मुझे मेरी अदिति चाहिए
उसके आकृषण से अदिति एक बार फिर से तड़प उठी जिससे एक तेज चीख के साथ वो किला गूंज उठा......
अब आगे...............
इस आवाज को सुनने के बाद आदित्य और विवेक और ज्यादा परेशान से हो जाते हैं.....
" चेताक्क्षी , ये अदि की आवाज थी , पता नहीं अदि को क्या किया उसने.. हमें जल्दी चलना चाहिए ,...." आदित्य घबराते हुए कहता है.....
" हां आदित्य , हमें लगता है उस गामाक्ष ने देहविहिन क्रिया शुरू कर दी है , अच्छा हुआ हम सही समय पर पहुंच गए , , अब किले के चारों तरफ एक सुरक्षा दीवार बन गई होंगी...."
आदित्य चिंता भरी आवाज में कहता है....." हमें बातों में टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए , जल्दी चलो चेताक्क्षी...."
************""
इधर विवेक परेशान सा इधर उधर देखते हुए कहता है....." ये अदिति की आवाज थी , , ..."
इशान उसे समझाते हुए कहता है......" रिलेक्स विवू , अदिति को कुछ नहीं होगा..."
" नहीं भाई , मुझे जल्दी से उसतक पहुंचना है ....." इतना कहकर विवेक जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगा लेकिन अचानक इशान को कोई पीछे से मुंह दबाते हुए वहां से ले जाता है लेकिन घबरा जाने की वजह से विवेक जल्दी जल्दी आगे चला गया था ,......
********************
गामाक्ष अदिति को तड़पते हुए देखकर उससे कहता है..." बहुत जल्द तुम्हारा दर्द हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा...."..गामाक्ष जोर से हंसने लगता है तभी उसका सिपाही बेहोश इशान को लाकर उसके सामने खड़ा करता है जिसे देखकर गामाक्ष उसे खंभे से बांधने का इशारा करता है.....और वापस अपनी हवन कुंड के पास बैठकर मंत्रों की आहूति देने लगता है.....
आदित्य और चेताक्क्षी उसके पिशाची सैनिकों को खत्म करते हुए , उसके हवन कुंड वाली जगह पर पहुंच चुके थे..... आदित्य की नजर सबसे पहले अपनी बहन पर जाती है जोकि उस भयानक मूर्ति की आंखों से निकलने वाली रोशनी उसे तड़पा रही थी ....
आदित्य अपने दांतों को भींचते हुए कहता है......" बहुत हो गया गामाक्ष ..... छोड़ दें मेरी बहन को .... अपनी चापलूसी से तूने मेरी भोलीभाली बहन को अपने वश में करके अपनी कायरता दिखाई है , .."
गामाक्ष पीछे मुड़कर उन्हें देखकर हंसते हुए कहता है....." तो तुम बचाने आए हो अपनी बहन को , लेकिन अफसोस तुम दोनों मेरे जाल में फंस चुके हो...."
चेताक्क्षी गुस्से में कहती हैं....." गामाक्ष , ये भूल मत करो , तुमसे पहले भी आदिराज काका ने शक्तियां छिन ली थी और एक पिशाच बना दिया , , ..."
गामाक्ष हंसते हुए कहता है....." अब कौन है जो मुझे रोक सके , ," इतना कहकर गामाक्ष गुस्से में भरते हुए कहता है....." और रही बात मुझे पिशाच रूप देने की तो उसका बदला उसकी बेटी तो दे रही है और अब उसका बेटा भी देगा ...." गामाक्ष अपनी शक्ति से आदित्य पर वार करता है जिससे वो वहीं गिर जाता है , ...
" आदित्य...गामाक्ष तुमने ये अच्छा नहीं किया..." चेताक्क्षी चिल्लाती हुई कहती हैं....
गामाक्ष अपनी दानवी हंसी हंसते हुए कहता है....." चेताक्क्षी तुमने आदित्य को मौत के सामने लाकर खड़ा कर दिया है...."
