प्रिंसिपल बदल चुके थे, और यह जानकर प्रकृति और कबीर दोनों थोड़े हताश हुए।
प्रकृति की आँखों में हल्की निराशा थी, लेकिन उसका दिमाग़ लगातार काम कर रहा था।
उसने अपने हाथ में फाइल उठाई और सोचने लगी—“अगर मैं सही ढंग से सोचूँ, तो कुछ सुराग मिल सकते हैं… रिद्धी के उस साल के teachers और classmates के नामों से शायद कोई clue मिलेगा।”
पहले तो नए प्रिंसिपल व्यक्तिगत जानकारी देने से मना कर गए।
उनकी बात सुनकर प्रकृति ने थोड़ी देर ठहरी, फिर गहरी सांस लेकर खुद को संभाला।
कबीर ने भी उसके कंधे पर हल्का हाथ रखा और धीरे-से कहा—“हम उन्हें convince कर सकते हैं… बस धैर्य रखो।”
प्रकृति ने calm लेकिन फirm अंदाज में प्रिंसिपल से बात शुरू की।
उसने उन्हें समझाया कि यह सिर्फ़ एक academic और investigative purpose के लिए है।
कबीर भी बीच-बीच में मदद करता रहा, उसके शब्दों में सच्चाई और urgency दोनों झलक रही थी।
कुछ समय बाद, प्रिंसिपल ने आखिरकार सारी जानकारी दे दी।
प्रकृति की आँखों में हल्की राहत थी, लेकिन उसका दिमाग़ अब भी काम कर रहा था—“ये सिर्फ शुरुआत है… अभी सब कुछ समझना बाकी है।”
इसी बीच रिद्धान कॉलेज के गेट पर खड़ा था।
उसकी आँखों में बेचैनी और determination दोनों झलक रहे थे।
वो खुद से सोच रहा था—“शायद अगर मैं सब कुछ फिर से शुरू से देखूँ, तो कोई सुराग मिल सके। कुछ ऐसा जो अब तक छुपा रह गया था…”
उसकी उंगलियाँ थोड़ी सिकुड़ी हुई थीं, और उसका साँस थोड़ा तेज़ हो गया था।
थोड़ी ही देर में प्रकृति और कबीर कॉलेज के अंदर प्रवेश कर गए।
रिद्धान भी principal office की ओर बढ़ा, उसका कदम हल्का-सा तेज़ था, जैसे दिल में किसी सवाल का weight हो।
जैसे ही उसने display board पर नए principal का नाम देखा, curiosity भरी आवाज़ में उसने पूछा—
“यहाँ अब नए प्रिंसिपल हैं क्या? पुराने वाले…?”
Office में मौजूद स्टाफ ने शांति से बताया कि पुराने प्रिंसिपल retirement ले चुके हैं।
रिद्धान ने भी वही सवाल दोहराया जो अभी अभी प्रकृति और कबीर पूछ चुके थे।
उसकी आवाज़ में हल्की बेचैनी थी, लेकिन आँखों में determination, प्यास और सवालों की लहर साफ़ झलक रही थी।
प्रकृति और कबीर एक-दूसरे की तरफ़ देखे।
प्रकृति की आँखों में हल्की चिंता, लेकिन चेहरे पर resolve साफ़ था।
कबीर के चेहरे पर भी थोड़ी tension थी, लेकिन उसके भीतर उम्मीद की एक हल्की रौशनी थी।
दोनों जानते थे कि अब राह आसान नहीं होगी, लेकिन अब तक का सफर उन्हें मजबूत बना चुका था।
सच तक पहुँचने की कोशिश अभी शुरू ही हुई थी।
प्रकृति धीरे-धीरे list और files की ओर झुकी।
उसकी आँखों में focus और determination चमक रहा था।
कबीर उसके पास खड़ा था, उसकी तरफ़ बार-बार देख रहा था, जैसे कह रहा हो—“मैं हूँ तुम्हारे साथ, चाहे कुछ भी हो जाए।”
दोनों की सांसें थोड़ी तेज़ थीं, लेकिन उनका कदम स्थिर था।
उनकी आँखों में सवाल, तलाश और कुछ हल्की घबराहट का मिश्रण था।
रिद्धान भी धीरे-धीरे principal office में कदम बढ़ा रहा था।
उसके हाथ में फाइल थी, और आँखों में वो आग थी जो सिर्फ सच की तलाश में जल रही थी।
वो जानता था कि अब सिर्फ़ धैर्य और बुद्धि ही उसे सही जवाब तक ले जा सकती है।
प्रकृति और कबीर लिस्ट लेकर प्रिंसिपल ऑफिस से बाहर निकल रहे थे। कॉलेज का वही पुराना गलियारा… दीवारों पर टंगे नोटिस बोर्ड, धूल से ढके हुए टेबल, और खिड़की से आती हल्की धूप।
कदमों की आहट के साथ प्रकृति का दिल अजीब सा धड़कने लगा। उसने अचानक अपनी चाल धीमी कर दी।
कबीर ने हैरानी से देखा,
“क्या हुआ? रुक क्यों गई?”
