निशा और उसकी बेटी आद्या को एक रहस्यमयी नाग सेविका नागलोक से वापस छोड़ आती है। निशा जब जागती है, तो सब कुछ सामान्य दिखता है, लेकिन आद्या की हथेली पर उभरता नाग चिह्न बताता है कि सब ठीक नहीं। ससुराल लौटकर भी यह रहस्य पीछा नहीं छोड़ता। आद्या को "नाग रक्षिका" चुना गया है, लेकिन दुश्मन कौन है, यह स्पष्ट नहीं। सनी के व्यवहार और आद्या के चिह्नों से निशा को शक होता है — कहीं सनी ही दुश्मन तो नहीं? कहानी यहीं खत्म नहीं होती… यह तो अभी शुरुआत है। अब आगे)
सुबह की हल्की नीली रोशनी कमरे में फैलने लगी थी, लेकिन निशा की आंखों ने रात से ही सोने का इरादा छोड़ दिया था। उसकी पलकों के नीचे थकावट थी, मगर आंखों में अब डर नहीं, जिद थी।
"कुछ तो करना होगा... आद्या को यूँ ही नहीं जाने दे सकती," वह खुद से बुदबुदाई।
सनी गहरी नींद में था। निशा ने आद्या को धीरे से अपनी गोद में लिया — उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं, लेकिन दिल दृढ़ था। उसने बैग में आद्या के ज़रूरी सामान डाले, फिर ऐप पर टैक्सी बुक की — पर समझदारी से, लोकेशन घर से थोड़ा दूर की रखी।
सुबह की हवा में हल्की ठंडक थी, मगर निशा के माथे पर पसीना था। कार में बैठते ही दरवाज़ा बंद हुआ — और जैसे एक नया अध्याय खुल गया।
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ममता अनाथालय
दो घंटे बाद कार एक पुराने मोड़ पर आकर रुकी। सामने एक शांत, साफ़-सुथरी इमारत थी — “ममता अनाथालय”।
निशा ने गहरी सांस ली, आद्या को सीने से और कस लिया और कार से उतर गई।
जैसे ही उसने गेट पार किया, भीतर से बच्चों की खिलखिलाहट सुनाई दी।
निशा का मन पिघल गया। आद्या की आंखें चमक उठीं — वो भी आवाज़ों की ओर देखने लगी।
"देखो अद्दू... तुम्हारा ननिहाल," निशा ने धीरे से कहा।
मगर इस ननिहाल की दीवारों में वो अतीत कैद था, जिसे जानने का साहस निशा ने कभी नहीं किया था।
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बेल बजी, और बच्चों की हँसी एक पल में “ओ नो!” में बदल गई।
"पढ़ाई का टाइम हो गया!" एक बच्चे ने लंबी साँस छोड़ी।
निशा हँस पड़ी। "टाइम टू स्टडी!"
एक छोटा बच्चा भागते हुए बोला, "दीदी, दुबारा इसके साथ आना प्लीज़!"
निशा मुस्कुराई — "पक्का।"
वो एक कमरे के सामने रुकी और दरवाज़ा खटखटाया।
अंदर से आवाज़ आई — "आइए..."
कमरे में 58-59 की महिला बैठी थीं — सिल्वर बाल, गंभीर आँखें।
"बताइए, क्या मदद कर सकती हूँ?"
निशा मुस्कुराई, "मिस बुमरा... इतनी तो नहीं बदलीं कि आप मुझे पहचान न पाएं?"
महिला ने चश्मा उतारा, गौर से देखा, फिर चमकते हुए कहा —
"अरे निशा! तू? और ये प्यारी बच्ची...?"
