Shrapit ek Prem Kahaani - 14 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 14

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 14

आलोक जवाब देता है ---


आलोक :- किया था यार....! तेरे पापा और कुछ गांव वालो ने मिलकर सबके घर जाकर पुछा पर किसी को भी उस मणि के बारे मे नहीं पता था। 



एकांश कहता है ---


एकांश :- ऐसा कैसे हो सकता है। किसी के पास तो मणी जरूर होगा। क्यू ना हम लोग उस मणि के बारे मे पता लगाए । 


गुना कहता है ---


गुना :- पर कैसे एकांश। जब तुम्हारे पापा और सभी गांव वाले मिलकर पता नहीं लगा पाए तब हम कैसे ?



 आलोक कहता है ----


आलोक :- एक रास्ता है।


 सभी हैरानी से आलोक की और देखकर कहता है। 


सभी एक साथ कहता है ----- क्या .....? 

आलोक कहता है ----


आलोक :- में कनफर्मेशन तो नहीं हूँ पर इतना सुना हूं के जब तात्रिकं परी साधना करता है और परी से जबरन वो मणी ले लेता है तो मणी का श्राप उस इंसान को भी लगा होगा। 


चतुर कहता है ---


चतुर :- इसका मतलाब वो इंसान भी मर गया होगा। ? 

आलोक कहता है---

आलोक :- नहीं वो उस मणी की शक्ति के कारण जिंदा होगा पर उसके शरीर पर इसका कुछ ना कुछ तो असर जरूर हुआ होगा। अगर ऐसे आदमी हमें मिल जाए तो समझ लेना मणी उसे पास है।


 चतुर कहता है---


चतुर :- यार तुझे ये सब कैसे पता है ?


 चतुर की बात सुनकर आलोक कहता है ---


आलोक :- एक दिन मेरे पापा माँ को सुंदरवन के बारे मे बता रहा था। 


आलोक अपने उस पल मे चला जाता है जब ऋतुराज अपनी पत्नी दामिनी को सुंदरवन के बारे मे बता रहा था और आलोक वहीं बैठकर सुनरहा था। 


दामिनी ऋतुराज से पूछती है --


दामिनी :- सुनियो जी क्या इस युग मे भी देत् ,य राक्षस है और क्या इस जंगल मे सचमुच देत्य रहते हैं जैसा की गांव वाले कहते है ।

 ऋतुराज कहता है---

ऋतुराज:- नही यहां देत्य नही रहते पर वो यहां आते रहते है ये सुना हूँ और रही बात राक्षस और देत्यों की तो जैसे इंसान सभी यूग से इस पृथ्वी पर रहे है ठीक उसी प्रकार देवी- देवता , राक्षस , देत्य और बाकी के सभी अभी भी ह़ै। 



दामिनी फिर कहती है ---


दामिनी :- पर वो यहां क्यो आते है वो तो सभी तो अपने अपने लोक चले गए थे ना ?


 ऋतुराज कहता है ---

ऋतुराज :- हां ये सत्य है के सभी अपने अपने लोक चले गए है पर ईश्वर ने हमारी पृथ्वी को बनाया ही इतनी सुंदर है के यहां अब भी ये सभी घुमने के लिए आते हैं पर शायद वो अपना भेष बगल लेता होगा इसिलए हम उन्हें पहचान नही पाते है । और इस जंगल मे देत्य और परी दोनो ही आते हे़ैं पर वो कब आते है इसकी जानकारी नही है। 


परी का नाम सुनकर दामिनी ऋतुराज से पुछती है ----

दामिनी :- क्या परी ! आपने परी का ही नाम लिया ऩा। 

ऋतुराज कहता है ---

ऋतुराज :- हां तुमने सही सुना । 


दामिनी उत्साह से पूछती है। 


दामीनी :- तो क्या परियां भी यहां घुमने के लिए आती हैं? 


ऋतुराज :- हां वो भी यहां घुमने के लिए आती हैं पर ये सभी कब आती है ये नही पता। पर इतना सुनने मे आया है के इस सुदंरवन मे एक ऐसी जगह है जो अदृश्य है और वो जगह दिव्य है जहां परीयां आती है। इसिलिए तांत्रीक इस जंगल मे परी साधना और कई तरह के साधनाएं करती है और कई तांत्रीक तो एसे भी है जो परी को देखकर उसकी सुंदरता पर मोहीत हो जाता है और परी के साथ दुष्कर्म करने की कोशिस करता है तब उन तांत्रिक को परी का श्राप भोगना पड़ता है ।


 दामिनी हैरानी से पुछती है।


दामिनी :- श्राप पर क्यों। 


ऋतुराज :- क्योंकी वो परी के साथ संभोग करना चाहता है । मुझे पुरा तो नही पता पर इतना पता है के तांत्रिक परी साधना किसी विशेष कार्य के लिए करते है पर जब साधना पुरा होता है और परी आती है तो साधक को ब्रम्हचर्य का पालन करना होता है ना की परी की सुंदरता पर मोहित होना है । पर कुछ साधक ऐसे भी होते है जो परी को दैखकर अपना कार्य भुल जाता है और उसको साथ दुष्कर्म कर लेता है । जिससे परी अपना जिवन त्याग देती है और अपना बहुमूल्य मणी निकाल देती है जिससे उस साधक कोे श्राप भोगना पड़ता है।

दामिनी :- मणी वो क्या होता है ?


