(निशा नागलोक की रहस्यमयी कैद में है, जहाँ एक अदृश्य शक्ति उसे सीमाओं से बाहर नहीं जाने देती। सपनों, डर और अजनबी भविष्यवाणियों से घिरी, वह बार-बार "रक्षिका" कहे जाने का विरोध करती है। नागसेविकाएँ उसे सम्मान देती हैं, पर निशा आत्मगौरव से भ्रमित है। एक दिन, वह सीखती है कि नागलोक की सीमाएँ बल से नहीं, भावना से पार होती हैं। जब वह ग़ुस्से और प्रतिरोध को त्यागती है, दरवाज़ा अपने आप खुल जाता है। अब वह केवल कैदी नहीं, बल्कि नागलोक की शक्ति और रहस्य से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कड़ी बन चुकी है — अनजाने युद्ध की पूर्वसूचना।)
नाग रक्षिका का जन्म
निशा कमरे के कोने में पथराई आँखों से दीवार को घूर रही थी — साँप की खाल-सी उभरी दीवारें, जैसे उसकी हर बेचैनी को चुपचाप निगल रही थीं।
"कहीं तो कोई दरार होगी… कोई तो रास्ता…" वह फुसफुसाई।
धीरे से उसने दरवाज़ा खोला, पहला कदम बाहर रखा ही था कि कुछ याद आया — "नागलोक की सीमा!"
वह ठिठक गई। "अगर इस ओर नागलोक है, तो शायद दूसरी तरफ़… इंसानों की दुनिया?"
वह पलटी, दीवारें थीं — ठंडी, भारी, साँप जैसे पैटर्न वाली।
"क्या ये दीवारें असली हैं… या मेरे ही डर ने खड़ी कर दी हैं?"
उसने कंपन महसूस किया — जैसे कोई छिपी चेतावनी।
तभी एक तीव्र टीस उसके पेट में उठी। वह कराहती हुई घुटनों पर बैठ गई।
"यह वक्त नहीं है, नन्हीं… तू भी अपने पापा जैसी ही ज़िद्दी है…"
पीड़ा बढ़ती गई। उसकी साँसें उखड़ने लगीं।
और फिर… एक नवजात की चीख!
कमरे की हवा थम गई। दीवारों में जैसे कम्पन दौड़ गया। नागलोक की सीमाएँ काँप उठीं।
दीवार के पार खड़े नाग झुक गए — “रक्षिका ने जन्म लिया है।”
निशा की गोद में चमकती सी नन्हीं जान थी। आँखें बंद थीं, पर माथे पर हल्की सुनहरी आभा।
दीवारों की मूर्तियाँ धीरे-धीरे चमकने लगीं।
“आद्या…” निशा ने थरथराते स्वर में कहा।
नाग रानी ने धीरे से कहा — “अब वह केवल तुम्हारी नहीं… नागलोक की जिम्मेदारी है।”
आद्या के रोने की तीव्रता बढ़ी, और उसकी हथेली पर साँप जैसे एक नीला चक्र उभर आया।
निशा चौंकी। “यह क्या है?”
नाग रानी: “यह भूख है। दूध दो उसे।”
निशा हिचकिचाई, पर माँ की सहजता भारी पड़ी।
आद्या शांत हो गई… और साथ ही वह चिह्न भी फीका होकर मिट गया।
निशा उसे सुला रही थी, जब उसके भीतर का तूफ़ान फूट पड़ा।
"मुझसे मेरा घर छीना, अब मेरी बेटी को भी कैद करोगे?"
वह रोई, चीखी — "किस गुनाह की इतनी बड़ी सज़ा?"
नाग रानी आगे बढ़ीं, पर निशा ने उनका हाथ झटक दिया —
“ख़बरदार, अगर किसी ने मेरी बेटी को रक्षिका कहा!”
उसकी आँखों में माँ की आग थी —
“तुम्हारे लोक को अपनी सुरक्षा के लिए एक नवजात चाहिए? छी… ये सभ्यता नहीं, सौदा है।”
तभी एक गम्भीर स्वर गूंजा — "तो बताइए, माता… आप क्या चाहती हैं?"
नाग साधु था। आद्या को देखकर वह भूमि पर झुक गया।
“आप जो चाहेंगी, वही होगा,” उसने कहा।
निशा: “अगर मेरी चाहत मायने रखती, तो मैं यहां होती ही नहीं।”
साधु: “शायद चाहतें नहीं, ज़रूरतें लाती हैं। और यह बच्ची… केवल आपकी नहीं, संकल्प है।”
तभी एक नाग शिष्य आया — “तैयारी पूर्ण है, गुरुदेव।”
साधु ने कहा — “आज तुम अपने लोक लौटोगी। लेकिन याद रखो — मन शुद्ध हो, तभी सीमाएं पार होंगी।”
निशा ने गहरी साँस ली। उसकी नसों में एक पुरानी, जगी हुई शक्ति धड़कने लगी।
जब वह आद्या को लिए बाहर आई, अग्निकुंड की चमक ने उसे जकड़ लिया।
उसके होठों पर अनजाने मन्त्र फूटने लगे। उसकी आँखों में गहराई उतर आई।
सेविका ने झुककर पूछा — “क्या मैं रक्षिका को ले लूं?”
निशा ने आद्या सौंप दी, लेकिन उसकी निगाहें अभी भी चेतावनी दे रही थीं।
साधु ने मन्त्रोच्चार शुरू किया। नाग स्त्रियों का गान गूंज उठा।
निशा की चेतना में नाग परंपरा बहने लगी।
अग्नि शांत हुई। साधु ने कहा — “अब इन्हें निद्राविष देने की आवश्यकता नहीं।
यह माँ अब जाग चुकी है।”
नाग रानी ने आदेश दिया — “रात्रि में जब माँ-बेटी सो जाएं, इन्हें उनके लोक पहुँचा दो। पर दृष्टि हमारी बनी रहे।”
1. "क्या एक माँ अपने बच्चे की रक्षा के लिए नागलोक से भी लड़ सकती है — जब बच्चा खुद नागलोक की भविष्यवाणी हो?"
2. "अगर दीवारें साँप बनकर तुम्हें कैद कर लें… तो क्या ताकत से निकल पाओगे या मन की मुक्ति ही रास्ता है?"
3. "जब जन्म ही युद्ध की घोषणा हो — तब एक नवजात की मासूम हथेली पर उभरा चिह्न… क्या केवल भाग्य है या कोई शाप?"
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए ''विषैला इश्क"