"हां," निशा बोली, "ये मेरी बेटी है — आद्या।"
मिस बुमरा ध्यान से आद्या को देखने लगीं, फिर धीरे से बोलीं —
"ठीक वैसी ही है जैसी तुम थी... जिद्दी, चमकती हुई, और शायद... रहस्य से भरी।"
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फाइल नंबर 813
"मुझे कुछ जानना है..." निशा की आवाज़ धीमी लेकिन दृढ़ थी।
"अपने बारे में, माँ के बारे में, और इस बच्ची के बारे में भी।"
मिस बुमरा की मुस्कान धीमी हो गई। कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद, उन्होंने टेबल पर रखी घंटी बजाई।
एक स्टाफ सदस्य आया।
"स्टोर रूम से फाइल नंबर 813 लेकर आओ — ऊपर की रैक पर लाल रंग की है।"
निशा की साँसें रुकने लगीं।
"ये फाइल उस रात की है, जब तुम हमें मिली थी," मिस बुमरा बोलीं।
"कुछ कागज़ हमने तब संभाल कर रखे थे... शायद अब वक्त है तुम्हें वो दिखाने का।"
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जैसे ही फाइल खुली, निशा ने एक चित्र देखा।
उसकी आँखें फैल गईं — "यह... यह क्या है?"
चित्र में एक सोने का कड़ा था।
"ये तो वही है..." निशा बुदबुदाई।
"जब तुम हमें मिली थी, यही पहना था," मिस बुमरा बोलीं, "फिर धीरे-धीरे छोटा हो गया... हमने उतार कर रखा, मगर गुम हो गया।"
निशा चित्र पर टकटकी लगाए थी —
"ये कड़ा... आद्या के चिह्न और कड़े से इतना मेल कैसे खा सकता है?"
फिर वह चौंक गई —
"मगर ये तो दिखता है... आद्या का चिह्न तो किसी को दिखता ही नहीं... फिर यह?"
तभी आद्या अचानक रो पड़ी।
"आओ, तुम्हें एक कमरा दिखाती हूँ," मिस बुमरा बोलीं।
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गहराता रहस्य
दूध पिलाते हुए निशा का मन अब और भी उलझा हुआ था।
"चित्र वाला कंगन... और आद्या का अदृश्य नागचिह्न... क्या इनका कोई संबंध है?"
फिर उसका फोन बजा।
"हाँ... मंदिर गयी थी, बस अब निकल रही हूँ।"
आद्या की सोई मुस्कुराहट उसे थमा गई — लेकिन उसके भीतर उठते तूफ़ान अब भी शांति नहीं पा रहे थे।
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घर पहुँचते ही सनी ने दरवाज़ा खोला — चेहरा गुस्से से तमतमाया।
"मंदिर जाना था तो बता सकती थीं! आद्या को लेकर अकेली चली गईं?"
निशा चुप रही, बस कहा — "माफ़ करना... ज़रूरी था।"
सनी ने उसकी आंखों में झाँका — और उसकी हालत देखकर डर गया।
वह लड़खड़ा गई। सनी ने उसे थाम लिया।
मीनल ने आद्या को संभाला — "भाभी, आप आराम कीजिए... अद्दू मेरे पास रहेगी।"
सनी ने निशा को बिस्तर पर लिटाया।
"क्या हुआ? सब ठीक है न?"
इतना सुनते ही निशा फूट पड़ी — "तुम्हें मेरी कोई परवाह नहीं है!"
"बहुत परवाह है!" सनी बोला, "मैं बस... डर गया था। तुम दोनों मेरी जान हो।"
उसी वक्त मीनल चाय की ट्रे लेकर आई —
"पी लो भाभी, ललिता पवार वाली सास अब रीमा लागू बन चुकी हैं।"
निशा हँस पड़ी — कुछ पलों के लिए।
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जैसे कोई आहट हो
लेकिन भीतर, सब शांत नहीं था।
उसके सवाल अब भी अधूरे थे।
वो कंगन, वो चित्र, वो फाइल — सब उसकी आत्मा को झकझोर रहे थे।
1. आद्या के हाथ पर उभरा नाग-चिह्न क्या सिर्फ एक विरासत है — या कोई आने वाला विनाश इसकी चेतावनी है?
2. निशा की आँखों में जो सनी है, क्या वो वास्तव में उसका पति है — या कोई छद्मवेशी नाग?
3. अगर नागलोक ने आद्या को रक्षिका चुना है, तो वह रहस्यमय दुश्मन कौन है जो इतना शक्तिशाली है कि पूरे नागलोक को भयभीत कर रहा है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए ''विषैला इश्क ''।