समीक्षक-डॉ. ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
समीक्ष्य कृति : उन्मुक्त उड़ान
लेखक : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
विधा : बाल उपन्यास
प्रकाशक : के.वी. एम. प्रकाशन,चंडीगढ़-02.
प्रथम संस्करण : 2025.
मूल्य : ₹250/- ,पृष्ठ :121.(पेपर बैक)
" बाल मनोविज्ञान पर आधारित बालोपयोगी उत्कृष्ट बाल उपन्यास : उन्मुक्त उड़ान"
इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड्स होल्डर नामचीन उपन्यासकार
किशोर शर्मा 'सारस्वत' का सद्य प्रकाशित 121 पृष्ठीय बाल उपन्यास 'उन्मुक्त उड़ान' प्राप्त हुआ। इससे पूर्व इनके 'मेरा देश,बड़ी माँ, पुनर्जन्म एक यथार्थ,जीवन संघर्ष एवं भीष्म प्रतिज्ञा' पाँच उपन्यास हिंदी में तथा 'द ग्रैंड मदर,द रीबर्थ व माई कंट्री तीन उपन्यास अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुके हैं जो काफ़ी चर्चित,प्रशंसित एवं पुरस्कृत हुए हैं। इनके अतिरिक्त लघुकथा संग्रह- अबोध पग व द इनोसेंट स्टेप्स तथा अन्य अनेक कृतियाँ विविध विधाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास ' जीवन एक संघर्ष ' को इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज होने का गौरव प्राप्त है।
समीक्ष्य कृति 'उन्मुक्त उड़ान' इनका पहला बाल उपन्यास है जो बाल मनोविज्ञान पर आधारित कल्पना,यथार्थ और अनुभूति की त्रिवेणी से अनुस्यूत है। यह बहुत रोचक,
ज्ञानवर्धक, मर्म स्पर्शी एवं संदेशप्रद बाल उपन्यास है। इसकी भाषा बालकों के स्तर के अनुरूप सरल एवं बोधगम्य है तथा शैली अत्यंत सरस,मुहावरेदार व जिज्ञासा वर्धक है। इसमें बाल मन के भावों, परिस्थिति,प्रकृति एवं मनोद्वंद्वों का उद्घाटन अवसरानुकूल व प्रभावात्मक तरीके हुआ है।
समीक्ष्य औपन्यासिक कृति कथानक,पात्र, चरित्र-चित्रण,
संवाद, देशकाल-परिस्थिति, भाषा-शैली,शीर्षक,सन्देश और उद्देश्य की दृष्टि से प्रभविष्णु है। कथावस्तु का प्रमुख पात्र विश्वनाथ है, जो कक्षा चौथी का छात्र है। इसके पिताजी प्रियव्रत केंद्रीय सरकार के कर्मचारी हैं,जिनका तबादला राज्य से बाहर अहिन्दी प्रान्त में हो जाने के कारण विश्वनाथ के पढ़ाने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अतः प्रियव्रत अपनी पत्नी सुकन्या से विमर्श करके विश्वनाथ को उसके नाना-नानी के पास गाँव में पढ़ाने का निर्णय करके उनके पास ले जाते हैं। विश्वनाथ के नाना पंडित रघुनाथ व नानी सुभाषिनी यह जान कर बड़े प्रसन्न होते हैं, क्योंकि वे अपने पुत्र चैतन्य के काशी पढ़ने चले जाने के कारण अकेले रह गए थे। विश्वनाथ को गाँव की प्राथमिक पाठशाला में चौथी कक्षा में प्रवेश मिल जाता है । विश्वनाथ पढ़ने में होशियार व प्रतिभावान है।मास्टरजी भी उसकी प्रतिभा के कायल हैं।
विश्वनाथ प्रतिभावान होने के साथ-साथ शरारती भी है।
वह शहर के प्रगतिगामी वातावरण व शिक्षा के उच्च स्तर को छोड़ कर गाँव पढ़ने आने के कारण यहाँ के भोले-भाले विद्यार्थियों पर हावी रहता है, उनसे शरारत करता है और उन्हें उल्टी-सीधी सलाह भी देता है। यद्यपि इसके पीछे उसका कोई बुरा इरादा नहीं होता,बस बाल सुलभ चपलता एवं नटखटपन के कारण वह ऐसा करता है। इस सम्बंध में लेखक का कहना है कि - "बच्चों का मन तो बहुत चंचल होता है। यह किसी बंधन में नहीं बन्ध सकता। उन्मुक्त पक्षी की भाँति यह तो सदैव उड़ान भरने के लिए लालायित रहता है।अबोध बच्चों की चंचलता उसकी शरारतें और उनका अप्रत्याशित व्यवहार भले ही देखने में बहुत उत्साहपूर्ण और उद्दंड लगता हो, लेकिन उसके पीछे कोई विकृत मानसिकता नहीं होती, बल्कि एक शुद्ध मासूम और भावना-मुक्त गतिविधि होती है। (पृष्ठ-66.)
