Andheri Gufa - 8 in Hindi Horror Stories by Wow Mission successful books and stories PDF | अंधेरी गुफा - 8

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अंधेरी गुफा - 8

अंधेरी गुफ़ा – भाग 8 : “ललिता का श्राप”
पत्थर गिरने की आवाज़ पूरे अंधेरे में गूँज उठी।
गुफ़ा का मुँह अब पूरी तरह बंद था।
अर्जुन ने चीखकर बाहर पुकारा —
“कोई है? सुनो! कोई है क्या बाहर?”
पर बाहर से कोई आवाज़ नहीं आई।
सिर्फ गुफ़ा की दीवारों से किसी के रुक-रुक कर रोने की आवाज़ आ रही थी।
उसने लालटेन जलाने की कोशिश की, पर लौ बार-बार बुझ जाती थी।
फिर अचानक दीवारों पर नीली रोशनी झिलमिलाने लगी —
जैसे खुद पत्थर सांस ले रहे हों।
वह आगे बढ़ा।
हवा में ठंडक और एक अजीब-सी गंध थी — मिट्टी, खून और किसी पुराने फूल की।
हर कदम पर गुफ़ा की छत से पानी की बूँदें टपकतीं, पर आवाज़ उनकी किसी सिसकी जैसी थी।
अर्जुन का दिल धड़कने लगा।
अचानक उसने देखा —
गुफ़ा के बीचोंबीच एक टूटी हुई मूर्ति रखी थी, और उसके पास एक पुराना झोला।
उस झोले पर धूल जमी थी, पर उसमें कुछ लिपटा हुआ था — जैसे किसी ने जल्दी में छिपाया हो।
उसने झोला खोला।
अंदर एक पुराना लाल कपड़ा, एक चाँदी की पायल, और एक मुड़ा हुआ कागज़ था।
कागज़ पर लिखा था —
“जो इस गुफ़ा में सच्चाई ढूंढेगा,
उसे अपने खून से इसकी भूख मिटानी होगी।
ललिता का श्राप केवल बलिदान से टूटेगा।”
अर्जुन के हाथ काँप उठे।
“श्राप?” वह बुदबुदाया।
तभी उसे पीछे से किसी के पाँवों की आहट सुनाई दी।
वह पलटा —
कोई नहीं था।
लेकिन हवा में हल्की सुगंध फैल गई — जैसे किसी औरत के गजरे की।
धीरे-धीरे एक परछाई उभरी —
वही चेहरा… वही लाल आँखें… ललिता।
वह अब पहले से ज़्यादा वास्तविक लग रही थी।
उसकी आँखों में अब दर्द था, डर नहीं।
अर्जुन ने काँपते स्वर में पूछा,
“तुम कौन हो? क्या चाहती हो?”
ललिता की आवाज़ फुसफुसाई —
“मैं नहीं चाहती कुछ… पर गुफ़ा चाहती है।”
“गुफ़ा?”
वह पास आई, उसके चेहरे पर नीली चमक फैल गई।
“इस गुफ़ा में कभी पूजा होती थी — देवी की नहीं, बल्कि उन छायाओं की जो देवी से पहले आई थीं।
यहाँ हर बार एक माँ और उसका बच्चा बलि के रूप में दिया जाता था… ताकि गाँव पर सुख बना रहे।”
अर्जुन की सांसें रुक गईं।
“तो तुम…”
“हाँ,” ललिता ने कहा, “मैं आख़िरी बलि थी।”
उसकी आवाज़ काँप उठी।
“उन्होंने कहा था कि अगर मैं अपने बेटे को देवी के चरणों में रख दूँ, तो गाँव बचेगा।
पर मैंने इंकार किया।
उन्होंने मेरे बच्चे को छीन लिया… और मुझे ज़िंदा इस गुफ़ा में दफना दिया।”
अर्जुन की आँखों में आँसू आ गए।
“और तब से तुम यहाँ…”
“मैं यहाँ नहीं… यह गुफ़ा मुझमें है।”
ललिता का चेहरा धीरे-धीरे बदलने लगा — आँखें लाल से काली हो गईं, और उसके पीछे दीवारों से अनगिनत परछाइयाँ निकलने लगीं।
हर परछाई औरत की थी…
हर एक की गोद में बच्चा था…
हर चेहरे पर वही सिसकी — वही शापित मौन।
अर्जुन पीछे हटने लगा, पर उसके पीछे रास्ता पहले ही बंद हो चुका था।
ललिता आगे बढ़ी —
“तुमने सच्चाई जान ली, अब यह गुफ़ा तुम्हें जाने नहीं देगी।”
अर्जुन चिल्लाया — “नहीं! मैं यहाँ तुम्हें मुक्त करने आया हूँ!”
“मुक्त?” उसने व्यंग्य से कहा। “यहाँ कोई नहीं छूटता अर्जुन… सिर्फ गुम हो जाता है।”
तभी अर्जुन ने अपनी जेब से वह मूर्ति निकाली जो वह साथ लाया था — देवी दुर्गा की छोटी प्रतिमा।
उसने काँपते हुए कहा —
“अगर श्राप बलि से मिटता है, तो मैं वो बलि दूँगा जो इस गुफ़ा ने नहीं माँगी — सत्य की।”
वह ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया और देवी की मूर्ति के सामने प्रार्थना करने लगा।
गुफ़ा की छत से नीली लपटें उठीं।
ललिता चिल्लाई —
“रुको! तुम नहीं जानते तुम क्या जगा रहे हो!”
लेकिन अब देर हो चुकी थी।
दीवारों से जैसे अनगिनत हाथ निकले — कुछ ने अर्जुन को पकड़ लिया, कुछ हवा में काँपने लगे।
ललिता भी उन लपटों में झुलसने लगी।
अचानक गुफ़ा में तेज़ रोशनी फैली —
नीली… फिर सफ़ेद… और सबकुछ थम गया।
जब अर्जुन ने आँखें खोलीं,
वह अकेला था।
गुफ़ा खुल चुकी थी।
सामने वही जगह थी जहाँ से वह आया था, पर अब मंदिर की दीवार पर कुछ नया लिखा था —
“किसी ने अंत नहीं देखा,
पर किसी ने शुरुआत बदल दी…”
अर्जुन बाहर निकला, पर उसके कपड़े मिट्टी और खून से सने थे।
उसकी हथेली में वही शब्द उभरे थे — “सत्य।”
पर अब नीचे एक और शब्द जुड़ा था — “पूर्ण।”
गाँव के लोग जब सुबह मंदिर पहुँचे,
उन्होंने देखा कि गुफ़ा अब पूरी तरह ढह चुकी है।
किसी ने कहा अर्जुन लौट आया है,
पर उसकी आँखें अब इंसान जैसी नहीं रहीं।
वह बस इतना कहता था —
“ललिता अब शांत है… पर गुफ़ा अभी भी साँस ले रही है।”
🕯️ जारी रहेगा — भाग 9 में…
जहाँ अर्जुन के अंदर होने वाले बदलावे से पता चलेगा कि गुफ़ा ने उसे छोड़ा नहीं — बल्कि अपने भीतर समा लिया है।
अब गुफ़ा चलती है… बोलती है… और रास्ता ढूँढ रही है अगले सत्य की ओर 💀🌑