VISHAILA ISHQ - 33 in Hindi Mythological Stories by NEELOMA books and stories PDF | विषैला इश्क - 33

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विषैला इश्क - 33

(आद्या अतुल्य को बचाने के लिए खुद को विराट को सौंप देती है और उससे विवाह स्वीकार कर लेती है, पर बाद में सच पता चलता है कि वह विवाह नहीं बल्कि उसकी नागशक्ति हड़पने की योजना थी। क्रोधित होकर आद्या की सुप्त शक्ति जाग उठती है और वह अतुल्य के साथ नागधरा छोड़कर वनधरा लौट आती है। विराट उसे खोकर पागल हो जाता है और वनधरा पर युद्ध की चेतावनी भेजता है। नाग रानी यह सुनकर स्तब्ध रह जाती हैं, क्योंकि अब उनका साम्राज्य भी खतरे में है। कहानी अब नागों के संघर्ष और आद्या की नियति की ओर बढ़ती है। अब आगे)
नयी शुरूआत
जैसे ही आद्या और अतुल्य जंगल से निकले,
आद्या की नज़र सामने पड़ी—वही कार, वही जगह…
पर अब यह सब किसी पुराने जीवन का हिस्सा लग रहा था।
अतुल्य ने झुककर कार की चाबी लगाई। एक हल्की घर्र-घर्र के बाद इंजन स्टार्ट हो गया।
"सबकुछ वैसा ही है, फिर भी कुछ भी वैसा नहीं रहा," आद्या ने मन ही मन सोचा। वह चुपचाप पिछली सीट पर बैठ गई।
उसका भारी, चमकीला दुल्हन का लिबास उसके शरीर पर चुभ रहा था —
जैसे हर मोती कोई अनचाहा बोझ हो। शहर की रोशनी दूर से दिखाई देने लगी थी। एक मोड़ पर उन्होंने एक शॉपिंग सेंटर देखा। अतुल्य ने बिना कुछ कहे कार रोकी।
आद्या उतरी, और अंदर जाकर खुद के लिए एक सिंपल नीली जींस और सफेद शर्ट खरीदी। चेंजिंग रूम से निकलते हुए उसने
लाल जोड़ा,गहनों से सजी पोटली, और पिछले जीवन की परछाइयों को वहीं छोड़ दिया।
 अगला स्टॉप — अस्पताल। वहाँ निशा आंटी ICU में थीं। दोनों भाई-बहन माँ को देखकर टूट पड़े।
"माँ!" वो आवाज़ जैसे वर्षों से दबा हुआ दर्द था।
डॉक्टरों ने सांत्वना दी, लेकिन कोई पक्की बात नहीं थी।
बाद में… अतुल्य का फ्लैट, तीन कमरे का साफ-सुथरा घर।
दीवारों पर किताबें, सोफे पर कंबल पड़ा था — एक सुरक्षित जीवन की गंध थी वहां।
अतुल्य ने रसोई से पानी लाकर आद्या को पकड़ाया। "अब तू स्कूल जाना शुरू कर दे। तुझे सामान्य ज़िंदगी में लौटना होगा।"
आद्या ने थोड़ी राहत की सांस ली। उसके चेहरे पर पहली बार हल्की मुस्कान आई। "दो दिन बाद, भैया… प्लीज़। अब बस… नींद चाहिए।"
अतुल्य ने उसके सिर पर हाथ फेरा, "ठीक है। जा… आराम कर। अब तू सुरक्षित है।"
बिस्तर पर पड़ी आद्या की आंखें छत की ओर थीं।
कमरे में हल्का अंधेरा था, लेकिन उसके मन में तेज रोशनी और गहराते अंधेरे का टकराव चल रहा था।
वह सोने की कोशिश कर रही थी… पर जैसे ही आंखें बंद करती,
विराट की छवि उभर आती।
वह क्षण… जब उसने खुद को उसकी बाहों में सौंप दिया था।
जब उसके गले में बांहें डालकर कहा था, "आज से मैं आपकी…" वह शब्द जैसे अभी भी होंठों पर ताजे थे।
विराट की आंखें, उसकी छुअन, वो पागलपन से भरी चुंबनें —उसे लगता जैसे उसका पूरा शरीर अब भी थरथरा रहा हो।
"क्यों किया उसने ऐसा? क्या वो मोह था, या एक फरेब जिसे मैंने प्रेम समझ लिया?" उसकी पलकों से आंसू टपकने लगे। पर अब थक चुकी थी। थककर, कांपकर, लड़ते हुए — वह गहरी नींद में डूब गई।
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 दूसरी ओर — अतुल्य का संघर्ष
हॉल में बैठा अतुल्य अब भी जाग रहा था। उसके हाथ में आद्या का नाग चिह्न बना स्केच था। उसका वह रूप जिसके आगे कोई नहीं टिक पाया। 
"ये शक्ति अचानक कैसे जागी? वो तो मानव थी…" वह बुदबुदाया। उसकी आंखों में कुछ डर था। और साथ में आश्चर्य भी।
वह नहीं चाहता था कि बहन पर फिर से कोई साया मंडराए लेकिन वह जानता था — विराट वापस आएगा।
.....
