English Quote in Book-Review by Kishore Sharma Saraswat

Book-Review quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in English daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

पुस्तक-समीक्षा
समीक्ष्य कृति- उन्मुक्त उड़ान
विधा- बाल उपन्यास
लेखक- किशोर शर्मा ‘सारस्वत’
प्रकाशक- KVM प्रकाशन
प्रकाशन वर्ष- 2025
मूल्य-250/-
समीक्षक- यशपाल शर्मा ‘यशस्वी’

बाल मन की गहराईयों तक झाँकता उपन्यास ‘उन्मुक्त उड़ान’

“चिंता रहित खेलना खाना, वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भुला जा सकता है, बचपन का अतुलित आनंद।“
सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियाँ हम सभी ने कभी न कभी पढ़ी-सुनी अथवा गुनगुनाई अवश्य होगी। बचपन जीवन का वह कालखंड होता है जिसे प्रत्येक व्यक्ति अपने हृदय में कहीं न कहीं सहेज कर अवश्य रखता है। जीवन की अनवरत दौड़ में यह कामना हर हृदय में होती है कि काश मुझे मेरा बचपन दुबारा मिल पाता। किन्तु बीत कर पुनः आना समय के स्वभाव में है ही नहीं अतः यह कामना सर्वदा अतृप्त ही रह जाती है।
हिन्दी एवं अंग्रेजी के वरिष्ठ लेखक, कहानीकार एवं उपन्यासकार तथा इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर साहित्यकार श्री किशोर शर्मा ‘सारस्वत’ का बाल उपन्यास ‘उन्मुक्त उड़ान’ ऐसे ही बचपन की कहानी कहता है तथा अनायास ही पाठक को उस स्वप्निल सुनहरे लोक की यात्रा करवाने में सफल होता है। साथ ही साथ उपन्यासकार हमें एक विगत कालखंड की यात्रा पर ले जाते हैं तथा तत्कालीन देशकाल की परिस्थितियों को पूर्ण मनोयोग से अपने शब्दों में वर्णित व्याख्यायित करते हैं।
उपन्यास की आरंभिक पंक्तियाँ ही हमें वर्तमान से विलग कर अतीत के उस कालखंड की यात्रा के लिए तैयार करती हुई लगती है- “भारत देश के आजाद होने से कुछ समय पूर्व की बात है। अंग्रेजों की गुलामी का जमाना था। देश में सभी ओर अशिक्षा, गरीबी, और मूढ़ता का बोलबाला था।“ आजादी के पूर्व से लेकर लगभग एक दशक तक के कालखंड में इस उपन्यास के कथानक को पसरा हुआ देखा जा सकता है। जब तक देश न केवल आजाद हो चुका था वरन अपने संविधान सम्मत लोकतान्त्रिक स्वरूप को भी ग्रहण कर चुका था तथा 26 जनवरी के दिन विद्यालयों में गणतन्त्र दिवस का गरिमामय आयोजन भी हर्षोल्लासपूर्वक होता हुआ पाठकों को देखने को प्राप्त होता है। देबू हलवाई की दुकान पर ग्रामीणजन का जुटना तथा पाठशाला निर्माण संबंधी प्रारम्भिक प्रयासों का वर्णन एवं मत-मतांतर का संघर्ष तत्कालीन ग्रामीण परिवेश को मुखरता से अभिव्यक्त करते हैं। अंततः एक दर्जन छोटे-बड़े गांवों के मध्य इस एकमात्र प्राथमिक पाठशाला का निर्माण संभव हुआ। जल्दी ही पाठशाला में विद्यार्थियों के प्रवेश शुरू हुए। एक मास्टर जी की भी नियुक्ति हुई जो शाला भवन में ही निवास करते थे। उपन्यासकार के ही शब्दों में- “कुछ लड़कों के डील-डौल, शक्ल-सूरत और चेहरे पर उगने वाली दाढ़ी और मुछों की स्याही देखकर वह भौचक रह गए। सोचने लगे कि ये प्रथम कक्षा के बालक हैं या उच्चतर विद्यालय के विद्यार्थी? इन्हें अनुशासित करना, सिखाना और पढ़ाना तो बड़ी टेढ़ी खीर होगी। परंतु थोड़े दिनों में ही वह उनके साथ अच्छी प्रकार घुल-मिल गए। उम्र में बेशक वे अपनी सीमा लांघ चुके थे परंतु शिष्टाचार के नाते बहुत सभ्य और आज्ञा परायण थे। सुबह स्कूल के समय से पूर्व पाठशाला में आकर कमरों और आँगन की सफाई करना, पीने के पानी की व्यवस्था करना इत्यादि ऐसे कार्य थे जिन्हें वे प्रार्थना शुरू होने से पूर्व ही निपटा लेते थे।“
