The Risky Love - 33 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 33

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The Risky Love - 33

पुराने किले में चलो..

चेताक्क्षी मायुसी से कहती हैं....." ऐसा नहीं होना चाहिए , अगर विवेक को होश नहीं आया तो , अदिति को कोई नहीं बचा सकता....."

अब आगे....................
आदित्य परेशान सा चेताक्क्षी की तरफ देखते हुए कहता है....." नहीं चेताक्क्षी अदिति हम बचाएंगे , , विवेक तुम्हें उठना होगा....." 
अमोघनाथ जी विवेक पर गंगाजल छिड़कते हैं लेकिन किसी चीज का का फायदा विवेक पर नहीं हो रहा था , लेकिन उसके हाथों पैरों में हलचल शुरू होने लगी थी , चेहरे की भावभंगिमा बदल रही थी , वो बेहोशी में ही अपने सिर को इधर उधर घुमा रहा था...
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....गामाक्ष हाथ में खंजर लिए अदिति की तरफ बढ़ते हुए कहता है....".अब तुम्हें मरना होगा .", , ...
" नहीं नहीं , विवेक मुझे बचाओ ....." और गामाक्ष उस खंजर को अदिति के आरपार कर देता है ....
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"...... नहीं अदिति...."..विवेक घबराते हुए उठकर बैठते हुए कहता है , ...
विवेक को अचानक इस तरह घबराते देख आदित्य जल्दी से उसे संभालते हुए कहता है......" विवेक , क्या तुम्हें...?..."
विवेक अपने आप को तहखाने वाले कमरे में देखकर कहता है........" हमें जल्दी से उस पिशाच के किले पर जाना चाहिए , पता नहीं अदिति कैसी होगी , ...?.."
आदित्य उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है......" बिल्कुल विवेक....तुम ठीक हो न..."
" हां भाई बस थोड़ी वीकनेस हो गई थी , , मैं ठीक हूं , , अब जल्दी चलिए...."
आदित्य उसकी बात पर सहमति जताते हुए , उसे भाला सौंपते हुए कहता है....." तो चले अदिति को उस पिशाच से छुड़ाने...."
" हां भाई...." 
विवेक खुद माता काली के सामने जाकर हाथ जोड़कर अपने माथे को सिंदूर से ढककर अपने आप से कहता है......" घबराना मत अदिति मैं आ रहा हूं तुम्हें उस पिशाच से बचाने...."
" तो अब पुराने किले में चलो....." विवेक जोश भरी आवाज में कहता है...
रात का अंधेरा छाने लगा था , , विवेक और बाकी सब चल दिए थे उस किले की तरफ , ,
दूसरी तरफ गामाक्ष परेशान सा अपने आप से कहता है...." मैं इतनी आसानी आई हुई जीत अपने हाथ से नहीं निकलने दूंगा , , आज की रात मेरे इंतजार की आखिरी रात होगी , .." 
" दानव राज अब जल्दी ही आपको प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए , अब कोई सुरक्षा कवच इसे नहीं बचा सकता ...."
गामाक्ष एक शैतानी हंसी हंसते हुए कहता है......" हां उबांक , अब वो चेताक्क्षी भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती , ..." इतना कहकर गामाक्ष खंजर लेकर अदिति के पास जाकर उसके हाथ पर तेज वार करता है जिससे उसके हाथों से खून की धार बहने लगती है , , बेहोश होने की वजह से अदिति को कुछ असर नहीं हुआ था , लेकिन गामाक्ष उसे देखकर हंसते हुए कहता है...." आदिराज , बचा सके तो बचा ले अपनी बेटी को अब बहुत जल्द इसकी आत्मा की ऊर्जा मेरे अंदर समा जाएगी और मैं दुनिया का सबसे शक्तिशाली पिशाच बन जाऊंगा...." गामाक्ष हंसते हुए उस खून को एक छोटे से कटोरे में लेकर उस भयानक मूर्ति के सामने जाकर बैठ जाता है.......
