( अतुल्य आद्या को बचाने आता है लेकिन पकड़ा जाता है। अतुल्य की जान बचाने के लिए वह खुद को विराट को सौंप देती है । और अतुल्य को वापस लौटने के लिए कहती हैं क्योकि विवाह को अब अपना भाग्य मान चुकी है। अब आगे)
नाग विवाह — छल, शक्ति और विद्रोह
वह पल आखिर आ ही गया, जिसे आद्या अब तक टालती आई थी। राजमहल के बीचों-बीच नागगुरु वेदपाठ कर रहे थे। महल दिव्य दीपों और नीले फूलों से सजा था, जैसे स्वर्ग उतर आया हो। कुछ नागकन्याएं आद्या को मंडप तक लेकर आईं —वह शाही नागिन-परिधान में थी, पर आँखों में बुझी-बुझी लौ। मंडप में कदम रखते ही उसकी निगाहें चारों ओर घूमीं। अतुल्य कहीं नहीं था। उसने राहत की सांस ली। शायद अच्छा हुआ, भैया यह न देखें। विधियाँ आरंभ हुईं। मंत्रों से वह अजीब महसूस करती थी।
लेकिन उस विवाह में ना कोई अग्नि, ना सात फेरे — सिर्फ कुछ नागमंत्र और चिह्नों का स्पर्श। “शायद इनके रीति-रिवाज अलग होते हैं...” आद्या ने मन में सोचा।
विराट ने बस इशारा किया और आद्या को नाग सेविकाएं अपने कक्ष में ले गईं। आंखों में आँसू लिए, उसने बुदबुदाया, "भैया, तुम जहां भी हो, खुश रहना। कम से कम तुम इस कैद से मुक्त हो।"
...
कुछ पल बाद विराट आया। उसने आद्या को बांहों में भर लिया। आद्या ने बिना विरोध के उसके गले में हाथ डाल दिए — जैसे सब कुछ स्वीकार लिया हो। विराट ने उसे धीरे से बिस्तर पर छोड़ा। आद्या उसकी ओर देखकर शर्माई और मुस्कुराकर बोली "आज से मैं आपकी।" और दोनों एक दूसरे में खोने लगे।
विराट ने आद्या के चेहरे को हथेली में ले प्यार से होंठों को चूमना शुरू किया और आद्या भी सब कुछ भूल विराट को खुद को सौंपने के लिए तैयार हो गयी। आद्या की आंखें नीली हो चुकी थी। विराट उसकी नीली आंखों को देख मुस्कुराया।
तभी दरवाज़ा झटके से खुला।
"भैया!" आद्या चीख उठी। वह झटपट अपने अस्त व्यस्त कपड़ों को ठीक करने लगी।
विराट चौंककर पीछे हटा। अतुल्य काले विशाल नाग रूप में बदल चुका था। उसकी आंखों में अंगारे थे। "**"!" वह फुफकारा और विराट पर झपट पड़ा। दोनों नागरूपों में भिड़ गए — बिजली, फुफकार और गर्जना से महल कांप उठा।
"भैया! रुकिए!" आद्या बीच में आई, रोते हुए बोली, "भैया, यह आप क्या कर रहे हैं? अपने बहन के पति पर हमला कर रहे हैं। शादी हो चुकी है हमारी और मैं इन्हें पति के रूप में स्वीकार चुकी हूं।"
अतुल्य का हाथ उठा चटाक! उसने आद्या के गाल पर ज़ोरदार चांटा मारा। "शर्म नहीं आती?"
वह विराट की ओर मुड़ा, "तो नागराज पुत्र, विवाह हो गया ना?"
विराट चुप था। आद्या बुरी तरह चौंक गयी। "बोलो ना! कुछ तो कहो!" आद्या चिल्लाई, उसका चेहरा फट पड़ा।
"ये विवाह नहीं था, बहन!" अतुल्य बोला, "यह एक पूजा थी — जिसमें तुम्हारी नागशक्तियां हड़पने की योजना थी। यदि ये तुम्हारे साथ संबंध बना लेता, तो सारी शक्ति इसकी हो जाती।"
आद्या सुन्न हो गई। "क्या... यह सच है?" उसने टूटती नजरों से विराट को देखा। विराट अब भी चुप था। आद्या हँसने लगी — कड़वी, टूटी हँसी। "फिर तो तुम्हारा पूरा खेल बेकार गया... क्योंकि मैं तो इंसान हूं, मेरे अंदर कोई नागशक्ति है ही नहीं!"
