The Risky Love - 39 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 39

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The Risky Love - 39

वनदेवी की जय हो...

लड़खड़ाते हुए अदिति अमोघनाथ जी के पास पहुंचती है...

" उस बेताल को कैसे मार सकते हैं...."
अब आगे...….......
अदिति को देखकर अमोघनाथ जी कहते हैं....." अदिति मार सकते हैं लेकिन तुम्हें अभी आराम की जरूरत है , इस समय तुम बहुत कमजोर हो...."
अदिति जोश भरे शब्दों में कहती हैं....." मैं इंजर्ड बेशक हूं लेकिन कमजोर नहीं हूं .... मैं अपने भाई को बचाकर ही रहूंगी...." 
अमोघनाथ जी उसके हौसले को देखकर कहते हैं...." ठीक है अदिति , मैं तुम्हें उसे मारने के बारे में बताता हूं....आओ मेरे पीछे.. ‌‌."
अमोघनाथ जी उसे एक माता काली के नीचे रखें छोटे से बक्से को दिखाकर कहते हैं...." अदिति , इस बक्से के अंदर उस बेताल को खत्म करने का एकमात्र उपाय है , इसे सिर्फ तुम ही खोल सकती हो....."
अदिति उलझन भरी नजरों से देखते हुए कहती हैं......" लेकिन इसे सिर्फ मैं ही कैसे खोल सकती हूं....."
विवेक उसे समझाते हुए कहता है....." अदिति तुम्हारे पापा ने एक खंजर बनाया है , जिसे केवल तुम ही उठा सकती हो..."
 सबकी बातें अदिति को काफी उलझन में डाल रही थी , 
" मेरे पापा ने...?..."
" अदिति , तुम्हें पूरी कहानी बाद में बताते हैं अभी सिर्फ इस बोक्स को खोलो...."
विवेक की बात सुनकर अदिति हामी भरते हुए उस बक्से की तरफ जाकर नीचे बैठकर बक्से पर बिछे लाल कपड़ा को हटाती है......
उस कपड़े के हटाते ही बक्से पर बनी बिच्छू की आकृति उभर उठती है जिसे देखकर अदिति घबरा जाती है लेकिन अमोघनाथ जी उसे समझाते हुए कहते हैं...." अदिति , उससे डरने की जरूरत नहीं है ये तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता..."
अमोघनाथ जी की बात सुनकर अदिति एक गहरी सांस लेते हुए उस बक्से को खोलने के लिए हाथ आगे बढ़ाती है...और जैसे ही बक्से को खोलती है एक लाल रंग की रोशनी फैल जाती है......
अदिति उस रोशनी को सहन करते हुए, , लाल कपड़े में लिपटे हुए उस खंजर को निकालती है , , 
" अब तो हमें चलना चाहिए न विवेक...."
विवेक जैसे ही उसके कंधे पर हाथ रखने के लिए आगे बढ़ता है तभी अमोघनाथ जी उसे रोकते हुए कहते हैं...." विवेक , अदिति को छूने से पहले अब उस खंजर को अपने से दूर कर दो , नहीं तो दोनों की शक्तियां मिलकर तबाही मचा सकती है..."
अमोघनाथ जी की बात पर सहमति जताते हुए विवेक उस खंजर को निकालकर अमोघनाथ जी को देता है.....
" अब तुम जाओ सकते हो , , लेकिन अदिति ध्यान रखना ये खंजर गलती से भी उस बेताल के हाथ नहीं लगना चाहिए और इस खंजर की शक्ति केवल तुम ही संभाल सकती हो और कोई नहीं...."
अमोघनाथ जी की बात सुनकर अदिति उस खंजर को अपने पास रखकर विवेक से कहती हैं....." चले मुझे भाई को देखना है , उन्हें बचाना है..."
विवेक उसे देखते हुए कहता है....." तुम चल लोगी...?.."
" हां , विवेक मैं चल लूंगी , अब चलो जल्दी...."