उपन्यास की इससे आगे की मुख्य घटनाएँ एक वर्ष के कालखंड में सिमटी हुई देखी जा सकती है जिसमें मुख्य पात्र विश्वनाथ का गाँव के विद्यालय में कक्षा 4 में प्रवेश करवाया जाता है तथा सत्रपर्यंत विविध घटनाओं से पाठक हर्ष, विस्मय तथा विरहजन्य विषाद जैसे मनोभावों से दो चार होते रहते हैं। कक्षा 3 तक शहरी विद्यालय में पढे विश्वनाथ के लिए इस ग्रामीण परिवेश में स्थित विद्यालय का परिवेश किसी अन्य ग्रह की यात्रा-सा विस्मयकारी होता है। उपन्यासकार के ही शब्दों में उस चित्र को दिखाया जाना मैं उपयुक्त समझता हूँ-
“विश्वनाथ अपने पिताजी के पीछे खड़ा हुआ चुपके से कभी मास्टर जी द्वारा पहने हुए कपड़ों को, कभी पाठशाला के कमरे को, तो कभी नीचे बिछाए हुए टाट पर सभी बच्चों को एक ही कतार में बैठे हुए देखकर निर्णय नहीं कर पा रहा था कि क्या यह स्कूल है या बच्चों का चिड़ियाघर।“
ऐसा ही विस्मय उसके सहपाठी विद्यार्थियों को भी होता है जब वह अपने पूर्व विद्यालय की स्मृतियाँ एवं अनुभव उनके साथ साझा करता है। अग्रांकित संवाद में इसकी बानगी भी देखी जा सकती है-
“और क्या ऐसी बातें हैं उस स्कूल में जो हमारी वाली पाठशाला में नहीं है।“
“सुनोगे तो कान खड़े हो जाएंगे तुम्हारे।“
“तो बता यार, होने दे हमारे कान खड़े।“
“अच्छा! तो सुनो। पर यार चलते हुए बात का आनंद नहीं आएगा। कहीं बैठते हैं।“
इस संवाद में हम देखते हैं कि उपन्यासकार ने बालकों के व्यवहार को पूर्ण सहजता से चित्रित किया है। साथ ही इस संवाद में विश्वनाथ के चरित्र के कुछ घटक भी प्रकट होते हैं। शहरी विद्यालय में पढ़ा हुआ बालक विश्वनाथ जब इस ग्रामीण पाठशाला में प्रवेश लेता है तो भोले एवं अपेक्षाकृत अनाड़ी विद्यार्थियों के मध्य उसकी श्रेष्ठता कुछ हद तक स्वयमेव सिद्ध हो जाती है। कुछ समवयस्क बच्चों के मध्य वह नेतृत्वकर्ता बन जाता है तथा शेष उसके पिछलग्घू। उसके लिए किसी से प्रतिस्पर्द्धा करने की आवश्यकता ही शेष नहीं रहती। नाना-नानी के लाड़-दुलार के चलते इन स्थितियों में उसके स्वभाव में निरंकुशता पनपने लगती है। यह निरंकुशता कालांतर में उसे उच्छृंखलता की ओर धकेलती है। उसकी शरारतों की अति मास्टर जी के लिए बड़ी परेशानी का कारण बनने लगती है। अपनी भूल का अहसास होने पर वह पुनः सुधरने का प्रयास करता है तथा विद्यालय के विभिन्न आयोजनों में प्रमुख सहायक एवं निदेशक की भूमिका भी निभाता है। बालकों में विद्यमान अतिरिक्त ऊर्जा का किस तरह सदुपयोग किया जा सकता है इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण इस उपन्यास में उपस्थित होता है। विश्वनाथ का चरित्र एक गतिशील चरित्र के रूप में चित्रित किया गया है तथा जिस स्वाभाविकता के साथ ये परिवर्तन घटित होते हैं वह पाठक को उपन्यास के अंत तक बांधे रखने में सक्षम है।
