विवेक के सामने एक शर्त....
अब आगे..............
चेताक्क्षी अमोघनाथ जी से कहती हैं....." बाबा , अब तो केवल आदिराज काका की चिता भस्मी ही उस गामाक्ष की क्रिया को रोक सकती है......"
अमोघनाथ जी निराशा भरी आवाज में कहते हैं....." नहीं चेताक्क्षी , ऐसा संभव नहीं है , आदिराज जी की भस्मी हमने प्रवाहित कर दी , ...."
चेताक्क्षी हैरानी से कहती हैं...." बाबा आपने ये क्यूं किया , आप अच्छे से जानते थे , आदिराज काका एक दिव्य पुरुष थे तो उनकी भस्मी भी हमारे कितने काम आती , आपसे ये उम्मीद नहीं थी बाबा....."
उधर विवेक उस बौने के प्रदेश में फंस चुका था , , अपने आप उस जाल से निकालने में नाकामयाब हो गया था , ,
" तुम लोग मुझे ग़लत समझ रहे हो , मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं.."
उन बौने में से एक सामने आकर कहता है ...." तुम हमारे प्रदेश में कैसे आए , यहां किसी इंसान को आने की इजाजत नहीं है...अभी हमारे राजा ही तुम्हारा फैसला करेंगे...."
विवेक परेशान सा उन सबको समझाने की कोशिश करता रहा लेकिन वो अपनी बात को आगे रखते हुए , उसकी एक नहीं सुनी , ,
विवेक उस सात शिर्ष तारे को देखता है , जिसमें दो शिर्ष बूझ चुके थे , , इससे विवेक और ज्यादा टेंस्ड हो रहा था , , कुछ ही देर में एक शाही सवारी आती है जिसमे उनके राजा बाहर निकलकर विवेक को देखकर कहता है...." तुम यहां क्यूं आए हो...?..."
विवेक उन्हें समझाता है...." देखिए मैं आपको यहां नुकसान पहुंचाने नहीं आया हुं , मुझे केवल महाकाल के मंदिर जाना है , और आप सब मुझे यहां बांधकर मेरा टाइम खराब कर रहे हैं , , अगर आपने मुझे जाने नहीं दिया तो एक पिशाच अपनी शक्ति हासिल कर लेगा , और यहां कोई नहीं बचेगा...."
विवेक की बात सुनकर उनका राजा कहता है...." हमें तुम्हारी बात पर विश्वास कैसे हो..?..."
विवेक कुछ सोचते हुए कहता है......" आपको मुझपर विश्वास करने की जरूरत नहीं है लेकिन क्या आप मयन देव पर तो भरोसा कर सकते हो....?... उन्होंने ही मुझे यहां भेजा है...."
मयन देव का नाम सुनकर बौनो का राजा कहता है .." ठीक है , हम तुम्हें जाने देंगे , किंतु हमारी एक शर्त पर....."
विवेक हैरानी भरे शब्दों में कहता है..." कैसी शर्त....?..."
इधर चेताक्क्षी उस सुरक्षा यज्ञ से बाहर आकर सीधा माता काली पास जाकर वहां से एक रूद्राक्ष की माला उठाते हुए कहती हैं....." बाबा क्या काका ने ये माला से कभी जप किया है....."
अमोघनाथ जी उस माला को देखते हुए कहते हैं....." हां बेटा , बहुत बार लेकिन इससे क्या होगा....?..."
चेताक्क्षी मुस्कुराते हुए कहती हैं...." बाबा , हमें कुछ नहीं होगा , अब जोभी होगा उस गामाक्ष को होगा...." चेताक्क्षी की बात अमोघनाथ जी समझ चुके थे इसलिए वो मुस्कुरा देते हैं....चेताक्क्षी वापस उस यज्ञ वेदी के पास आकर बैठती हुई कहती हैं....." आदित्य , अब हम जैसे जैसे मंत्रो को बोलेंगे तुम वैसे वैसे दोहाराते जाना , और इस रूद्राक्ष माला को इस मूर्ति को चारों तरफ से बिछा लो....."