नाग धरा (चार साल बाद)
विराट अपने कमरे में अकेला बैठा था। आँखों में एक ही चेहरा... आद्या।
तभी द्वार पर आहट हुई। एक नाग सेवक शीष नवाकर बोला, “नागराज! नागगुरु आपसे मिलने पधारे हैं।”
विराट ने धीमे स्वर में कहा, “अंदर भेजो।”
नागगुरु भीतर आए। विराट ने खड़े होकर उन्हें प्रणाम किया।
गुरु ने शांति से कहा, “तक्षक के नागराज ने अपनी पुत्री विदर्भा का विवाह प्रस्ताव भेजा है। क्या उत्तर दूं?”
विराट ने उदासी से कहा, “आप उत्तर जानते हैं, गुरुदेव।”
तभी एक सेवक बोल पड़ा, “पर आद्या को गए चार वर्ष बीत चुके हैं, और आप—”
विराट का स्वर विकराल हुआ। उसका शरीर नाग रूप में बदल गया और उसने सेवक को अपनी पूंछ में जकड़ लिया, “तुम्हारा साहस कैसे हुआ नागरानी को नाम से पुकारने का!”
सेवक गिड़गिड़ाने लगा, “क्षमा करें नागराज... क्षमा!”
नागगुरु गरजे, “उसे छोड़ो!”
विराट ने उसे जमीन पर पटक दिया और फिर धीरे-धीरे मानव रूप में लौट आया।
गुरु बोले, "मैंने कहा था तुमसे कि पहले विवाह करो उससे, पर नहीं, तुम्हें शक्ति स्थानांतरण की पूजा करनी थी। अपनी आधी नागशक्तियां उसे देना चाहते थे। पर देखो, क्या हुआ? अच्छा हुआ कि तुम दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ। वरना वह तुम्हारी आधी शक्तियां ले जाती।"
विराट ने धीमे स्वर में कहा, "आद्या बार बार कह रही थी कि वह मानव है। अगर सच वह मानव होती तो हमारे समागम से उसकी मृत्यु हो जाती। क्योंकि मेरे शरीर के हर अंग में विष है।"
गुरु ने कटाक्ष किया, “"इसलिए आपने पूजा के द्वारा अपनी आधी नागशक्ति उसे देने का निर्णय ले लिया। जिसके लिए तुमने इतना बलिदान दिया वह तुम्हें गलत कहकर छोड़ गयी।"
गुरु वहां से चले गए। विराट अपनी जगह पर बैठा रह गया।
“आप कहां हैं, नागरानी आद्या?” उसकी आंखों से पीड़ा छलकने लगी।
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मुंबई – एक नया जीवन
आइने के सामने खड़ी आद्या तैयार हो रही थी। सफेद शर्ट, हल्के नीले रंग की जीन्स और माथे पर हल्का काजल। अंदर कमरे में माँ समान निशा बिस्तर पर थीं, और एक नर्स उन्हें खाना खिला रही थी।
अतुल्य बाहर से चिल्लाया, “जल्दी कर बहना! तेरी वजह से हर दिन मैं भी लेट होता हूं! कल से अकेली जाना समझी?”
आद्या ने मुस्कराकर कहा, “बस दो मिनट!” फिर वह निशा के पास गई, उनका माथा चूमा, “आज मेरा इंटरव्यू है… आशीर्वाद दो।”
निशा की आंखें मुस्काई, होंठ नहीं। नर्स ने इशारे से दुआ दी।
यह घर आद्या का पुराना घर नहीं था। अतुल्य ने वह सब बेचकर मुंबई में नया घर लिया था—जंगलों से दूर... नागलोक से बहुत दूर।
आद्या घर से निकली, मन ही मन इंटरव्यू की तैयारी दोहरा रही थी। तभी एक बच्चा टकराया।‌“देख कर चलो, आंटी!”
आद्या ठिठक कर रह गई, “आंटी किसे बोल रहे हो, बदतमीज़!”
बच्चा हँसते हुए बोला, “आपको!” और भाग गया।
आद्या कुछ कहती उससे पहले ही अतुल्य चिल्लाया, “अगर पाँच सेकंड में कार में नहीं बैठी तो मैं चला!”
वह चिढ़ती हुई दौड़कर कार में बैठी। “उस बच्चे ने मुझे आंटी कहा, और आप कुछ बोले तक नहीं!”
अतुल्य हँस पड़ा, “तो क्या मैं 12 साल के बच्चे से लड़ता, आंटी?”
कार में ठहाके गूंजे। आद्या का मन हल्का हुआ... लेकिन आँखें अब भी किसी को तलाश रही थीं—एक अधूरी पहचान... एक छूटा हुआ संसार...
1. क्या सच में विराट को आद्या ने गलत समझा था?
2. आद्या के चले जाने के बाद वनधरा का क्या हुआ?
3. क्या विराट और आद्या कभी नहीं मिलेंगे?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क"।