Kurbaan Hua - Chapter 43 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | Kurbaan Hua - Chapter 43

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Kurbaan Hua - Chapter 43

रिश्तों का छलावा

दीवार पर लगी घड़ी की सुइयाँ जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थीं, वैसे-वैसे महेश चाचा का गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था। वह अपने कमरे में बेचैनी से टहल रहे थे, और संध्या का चेहरा गुस्से से लाल था। अभी-अभी जो तमाशा नीचे हुआ था, उसने पूरे घर में हड़कंप मचा दिया था। नौकरानी, जो कल तक चुपचाप काम करती थी, आज इतनी बड़ी-बड़ी बातें कैसे करने लगी? कैसे हिम्मत हुई उसकी, संध्या को सबके सामने नीचा दिखाने की?

"तुम्हें क्या ज़रूरत थी घर में तमाशा करने की?" महेश ने तेज़ आवाज़ में कहा। "देखा ना, कैसे सबके सामने तुम्हारी बेइज्जती हुई? नौकरानी तक तुम्हें जवाब देने लगी!"

संध्या ने खीझकर कहा, "वो जरूरत से ज्यादा अपनी बनने पर तुली है। बहुत जल्द उसे सबक सिखा कर ही रहूंगी।"

महेश ने सिर झटका, "तुम भी ना, फालतू के झगड़ों में पड़ जाती हो।"

"फालतू के झगड़े?" संध्या एकदम उखड़ गई। "तुमने सुना नहीं, कैसे वो हमें ही सुना रही थी?"

महेश ने ठंडी सांस भरी। वह जानते थे कि जब संध्या गुस्से में होती है, तब उससे बहस करना बेकार है। वह उसे समझाना चाहते थे कि घर में इतने झगड़े बढ़ाना ठीक नहीं, लेकिन संध्या अपनी जिद पर अड़ी थी।

"वैसे भी, उसे छोड़ो," संध्या ने चालाकी से बात बदली। "तुम्हें पता चला है कि संजना के डैड ने किसी डिटेक्टिव को उसका केस सौंप दिया है?"

महेश के चेहरे पर हल्की घबराहट आई, लेकिन उन्होंने खुद को संभाल लिया। "क्या? किसने बताया तुम्हें?"

"सब कुछ पता चल जाता है मुझे। और सुनो, एक बात याद रखना—संजना के वापस आने पर उससे झूठा प्यार जताना पड़ेगा। समझे?"

महेश ने भौहें चढ़ाई। "क्यों?"

"क्योंकि अगर तुमने ऐसा नहीं किया, तो वो जेठानी जी हैं ना, वो बाज़ी मार ले जाएंगी।" संध्या की आवाज़ में जलन थी। "तुमने कभी देखा है उन्हें? हमेशा संजना की माँ बनने के लिए तैयार रहती हैं!"

महेश कुछ कहने ही वाले थे कि बाहर से किसी के पैरों की आवाज़ सुनाई दी। दोनों चुप हो गए। संध्या ने इशारे से महेश को शांत रहने के लिए कहा और दरवाजे की ओर बढ़ी।तो देखा कि वहां एक नौकर खडा था उसके हाथ में एक काॅफी थी | नौकर ने धीरे से सिर झुकू कर कहा, " मैडम आपकी काॅफी नौकर के हाथ में काॅफी देख महेश ने कहा, " काॅफी ये किसने मांगी थी |संध्या ने काॅफी ली और नौकर को भेज दिया | महेश, " ये तुमने, अरे रात में नींद नहीं आएगी समझी | संध्या ने बेपरवाह होकर कहा, " तो वैसे भी सोना कौन चाहता है मैं पुरी रात बैठ पलेन बनाने वाली हूं | महेश हैरान परेशान चेहरे को लेकर संध्या से बोला, " लेकिन क्यों, संध्या ने जवाब में कहा, " ये सब तुम्हारी समझ से बाहर है

रहस्य की रात

महेश ने संध्या की बात पर हैरानी से उसकी ओर देखा। उसकी गंभीरता और आत्मविश्वास में कुछ ऐसा था जिसने उसे बेचैन कर दिया।

"संध्या, ये क्या कह रही हो? आखिर क्या योजना बना रही हो?" महेश ने चिंतित स्वर में पूछा।

संध्या ने एक लंबा घूँट कॉफी का लिया, जैसे उसे शब्दों को चुनने के लिए थोड़ा समय चाहिए था। फिर उसने धीमी आवाज़ में कहा, "महेश, मैं एक ऐसा काम करने जा रही हूँ, जिसे तुम समझ नहीं पाओगे। और अगर समझ भी गए, तो शायद तुम मुझे रोकने की कोशिश करोगे।"

महेश की बेचैनी और बढ़ गई। वह संध्या को बरसों से जानता था, लेकिन आज उसकी आँखों में अजीब सा संकल्प था, जैसे वह किसी बड़े फैसले पर पहुँच चुकी हो।

"देखो संध्या, अगर कुछ गलत करने का सोच रही हो तो मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूँगा। मुझे साफ-साफ बताओ कि तुम क्या करने जा रही हो?"

संध्या ने एक गहरी सांस ली, फिर खिड़की की ओर बढ़ी। खिड़की से बाहर चाँदनी फैली हुई थी, लेकिन उसके चेहरे पर छाए तनाव के कारण वह चाँदनी भी स्याह लग रही थी।

गाईज मेरी कहानियाँ स्टोरी मिनिया एप पर भी है पीलिज मुझे वहाँ  भी स्पोट करो, लिंक नहीं लिख सकती क्यों कि वो काम नहीं करता है मैं सिर्फ उसकी तस्वीर पोस्ट कर सकती हूँ,