Hindi Quote in Book-Review by Kishore Sharma Saraswat

Book-Review quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 39 की

कथानक : समय का फेर कुछ ऐसा हुआ कि राधोपुर गाँव में जगपाल का परिवार जो कुछ भी नहीं था, अब सब-कुछ हो गया। रमन जब तक कलेक्टर पत्नी के साथ अपनी हनीमून ट्रिप से वापस लौट न आया, 'नन्दलाल अखाड़ा' को लेकर अंतिम स्वरूप दिए जाने का मामला टाल दिया गया था।
फिर जब रमन लौटा तो बैठक हुई और इसमें अखाड़े के लिए जमीन का बन्दोबस्त करना, साथ ही आवश्यक सुविधाओं हेतु धन उपलब्ध कराना आदि मुद्दे शामिल थे।
90 वर्षीय ताऊ हवा सिंह ने बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में यह भी तय हुआ कि अखाड़े का उद्घाटन ताऊ द्वारा ही किया जाएगा।
ऐन वक्त पर यद्यपि ताऊ का स्वास्थ्य बिगड़ गया और ताऊ के लिए कविता ने अपनी कार भेज दी। ताऊ अस्पताल में कुछ ठीक होकर आए, सुबह उद्घाटन किया और शाम तक चल बसे।

उपन्यासकार ने इस 20 पृष्ठीय अंक को केवल 'नन्दलाल अखाड़ा' पर केन्द्रित किया है। गाँव के पूर्व में रहे किसी प्रसिद्ध खिलाड़ी को इससे बेहतर श्रद्धांजलि नहीं हो सकती। इस परम्परा से निश्चय ही अन्य खिलाड़ी भी प्रोत्साहित होते हैं।
प्रस्तुत है, वे पंक्तियाँ जो किसी भी खेल और खिलाड़ी को महत्त्वपूर्ण बनाना प्रेरक एवं अनुकरणीय होता है:
- नन्दू ताऊ के पश्चात गाँव में कोई ऐसा पहलवान नहीं हुआ जो उसकी बराबरी कर सकता। दंगल में बड़े-बड़े पहलवान दाँव-पेंच में उसके सानी नहीं थे। धोबी-पटका का ऐसा दाँव चलाता था कि अपने से भारी पहलवानों को धूल चटा देता था। (पृष्ठ 771)
समय के साथ बदलती परिस्थितियों ने पूर्व में अन्याय के प्रतीक केहर सिंह को अब एक अति सभ्य, दयालु और सौम्य पुरुष बना दिया था:
- 'मैंने अज्ञानतावश उस भद्र पुरुष (नन्दू ताऊ) के साथ काफी अन्याय किया था। अब मैं उस पाप को धोना चाहता हूँ। जमीन का जो भी टुकड़ा कुश्ती अखाड़े के लिए चयनित किया जाता है, भू मालिक को उसकी कीमत मैं अपनी ओर से अदा करूँगा।' (पृष्ठ 773)
- 'यह सब उस लड़के (रमन) की करामात है। भला हो उसका जिसने हम लोगों की आँखें समय रहते खोल दी हैं, वरना हम तो कुत्ते-बिल्लियों की तरह लड़ कर अपना समय बर्बाद कर रहे थे।' (पृष्ठ 779)
लेखक ने ग्राम प्रधान केहर सिंह के कहे संवाद से एक बहुत महत्वपूर्ण बात कह दी है। इसके लिए उनकी लेखनी की जितनी सराहना की जाए, कम है।

समीक्षक : डाॅ. अखिलेश पालरिया, अजमेर
23.01.2025

Hindi Book-Review by Kishore Sharma Saraswat : 111966520
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now