उपन्यास के प्रमुख पात्रों में विश्वनाथ, मास्टर जी, विश्वनाथ के माता-पिता, मामा-मामी व नाना-नानी के अतिरिक्त उसके बाल सखा भोलूनाथ, आज्ञा राम, प्रेम सिंह, जसवंत आदि गिने जा सकते है। भोलूनाथ अपने नाम के अनुरूप अत्यंत भोला है तथा अक्सर विश्वनाथ की शैतानियों का केंद्र बिन्दु भी बनता है। शेष बच्चों का चरित्र सामान्य रूप से उद्घाटित किया गया है। नाना-नानी विश्वनाथ के प्रति स्वाभाविक वात्सल्य भाव रखते हैं। काशी में अध्ययनरत मामा चैतन्य के चरित्र के विकास हेतु भी पर्याप्त प्रसंग उपन्यास में प्रस्तुत होते हैं। मामा-भांजे के संवाद में जिस तरह चैतन्य विश्वनाथ को विविध जानकारियाँ देता है उसे पढ़ना बाल पाठकों के लिए भी आनंददायक एवं शिक्षाप्रद लगेगा।
उपन्यास का दूसरा प्रमुख चरित्र मास्टर जी का है। उनका सादगीपूर्ण व्यक्तित्व, विश्वनाथ के प्रति स्नेह-भाव, सभी विद्यार्थियों का हित-चिंतन, स्वाभिमान, मिलनसारिता जैसे गुण उन्हें तत्कालीन शिक्षक समुदाय के प्रतिनिधि चरित्र के रूप में प्रदर्शित करते हैं। मास्टर जी के व्यक्तित्व के परिचायक उपन्यास के इस अंश को यहाँ उद्धरण के रूप में प्रस्तुत करना सर्वथा उपयुक्त होगा-
“यदि किसी दिन, किसी कारणवश, कोई छात्र पाठशाला से अनुपस्थित हो जाता था तो स्कूल बंद होने के पश्चात, शाम को मास्टर जी उसके गाँव जाकर उसके परिवारजनों से इसका कारण पूछते थे। इसलिए कभी भी किसी छात्र की हिम्मत नहीं हुई कि वह अकारण पाठशाला से अनुपस्थित रहे। लोगों का भी मास्टर जी से इतना अधिक स्नेह हो गया था कि नई फसल आने पर वे उन्हें भेंटस्वरूप इतना ज्यादा अनाज इकट्ठा करके दे देते थे कि अपने गुजारे लायक रखने के पश्चात भी वह दो ऊँटों पर अनाज अपने घर भेज देते थे।“
उपन्यास की भाषा शैली बाल पाठकों के अनुकूल एवं तत्कालीन परिवेश के चित्रण की दृष्टि से सहायक लगती है। संवाद पात्रानुकूल तथा कथानक के प्रवाह को बढ़ाने वाले हैं। यत्र-तत्र मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग उपन्यास में सरसता का संचार करता है। ग्रामीण पाठशाला में बच्चों द्वारा दोहराए जाने वाले कुछ गीत/कविताएँ तत्कालीन परिवेश के निर्माण में अत्यंत प्रभावी लगते हैं। “हवा! हवा! जल्दी आ/ मेरी तख्ती को सूखा।“ या “चिड़िया! चिड़िया! जल्दी आ/ मेरी दवात में स्याही पा।“ ऐसे ही गीतों की कुछ पंक्तियाँ है।
समीक्ष्य कृति बालकों एवं बड़ों सभी के द्वारा पढ़ी जाने योग्य है। एक अच्छे बाल उपन्यास के सभी प्रमुख तत्वों का समावेश इस कृति में सहजता से दिखाई देता है। आकार में अपेक्षाकृत बड़ा होते हुए भी घटनाओं का गुंफन इस तरह से किया गया है कि पाठक इसे अंत तक पढ़ने के बाद ही छोड़ पाता है। मुख्य पात्र की बाल सुलभ चेष्टाओं का अकृतिम वर्णन सभी पाठकों को लुभाता है। उपन्यास का अंतिम भाग पाठकों की पलकें नम करने में सक्षम लगता है। आवरण पृष्ठ पर उपन्यास की घटनाओं का प्रतिनिधित्व करता रंगीन चित्र आकर्षक लगता है। 121 पृष्ठ के इस उपन्यास के भीतरी पृष्ठों पर भी यदि चित्र अथवा ग्राफिक्स दिए जाते तो यह बाल पाठकों को और अधिक रुचिकर लगता। साहित्य जगत में इस पुस्तक को पाठकों का पूर्ण स्नेह मिले तथा समीक्षकों की दृष्टि में भी यह कृति खरी साबित हो ऐसी कामना की जानी चाहिए।
शुभमस्तु।
यशपाल शर्मा ‘यशस्वी’
पहुँना, जिला- चित्तौड़गढ़
राजस्थान 312206
8104665141

English Book-Review by Kishore Sharma Saraswat : 112001885
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now