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#kavyotsav_2 #मन -का-अभिलाषा चाहता हूँ कभी उड़ना आसमा पे पंक्षियों की तरह बाहें फैला के चाहता हूँ कभी समुद्र के लहरों को उतार लू मन के कैमरों में चाहता हूँ करूँ बातें प्रेम का प्रेमिका संग उन चांदनी रातों में चाहता हूँ कभी बन जाऊं बच्चा खेलूँ सारे खेल बचंपन के चाहत हूँ कभी बनकर बुजुर्ग बयां करू उनके अनुभव और दर्द चाहता हूँ कभी बन जाऊं नदी और मै प्रकृति का सैर करता चलू चाहता हूँ कभी बनकर वृक्ष फल और छाया दू सबको फ्री चाहता हूँ कभी बन जाऊं उनकी आंख़े जो देख न पाये है दुनिया को कभी है ऐसी ही कई चाहते जो है छिपी स्मृतियों के पीछे हटा उन स्मृतियों के घने धुंध उसमे लगा मन रूपी पंख जीवन के हर गलियों में बनकर एक अनुभवी शिक्षक सा अवलोकन करना चाहता हूँ शायद मैं यही सब चाहता हूँ।।!!
#kavyotsav -2 ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में पल में टूटते-बनते कितने सपने यहाँ कितने होते है आहत पल में यहाँ प्रतिक्षण चलता है दौर वाद-संवाद का कोई मूल्यों इसके पहचानता नही ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में यहाँ सुख ,दुख ,हँसी और रुदन है यहाँ होती भावनाओं की कितनी बौछार है बनती नही कभी सुर्खियां ये अख़बार के तू तो कवि है इस पर कविता ही कर ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में मानता हूँ इसका कोई अस्तित्व नही इनके मूल्यों पर ही केवल चर्चा तू कर एक तुझसे ही है आशा मेरा यूँ ना मुझको तू उदास कर ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में लिखते सब दृश्य जगत के भाव को अदृश्य जगत के भाव कोई लिखता नही अरे झेल जाते सभी दृश्य भाव को अदृश्य भाव सभी झेल पातें नही ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में खोखला कर देता यह अंदर से बाहर से स्वस्थ नजर आते सभी उठा कलम लिख इन छुपे भाव पर करा दे अवगत दुनिया से सभी ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में
#kavyotsav -2 #मैं_प्यार_करता_था_हाँ_जी_मैं_प्यार_करता_था मैं प्यार करता था हाँ जी मै प्यार करता था एक मेरे कालेज की लड़की थी जिसे मैं प्यार करता था उसकी सादगी, सूरत उसकी हर प्यारी बात न जाने क्यूँ मेरे दिल को यूँ ही मोह लेता था उस गीत,नब्जों में हसतें अदाओं में न जाने कैसे अपना अक्स देख मैं लेता था मैं प्यार करता था हाँ जी मै प्यार करता था एक मेरे कालेज की लड़की थी जिसे मैं प्यार करता था ओ दोस्त थी मेरी बस दोस्ती निभाता था उससे बात करता था पर अपने जज़्बात छुपता था उसको बिन बताये बेझिझक खूब प्यार करता था चल जाये पता उसको ऐसा कुछ न काम करता था मैं प्यार करता था हाँ जी मैं प्यार करता था एक मेरे कालेज की लड़की थी जिसे मैं प्यार करता था।
#kavyotsav_2 #शायद_तुमको_मुझसे_प्यार_था शायद तुमको मुझसे प्यार था तू कालेज आया करती थी मुझे सिलेबस सा पढ़ने के लिए यूँ साइड वाले बेंच पर बैठकर मुझे एकटक देखते रहना मुझे चुप बैठे देखकर यूँ ही मुझसे बाते करना ये सब क्या था? शायद तुमको मुझसे प्यार था मुझे केंटीन में ले जाने की जिद लाइब्रेरी में पढ़ने की जिद आकर चुपके से आँखों का ढकना कितना पढ़ा मुझे भी बता दे यही तेरी कोशिश रहता था यह सब क्या था? शायद तुमको मुझसे प्यार था आया करती थी मेरे पीछे-पीछे अपने सहेलियों के साथ बस स्टैंड तक बस में चढ़ना ,जाते हुए बॉय बोलना सी यू सून के साथ कल आने का वादा करना ये सब क्या था? शायद तुमको मुझसे प्यार था अब भी आती है तू मेरे साथ-साथ बस स्टैंड तक बस मतलब थोड़ा बदल गया है पहले सच में आया करती थी अब खवाबों में आती हो मैं भी तुम्हे यूँ ही नजर मिलाया करता था तेरी बातो में मै भी खो जाया करता था मेरे दिल में भी तेरा तस्वीर बस गया था ये सब क्या था? शायद मुझकों भी तुमसे प्यार था।।