चेताक्क्षी आदित्य को संभालते हुए गुस्से में कहती हैं....." बिल्कुल नहीं , , " इतना कहकर वो उसके माथे पर अंगूठा लगाते हुए मंत्रों को उच्चारित करने लगी थी , , जिसे रोकने के लिए गामाक्ष भी अपनी पैशाची शक्ति से उसे नुकसान पहुंचाने लगा था..... लेकिन चेताक्क्षी अपनी मंत्र शक्ति से उसका मुकाबला कर रही थी , जिससे गामाक्ष काफी चिढ़ चुका था , .... अपनी खुंदस को उतारने के लिए गामाक्ष अबकी बार आदित्य की तरफ वार करता है जिससे वो बेहोश हो गया और चेताक्क्षी का ध्यान उसपर चले जाने की वजह से गामाक्ष उसे अपनी मंत्र शक्ति से कैद करके हंसते हुए कहता है......" चेताक्क्षी , मुझे कोई नहीं रोक सकता..."
तभी पीछे से आवाज़ आती है....." कोई नहीं लेकिन मैं रोक सकता हूं...."
गामाक्ष की हंसी परेशानी में बदलते देर नहीं लगी वो हैरानी से पीछे मुड़कर उसे देखते हुए कहता है....." विवेक , , तू जिंदा बच गया...."
विवेक उसे घूरते हुए कहता है....." हां , क्योंकि तेरी मौत बनना है मुझे.... तूने जो अदिति को यहां लाकर भूल की है उसके लिए तुझे केवल मौत ही मिलेगी....."
गामाक्ष विवेक की बात सुनकर जोर जोर से हंसने लगता है....." उबांक , देखो कोई पिशाच राज को मौत के घाट उतारने आया है..... चींटी का मुकाबला हाथी से कभी नहीं होता.....खुद मौत के मुंह में खड़े होकर उसे ही ललकार रहा है......"
" किसकी मौत किसे ललकार रही हैं ये तो तुझे पता चल जाएगा..."
गामाक्ष उसके चारों तरफ घूमते हुए कहता है....." ऐसी कौन सी शक्ति मिल गई तुझे जो तू इतना उछल रहा है....." गामाक्ष पीछे जाकर उसे पकड़ता है लेकिन उसे छुते ही एक जोर का झटका लगता है और वो दूर जाकर गिर जाता है......
गामाक्ष शातिराना ढंग अपनाते हुए कहता है......" तो फिर से रूद्राक्ष शक्ति से बंधकर आए हो.... तूझे अपनी अदिति की इतनी चिंता होती तो इस तरह अपनी सुरक्षा करके नहीं आता...... मुझे चोट पहुंचाने की सजा तूझे नहीं उसे मिलेगी..." इतना कहकर गामक्ष तीक्ष्ण शक्ति का वार अदिति पर करता है ,
" नहीं , , अदिति छोड़ दें...."
गामाक्ष हंसते हुए कहता है....." उसे चोट पहुंचाई तो तुझे तकलीफ हुई , सोच अगर मैं उसे हमेशा के लिए तुझसे दूर कर दूं अगर ऐसा नहीं चाहता तो फिर जल्दी से उस शक्ति को अपने आप से दूर कर...."
चेताक्क्षी चिल्लाती हुई कहती हैं....." नहीं विवेक , इसकी बातों में मत आओ , , खत्म कर दो इसे , , अदिति को तो तुम ठीक कर सकते हो लेकिन इसे ख़त्म कर दो...."
गामाक्ष गुस्से में कहता है....." अगर तुझे अपनी जान प्यारी है तो ठीक है , , अब ये मेरी आखिरी विधि होगी और उसके बाद अदिति हमेशा के लिए खत्म....सोच ले तूझे तेरी अदिति चाहिए या तेरी जान...."
विवेक बेबस भरी नजरों से अदिति की तरफ देखता हुआ कुछ सोचकर कहता है....." मुझे मेरी अदिति चाहिए.... मैं अपनी शक्ति को अपने से दूर करने के लिए तैयार हूं......"
गामाक्ष हंसते हुए कहता है....." ये हुई सच्चे प्रेमी की निशानी....अब जल्दी से उस शक्ति को खुद से दूर करके उस कुंड में फैंक दो...."
विवेक शातिराना अंदाज से हंसते हुए अपने जेब से वो सप्त शीर्ष तारा निकालकर कहता है...." देखो ये है मेरा शक्ति कवच....." गामाक्ष हैरानी से उस सप्त शीर्ष वाले तारे को हैरानी से देखते हुए कहता है...." ठीक है इसे फैंक दो...."
लेकिन तभी उबांक कहता है......
...............to be continued...........