...पुराने किले में कैद अदिति.....
अब आगे.............
आदित्य इस बात को सुनकर बहुत ज्यादा दुखी हो जाता है...कामनाथ जी और अमरनाथ जी उसे समझाते हैं...." ऐसे. दुखी होने से कुछ नहीं होगा आदित्य , खुद संभालो , अदिति तुमसे दूर गई , अभी वो जिंदा है , , तुम्हें उसे बचाना होगा..."
तभी मेन डोर से आवाज़ आती है......" अदिति जिंदा है और उसे बचाना है..."
सबकी नजरें मेन डोर पर जाती है जहां इशान और विवेक खड़े उनकी ये बात सुन चुके थे , , विवेक तेज तेज कदमों से आकर आदित्य के पास आकर बैठकर उसे कंधे से पकड़कर पूछता है....." कहां से बचाना है अदिति को..?.. कोई कुछ बोल क्यूं नहीं रहा है...?..और भाई आप इस तरह मत रोयो , अदिति को आपका रोना बिल्कुल पसंद नहीं है...."
आदित्य रूंधे गले से कहता है....." क्या क्यूं विवेक..?..मैं अपनी छोटी बहन की देखभाल नहीं कर पाया , मैं मां को क्या जबाव दूंगा कि मेरी जान बचाने के लिए अदि ने अपनी जान दांव पर लगा दी..."
विवेक हैरानी से उसे देखते हुए पूछता है....." जान दांव पर लगा दी मतलब भाई...?.."
" उसने खुद को पिशाच को सौंप दिया...?.."
विवेक को आदित्य की बात सुनकर एक गहरा सदमा लगा और हड़बड़ा कहता है...." नहीं ... ऐसा नहीं हो सकता...भाई ये सब झूठ है न , , अदिति उस पिशाच के पास नहीं है न..."
इशान विवेक को संभालते हुए कहता है....." विवू , माना वो तेरी बचपन की दोस्त हैं , लेकिन तू आदित्य का सोच उसे तेरे इस बिहेवियर से कैसा लग रहा होगा...और अदिति तूझे ये ब्रेसलेट देकर गई है उसकी कोई खास वजह भी तो होगी...."
" इशान अदि घर पर हैं..." मायुस सी आवाज में आदित्य ने कहा.....
इशान न में सिर हिलाते हुए कहता है..." हमने पूरा घर जाना मारा लेकिन अदिति कहीं नहीं थी , , ..."
विवेक कुछ सोचकर उठकर अघोरी बाबा के पास जाता है जोकि अपने सामान को अपने झोले में रख रहे थे ,, उनसे कहता है....." बाबा , आप तो बता सकते है अदिति के बारे में , तो प्लीज़ बताईए न वो कहां है...?..."
अघोरी बाबा उसकी आंखों में उसके लिए चिंता देखते हुए कहते हैं......" ठीक है , हम बता सकते है लेकिन हम इससे आगे तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकते..."
विवेक ये सुनकर एक्साइटेड होकर पूछता है..." तो बताइए फिर जल्दी....."
" ठीक है , तुम उसकी कोई निशानी हमें दो और एक सीसा लाकर यहां रख दो..."
विवेक बिना देर किए अदिति का वो ब्रेसलेट अघोरी बाबा को देता है और सर्वेंट से मिरर मंगाता है .....
कुछ ही देर में अघोरी बाबा मिरर को नीचे रखकर उसके सामने बैठ जाते हैं , सबका ध्यान अघोरी बाबा पर ही था और आदित्य भी बिना पलकें झपकाए उन्हें ही देख रहा था... अघोरी बाबा उस ब्रेसलेट को रखकर कुछ मंत्र सा पढ़ते हैं और फिर उस ब्रेसलेट पर नजरें जमाते हुए कहते हैं..." ध्यान से इस शीशे में देखना , , तुम्हें वो इसी शीशे में दिखाई देंगी..."
अघोरी बाबा के इतना कहते ही विवेक , आदित्य और बाकी सब भी उस मिरर को गौर से देखने लगते हैं... कुछ ही पलों में मिरर में अचानक तेज रोशनी होती है और एकदम से अंधेरा छा जाता है , , धीरे धीरे जंगल दिखाई देने लगते हैं और फिर अचानक से एक पूराना किला दिखता है फिर धीरे धीरे वो सीधा अदिति सामने आती है जिससे देखकर सब हैरान थे क्योंकि अदिति को रस्सी से बांधकर से एक घेरे में खड़ा कर रखा था और अदिति बिल्कुल बेसुध सी उस रस्सी से बंधे झूल रही थी , उसके गर्दन से निकलता हुआ खून जम चुका था, , , जिसे देखकर आदित्य बिल्कुल बौखलाते हुए कहता है...." नहीं , अदि को वो ऐसे नहीं ले जा सकता , नहीं .."
इशान आदित्य को संभालता है लेकिन कोई विवेक से भी तो पूछो उसके दिल पर अपने प्यार की ऐसी हालत देखकर क्या बीती होगी , ,
विवेक उस ब्रेसलेट को उठाकर अपने आप से कहता है...." ये ब्रेसलेट देकर तुम मुझे ये बता कर गई थी अदिति , , जबतक तुम्हारा प्यार जिंदा है वो तुम्हें कुछ नहीं होने देगा अदिति , मैं तुम्हें बचाऊंगा..."
अघोरी बाबा उनसे कहते हैं...." देखो बेटा अभी तुम्हारी बहन जिंदा है , लेकिन ज्यादा समय तक नहीं , आज से तीन दिन बाद वो पिशाच उसे हमेशा के लिए खत्म कर देगा , अगर तुम उसे बचाना चाहते हो तो जाओ उसे बचा लो अभी तुम्हारे पास तीन दिन शेष हैं....जाओ उसके किले को ढूंढ़ो..."
विवेक खुद संभाले हुए ही पूछता है...." बाबा ये किला है कहां..?..और हम उसे कहां ढूंढेंगे...?..."
अघोरी बाबा स्पष्ट शब्दों में कहते हैं...." इससे से ज्यादा हम तुम्हें कुछ नहीं बता सकते , हमारी सिद्धीयां अभी उस प्रेत राज की शक्तियों के आगे कुछ नहीं है , उसे खत्म करने के लिए तो किसी दिव्य संत की आवश्यकता है...."
अघोरी बाबा की बात सुनकर आदित्य रूंधे हुए गले से कहता है......." ये पूराना किला मुझे पता है कहां है , , .."
पूराने किले की जानकारी सुनकर विवेक आदित्य के पास आकर पूछता है....." कहां है ये पूराना किला भाई...?.."
" पैहरगढ में है , , और वो पता नहीं दिव्य संत हैं या नहीं लेकिन अब मां ही हमारी मदद करेंगी , , लेकिन मैं उनसे कैसे कहूंगा कि अदिति उस पिशाच की कैद में है....." आदित्य फिर एकबार रोने लगता है और उसी तरह कहता .है....." क्यूं मेरी भोली भाली बहन को उसने अपने इस काम के लिए चुना...अदि ने कभी किसी का बुरा नहीं किया फिर उसके साथ ही , ये सब क्यूं हो रहा है....?...." इशान और विवेक दोनों संभालते हैं .....
" भाई संभालो अपने आप को , अब हम भी पैहरगढ जाएंगे ..."...विवेक ने अपने हौसले बुलंद करते हुए कहा...
..........to be continued........
क्या आदित्य और विवेक अदिति को बचा पाएंगे...?
जानने के लिए जुड़े रहिए...