Ek Ladki ko Dekha to aisa laga - 28 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 28

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एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 28

वो आलिंगन सिर्फ़ आलिंगन नहीं था… वो उसकी बरसों की थकान, दर्द और ग़म का विस्फोट था। उसकी साँसें काँप रही थीं, दिल की धड़कन तेज़ थी, और आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे।

प्राकृति पहले तो ठिठक गई… पर फिर उसके दिल ने विरोध नहीं किया। उल्टा, जैसे उसका दिल भी उसी पल पिघल गया हो। वह धीरे-धीरे रिध्दान के बालों में उंगलियाँ फिराने लगी, मानो कह रही हो— “अब सब ठीक हो जाएगा… मैं यहीं हूँ।”

वो पल जादू सा था… वक्त जैसे ठहर गया। दोनों की धड़कनें एक लय में धड़क रही थीं। प्राकृति की आँखें नम थीं, पर उनमें एक सुकून था।

फिर उसने धीरे से कहा—
“सब ठीक है… मैं यहीं हूँ…”

रिध्दान को जैसे होश आया कि उसने क्या कर दिया। उसने तुरंत पकड़ ढीली की और उठकर जाने लगा।

प्राकृति ने जाते-जाते उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी आवाज़ काँप रही थी, पर उसमें सच्चाई झलक रही थी—
“तुम्हारे किसी दर्द की वजह मैं नहीं हूँ। सपने में भी तुम्हें चोट पहुँचाने का सोच नहीं सकती… मुझ पर भरोसा करो।”

रिध्दान रुक गया… उसकी आँखें छलक रही थीं। उसने धीरे से कहा—
“जानता हूँ… ये सब मेरी गलती है।”

और इतना कहकर उसने हाथ छुड़ाया और अंधेरे रास्ते पर अकेला चला गया।

प्राकृति वहीं खड़ी रह गई… उसकी आँखों में आँसू थे, पर दिल में एक अजीब सा जुड़ाव भी था—जैसे वो पहली बार रिध्दान के दर्द को सचमुच महसूस कर पाई हो।

रिद्धान और प्रकृति दोनों अपने-अपने घरों को लौट गए।
रात की ख़ामोशी में रिद्धान का मन ठहरा नहीं था।
वो बिस्तर पर लेटा था, लेकिन नींद कहीं दूर थी।
उसके दिमाग़ में एक ही सवाल घूम रहा था— “प्रकृति वहाँ कैसे पहुँची? उसे कैसे पता चला? और इस पूरे मामले में सच क्या है?”
वो बार-बार उसी पल को याद कर रहा था जब प्रकृति ने उसे संभाला, और जब उसने उसे अपनी बाँहों में भर लिया।

रिद्धान ने गहरी साँस ली। उसके दिल में बेचैनी थी, और दिमाग़ में सिर्फ़ यही सोच—“मुझे सब कुछ फिर से समझना होगा… हर छोटी-सी detail, हर काग़ज़… इस बार कोई चूक नहीं हो सकती।”

वो उठ खड़ा हुआ और सीधे अपने study table के पास गया।
टेबल पर वही केस की फाइलें बिखरी हुई थीं।
धीरे-धीरे उसने फाइलें खोली, पन्नों को एक-एक कर पलटते हुए उनके हर शब्द, हर observation और हर incident को दोबारा महसूस किया।
“शुरू से… फिर से… मुझे सब समझना होगा।”
उसकी आँखों में determination और जिज्ञासा का मिश्रण साफ झलक रहा था।

इसी बीच… प्रकृति अपने घर पर थी।
वो अपने कमरे में अपने सामान को देख रही थी। हर चीज़ जैसे उसे उस पुरानी दुनिया की याद दिला रही थी, जहाँ उसकी खुशी, उसके डर और उसके सब दर्द छुपे हुए थे।
उसके हाथ धीरे-धीरे पुराने फोटो albums और notebooks पर फिसलते रहे।
हर चीज़ उसे उस दिन की याद दिला रही थी जब सबकुछ बदल गया था।

तभी उसके फोन की घंटी बजी।
स्क्रीन पर नाम लिखा था— कबीर।
प्रकृति ने हल्की-सी सांस लेते हुए कॉल उठाया।
उसकी आवाज़ में हल्की थकान थी, लेकिन आँखों में सच्चाई और ठहराव झलक रहा था—
“कबीर… कल सुबह वहीं मिलना, जहाँ से सबकुछ शुरू हुआ था।”

कबीर ने सवाल किया, “कहाँ?”
प्रकृति की आँखों में हल्की चमक थी, और आवाज़ में हल्की गंभीरता—
“Saint France College.”

कबीर की आँखें चमकीं। उसकी आवाज़ में सुकून और हल्की राहत थी—
“ठीक है, प्रकृति… शायद अब सच सामने आएगा।”

अगली सुबह, धूप धीरे-धीरे कॉलेज की पुरानी दीवारों पर बिखरी हुई थी।
प्रकृति और कबीर पुराने गेट पर खड़े थे, वही गेट जिसने कई हँसी के पल, कई दोस्तियों और अनगिनत जख्म देखे थे।
वे दोनों धीरे-धीरे प्रिंसिपल ऑफिस की ओर बढ़े।
लेकिन वहाँ पहुँचकर उन्हें पता चला कि “प्रिंसिपल बदल चुके हैं।”

कबीर और प्रकृति एक-दूसरे की तरफ़ देखे।
दोनों की आँखों में एक ही सवाल था—
“अब सच हमें कहाँ मिलेगा? और इस पूरे सफर में हम किससे जवाब पाएंगे?”

प्रकृति की आँखों में हल्की बेचैनी थी, लेकिन उसके चेहरे पर resolve भी था।

कबीर का मन भी मिश्रित भावनाओं से भरा था—उत्सुकता, घबराहट और एक हल्की राहत।

दोनों जानते थे कि अब जो भी होने वाला है, वो सिर्फ़ सच और उसके भावनाओं के बीच की लड़ाई होगी।


फिर भी प्रकृति प्रिंसिपल ऑफिस गई  
और उनसे बात करनी शुरू की, पर कुछ खास नहीं मिला।