Ek Ladki ko Dekha to aisa laga - 8 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 8

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एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 8



डॉक्टर ने रिधान और कबीर को गंभीर आवाज़ में बुलाया।
“हमें माफ कीजिए… लेकिन रिद्धि की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही है। उसके पास ज़्यादा वक़्त नहीं है…”

ये सुनते ही रिधान का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। जैसे उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई हो।
उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
"न-नहीं… डॉक्टर… ऐसा नहीं हो सकता… मेरी रिद्धि को कुछ नहीं हो सकता…"

उसकी आवाज़ भर्रा गई। कबीर ने उसका कंधा थामा, पर वो जैसे पत्थर बन गया हो।


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अगले दिन – सुबह
प्रकृति बिस्तर पर बैठी थी। माथा गरम था, पूरे शरीर में कमजोरी थी।
उसने सोचा, “आज ऑफिस नहीं जाऊँगी… तबीयत ठीक नहीं है।”

लेकिन तभी कबीर की कही हुई वो बात ज़हन में गूंजने लगी:
"तुम भागने वालों में से नहीं हो, प्रकृति..."

प्रकृति की आँखों में एक चिंगारी जली। उसने खुद से कहा,
"मैं भागूँगी नहीं... किसी भी हाल में नहीं।"

उसने बुखार की दवाई ली, चेहरा धोया, थोड़ा मेकअप किया और खुद को आइने में देखा – आँखें लाल थीं, पर इरादा मज़बूत।


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ऑफिस – दोपहर
प्रकृति एक नए प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी।
Ridhaan ने जैसे ही ऑफिस में कदम रखा, उसकी नज़र सबसे पहले उसकी डेस्क पर गई – और जैसे ही उसने प्रकृति को देखा, एक पल को सब ठहर गया।

उसका मन किया वो सीधा उसके पास जाए… उससे बात करे… बस उसे देखता रहे।
लेकिन तभी रिद्धि की हालत उसे याद आ गई। उसका दिल फिर गुस्से से भर गया।


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शाम
प्रकृति की हालत और बिगड़ रही थी। उसे चक्कर आने लगे, लेकिन उसने किसी से कुछ नहीं कहा।

उधर रिधान भी काम खत्म कर चुका था। उसने घर जाने के लिए ऑफिस छोड़ा। धीरे-धीरे पूरा ऑफिस खाली होने लगा।


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रिधान का घर
जैसे ही रिधान घर पहुंचा, दरवाज़े पर एक साड़ी पहनी हुई, बुज़ुर्ग महिला खड़ी थी।

रिधान की आँखों में चमक आ गई – "दादी!"
वो दौड़ कर उनके गले लग गया।

दादी ने प्यार से उसके बाल सहलाए, "अरे मेरे बच्चे…"

रिधान थोड़ी देर चुप रहा, फिर रुंधे गले से बोला,
"आप मुझे बार-बार अकेला क्यों छोड़ देती हैं, दादी…?"

दादी भी भावुक हो गईं, "मैं भी नहीं जाना चाहती, बेटा… लेकिन तेरी माँ के जाने के बाद ये घर मुझे भी काटने दौड़ता है…
आज तो डॉक्टर का कॉल आया, इसलिए चली आई… दर्शन भी नहीं किए मैंने मंदिर में…"

रिधान ने तुरंत पूछा, "दादी… रिद्धि ठीक हो जाएगी ना…?"

दादी ने उसके कंधे पर हाथ रखा, "अरे, बिल्कुल ठीक होगी… जिसके पास इतना प्यार करने वाला भाई हो, उसे कुछ कैसे हो सकता है?"

फिर उन्होंने माहौल हल्का करते हुए उसके कान खींचे, "अब ये बता, मेरी दवाइयाँ मंगवाई या फिर भूल गया?"

