The Risky Love - 8 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 8

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The Risky Love - 8

अदिति के जन्म की सच्चाई...

अब आगे.............

तभी उस चमकती हुई ज्योति में से आवाज़ आती है...." हे ! महात्मा , मैं वनदेवी आपसे एक विनती करती हूं अगर आप उसे स्वीकार करें तो मैं कहूं...."
इस आवाज से सबका ध्यान उसकी तरफ जाता है
आदिराज अचानक ज्योति में से आवाज़ सुनकर कहते हैं...." बोलो , क्या विनती करनी है...."
" मैं , इस पिशाच को अकेले नहीं मार सकती , इसमें आपके अंश की आवश्यकता होगी , क्योंकि आपकी सकारात्मक शक्तियो ने इसे निढाल बनाया है ,..."
" तो तुम कहना क्या चाहती हो वनदेवी ....?..."
" हे ! महात्मा , , मुझे आज्ञा दे दो मैं आपकी पत्नी के दो माह के गर्भ में चली जाऊं , ताकि आपकी बेटी बनकर मैं आ सकूं....."
आदिराज कुछ सोच विचार करते हुए कहते हैं....." ठीक है वनदेवी मुझे भी तुम्हें अपनी बेटी के रूप में पाकर अच्छा लगेगा....."
" आपका धन्यवाद , आप मेरे जीवन दाता है , आप इस पिशाच को अपने पास कैद कर लिजिए , जब मैं एक साल की होऊंगी तब आप अपनी शक्ति के जरिए मुझसे इसे ख़त्म करना दीजिएगा , क्योंकि मैं अपने इस जीवन के बारे में सबकुछ भूल चुकी होंगी...."
" तुम निश्चिन्त रहो , और जाओ अब अपने अगले पड़ाव पर...."
आदिराज की आज्ञा सुनकर वनदेवी की ज्योति वहां से चली जाती हैं और आदिराज उसके बताए अनुसार उस पिशाच को एक छोटी सी बोतल में बंद कर लेते हैं.....
इन सब क्रिया में सुबह हो चुकी थी , सुरज की रोशनी ने अंधकार को बिल्कुल खत्म कर दिया था , एक नई सुबह एक नई कहानी लेकर आई है.....
पिशाच को कैद करने के बाद उसकी पत्नी आदिराज के पास आकर हाथ जोड़कर बैठते हुए कहती हैं..." हे ! दिव्य पुरुष , आपने वनदेवी पर तो उपकार कर दिए हैं बस अब आप मुझ पर भी एक उपकार कर दे तो बड़ी कृपा होगी आपकी...."
" बोलो ...."
 " हे ! दिव्य पुरुष , ये मेरी बेटी है चेताक्क्षी , इसके पास मेरी और पिशाच की शक्तियों की पूरी विद्या है , "
आदिराज उस लड़की को देखते हुए कहते हैं....." ये तो अभी छोटी बच्ची है , और इनमें पूरी विद्या है...."
" जी ! ये अभी आपको तीन साल की छोटी बच्ची लग रही है किंतु ये बहुत कुछ जानती है , मैं आपसे अनुरोध करती हूं इसे आप अपने साथ ले जाइए , क्योंकि अब मैं ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाऊंगी...."
आदिराज हैरानी से पूछते हैं...." लेकिन क्यूं नहीं रह पाओगी....?.."
" इस पिशाच ने मुझे बर्बर कर दिया है , मैं बिल्कुल नि: स्वास्थ्य हो चुकी हो इसलिए कुछ ही दिनों में मेरा अंत हो जाएगा , इसलिए आप मेरी बेटी को अपने आश्रय में ले लिजिए ताकि इसका जीवन मेरी तरह बर्बाद न हो...."
आदिराज उसकी बात पर सहमति जताते हुए कहते हैं..." ठीक है , तुम्हारी ये बेटी हमारे साथ रहेगी.....अमोघनाथ तुम बरसों से मुझसे कहते थे न कि कोई उपाय बताओ जिससे तुम्हारे घर में किसी बच्चे की किलकारी गूंजे , तो आज से तुम ही इसे अपनी बेटी की तरह पालोगे... तुम्हें मंजूर है...."
आदिराज की बात सुनकर अमोघनाथ खुशी से कहता है..." ये तो मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा , आदिराज जी , मैं इसके पालन पोषण में कोई कमी नहीं आने दूंगा..."
जहां अमोघनाथ आदिराज की बात सुनकर बहुत खुश था , वहीं गामाक्ष के अंदर गुस्से और जलन की भावना दहक उठी , 
आदिराज चेताक्क्षी और अपने दोनों साथी के साथ वापस गांव में लौट आते हैं , और देवागिरी से लाई औषधि के जरिए गांव से महामारी से मुक्त कर देते हैं , , 
ऐसे ही कुछ दिन महीने शांति से बीते , एक दिन आदिराज मंदिर में बैठे पूजा करवा रहे थे , इन दिनों गामाक्ष किसी काम से बाहर गया हुआ था , इसलिए अमोघनाथ मंदिर में उनकी सहायता कर रहे थे , , तो वहीं मंदिर के प्रांगण में चेताक्क्षी आदिराज के बेटे यानी आदित्य के साथ मंदिर में खेल रही थी , 
इस समय आदित्य की उम्र पांच साल की थी और चेताक्क्षी चार साल की थी , 
उसी वक्त गांव का एक आदमी भागता हुआ मंदिर पहुंचकर कहता है...." सिद्ध पुरुष जी ! आपके घर लम्क्षी आई है , वो‌ किसी दिपक की तरह चमक रही है और काकी ने आपको बुलाया है..."
आदिराज के चेहरे पर खुशी छलकने लगती है और उस व्यक्ति से कहते हैं...." देविका , स्वस्थ है , .." आगे अपने आप से कहते हैं...." क्योंकि वो कन्या वनदेवी है तो उनके तेज से देविका को हानि न हुई हो..."
" जी ! वो बिल्कुल स्वस्थ हैं , आप बस जल्दी से घर आ जाइए..."
आदिराज अपनी पूजा पद्धति को करते हुए कहते हैं.." तुम जाओ , मैं बस कुछ ही देर में पहुंच रहा हूं... " 
अपनी सिद्धी को पूरा करके आदिराज अमोघनाथ और दोनों बच्चों के साथ घर पहुंचते हैं , जहां दाई उनकी बेटी को लिए उनके पास आती हुई कहती हैं...." देखिए आदिराज जी ! कैसा तेज है इस कन्या में , जैसे कोई देवी हो...."
आदिराज दाई की हाथों से अपनी बेटी को लेकर उसके माथे को चूमते हुए कहते हैं...." हमारी बेटी देवी से कम नहीं है , , इसलिए मैं इसका नाम अदिति रखता हूं..... जहां तक मैं इसके भविष्य को देख पा रहा हूं , इसका भविष्य कठिनाई से भरा हुआ रहेगा.... लेकिन जबतक मैं जिंदा हूं मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा,..."
अमोघनाथ आदिराज को टोकते हुए कहता है...." आप ये कैसी बात कर रहे हैं , आप की उम्र तो की हजारों साल तक होनी चाहिए , आप जैसे परोपकारी इतनी आसानी से नहीं जन्म लेते..."
आदिराजा अमोघनाथ से कहते हैं..." परोपकारी बहुत होंगे , अब तुम भी जल्द ही मेरी तरह सिद्धियां प्राप्त कर लोगे......
" ये तो आपकी मेहनत है .."
आदिराज कुछ नहीं कहते और चुपचाप वहां से जाकर एक घोषणा करते हैं......
 
..............to be continued........