आदित्य चेताक्क्षी के कहने पर उस माला को को मूर्ति को कवर करते हुए कहता है...." क्या इससे पक्का न अदिति सेफ रहेगी , मेरा मतलब सुरक्षित रहेगी...."
" बिल्कुल आदित्य , अदिति को अब इससे ही सुरक्षा होगी , बस तुम मेरे साथ दोहराते जाओ...."
आदित्य अपनी सहमति जताते हुए चेताक्क्षी के पीछे उस मंत्रों को दोहराने लगता है ....
चेताक्क्षी और आदित्य के मंत्रों को उच्चारित करने से उस मूर्ति में एक रोशनी फैलने लगी , लेकिन इस बार वो रोशनी धीरे धीरे पैरों से बढ़ते हुए ऊपर तक पहुंच चुकी थी जिसे देखकर चेताक्क्षी काफी खुश होकर कहती हैं...." हमारा एक पड़ाव पुरा हुआ , अदिति अब इस सुरक्षा कवच में है , और जबतक वो कवच में है तबतक गामाक्ष उसे कुछ नहीं कर सकता , लेकिन इस कवच की शक्ति केवल एक दिन के लिए ही होती है , इसलिए हमें केवल विवेक के आने का इंतजार करना होगा , , उम्मीद है वो जल्द ही उस खंजर को ले आए..."
चेताक्क्षी अपनी क्रिया से काफी खुश थी तो वहीं दूसरी तरफ गामाक्ष उस भयानक मूर्ति के सामने बैठा , अपने पैशाची क्रिया से उसे रोकने की कोशिश कर रहा था लेकिन आखिर में वो असफल रह जाता है......गामाक्ष गुस्से में खड़े होकर अदिति के पास जाकर कहता है....." तुम इतनी आसानी से इसे नहीं बचा सकते , ....."
" दानव राज में सब क्या हो रहा है और इस लड़की के घांव भर क्यूं रहे हैं...?.." उबांक परेशानी से पूछता है....
गामाक्ष दांतों को भींचते हुए कहता है....." ये जरूर उस अमोघनाथ ने किया है , , वो इसे सुरक्षा कवच में बांध चुका है , मैं ऐसे अपनी क्रिया में विफल नहीं हो सकता , .."
गामाक्ष वापस जाकर उस भंयकर मूर्ति के सामने बैठकर यज्ञ कुंड को प्रज्वलित करने लगता है लेकिन तभी एक तेज हवा के झौंके ने उसकी इस उम्मीद पर भी पानी फेर दिया था....
इससे गामाक्ष काफी तिलमिला जाता है , ...
लेकिन उसके चेहरे पर एक शैतानी हंसी आ जाती है......
" तुम केवल सुरक्षा कर सकते हो , बचा नहीं सकते , उबांक हम देहविहीन कर देंगे इसे , उसके बाद कोई कुछ नहीं कर सकता......"
उधर बौनो के राजा विवेक के सामने एक शर्त रखते हैं
" तुम्हें हमारे प्रदेश को एक सांप से बचा लो तब , वो सांप हर रोज हमारे कितने लोगों को खा जाता है , बताओ...."
विवेक कुछ सोचने लगता है तभी उनका राजा दोबारा कहता है......" विष से घबराने की जरूरत नहीं है , विष का उपचार है हमारे पास , बस हम उसके विशालकाय शरीर के आगे कुछ नहीं कर सकते , लेकिन तुम तो उससे मुक़ाबला कर सकते हो...."
विवेक हामी भर देता है जिससे सब खुश हो जाते हैं और तुरंत विवेक को उस जाल से बाहर निकाल देते हैं..... विवेक उस सांप से मुकाबले के लिए तैयार तो था लेकिन जल्द से जल्द वो उस खंजर को लेकर अदिति को बचाना चाहता था , इसलिए वो उस सांप के बिल की तरफ बढ़ता है......
.............to be continued...........