Shrapit ek Prem Kahaani - 17 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 17

Featured Books
Categories
Share

श्रापित एक प्रेम कहानी - 17

संपूर्णा और आलोक एक दुसरे को पंसद तो करता है पर कभी एक दुसरे को बताया नही । 


दोनो ही एक दुसरे के बांहो मे इस कदर खो जाते है के वो लोग कहां पर इसका कोई होश नही रहता है । संपूर्णा अपना होंट आलोक के होंट के बहोत करीब ले आती है जिससे आलोक बहोत excited हो जाता है और दोनो के होंट एक दुसरे से टकरा जाता है ।

 आलोक संपूर्णा के होंट को चुमने लगता है दोनो ही अंधेरे मे एक दुसरे के होंट को चुमने लगता है। 

उधर वृंदा एकांश को बुलाती है---- 

 एकांश ... एकांश तुम यहाँ होना। 


एकांश कहता है--- 

हां वृंदा में यही हूं। 


वृंदा एकांश के करीब जा कर कहती है----

मुझे अंधेरे से बहुत डर लगता है ।

 इतना बोलकर वृंदा एकांश का बाजू पकाड़ लेती है। एकांश वृंदा के कमर पे हाथ रख देता है। जिनसे वृंदा के मन में हलचल होने लगी है। वृंदा एकांश के करीब जा कर एकांश से सट जाती है। एकांश को वृंदा की बॉडी उसके शरीर पर सटने से एकांश को अजीब-सा फिल होने लगता है क्योंकि उसे किसी लड़की ने आज तक नहीं छूआ था।

वृदां जान बुझकर एकांश के बहोत करीब आ जाती है जिससे वृदां के शरीर का सब हिस्सा एकांश के शरीर पर महसुस हो रहा था , एकांश अपने आप पर काबु रखने की कोशिश कोशिस कर रहा था पर वृदां उससे बार बार वो एहसास करा रही थी । वृदां और एकांश दोनो ही एक दुसरे मे खो जाता है । एकांश अपना हाथ वृदां के कमर से उपर की उठाने लग जाता है , वृदां एकांश को रोकना चाह रही थी पर उसे भी एकांश का छुना अच्छा लगने लगा था । एकांश का हाथ अब वृदां के वक्ष पर पहूँच चुका था के तभी 


एकांश को वर्षाली की आवाज सुनाई देती है। 

" एकांश जी.... में आ गई आपके पास..."


एकांश वृदां के वक्ष से अपना हाथ हटा लेता है और एकांश इधर उधर देखता है पर वहां अंधेरा होने की वजह से कोई दिखाई नहीं देता है। 

एकांश को अपने कान पर भरोसा नहीं हो रहा था के जिस लड़की को वो आज सुंदरवन ढुंढने के लिए गया था ये उसी लड़की की आवाज थी तभी एकांश को उसके पीछे किसी लड़की के हाथ फोरने का अहसास था जो हाथ धीरे-धीरे एकांश के छाती तक आ जाता है। 


एकांश पिछे मुड़कर देखता है के एक लड़की उसके पिछे खड़ी थी जिसका चैहरा अधेरा होने के कारण साफ साफ दिखाई नही दिया। एकांश कुछ बोलता उससे पहले वर्षाली फिर कहती है----


यहां कुछ मत बोलिए एकांश जी ।


 इतना बोलकर वर्षाली एकांश को अपने साथ बहार ले जाने लगता है। हवेली के बाहर जाते ही एकांश को वर्षाली दिखने लगती है। जो आज नीले रंग के कपड़े में थी। चांदनी रात में वर्षाली की खूबसुरती और भी मन को मोह रहा था ।


 एकांश वर्षाली की खूबसुरती को बस निहारते जा रहा था। 

एकांश मन ही मन सौचता है ---

" ये कौन है कहां से आयी है , इतनी खुबसूरत लड़की मैने आज तक नही दैखी , पता नही मैं क्यू इसके लिए अपनी फिलिंग पर कंट्रोल नही कर पा रहा हूँ ।

तभी वर्शाली कहती है-----

अब घुरना बंद भी किजिये एकांश जी। 


एकांश वर्शाली से पुछता है ----

तुम वर्शाली हो न जो कल रात को तुम और मैं सुंदरवन के जंगल में मिले थे। 


वर्शाली चुप रहती है । एकांश अपने आपको चिंटी काटता तो उसे दर्द होता है।

"" आउउउच्छ..."


एकांश फिर कहता है----
 इसका मतलब ये सपना नहीं है। तुम यहाँ हकीकत में आई हो। 

वर्षाली कहती है----

हां एकांश जी में सपना नहीं हकीकत हूं। और मैं आपसे बहुत नारज हूं।


 एकांश पुछता है----


 क्यूं मेंने क्या किया। जो तुम मुझसे नाराज हो ?