इधर चेताक्क्षी और आदित्य किले के सामने वाले दरवाजे पर पहुंच चुके थे , जहां चेताक्क्षी विवेक को समझाते हुए कहती हैं....." विवेक , गामाक्ष को साधारण सा पिशाच नही है , , उसे हमारे आने के बारे में पता चल जाएगा इसलिए हम दोनों सामने वाले दरवाजे से जाएंगे ताकि हम पकड़े जाएं लेकिन तुम्हें उस दिव्य खंजर से अपने चारों तरफ एक अदृश्य कवच बनाना होगा ताकि वो तुम्हारे आभास को न समझ पाए , इसका फायदा उठाकर तुम उसके दिल पर सात वार करोगे तभी वो मर सकता है...."
विवेक उलझन भरी आवाज में कहता है....." मुझे गामाक्ष को सात बार मारना होगा....?..."
" नहीं विवेक , तुम्हें उसके दिल पर सात वार करने हैं , ..."
" वो तो ठीक है लेकिन मैं वो कवच कैसे बनाऊं...?..."
चेताक्क्षी उसे समझाते हुए कहती हैं....." विवेक वो खंजर अपने दिल से लगाते हुए मेरे पीछे उस मंत्र को दोहराओ , रूद्रं कवचं......" विवेक चेताक्क्षी के बताए अनुसार वैसे ही करता हुआ चेताक्क्षी के पीछे दोहराता है....." रूद्रं कवचं..!..."
उसके इतना कहते ही विवेक के चारों तरफ एक दिव्य प्रकाश फैलने लगता है जिसे विवेक आदित्य और इशान हैरानी से देख रहा थे लेकिन चेताक्क्षी मुस्कुराते हुए कहती हैं...." तुम अब सुरक्षित हो जाओ अब....हम तुम्हें अंदर ही मिलेंगे.."
इतना कहकर चेताक्क्षी और आदित्य अंदर की तरफ चले जाते हैं और विवेक इशान पीछे के दरवाजे की तरफ....
दूसरी तरफ गामाक्ष अपनी क्रिया की शुरुआत कर चुका था , वो मंत्रों के साथ आहूति दे रहा था , , लेकिन उबांक परेशान सा इधर उधर उड़ रहा था , जिसे चिढ़ते हुए गामाक्ष कहता है....." क्या बात है उबांक क्यूं बाधा उत्पन्न कर रहे हो...?...."
उबांक घबराते हुए कहता है....." दानव राज माफ़ करना लेकिन मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है , , चेताक्क्षी और अमोघनाथ इतने शांत नहीं बैठ सकते जरूर कुछ तो कर रहे हैं वो...."
बात की गंभीरता को समझते हुए गामाक्ष कहता है...." तुम कह रहे हो उबांक , मुझे देखना होगा आखिर ये कौन सी क्रिया कर रहे हैं..?..." 
इतना कहकर गामक्ष आंखें बंद करके कुछ बड़बड़ाते हुए तुरंत आंखें खोलकर सामने देखता है , जिससे सामने एक गोल घेरा बना जाता है और चेताक्क्षी , आदित्य को किले में आते देख हैरानी भरे भावों से उसे देखते हुए कहता है....." तो दोनों किले में पहुंच ही गए , ...."
तभी उबांक कहता है...." दानव राज दो नहीं तीन है , उसका भाई पीछे के दरवाजे से आ रहा है...."
गामाक्ष हंसते हुए कहता है......" आने दो उबांक , ये मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते , , जीत तो अब मेरे हाथों में है....." इतना कहकर गामाक्ष दोबारा से अपनी क्रिया को शुरू कर देता है....
इधर चेताक्क्षी और आदित्य अपने भालो से उसके पिशाची सैनिकों को मारते हुए आगे बढ़ रहे थे , तो वहीं विवेक भी इशान के साथ उन चमगादड़ों को मारते हुए आगे बढ़ रहा है....
गामाक्ष के मंत्रों ने यज्ञ कुंड की आग को लाल रंग में बदल दिया था.... अदिति के खून से भरे उस छोटे से कटोरे को ले जाकर उस भयानक मूर्ति के सामने सर झुकाकर उसे हाथ में रखकर वहां से हट जाता है......
उस खून के कटोरे को रखते ही उस भयानक मूर्ति की आंखें खुलने लगी थी , जिससे तुरंत वो खून सूख गया और उसके आंखों से निकलने वालींं लाल रंग की रोशनी अदिति के सुरक्षा कवच को भेदते हुए उसके दिल में समाने लगती है , उसके आकृषण से अदिति एक बार फिर से तड़प उठी जिससे एक तेज चीख के साथ वो किला गूंज उठा......
 
............to be continued.............