Andheri Gufa - 9 in Hindi Horror Stories by Wow Mission successful books and stories PDF | अंधेरी गुफा - 9

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अंधेरी गुफा - 9

🌕 अंधेरी गुफ़ा – भाग 9 : “अर्जुन का रूपांतरण”
गाँव की सुबह उस दिन पहले जैसी नहीं थी।
हवा में एक अनजानी ठंडक थी, जैसे कोई अदृश्य परछाई हर कोने से झाँक रही हो।
पक्षी नहीं चहचहा रहे थे, और मंदिर के ऊपर बैठे कौवे लगातार किसी अनहोनी की आहट दे रहे थे।
लोगों में डर था — अर्जुन लौट आया था,
पर सब कहते थे कि वो अब वही अर्जुन नहीं रहा।
वह मंदिर के सीढ़ियों पर बैठा रहता,
सामने देखता रहता, जैसे किसी चीज़ का इंतज़ार कर रहा हो।
उसकी आँखें अब गहरी और धुँधली हो चुकी थीं, उनमें अजीब-सी नीली चमक थी — वही जो गुफ़ा में थी।
गाँव का पुजारी, पंडित गोपाल, उससे मिलने आया।
“बेटा अर्जुन,” उसने कहा, “तू वहाँ गया क्यों था? वह स्थान शापित था।”
अर्जुन धीमी आवाज़ में बोला —
“वह शापित नहीं थी, पंडित जी… वह ज़िंदा थी।”
“कौन?”
“गुफ़ा।”
पंडित पीछे हट गया।
“क्या कह रहा है तू?”
अर्जुन मुस्कराया, पर उसकी मुस्कान में इंसानियत नहीं थी।
“ललिता शांत हो गई, पर उसने मुझे अपना संदेश दिया है… गुफ़ा की आत्मा अधूरी है। जब तक उसका पुत्र नहीं मिलेगा, तब तक उसका श्राप ख़त्म नहीं होगा।”
पंडित भयभीत होकर पीछे हटा, “पुत्र? कौन पुत्र?”
अर्जुन की आवाज़ गहरी हो गई —
“जिसकी बलि उन्होंने दी थी, वही अब जन्म ले चुका है… और मैं उसे ढूँढने आया हूँ।”
पंडित ने देखा — अर्जुन के पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे।
जहाँ वह चलता, वहाँ मिट्टी से धुआँ उठता।
वह भागा, पूरे गाँव को इकट्ठा किया।
“वो अब इंसान नहीं रहा! गुफ़ा ने उसे निगल लिया है!”
गाँववाले डर से काँप उठे।
कुछ ने दरवाज़े बंद कर लिए, कुछ ने मंत्र जपे,
पर अर्जुन उठकर धीरे-धीरे मंदिर के अंदर चला गया।
🌑 मंदिर के अंदर
दीपक अपने आप बुझ गए।
सिर्फ घंटी अपने आप बजने लगी।
अर्जुन ने आँखें बंद कीं।
गुफ़ा की आवाज़ फिर से उसके मन में गूँज उठी —
“सत्य जानने वाला कभी नहीं लौटता…”
उसने फुसफुसाया,
“मैं लौटकर नहीं आया… मैं पूरा हुआ हूँ।”
तभी मंदिर की दीवार पर फिर से शब्द उभरे —
“अब वह बोल सकता है…”
और अचानक मंदिर की मूर्तियाँ हिलने लगीं।
मिट्टी की दीवारों से वही नीली रोशनी निकलने लगी जो गुफ़ा में थी।
पंडित और गाँववाले मंदिर के दरवाज़े के बाहर खड़े चिल्ला रहे थे,
पर अंदर की आवाज़ें अब किसी दूसरी दुनिया से आ रही थीं।
अर्जुन ने मूर्ति के सामने सिर झुकाया।
“हे माँ, अगर मैं श्राप का हिस्सा हूँ, तो मुझे भी उसी में समा जाने दो।”
तभी हवा में एक औरत की धीमी हँसी गूँजी।
“तू अब मेरा पुत्र है…”
गाँव के लोगों ने देखा — मंदिर की छत से नीला प्रकाश उठा और अर्जुन का शरीर उस प्रकाश में घुल गया।
वह गायब हो गया…
बस फर्श पर एक पायल गिरी — वही जो ललिता की थी।
🌕 तीन दिन बाद…
गाँव पर अब एक अजीब-सी शांति थी।
गुफ़ा जहाँ थी, वहाँ अब सिर्फ एक गहरा गड्ढा बचा था।
पर रात को कुछ चरवाहों ने कहा कि उन्होंने वहाँ किसी बच्चे की हँसी सुनी।
और मिट्टी पर किसी औरत के पैर के निशान दिखाई दिए — पर उल्टे।
लोगों ने कहा — “ललिता लौट आई।”
पर पंडित गोपाल ने कहा — “नहीं, अब वह अर्जुन है।”
क्योंकि मंदिर की दीवार पर एक नया वाक्य लिखा था —
“माँ और पुत्र अब एक हैं।”
गाँव के बच्चे बीमार पड़ने लगे,
और हर रात किसी के घर के पास मिट्टी में गीले कदमों के निशान दिखाई देते।
हर बार, ठीक दरवाज़े के बाहर।
🌘 रात की घटना
उस रात चाँद पूरा था।
पंडित गोपाल ने हिम्मत करके उस गड्ढे के पास जाने का निश्चय किया।
वह मंत्र जपते हुए पहुँचा, और जैसे ही उसने दीपक जलाया —
दीपक अपने आप उल्टा जल उठा।
नीचे से वही आवाज़ आई —
“तूने बलि रोकने की कोशिश की थी, अब तू ही अगली बलि बनेगा…”
और मिट्टी फट गई।
वहाँ से नीली लपटें उठीं, और उनके बीच से अर्जुन की परछाई उभरी।
उसका चेहरा अब आधा इंसान और आधा राख हो चुका था।
आवाज़ दोहरी थी — एक पुरुष की और एक औरत की।
“मैं ललिता नहीं हूँ… मैं उसका अधूरा सत्य हूँ…”
पंडित के हाथ से दीपक गिरा।
वह भागा, पर पीछे से किसी बच्चे की हँसी आई —
“अब माँ के पास खेलना है…”
सवेरे गाँववालों ने देखा —
गड्ढे के पास पंडित की लाठी और जली हुई राख पड़ी थी।
और मिट्टी पर फिर लिखा था —
“श्राप अधूरा नहीं… पूरा हुआ।”
अब गुफ़ा का नाम बदल गया।
लोग उसे कहते हैं —
“माँ और पुत्र की समाधि।”
कोई वहाँ नहीं जाता।
पर अमावस की रातों में, अगर कोई बहुत ध्यान से सुने,
तो किसी बच्चे की हँसी के साथ एक औरत की आवाज़ आती है —
“अभी एक सत्य बाकी है…”
🕯️ भाग 10 (अंतिम अध्याय): “गुफ़ा का अंत या आरंभ?”
👉 इसमें पता चलेगा कि क्या यह श्राप वाक़ई खत्म हुआ —
या गुफ़ा ने अब पूरे गाँव को अपना घर बना लिया है… 💀