#kavyotsav_2 # माँ तेरी ममता के छावं में रहना है माँ तेरी ममता की छाव में रहना है मैं भटक गया था इस दुनिया की चकाचौध में भूल गया था तेरी प्यार को अब छोड़ क्षणभंगुर प्यार को अब स्थायित्वता की और बढ़ना है माँ तेरी ममता की छावं में रहना है पाला है बहुत मेहनत से तू सोच सकता नही वहाँ तक मैं ख़ीला देती अपने अंश का भोजन कह कितना पतला हो गया है रे एक बार फिर तेरी गोदी में सर रख कर सोना है माँ तेरी ममता के छावं में रहना है। कितना दर्द सही है तू मेरे लिए पापा के हर डाट से बचायी है तू मुझे तेरे हाथों से खाने के लिए कितना लड़े-झगड़ें है एक बार फिर तेरे हाथों से खाते रहना है माँ तेरी ममता की छावं में रहना है मैं था बीमार दर्द से कराह माँ माँ पुकार रहा था तू सोई नही थी रात भर जैसे अपना दर्द सा हो रहा हो अब तो ऐसे ही तुझे पुकारते रहना है माँ तेरी ममता की छांव में रहना है
#kavyotsav -2 #गावँ_और_आधुनिकता बहुत दिनों बाद मैं गावँ लौटा था देख दशा गावँ की आँखे रह गयी खुली मन में ऐसे कितने प्रश्न उठ रहे थे जामुन , बरगद, और नीम कट गए कहाँ गये चिड़ियों का झुण्ड? बच्चे खेलते नही दिख रहे कहाँ गए गायों का झुण्ड? इतने में बोल उठा उनका पड़ोसी आम का पेड़ जमुना तो विवादित ही था बरगद चढ़ा स्कूल का भेंट नीम कटवा दिया सरपंच ने जो पड़ रहा था सड़क के बीच बच्चे तो खेला करते है अब केवल ऑनलाइन गेम पेड़ो के कट जाने से कहाँ रहेंगी चिड़ियों का झुंड खेती करने वाले किसान घट गये कौन रखे गायों का समूह तुम भी तो अब शहरी दीखते हो और तुम कवि दिखते हो तुम भी वही कर जाओगें केवल पन्नो में लिख जाओगे हमको हमपे छोड़ जाओगे गावँ और किसान को बना दिए तुमने कविता की विषय-वस्तु जिसपर केवल लिख तुम लिख देते हो अमल तुम कुछ नही करते हों।।
#kavyotsav -2 #चुनाव और आम आदमी नींद खुलते ही हाथ अख़बार पर गये हाथ तो नही जला पर आँख झुलस गये ये सियासी आग की तपन थी सारे अख़बार के कोने-कोने में फैली थी किसी के जुबान फिसल रहे है किसी के शब्दों में जाल बिछा है दूसरे को बुरा खुद को महान कह हर तरह से लुभाने का प्रयास हो रहा हैं लगता है चुनाव के दिन चल रहा है अजब सी बेईमानी थी सबके दिमांग में झूठ, छलावा के सिवाय कुछ नही था उन सब में धर्म के नाम पर देश को खोखला किये जा रहे है क्या धर्म और तुच्छयता की राजनीति ऐसी ही रहेगी मन स्तब्ध हो गया मैने अख़बार तेजी से टेबल पर रखा और आँखों पर ठंडा जल डाला तपिश तो कम हुई पर मन फिर अशांत था।।
#kavyotsav_2 शहर गये थे क्या लाये हो? पूछ रहा है गाँव मेरा बगिया के हर पेड़ ओ जिस पर उछल-कूद किया करते थे अपने दोस्तों के साथ तू हर खेल जो यहाँ खेला करते थे बच्चपन तो अच्छा था तेरा जवानी कैसे काटे हो? शहर गये थे क्या लाये हो? पूछ रहा है गाँव मेरा पहले बहुत निर्भीक लगते थे आज खुद से ही डरे-डरे क्यों हो? उदासी के घने जाल में आज इतना जकड़े क्यों हो? हममें अभाव थी हर वस्तु की शहर में शायद सब कुछ वह पाये हों शहर गये थे क्या लाये हो? पूछ रहा है गावँ मेरा प्राचीनता थी गावँ की सभ्यता आधुनिकता शायद तुम लाये हो गिल्ली-डंडा, क्रिकेट खेलते थे अब भावनाओं से खेलने आये हो इतना सब कुछ अच्छा था तो क्यों शहर छोड़ गावँ आयें हो? शहर गये थे क्या लाये हों?? सब समझ रहा है गावँ मेरा
#kavyotsav -2 #प्यार की समझ क्या होता है प्यार? मैं उस दिन जाना आयी थी ओ मिलने गुलाब जैसे होंठो पर मुस्कान लेके सुन मेरे ब्रेक अप की दास्तान बहने लगा था यूँ ही उसके कोमल सुर्ख आँखों से जल की बेगमयी धार बैठी थी सामने ओ रोते हुए छोटे से बच्चें की तरह देख रही थी मेरे तरफ उस भावना से शायद कह दू मैं मजाक था पागल पिघल गया था मैं भी उसके आंसुओं की बारिश देखकर पर कह न सका अब फिर प्यार हो गया है पागल जाते हुए मुड़ कर देखना जैसे तीक्ष्ण बाणों से आहत करना सो न सका पूरी रात शायद कुछ दुखी और मायूस था प्यार क्या है?ये समझ उस दिन आया था।
#kavyotsav -2 ##स्टूडेंटस की बेरोजगारी## आये है सपनों की दुनिया में अपने- अपने अरमा लेके Ssc, upsc का ख्वाब लेके सफर है कठिन भापकर आये है इज्जत अपना साथ लेके आये है करते है मेहनत इस कदर रह न जाय इस बार कोई कसर रात भी दिन सा लगता है आँख अपलक खुला रहता है ये शारीरिक बीमारी नही मानसिक बीमारी है साहब! सिलेबस रूपी सिरप पीना पड़ता है कोचिंग रूपी इंजेक्शन लेना पड़ता है रिवीजन रूपी दवा निगलना पड़ता है सही नही होती बीमारी रह जाता कैंसर जैसी बेरोज़गारी नही है जिसका ईलाज कोई!!!।
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