Scene Cut: Ridhaan’s Bedroom
गेस्ट रूम पास ही था…
पर Ridhaan ने उसे अपनी बाँहों में उठाकर सीधे अपने कमरे में ले गया —
ना जाने क्यों… शायद अब भी कोई डोर बाकी थी, जिसे तोड़ा नहीं था उसने।
उसे बिस्तर पर लिटाकर, Ridhaan उसकी कलाई को छूता है — जल रही होती है।
Ridhaan (चिंतित होकर): “Staff!! Wet cloths laaiye… aur doctor ko call kijiye… अभी!”
वो खुद उसका हाथ मलने लगता है… प्यार और बेचैनी की मिली-जुली भाषा से।
Doctor आता है, जांच करता है और कहता है:
“Tez bukhar है… overexertion ke kaaran faint हुई हैं… thoda rest karein, kuch der में होश आ जाएगा।”
Doctor चला जाता है।
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Scene: Same Room – Few Minutes Later
कमरे में सिर्फ Ridhaan और बेहोश पड़ी Prakriti।
वो उसके पास बैठा, उसका हाथ थामे हुए…
धीरे-धीरे उसे देखता है… उसके बाल, उसकी पलकें, उसका मासूम चेहरा।
मन ही मन खुद से कहता है:
"Tumhe pana meri khwahish kabhi nahi thi…
par tumhe dhoondhna… meri zarurat thi…"
उसकी नज़रें उस चेहरे से हट ही नहीं रही थीं —
कुछ लम्हों के लिए उसने अपने अंदर की नफरत को भुला दिया था।
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Scene Shift: Suddenly Prakriti की पलकों में हरकत होती है…
Ridhaan सतर्क हो जाता है। पर जैसे ही वो उठता है,
उसे कुछ याद आता है।
वो तेज़ी से अपने कमरे की एक बड़ी सी painting को उठाता है
और balcony में ले जाकर रख देता है।
दरवाज़ा बंद करने की कोशिश करता है,
मगर वो पूरी तरह से lock नहीं हो पाता।
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Scene: Prakriti Slowly Awakens
वो आँखें खोलती है… unfamiliar सा कुछ महसूस करती है…
अलिशान कमरा, soft रोशनी, heavy curtains…
यादें वापस आने लगती हैं।
बुखार के बीच सब धुंधला है, पर चेहरा वही है — Ridhaan का।
Ridhaan: “तुम ठीक हो? पानी दूँ?”
Prakriti (avoid करती हुई): “Hmm… ठीक हूँ…”
वो बस one-word answers देती है… cold, distant… दिल में लहरें, पर होंठ सख़्त।
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Staff पानी लाता है।
Prakriti उठने लगती है — लड़खड़ा जाती है, गिर पड़ती है।
Ridhaan उसे थाम लेता है।
“Please… बस थोड़ी देर रुक जाओ… Juice bhejta हूँ… peelo, फिर चली जाना…”
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Scene: Kitchen – Ridhaan खुद Juice बना रहा होता है,
और वहीं दूसरी तरफ…
Prakriti उस कमरे में घूमती है…
काँच की दीवार से उसे balcony के पार एक painting दिखती है… वो रुकती है…
Balcony खोलकर, धीरे-धीरे उस फोटो के पास जाती है…
और वो जैसे जड़ हो जाती है…
वो एक तस्वीर नहीं थी… एक कहानी थी… जो शायद उसकी भी थी
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जैसे ही वो उस तस्वीर पर नज़र डालती है...
एक पल को उसकी साँसें थम जाती हैं।
📸 तस्वीर में जो चेहरा था... वो... उसी का था।
प्रकृति।
उसका चेहरा सफेद पड़ चुका था... जैसे सारा खून किसी ने खींच लिया हो।
उसके होंठ काँपने लगे... पैर जैसे जमीन पर टिके ही नहीं थे...
वो चार कदम पीछे हटती है...
"नहीं... ये मैं कैसे हो सकती हूँ...? ये तो मैं ही हूँ... पर मैं क्यों... कैसे...?"
उसकी आवाज़ टूट रही थी, डर से भीगी हुई, उलझी हुई।
उसके गाल अब लाल नहीं, जलते हुए अंगारे जैसे दिख रहे थे।
पसीने की एक बूंद उसकी कनपटी से टपकी... और फिर वो मुड़कर
भागने लगती है...
तेज़... बेतहाशा... जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो...
सीढ़ियाँ उतरते हुए उसकी सांसें तेज हो रही थीं, दिल धड़क नहीं रहा था — दौड़ रहा था।
ठक!
वो किसी से टकरा जाती है —
रिधान की दादी।
"माफ... माफ करना... मुझे जाने दो... मैं..."
प्रकृति बिखरी आवाज़ में कहती है, नज़रें झुकी हुईं।
दादी उसे देखती हैं...
और जैसे वक़्त रुक जाता है।
उनकी आंखें एक पल को खुली की खुली रह जाती हैं...
सामने खड़ी लड़की में... उन्हें पहचानी सी लग रही थी
"त...तुम..." दादी के होंठ हिले... पर आवाज़ नहीं निकली।
प्रकृति की आँखें अब आँसुओं से भरी थीं,
वो कुछ कहना चाहती थी, पर शब्द गले में अटक गए...
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तस्वीर में ये स्केच किसका है?
और अगर ये प्रकृति है तो , रिधान के घर में उसकी पेंटिंग क्या कर रही है?
क्या रिधान ने बनाई? पर क्यों?
जानने के लिए मिलते है अगले पार्ट में