वर्षाली कहती है------

मेने आपसे कहा था ना के आप उस जंगल में वापस नहीं जाएंगे पर आप नहीं माने और उस जंगल में चले गए अगर में सही समय पर वहां नहीं आती तो पता नहीं कल क्या हो जाता है।


 एकांश हैरानी से कहता है---- 


 क्या...! कल तुम वहां पर थी। ? 


वृंदा कहती है----

हां एकांश जी मैं कल वही पर थी जब कुम्भन आप सब पर हमला कर दिया था। वो तो अच्छा हुआ के मैंने उसका ध्यान भटका दिया वर्ना कल अनर्थ हो जाता। 


एकांश कहता है----



अगर तुम वहा पर थी तो हमें दीखाई क्यों नहीं दी और तुम्हारा घर और वो झरना ये सब कहा था।


 वर्षाली कहती है----

 सब अपने जगह पर है एकांश जी। बस देखने का नजरिया होना चाहिए। 



एकांश कहता है-----

 तुम्हारी बातें ना मेरे सर के ऊपर से जाता है। अच्छा ये बताओ कल तो मैं वहीं सो गया था। पर सुबह जब मैं उठा तो अपने रूम में कैसे पँहूचा ?


वर्षाली कहती है----


 आपने मुझे इतना कमजोर समझ रखा है क्या के में किसी को उसके घर तक ना छोड़ सकू।



 एकांश हेरानी से कहता है -----


 इसक मतलतब तुमने कल मुझे मेरे कमरे तक पहुंचाया। ये कैसे हो सकता है।



वर्षाली एकांश के बात को काट ते हुए कहती है----


 अच्छा अब छोड़ो इन सब बातो को और ये बताता वो लड़की कौन है जिससे आप इतना चिपक कर प्रेम की बात कर रहे थे। उसने तो बता दिया के उसने आज तक किसीके साथ मिलन नहीं किया है। 



एकांश कहता है------


 अजीब है .. ! मैंने तो तुम्हें ये सब बताया नही पर ये सब तुम्हे कैसे पता। 


वर्षाली कहती है------

मुझे आपके बारे में सब पता है एकांश जी।


 एकांश कहता है----


 ये मिलन का मतलब क्या है..?


 वर्षाली कहती है----


मिलन का मतलब वही जो एक लड़का लड़की साथ मे करता है। 


इतना बोलकर वर्षाली सरमाने लगती है। एकांश सरारत से पुछता है----


 तुम्हें बड़ा पता है इन सब बातों के बारे में। 


वर्षाली कहती है------ ये तो सभी लड़कीयों को पता होता है। 



एकांश :- अच्छा एक बात बताओ के तुम मुझे ऐसे दुर से क्यों दैखती हो । वो तुम्ही हो ना जो मुझे चाय के दुकान पास और मेरे घर के उधर दिखाई दी थी ।


वर्शाली कहती है ----


नही तो , मेरा जब भी आपसे मिलने का मन करता है मैं आपके पास आ जाता हूँ । ऐसे छिपके मैं कभी नही आती । और आप किसकी बात कर रहे हो , कौन परछाई आपका पिछा करती है एकांश जी ।


एकांश कुछ सौचने लगता है और एकांश कुछ कहता है इससे पहले वर्षाली कहते हैं---


अब आप अंदर जाओ। नहीं तो सब आपको ढुंढने लगेंगे और अगर आपको यहां मेरे साथ किसीने देख लिया तो अनर्थ हो जाएगा। 
अच्छा मैं अब चलती हूँ ।


इतना बोलकर वर्षाली वहा से जाने लगती है। तभी एकांश कहता है---- 

फ़िर कब मिलोगी। ?


 वर्षाली कहती हैं-----

 जब भी आपका मन हो।


 एकांश कहता है -----

पर मैं तुम्हें बुलाऊंगा कैसे? 



वर्षाली कहती है ----- 

मैं कल आपका सुंदरवन के पास आपका इंतेजार करुंगी। 


वर्षाली कहती है:--------


पर उन सबको साथ लाने की कोई जरूरत नहीं है सिर्फ आप ही आना। अकेले ।


एकांश हां में अपना सर हिलाता है तभी हवेली में रोशनी आ जाती है तो वर्षाली एकांश से कहती है------


 अब आप जाओ ।



 वर्शाली वहां से जाने लगती है पर एकांश उसका हाथ पकड़ कर वर्शाली को जाने से रोक लेता है । क्यूंकी वर्षाली को जाने देने का मन नहीं था। 


तभी वर्षाली कहती हैं----


 ये क्या एकांश जी अगर किसी ने देख लिया तो गलत सोचेंगे। 


एकांश कहता है-----


क्या गलत सोचेंगे?


To be continue.....212