अंधेरी गुफा: रात का दरवाज़ा
रात का समय था।
गाँव में सन्नाटा पसरा हुआ था — जैसे धरती खुद साँस रोककर बैठी हो।
गुफा के पास बने शिवमंदिर की घंटियाँ बिना हवा के हिल रही थीं।
टेंट में डॉ. सिया और निखिल जाग रहे थे।
रवि की चीख अब भी उनके कानों में गूँज रही थी।
सिया ने अपनी डायरी खोली —
“गुफा ने फिर एक आत्मा ले ली। अब दरवाज़ा रात को खुलेगा — यही संदेश मिला है।”
पहला दृश्य — नीली रोशनी का रहस्य
आधी रात को, पहाड़ी की तरफ से वही नीली रोशनी दिखाई दी।
सिया बोली — “यही वो समय है। अगर आज हम गए, तो शायद सारा सच सामने आए।”
निखिल हिचकिचाया — “मैडम, मैं अब अंदर नहीं जाऊँगा।”
सिया ने कहा — “तुम बाहर ही रहो। मैं कैमरा लेकर जाती हूँ।”
निखिल ने डरते हुए कहा — “अगर कुछ हुआ तो?”
सिया मुस्कुराई — “अगर मैं वापस नहीं आई… तो रिकॉर्डर सब बता देगा।”
दूसरा दृश्य — गुफा का हृदय
सिया अकेली गुफा में दाख़िल हुई।
अंदर अब सबकुछ बदल चुका था — दीवारों पर नमी नहीं थी, बल्कि हल्की नीली रोशनी खुद निकल रही थी।
हवा अब ज़िंदा लग रही थी — जैसे हर साँस गुफा के भीतर गूँजती हो।
उसने रिकॉर्डर चालू किया।
“यह डॉ. सिया वर्मा है… मैं अब गुफा के मुख्य हिस्से में हूँ। तापमान बहुत कम है, पर हवा गरम महसूस हो रही है।”
अचानक पीछे से कदमों की आवाज़ आई — धीमी, भारी और गहरी।
वो मुड़ी — कोई नहीं था।
पर मिट्टी पर नंगे पाँव के निशान थे… जो खुद-ब-खुद बन रहे थे।
तीसरा दृश्य — आवाज़ जो नाम लेती है
दीवारों से किसी की आवाज़ आई —
"सिया..."
वो काँप गई।
“कौन है वहाँ?”
"सिया... तुम भी जानना चाहती हो न कि तुम्हारा अतीत क्या है..."
सिया की आँखों में आँसू आ गए — “तुम… मेरे नाम को कैसे जानते हो?”
आवाज़ बोली —
"क्योंकि ये गुफा तुम्हारे खून से बनी है..."
वो चीख पड़ी।
“नहीं! ये झूठ है!”
दीवारों पर उसका नाम खून से उभरने लगा —
SIA VERMA — 1998
वो तो 2003 में पैदा हुई थी...
फिर 1998 में उसका नाम कैसे लिखा था?
चौथा दृश्य — अतीत का द्वार
अचानक दीवारें खुलीं और एक कमरा बना —
वहाँ लकड़ी की मेज, पुरानी किताबें और कुछ तांत्रिक चिह्न बने थे।
मेज़ पर एक फटी डायरी पड़ी थी, जिस पर लिखा था —
“प्रोजेक्ट: आत्मा द्वार — डॉ. राघव वर्मा”
सिया ने पन्ने पलटे —
“आत्मा का स्थानांतरण संभव है। गुफा ऊर्जा को पकड़ लेती है और उसे जीवित रूप देती है।”
“पहली कोशिश विफल हुई… विषय: SIA (5 वर्ष)”
सिया के हाथ काँप गए।
“ये मेरे पिता का नाम है…”
मतलब — वो खुद उस प्रयोग का हिस्सा थी।
गुफा ने उसके बचपन की आत्मा को कैद कर लिया था, और अब वो उसे वापस बुला रही थी।
पाँचवाँ दृश्य — दरवाज़ा खुलता है
गुफा की नीली रोशनी लाल हो गई।
कमरे की दीवारें काँपने लगीं।
सिया ने देखा — पत्थर का दरवाज़ा खुल रहा था, जिसके पार बस अंधेरा था।
उसके पीछे वही सफेद साड़ी वाली औरत आई —
“तुम लौट आईं… क्योंकि जो इस गुफा में जन्मा है, वो बाहर नहीं रह सकता।”
सिया ने काँपते हुए पूछा — “तुम कौन हो?”
वो मुस्कुराई —
“मैं वही हूँ जो तुम्हारी जगह इस गुफा में बंद की गई थी… तुम्हारा दूसरा रूप।”
सिया ने एक कदम पीछे लिया — पर उसके पैर ज़मीन में धँस गए।
गुफा फुसफुसाई —
"एक को बाहर जाना होगा... एक को रहना होगा..."
और अगले ही पल, नीली रोशनी बुझ गई।
छठा दृश्य — सुबह की खामोशी
सुबह निखिल ने देखा — गुफा का दरवाज़ा खुला हुआ था।
वो अंदर गया — सिया कहीं नहीं थी, पर दीवार पर एक नया नाम लिखा था —
SIA / 2025 — Returned
निखिल ने रिकॉर्डर उठाया।
उसमें सिया की आवाज़ थी —
“गुफा सच बताती है, पर अपनी कीमत लेती है…
अब जो भी अंदर आएगा, उसे दो सिया नज़र आएँगी —
एक ज़िंदा… एक अधूरी…”
अंत — नया संकेत
उस रात गाँव में पहली बार दो परछाइयाँ देखी गईं —
एक सिया जैसी और दूसरी ठीक उसकी परछाई जैसी, पर उल्टी दिशा में चलती हुई।
लोग कहते हैं, अब गुफा सिर्फ आत्माएँ नहीं लेती,
अब वो इंसान भी बनाती है... अपने जैसा।
Part 5 coming soon 🔜