 'तू जरूर मुझ से छुपा रहा है।' (पृष्ठ 397)
शादी की बात भी माई ने कविता से तथा अम्मा ने रमन से उठाई थी, लेकिन दोनों के पास इसका कोई उत्तर न था।
इस प्रश्न का उत्तर अगले अंकों में छिपा है...देखते हैं, लेखक अपनी कलम द्वारा इनके और कितने संघर्ष पाठकों के समक्ष उजागर करते हैं।

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
26.12.2024

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 24 की

कथानक : सरकार बदलने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों के स्थानांतरण की सूचियां बनने लगीं। सबसे पहले जिला स्तर पर नये उपाचार्य नियुक्त हुए जिन्होंने आते ही समस्याओं सम्बन्धी प्रार्थना पत्रों पर कार्यवाही आरम्भ कर दी। केहर सिंह का प्रार्थना पत्र देखकर उन्होंने जगपाल का केस कविता से हटाकर किसी और को दे दिया जिससे कविता को घोर निराशा हुई।
वह अकेले ही सोच-सोचकर विचलित होती रही हालांकि वह रमन से इस बाबत बात करना चाहती थी।
एक बार दो लोगों के साथ रमन, कविता से मिलने पहुँचा और बताया कि गाँव के लोग आगामी चुनाव में उसके पिताजी को खड़े करना चाहते हैं लेकिन जब तक वे निर्दोष साबित नहीं हो जाते, चुनाव लड़ना अवैध है।
कविता ने बताया कि अब यह मामला किसी और को दे दिया गया है। रमन को यह सुनकर धक्का लगा।
बाद में कविता ने रमन को वापस बुलाकर उलाहना दिया कि वह क्यों मिलने नहीं आए जबकि वह काफी परेशान रही थी।
रमन ने पूछा कि परेशानी का क्या कारण था? कविता ने कहा कि आपके पिताजी पर केस के कारण ही, क्योंकि प्रतिद्वंद्वी उपाचार्य जी से स्वयं उससे केस वापस लेने के लिए मिल कर आए हैं।
काफी देर तक बात होने के बाद रमन को जाने से पहले कविता ने जाँच की प्रगति के बहाने ही सही, आने हेतु कहा।

उपन्यासकार ने इस अंक में देश के प्रति कर्तव्यनिष्ठ, समान विचारधारा किन्तु असमान पद व व्यक्तित्व के दो झिझकते, विवशता की डोर से बँधे, एक दूसरे के प्रति निष्ठावान एवं समर्पण रखने वाले प्रेम की ओर बढ़ते कपल का सधी हुई लेखनी से रोचक व मार्मिक चित्रण किया है।
कुछ बानगी देखिए:
- कविता ने बाहर निकले लोगों में से केवल रमन को अंदर बुलाने के लिए भेजा।
- 'माफ करना, उन लोगों के सामने मैं आपसे पूरी बात नहीं कर सकी। दूसरों के सामने कार्यालय की मर्यादा रखना भी जरूरी है।'
- 'मैं इस बात को समझता हूँ...घर और कार्यालय दो अलग जगह हैं और और इनकी परिस्थतियाँ भी एक दूसरे से भिन्न होती हैं। काफी समय हो गया, मैं भी इधर नहीं आया।'
- 'क्यों आपको किसी ने खूँटे से बाँध रखा था क्या?'
- 'कुछ ऐसा ही समझ लीजिए। खो देता है ईमान रोज का आना जाना। वरना आपसे मिलने की इच्छा तो सदैव बनी ही रहती है।'
- 'और कोई बहाना?'
- 'नहीं, और कोई बहाना नहीं है।'
- 'मैं पीछे परेशान रही और सोचती रही कि अगर आप होते तो अच्छा होता। किसी से मन की बात कह कर बोझ तो हल्का कर लेती।' (पृष्ठ 385)
लेखक एसडीएम कविता का चरित्र-चित्रण कुछ इस प्रकार करते हैं:
'पता नहीं, भगवान ने मेरा दिमाग कैसा बनाया है। मैं बड़ी से बड़ी विकट स्थिति से कभी नहीं घबराती, परन्तु अन्याय की एक छोटी सी बात भी मेरा मन विचलित करने के लिए काफी है। मेरा धैर्य मेरा साथ छोड़ देता है। आप भली भाँति जानते हो, मैं इंसाफ और इंसानियत का दामन थाम कर इस सेवा में आई हूँ।' (पृष्ठ 386)

कहना होगा कि लेखक जीवन के हर पहलू का रोचक और मर्मस्पर्शी चित्रण करने में सफल रहे हैं।

समीक्षक: डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
25.12.202

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