विराट फुफकारा और अपनी पूंछ उसकी ओर बढ़ाई, पर तभी... आद्या की आँखें फिर से नीली हो गईं। उसके हाथ में नागचिह्न चमकने लगा। उसने विराट की पूंछ थाम ली — और वह जड़ हो गया। आद्या का शरीर पूरा नीला हो चुका था। उसके अंदर की शक्ति जाग चुकी थी। उसने अतुल्य का हाथ पकड़ा, "चलिए भैया। यहाँ अब कुछ नहीं बचा।"
राजमहल से निकलते समय सैकड़ों नाग सैनिकों ने घेरने की कोशिश की, मगर जैसे कोई अदृश्य कवच दोनों को घेरे था —कोई उन्हें छू भी नहीं पाया।
अतुल्य हैरान था, लेकिन आद्या अतुल्य को लेकर तेज़ी से वनधरा की सीमा की ओर बढ़ी। तभी वनधरा के प्रहरी उनके सामने झुके। "जय नागरक्षिका! नाग रक्षिका को प्रणाम!"
पर अचानक, "नहीं प्यारी बहना!" अतुल्य ने उसे पीछे खींच लिया। "भैया? पर आप तो चाहते थे कि हम दोनों वनधरा में जाएं" "वनधरा की रानी ने धोखा दिया हमें," अतुल्य बोला,"उसने कहा था कि हमारी मदद करेगी — लेकिन उसने सब कुछ जानबूझकर अनदेखा किया!" तभी आद्या की नज़र गुफा के उस द्वार पर पड़ी, जिसे वह पहले भी देख चुकी थी। उसी द्वार से वह नाग धरा में घुसी थी। वह जानती थी क्या करना है। आत्मबल से वह दरवाज़ा खुला और जैसे ही दोनों अंदर बाहर निकले, गुफा का द्वार अपने आप बंद हो गया। अब वे दोनों वहीं थे — उसी जंगल में, जहाँ से यह यात्रा शुरू हुई थी।
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नागधरा
आद्या द्वारा नाग धरा की जमीन छोड़ते ही विराट का जड़ शरीर चलने लगा। वह अपनी अलौकिक शक्ति से पूरा नाग धरा छान लिया, लेकिन आद्या पूरे नाग धरा में कहीं नहीं थी। उसने जोर से दहाड़ लगाई "वनधरा में दूत भेजो। वनधरा की रानी के पास यह सूचना पहुंचाओ कि आद्या नाग धरा को वापस करे या आक्रमण के लिए तैयार रहें।"
विराट के कानों में एक ही बात गूंज रही थी जो आद्या ने उससे बांहो में बांहें डालकर कही थी "आज से मैं आपकी।" और वो पागलों की तरह हंसने लगा ।
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वनधरा
वनधरा की गहराई में स्थित स्वर्ण जड़े शाही कक्ष में नाग रानी शांतिपूर्वक भोजन कर रही थीं। कमरे में धीमे स्वर में जलती मशालों की लौ फड़फड़ा रही थी। तभी एक नाग सेवक तेजी से भीतर आया। उसका चेहरा पीला था, और हाथ काँप रहे थे।"नागधरा से संदेश आया है, नाग रानी।" नाग रानी ने धीमे से सिर हिलाया। सेवक ने मुड़ा हुआ नीला पत्र खोला और पढ़ना शुरू किया— "वनधरा की नाग रानी को प्रणाम। नागधरा की भावी नाग रानी आद्या, नागराज पुत्र विराट के साथ छल करके आपकी शरण में आई है। हम चेतावनी देते हैं— यदि आप वनधरा की शांति चाहती हैं, तो आद्या को तुरंत नागधरा को सौंप दें। वरना याद रखें, नागधरा की शक्ति, वनधरा से कई गुना अधिक है। इस संदेश को चेतावनी समझा जाए। — नागराज पुत्र विराट
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कमरे में सन्नाटा छा गया। नाग रानी का चेहरा जैसे सफेद पड़ गया। हाथ में पकड़ा सोने का प्याला उसकी उंगलियों से छूट गया और खन की आवाज हुई। वह थके कदमों से अपने सिंहासन तक गईं और बैठते ही जैसे उनका शरीर बेजान हो गया। आँखें शून्य में टिकी थीं... होंठ कांप रहे थे... मन में बवंडर चल रहा था। वनधरा , मेरा साम्राज्य खतरे में है।
1. क्या विराट आद्या को वापस ला पाएगा?
2. वनधरा नाग धरा से बच पाएगा?
3. नाग रानी अब क्या कदम उठाएंगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क"।