आज प्रकृति का पहला दिन था रघुवंशी मीडिया में — उसकी ड्रीम जॉब।
एक नामचीन पत्रकार बनने की ओर पहला क़दम।
वो अभी फील्ड रिपोर्टर नहीं बनी थी, पर अब पत्रकार थी — कागज़ पर भी, और ख़्वाबों में भी।
उसकी आँखों में चमक थी, जैसे किसी ने उसके सपनों को सच होते देख लिया हो।
वो ऑफिस की बिल्डिंग में प्रवेश करने से पहले एक गहरी साँस लेती है, और मोबाइल निकालकर आरव को कॉल करने ही वाली होती है।
लेकिन तभी —
फोन खुद ही बज उठता है।
स्क्रीन पर लिखा आता है —
"Aarav ❤️ calling..."
वो मुस्कुरा उठती है, उस मुस्कान में नज़ाकत थी, मासूम सी ख़ुशी थी।
वो कॉल उठाते ही कहती है —
"सुनो! तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी... मुझे मेरी ड्रीम जॉब मिल गई!"
कुछ सेकेंड की ख़ामोशी... और फिर आरव की ठंडी आवाज़:
"प्रकृति... मैं ब्रेकअप करना चाहता हूँ।"
उसकी मुस्कान वहीं थम जाती है — "क्या?"
आरव बोलता जाता है —
"तू बहुत प्रिडिक्टेबल हो गई है... मुझे ज़िंदगी में कुछ थ्रिल चाहिए। अब ये सीरियस रिलेशनशिप वाला फेज़ नहीं चाहिए मुझे।"
प्रकृति की साँसें थरथराने लगती हैं।
"पर मैंने ये सब तुम्हारे साथ सोचा था..."
आरव:
"Please Prakriti. Let it go. Good luck for your job."
"क्लिक" — कॉल कट हो जाता है।
उसने धीरे से फोन नीचे किया।
चेहरे की सारी चमक धुँधली हो चुकी थी।
लेकिन... आँसू बहाए बिना,
उसने खुद को संभाला, और सीधी गर्दन, धीमे क़दमों से ऑफिस के अंदर चली गई।
दिल बिखरा हुआ था, पर चाल अब भी सीधी थी।
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दृश्य 2: कॉरिडोर, जहाँ उम्मीद दो पल के लिए जगी... और बुझ गई
प्रकृति ऑफिस में अपने पहले काम में व्यस्त थी —
डेस्क से फाइल उठाना, कॉफी लेना, स्टाफ से मिलना...
लेकिन दिल में कहीं गहराई में अब भी एक कोना आरव के लिए धड़क रहा था।
थोड़ी देर बाद, जब वो कॉरिडोर से गुज़र रही थी,
तभी दरवाज़ा खुलता है... और आरव अंदर आता है।
वो ठिठक जाती है। दिल जो कब से बेजान सा था, एक पल को फिर धड़क उठता है।
"शायद... वो मुझे मनाने आया है?"
उसके चेहरे पर अचानक उम्मीद की एक हल्की सी मुस्कान तैर जाती है।
आरव कुछ कदम चलता है... फिर रुकता है...
और पीछे मुड़कर हाथ आगे बढ़ाता है।
प्रकृति की रूह थम सी जाती है।
पर तभी, पीछे से आवाज़ आती है —
हील्स की ठक-ठक।
विशाखा सचदेवा, रघुवंशी मीडिया की हेड ऑफ डिपार्टमेंट और शेयरहोल्डर,
तेज़ी से आती है और पूरे अधिकार के साथ आरव के हाथ पर अपना हाथ रख देती है।
आरव... उसे देखकर हल्के से मुस्कुराता है।
प्रकृति वहीं थम जाती है।
वो जो मुस्कान उसकी आँखों में तैर रही थी — पल में धूल हो जाती है।
गला भर आता है, दिल चीखता है, पर आवाज़ नहीं निकलती।
वो बिना कुछ कहे, बेसमेंट की ओर भाग जाती है...
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दृश्य 3: बेसमेंट का सन्नाटा और वो 'R' वाला रुमाल
बेसमेंट — जहाँ सन्नाटा गूंजता है और उजाला डरता है उतरने से।
वहीं एक टूटी पुरानी कुर्सी पर बैठकर प्रकृति अपने घुटनों में मुँह छिपा लेती है।
आँसू रुकते नहीं... दिल में बस एक सवाल उठता है —
"मैंने क्या गलती की थी...? सिर्फ़ प्यार ही तो किया था..."
तभी किसी के क़दमों की आवाज़ आती है।
एक लड़का धीरे-धीरे उसकी तरफ़ आता है।
चेहरा टोपी और मास्क में ढका हुआ। सिर्फ उसकी काली गहरी और दिलचस्प आंखे दिख रही हैवर उन गहरी आंखों से वो उन नर्म और भीगी हुई आंखों को देख रहा है ,रोते हुए भी कोई इतना खूबसूरत लग सकता है क्या?
वो चुपचाप आता है और अपनी जेब से एक सफेद रुमाल निकालकर प्रकृति की तरफ़ बढ़ा देता है।
प्रकृति को धुंधली आंखों से कुछ नहीं दिखा रहा इसलिए वो कुछ नहीं पूछती। बस झिझकते हुए वो रुमाल लेती है और आँसू पोंछती है।
रुमाल नरम था... ठीक उसकी तरह जो अभी-अभी उसके सामने आया था।
तभी उसकी नज़र उस रुमाल पर पड़ती है —
और उसमें नीले धागे से कढ़ा हुआ एक सुंदर सा अक्षर चमकता है — 'R'
वो कुछ सोच पाती... इससे पहले ही पीछे से तेज़ शोर आता है —
"चोर! चोर! पकड़ो उसे!"
लड़का एक सेकंड के लिए उसकी आँखों में देखता है —
उसकी आँखों में सवाल नहीं, सुकून होता है।
फिर बिना एक शब्द कहे, वो दौड़ कर अंधेरे में गुम हो जाता है।
प्रकृति वहीं रह जाती है...
लेकिन इस बार पूरी तरह अकेली नहीं।
उसके पास अब एक रुमाल है... और उस पर ‘R’ है।
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अब आगे क्या?
क्या वो R कोई चोर था... या उसका नसीब?
क्या प्रकृति फिर से प्यार कर पाएगी?
और क्या वो पत्रकार सिर्फ़ खबरें ही नहीं, अपनी खुद की कहानी भी लिखेगी?