Andheri Gufa - 6 in Hindi Horror Stories by Wow Mission successful books and stories PDF | अंधेरी गुफा - 6

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अंधेरी गुफा - 6

🌕 अंधेरी गुफ़ा – भाग 6 : “सिसकियों की गूंज” (पूर्ण संस्करण)
सुबह का सूरज गाँव की झोंपड़ियों के ऊपर हल्का-सा उगा था, पर आज भी हवा में ठंडक थी… और एक अजीब-सी बेचैनी।
ललिता के गायब होने के बाद पूरा गाँव खामोश था।
मंदिर की दीवार पर लिखा “वह लौट आई है” अब आधा मिट चुका था, पर कोई उसे मिटाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
बुज़ुर्ग कहते थे —
“गुफ़ा खुल चुकी है। अब जो गया, वो लौटकर नहीं आएगा।”
पर हर बात पर यक़ीन करने वाला गोविन्द नहीं था।
वह गाँव का चौकीदार था — जवान, हिम्मती, और जिद्दी।
उसे ललिता की सच्चाई जाननी थी, क्योंकि वो आख़िरी व्यक्ति था जिसने उसे मंदिर के पास देखा था।
रात होते ही गोविन्द ने लालटेन जलाई, और अकेले मंदिर की ओर निकल पड़ा।
हवा में सन्नाटा था, सिर्फ़ झींगुरों की आवाज़ें थीं।
रास्ते में कुत्ते अजीब तरह से भौंकने लगे — जैसे किसी अनदेखी छाया पर।
वह मंदिर पहुँचा, तो देखा दीवार के पास मिट्टी में किसी के नंगे पाँवों के निशान थे…
पर वे गुफ़ा की दिशा में जा रहे थे।
गोविन्द के गले में पसीना उतर आया, पर वह रुका नहीं।
वह बोला, “अगर तू सच में लौट आई है, ललिता… तो मैं तुझे ढूंढ के रहूंगा।”
धीरे-धीरे वह गुफ़ा के पास पहुँचा।
अंधकार इतना घना था कि लालटेन की लौ भी काँप रही थी।
उसने ज़मीन पर कदम रखा, और हवा में जले धूप की गंध महसूस की — पर वहाँ कोई नहीं था।
अचानक, पीछे से आवाज़ आई —
“गोविन्द…”
वह पलटा। कोई नहीं।
फिर वही आवाज़, इस बार थोड़ा पास —
“गोविन्द, मुझे ठंड लग रही है…”
उसका शरीर सिहर गया। उसने काँपते हुए पूछा,
“ललिता… तुम हो?”
अंधेरे से एक परछाईं निकली — सफ़ेद कपड़ों में वही स्त्री आकृति, चेहरा पीला, और आँखें लाल जैसे अंगार।
वह धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी।
गोविन्द के कदम पीछे हटने लगे।
“ललिता… तुम जिंदा हो?”
आवाज़ आई, “जिंदा… नहीं… अब तो मैं हमेशा के लिए जाग गई हूँ…”
हवा तेज़ हुई। लालटेन बुझ गई।
अब केवल चाँद की हल्की किरणें गुफ़ा के द्वार पर पड़ रही थीं।
गोविन्द को लगा जैसे कोई उसका नाम फुसफुसा रहा हो हर दिशा से —
“गोविन्द… अंदर आओ…”
वह एक पल के लिए हिचकिचाया, फिर साहस जुटाकर गुफ़ा में कदम रख दिया।
अंदर एक ठंडी नमी थी, और चारों ओर पानी की टपकती बूंदों की आवाज़।
दीवारों पर पुराने चित्र थे — और हर चित्र में एक जैसी औरत का चेहरा था, लाल आँखों के साथ।
“ये सब क्या है…” गोविन्द बुदबुदाया।
तभी उसके पीछे किसी ने धीरे से कहा —
“यही सच है… यही मेरा घर है…”
वह पलटा — ललिता उसके ठीक पीछे खड़ी थी।
उसके होंठ हल्के से मुस्कुरा रहे थे, पर आँखों में गहरी उदासी थी।
“तुम डरते क्यों हो? क्या मैं अब भी वही नहीं हूँ जिसे तुम जानते थे?”
गोविन्द चुप रहा।
“तुम मर चुकी हो, ललिता…” उसने धीरे से कहा।
“मृत्यु?” ललिता हँसी —
“यह गुफ़ा मृत्यु नहीं देती, गोविन्द… यह हमें अपने पास रखती है।”
अचानक दीवारों से फुसफुसाहट उठी —
सैकड़ों आवाज़ें, बच्चों की, औरतों की, बूढ़ों की —
“यहाँ कोई नहीं मरता… कोई नहीं लौटता…”
गोविन्द ने अपने कान ढँक लिए। “बस करो!”
ललिता आगे बढ़ी, उसकी उँगलियाँ ठंडी थीं जैसे बर्फ़।
“तुम जानना चाहते हो ना कि उस दिन क्या हुआ था?”
वह रो पड़ी —
“हम उस लड़की को बचाने गए थे… पर वह लड़की इंसान नहीं थी, गोविन्द। वह गुफ़ा का बुलावा थी।
हमने जैसे ही उसे छुआ, उसने हमारी आत्मा बाँध ली।
महेश बच नहीं सका… और मैं…”
उसकी आवाज़ टूट गई।
“मैं भी उसी अंधेरे में समा गई।
पर अब गुफ़ा मुझे छोड़ना नहीं चाहती।”
गोविन्द पीछे हटा, “मुझे जाने दो, ललिता।”
वह मुस्कुराई, “अब जब तू यहाँ है… तू भी अकेला नहीं रहेगा।”
गुफ़ा की दीवारें हिलने लगीं।
नीचे की ज़मीन फट गई।
अंदर से सैकड़ों सफ़ेद हाथ निकले, जो हवा में तैर रहे थे —
हर हाथ किसी आत्मा का था, जो वर्षों से बंद थी।
गोविन्द ने चीख़ मारकर भागने की कोशिश की,
पर ललिता ने उसका हाथ पकड़ लिया।
उस पल उसकी आँखों से एक आँसू गिरा — और गुफ़ा के भीतर से किसी बच्चे की हँसी गूँज उठी।
हवा में जलने की गंध भर गई, और अंधेरे ने सब कुछ निगल लिया।
अगली सुबह गाँववाले मंदिर के पास पहुँचे।
गोविन्द वहाँ पड़ा था, ज़िंदा लेकिन बोल नहीं पा रहा था।
उसकी हथेली में खून से लिखा था — “सत्य।”
और मंदिर की दीवार पर अब एक नया वाक्य लिखा था —
“वह अब अकेली नहीं है…”
उस दिन के बाद किसी ने उस रास्ते पर कदम नहीं रखा।
कहते हैं, जब अमावस की रात आती है,
गाँव के ऊपर एक ठंडी परछाईं घूमती है —
और मंदिर के दीये अपने आप बुझ जाते हैं।
कुछ लोग अब भी दावा करते हैं कि उन्होंने गुफ़ा के अंदर दो परछाइयाँ देखी थीं —
एक ललिता की, और दूसरी गोविन्द की।
दोनों साथ बैठे थे…
और उनके पीछे दीवार पर किसी ने लाल रंग से लिखा था —
“गुफ़ा ने अपना वादा निभा दिया।”
😈 जारी रहेगा — भाग 7 में…
(जहाँ पहली बार गुफ़ा के अंदर का “प्राचीन शाप” खुलने लगेगा,
और पता चलेगा — क्या ये सब एक इंसानी अपराध की सज़ा है या किसी दैवी श्राप की शुरुआत…)