प्रकृति ने धीरे से कहा, जैसे खुद से फुसफुसा रही हो—
“मुझे… पता नहीं क्यों लग रहा है… रिद्धान यहीं है। बहुत पास।”
कबीर ने उसकी तरफ देखा, फिर मुस्कुराकर बोला,
“तुम्हारा दिमाग हमेशा उसी के इर्द-गिर्द घूमता है। Relax, वो यहाँ नहीं है।”
लेकिन प्रकृति को अपनी धड़कनों पर यकीन था। दिल जैसे चीख-चीख कर कह रहा था कि रिद्धान इन गलियारों से गुज़र चुका है… या अभी भी यहीं कहीं है। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, आँखें बेचैनी से इधर-उधर घूम रही थीं।
कबीर ने उसका हाथ हल्के से दबाया,
“चलो… यहाँ ज़्यादा देर रुकने का कोई फ़ायदा नहीं।”
प्रकृति ने बेमन से कदम बढ़ाए, लेकिन उसकी नज़रें बार-बार पीछे मुड़ रही थीं… जैसे वो यकीन कर लेना चाहती हो कि उसका एहसास सच है।
उधर, उसी वक्त प्रिंसिपल ऑफिस के अंदर रिद्धान खड़ा था। उसने डिस्प्ले बोर्ड पर झुककर नाम पढ़ा—वही बैच, वही साल… उसकी आँखें किसी सुराग की तलाश में दौड़ रही थीं।
उसने धीरे से पूछा,
“आप यहाँ के नए प्रिंसिपल हैं?”
“जी।”
“पुराने प्रिंसिपल…?”
“वो रिटायर हो चुके हैं।”
रिद्धान ने गहरी सांस ली। वही सवाल, वही उलझन, जो कुछ देर पहले प्रकृति और कबीर भी पूछ चुके थे। दीवार की मोटी परत ने इन्हें अलग रखा, पर किस्मत ने उनकी धड़कनों को जोड़ दिया।
रिद्धान की आँखें अचानक खिड़की की तरफ उठीं। उसे सचमुच ऐसा लगा… जैसे कोई बहुत अपना अभी-अभी बाहर से गुज़रा है। उसकी उंगलियाँ टेबल पर कस गईं, साँस अटक गई।
“प्रकृति…?”
नाम उसके होंठों पर आया, लेकिन आवाज़ बाहर न निकल सकी।
वो खिड़की तक गया और झाँककर देखने की कोशिश की। पर तब तक प्रकृति और कबीर सीढ़ियों से नीचे उतर चुके थे।
उसका दिल बेचैनी से धड़क उठा।
“थोड़ी देर पहले… वो यहीं थी… मुझे क्यों लग रहा है कि मैं उसे छूकर भी खो बैठा?”
बाहर, सीढ़ियों पर उतरते हुए प्रकृति ने एक आखिरी बार पीछे मुड़कर देखा। खाली गलियारा… लेकिन उस खालीपन में भी उसे रिद्धान की मौजूदगी महसूस हुई।
कबीर ने उसकी तरफ देखा और हल्का सा ताना मारा,
“देखा? कोई नहीं है।”
लेकिन प्रकृति ने धीमे स्वर में खुद से कहा—
“नहीं… वो था… यहीं कहीं था। बस… मिलते-मिलते रह गए।”
तीनों एक ही जगह थे।
फिर भी एक-दूसरे से कोसों दूर।
बस एक अधूरा पल, एक अनकहा एहसास उनके बीच रह गया।