अमोघनाथ जी झरोखे से बाहर देखते हुए कहते हैं...." विवेक सुबह होने वाली है , गोधूलि बेला शुरू हो चुकी है इसलिए तुम जाओ और इसका ध्यान रखना , चेताक्क्षी अदिति को सही सलामत लेकर जाना तुम्हारी जिम्मेदारी है..."
चेताक्क्षी हामी भरते हुए कहती हैं....." हां बाबा , मैं अदिति का ध्यान रखूंगी..."
चेताक्क्षी कुछ जड़ी बूटी को एक कपड़े में बांधकर विवेक के पास जाकर उसे देते हुए कहती हैं... .." इसकी जरूरत पड़ेगी अदिति को , इसे अपने पास रखो..."
विवेक उसकी बात पर सहमति जताते हुए उस पोटली को ले लेता है , देविका जी अदिति के पास आकर उसके गालों पर हाथ फेरते हुए कहती हैं..." अपना ध्यान रखना...."
विवेक अदिति और  चेताक्क्षी वहां से चले जाते हैं......
हल्की हल्की रोशनी में वो तीनों गांव के पगडंडी वाले रास्ते से होकर बढ़ रहे थे , , विवेक ने अदिति के हाथों को थाम रखा था , , आदत न  होने के कारण और कमजोर होने की वजह से अदिति लड़खड़ा रही थी लेकिन विवेक ने उसे थाम रखा था , , चेताक्क्षी लालटेन लिए आगे बढ़ रही थी लेकिन बार बार पीछे पलटकर दोनों को देख रही थी , जिन्हें देखकर उसे अपने आप पर अफसोस हो रहा था....
एक तो बेताल जाति की कन्या जोकि आम लोगों से हटकर थी , लेकिन फिर भी अपने जीवन में आदित्य से प्यार करके , , अपने आप को तड़पा रही थी.....
तीनों गांव से काफी दूर आ चुके थे , अदिति बैचेन सी लड़खड़ा जाती है , जिसे संभालते हुए विवेक खुद नीचे बैठकर उसे अपने आप से टिकाते हुए जल्दी से पानी उसे पिलाते हुए कहता है..." अदिति थोड़ा आराम करें ...."
चेताक्क्षी जल्दी से बैठकर विवेक से कहती हैं...." विवेक अदिति को वो जड़ी का लेप इसके घाव पर लगा दो..."
चेताक्क्षी की बात मानते हुए विवेक उस पोटली को खोलकर उसमें से जड़ी के पाउडर को हाथ में लेकर लेप बनाते हुए उसकी गर्दन पर लगाता है......
थोड़ी देर बाद रिलेक्स होने के बाद तीनों वहां से आगे के लिए चलने लगते हैं....
काफी दूर चलने के बाद समतल रास्ता अब पहाड़ी इलाकों में बदल चुका था , , 
मुश्किल रास्ता होने की वजह से दोनों को काफी दिक्कत हो रही थी लेकिन चेताक्क्षी तो जल्दी जल्दी आगे बढ़ रही थी , , 
काफी ऊपर जाने के बाद मौसम ने करवट बदली आसमान में अचानक काले बादल छा गए , , जिसे देखकर चेताक्क्षी विवेक से कहती हैं...." विवेक जल्दी से उस रास्ते से आगे निकल आओ.....
विवेक हां कहते हुए अदिति को संभालते हुए आगे बढ़ता है ,...
कुछ ही दूरी पर जाने के बाद एक निर्जन पड़ी जगह आती है , , ज़हां पर अदिति के कदम रखते ही , एक जोर की हवा चलती है और सारी जगह वापस से हरी भरी होने लगती है , , हवाओं में एक आवाज गूंजने लगती है....." वनदेवी की जय हो...."
वनदेवी का नाम सुनते ही अदिति बूत की तरह जम जाती है ,  विवेक और चेताक्क्षी जल्दी से उसे वहां से ले जाने के लिए आगे बढ़ते हैं....
तभी कुछ आदिवासी हाथ में तीर कमान लिए उनके सामने आ जाते हैं.....
 
...........to be continued.............