ऋतुराज :- परी के पास एक मणी होता है सांतक मणी जिसे पाना तो सभी चाहता है पर परी वो मणी किसीको भी नही देती क्योकी वो मणी ही उसकी शक्ती होती है । उस मणी के बिना वो कुछ नही कर सकती अपने घर वापस भी नही जा सकती । इसिलिए कई साधक ऐसे होते है जो मणी के लिए साधना करता है पर उसे पाना अंसमभव होता है । अगर कोई परी के मर्जी के खिलाफ या छल से उस सांतक मणी तो प्राप्त करता है तो वो श्राप के भागी बन जाता है ।



तभी आलोक को फोन बजने की आवाज सुनाई देती है। आलोक के इतना कहने के बाद एकांश का फोन रिंग होने लगता है जिससे आ़लोक उस पल से बाहर आ जाता है। 


एकांश अपना फोन निकालकर देखता है के उसकी मां का फोन था। एकांश फोन रिसीव कर के कहता है --


एकांश :- हां माँ बोलो..! उधर से मीना कहती है। कहां है बेटा तू। 


एकांश कहता है---

एकांश :- मां मेैं अपने दोस्तो के साथ हूं।


 मीना कहती है--- 

मीना :; अच्छा ठीक है बेटा। पर अब तुम जल्दी घर आ जाओ और अपने दोस्तों को भी लेकर आना .. क्योंकि शाम को तेरे पापा ने तेरे आने और डॉक्टर बनने की खुशी में एक पार्टी रखी है इसिलिए अब देर मत कर और जल्दी आ जा।


एकांश कहता है---


एकांश :- ठीक है माँ। मैं आता हूं और सबको लेकर आता हूं। 


सभी एकांश की और देखने लगता है। एकांश कहता है---


एकांश :; मां का फोन था। पापा ने आज शाम को पार्टी रा़खी है तुम लोगो को भी साथ लाने को कहा है। 


चतुर खुश होकर कहता है --


चतुर :- क्या पार्टी वाह तब तो आज मजा आने वाला है। चलो चलो जल्दी चलो। धापा का भी इंतेजाम करना है। आज रात पुरा धापा पियेंगे।


 एकांश और आलोक अपने सर पर हाथ रखता है और एकांश कहता है---- 


एकांश :- तेरे इस धापा के चक्कर में एक बार बुरी तरह फंसते फंसते बचा हुँ अब बस कर भाई। 



एकांश की बात सुनकर चतुर का मुह उतर जाता है। सभी चतुर को देख कर हंसने लगता है। 

उधर उदयपुर में वृंदा अपने रूम में बेठकर एकांश के बारे में सोच रही थी। के तभी वहा पर संपूर्णा आ जाति है। वृंदा और संपूर्णा बचपन के दोस्त है। संपूर्णा को अचानक अपने रूम में देख कर वृंदा हैरान हो जाती है और खुशी से उछलकर कहती है---


वृदां :- अरे संपूर्णा तू...! तू यह कब आई। ?


 संपूर्णा कहती है---


सपूर्णा :- जब तुम देख रही हो तभी।


 इतना बोलकर दोनो गले मिलते हैं। 

वृंदा पुछती है। 

वृदां :- कैसी है तू ? 

संपूर्णा कहती है---


सपूर्णा :- एकदम ठिक। अब चल जल्दी जल्दी तैयार हो जा।


 वृंदा कहती है---

वृदां :- पर कहा जाना है?


 संपूर्णा कहती है---


सपूर्णा :- मेरे घर और कहां । आज घर में पार्टी है। 



वृंदा कहती है----


वृदां :- वो तो रात को है ना। अभी तो मुझे नहीं जाने देंगे। 


संपूर्णा कहती है :----

संपूर्णा: - तू उसकी चिंता मत कर मैंने बड़े पापा से अंकल की बात करा दिया है , और उन्होंने ओके भी कह दिया है। 


वृंदा इतना सुन कर खुश हो जाती है और तैयार होने के लिए आलमरी खोलती है। 
तबी वृंदा अंजान बनाते हैं पूछती हैं---


वृदां :- अच्छा संपूर्णा आज पार्टी किस खुशी में दी जा रही है।



To be continue.......163