रिधान ने आँखें मीचते हुए कहा, "अरे हाँ दादी… मंगवाई हैं… पर…"

उसे एकदम याद आया – दवाइयाँ तो ऑफिस में ही रह गईं!

"आप बैठिए… मैं अभी बुलवाता हूँ।"


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ऑफिस के बाहर
प्रकृति भी अब ऑफिस से बाहर निकल रही थी। तभी उसे नीचे केशव भैया दिखे – ऑफिस के पिऑन।

वो परेशान से लग रहे थे।

प्रकृति ने पूछा, "क्या हुआ भैया, आप इतने परेशान क्यों हैं?"

"मैडम, मेरी बीवी की डिलीवरी हो रही है… मुझे तुरंत अस्पताल जाना है, लेकिन रिधान सर ने मुझे दवा लाने को कहा है…"

प्रकृति कुछ पल सोचती है… फिर कहती है,
"आप जाइए… मैं दे आती हूँ दवाई।"

केशव भैया आश्चर्य से देखते हैं,
"पर मैडम, आपकी तबीयत ठीक नहीं लग रही…"

"मैं ठीक हूँ," प्रकृति मुस्कुराई।


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रास्ते में – ऑटो में
प्रकृति के माथे पर पसीना था… आँखें और लाल हो गई थीं… पर फिर भी उसने खुद को संभाले रखा।

उसका मन नहीं था रिधान का चेहरा देखने का… लेकिन दवाइयाँ ज़रूरी थीं।


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रिधान का घर – दरवाज़ा खुलता है
डोरबेल बजती है। रिधान खुद दरवाज़ा खोलता है।

सामने प्रकृति खड़ी होती है… हल्की कांपती हुई… पर वही चेहरा… वही सुकून।

रिधान कुछ पल तक उसे देखता ही रह जाता है।

प्रकृति धीरे से दवाइयों का पैकेट उसके हाथ में देती है। उसी वक्त उसका हाथ, रिधान के हाथ से टकराता है – और वो महसूस करता है… उसका हाथ तेज़ बुखार से तप रहा है।

"तुम्हें तो बुखा—"

इतना कहते ही प्रकृति की आँखें बंद हो जाती हैं… और वो बेहोश होकर गिरने लगती है।

रिधान झट से उसे अपनी बाहों में भर लेता है।

वो उसे अपनी गोद में समेटता है… उसके चेहरे को अपने हाथों से छूता है…

"प्रकृति… उठो… क्या हुआ तुम्हें…"
उसके लहजे में घबराहट थी… और एक एहसास – जो उसने शायद अब तक खुद से भी छुपा रखा था।

तभी दादी की आवाज़ आती है,
"क्या हुआ रिधान… और ये कौन है?"

रिधान डर जाता है…
वो जल्दी से प्रकृति के बालों से उसका चेहरा ढक देता है।

"दादी… ये… ये मेरे ऑफिस की एम्प्लॉयी है… शायद बेहोश हो गई है…"

दादी पास आती हैं।
"अरे, चलो उसे अंदर ले चलो…"

रिधान उसे गोद में उठाता है… और पहली बार…
उसे किसी और को अपने इतने पास देखकर भी… वो बेचैन नहीं होता।

बल्कि… एक अजीब-सा सुकून महसूस करता है।
रिधान ने प्रकृति को अपनी बाहों के ऐसे समेट रखा है जैसे उसकी सबसे कीमतों चीज हो.....उसे अपनी बाहों में उठा के अपने कमरे की ओर भागता है,( उसका कमरा फर्स्ट फ्लोर पर जा)
दादी ये देख कर थोड़ी हैरान होती है....वो उसे नीचे गेस्ट रूम में भी ले जा सकता था।
वो खुद से बोलती है : ये सच में मुझसे कुछ छुपा रहा है या मुझे ऐसा लग रहा है बस।


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आगे क्या होगा?
क्या दादी प्रकृति को पहचानेंगी?
क्या रिधान अपने दिल की बात मान पाएगा?