लेखक का उक्त कथन बालक की नैसर्गिक मनोवृत्ति व उसके मनोविज्ञान को रेखांकित करता है और इसी आधार पर उपन्यास का शीर्षक 'उन्मुक्त उड़ान' रखा है जो सर्वथा सार्थक एवं समीचीन है।
मास्टरजी इसी कारण विश्वनाथ की शरारतें माफ़ करते रहते हैं। उसका नाम उपस्थिति पंजिका से पृथक नहीं करते। वे कहते हैं कि "इतने बुद्धिमान और होनहार छात्र को मैं अपनी पाठशाला से क्यों जानें दूँगा?"(89.) लेकिन सत्यव्रत का तबादला पुनः अपने राज्य में हो जाने के कारण वे अपने पुत्र विश्वनाथ की टी.सी. विद्यालय से लेकर उसे अपने साथ ले जाते हैं। उपन्यास का अंत बड़ा करुणा जनक एवं हृदय स्पर्शी है। पाठशाला के मास्टर जी,छात्र,ग्रामीणजन,नाना-नानी सभी विश्वनाथ की विदाई से बड़े आहत हैं। सुधी-पाठकों की आँखें भी नम हो जाती हैं। उपन्यास पाठकों के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। यही उपन्यास की सफलता का प्रमुख आयाम है।।
स्वगत कथन एवं संवादों के माध्यम से लेखक ने पात्रों के चरित्र,गुण व विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। द्रष्टव्य है- " मास्टर जी को पूरा यकीन था कि इस कार्य को सफल बनाने में विश्वनाथ एक अच्छी भूमिका निभा सकता है। एक तो वह कुशाग्र बुद्धि का धनी था व दूसरे शहरी होने के नाते उसकी शुद्ध भाषा पर अच्छी पकड़ थी। इसलिए समारोह में प्रस्तुति देने हेतु, अपने द्वारा लिखित कथानक अनुसार, छात्रों को पूर्व अभ्यास कराने की तैयारी में उसे भी शामिल किया गया।" (91.)
कथावस्तु को रोचक व सुरुचिपूर्ण बनाने के लिए लेखक ने भावानुकूल भाषा के साथ अवसरानुकूल प्रार्थना,गीत,
कविता,सूक्ति,राष्ट्रगान,सरल मुहावरे,चिड़िया एवं हवा गीत आदि संवेदनात्मक रूप में प्रस्तुत किए हैं। यथा-" ऐ मालिक! तेरे बंदे हम... ऐसे हों हमारे करम... नेकी पर चलें और बदी से टलें ताकि हँसते हुए निकले दम...(31.)
"पाठशाला कोई घर नहीं/जहाँ अन्य बातेँ होतीं/यहाँ बातें होती ज्ञान की/ जीवन राहें तय होतीं....(46.)
मुल्तानी मिट्टी से पुती गीली तख़्ती को सुखाने के लिए-
'हवा-हवा जल्दी आ,मेरी तख़्ती को सुखा....। "
इसी प्रकार कुछ छात्र दवात में स्याही व पानी डाल कर घोल बनाते हुए गाते हैं-" चिड़िया-चिड़िया जल्दी आ/ मेरी दवात में स्याही पा...।(40.)
"दूध न कटोरा,गटागट पी", "ऊँट किस करवट बैठेगा" जैसे मुहावरों-सूक्तियों के माध्यम से भावों की सम्प्रेषणीयता में चार चाँद लगे हैं।
निष्कर्षतः किशोर शर्मा 'सारस्वत' प्रणीत बाल उपन्यास 'उन्मुक्त उड़ान' कथानक,भाव,भाषा शिल्प,संवाद,शीर्षक,
पात्र चरित्र-चित्रण,सन्देश,अभिप्रेत,प्रयोजन व उद्देश्य की दृष्टि से उत्कृष्ट एवं उपादेय है। इसके संवाद सारगर्भित, पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाले,कथा की गति को आगे बढ़ाने वाले एवं हृदय स्पर्शी हैं। शैली सरस, भाषा बालकों के स्तर के अनुरूप है तथा इसमें बाल मन की चंचलता,
निर्मलता,कल्पनाशीलता, भावुकता,एवं शरारत आदि का मनोविज्ञानपरक दर्शन सम्यक रूप से उद्घाटित हुआ है,जिसे पढ़कर पाठक अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकते। वे बालकों के भोलेपन, अप्रत्याशित व्यवहार व कार्यशैली से भावविभोर हो जाते हैं। यह बाल उपन्यास पाठकों को बहुत पसंद आएगा,ऐसा मेरा ध्रुव विश्वास है।
शुभकामनाओं सहित।
शुभेच्छु,
डॉ. ज्ञानप्रकाश 'पीयूष' ,आर.ई.एस.
पूर्व प्रिंसिपल,
साहित्यकार एवं समालोचक
# 1/258,मस्जिदवाली गली,तेलियान मोहल्ला,
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