The Risky Love - 21 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 21

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The Risky Love - 21

अब आगे..............
वो पेड़ विवेक को फल खाने के लिए देता है लेकिन विवेक उस पर को लेने से मना कर देता है.... " नहीं मुझे कोई भूख नहीं लगी है न मुझे थकान है , पूछने के लिए शुक्रिया...अब मैं चलता हूं...."
विवेक जल्दी से उस पेड़ से आगे बढ़ जाता है और गहरी सांस लेते हुए कहता है...." मुझे अर्लट रहना चाहिए , मयन देव ने कुछ भी लेने से मना किया है , , ओह इस तारे का एक हिस्सा बूझ गया , , जल्दी कर विवेक.... लेकिन ये महाकाल मंदिर है कहां , इतने विरान से रास्ते में कोई दिख भी नहीं रहा जो मुझे पता बता दें..." 
विवेक खुद से ही बातें करता हुआ आगे बढ़ रहा था , उसके सामने काफी सारी दिक्कतें आ रही थी , लेकिन अपने हौसले बुलंद करते हुए वो आगे बढ़ रहा था , कुछ देर चलने के बाद अचानक अंधेरा छाने लगता है , तभी उसे किसी के बचाने की आवाज आती है जिसे सुनकर वो तुरंत उस आवाज वाली दिशा में जाकर देखता है , एक नीले और हरे रंग की चिड़िया जमीन पर पड़ी दर्द से चिल्ला रही थी , विवेक तुरंत उसके पास जाकर उसे अपने हाथों में उठाकर वापस पेड़ पर छोड़ता है तो वो चिड़िया और जोर जोर से चिल्लाती हुई कहती हैं......" मुझे यहां मत बैठाओ ये पेड़ मुझे खा जाएगा..."
विवेक हैरानी से उस पेड़ की तरफ देखकर कहता है..." ये‌ पेड़ , दिखने में तो साधारण सा लग रहा है....."
" ये साधारण नहीं है , ये उजाला होते ही अपने भयानक रूप में आ जाएगा , इसलिए जल्दी चलो यहां से....."
विवेक उस चिड़िया को वापस अपने हाथ में लेकर आगे बढ़ता है , वो चिड़िया उसे देखकर कहती हैं...." तुम कौन हो..?.. यहां के तो नहीं लगते..."
विवेक उसकी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहता है...." तुमने सही पहचाना , , वैसे क्या यहां सब ही पक्षी जानवर पेड़ बोलते हैं...."
वो चिड़िया चहकती हुई कहती हैं....." हां , हम सब आपस में बातें करते हैं , तुम इंसान भी तो बोलते हो , तो यहां दिव्य शक्तियों की वजह से सब बोलते हैं , , तुम यहां कैसे आए हो और तुम्हें किसी ने रोका नहीं....?..."
" रोका था , लेकिन मैं यहां किसी खास मकसद से आया हूं जो सबको बचाने के लिए जरूरी है..."
" कैसा खास मकसद...?..."
" मैं यहां महाकाल के मंदिर को ढूंढ रहा हूं , क्या तुम जानती हो कहां है वो...?..."
विवेक की बात सुनकर वो डरती हुई कहती हैं...." तुम वहां क्यूं जाना चाहते हो बहुत ही खतरनाक जगह है वो , बड़े बड़े सर्प उस मंदिर के आस पास रहते हैं...."
" हां , ये बात मैं जानता हूं , लेकिन मेरा वहां जाना बहुत जरूरी है , , "
" मैं तुम्हें उसका रास्ता बता सकती हूं लेकिन साथ नहीं जा सकती , हमारी कुछ सीमाएं हैं जिससे आगे हम नहीं जा सकते... लेकिन तुम यहां से सीधा चले जाना , तुम्हें यहां से चार जंगल मिलेंगे , पहला तो वृक्षों का था जिसे तुमने पार कर दिया , दूसरा बौने का प्रदेश मिलेगा , वो बड़े खतरनाक है , तीसरा वहां छली सुंदरियां, चौथा कंकाली वन , और आखिर में नागप्रदेश जहां है महाकाल का मंदिर.....तुम अपने लक्ष्य पर अडिग रहोगे तभी यहां से बाहर जा सकते हो नहीं तो यहां बहुत कुछ है तुम्हें लुभाने के लिए....." इतना कहकर वो चिड़िया वहां से चली जाती हैं......
विवेक उसके जाने के बाद आगे बढ़ता है , , थोड़ी ही देर बाद अंधेरा खत्म हो जाता है और एक साफ चमकदार धूप निकल आती है , , विवेक परेशान अपने आप को संभालते हुए आगे बढ़ रहा था , तभी थककर वो नीचे बैठ जाता है , ...
" ऐसे तो मैं कभी आगे नहीं बढ़ सकता , , " विवेक अपने पाकेट से अदिति के ब्रेसलेट को निकालकर देखते हुए कहता है....." क्या तुम्हें इतनी जल्दी थी मुझे ऐसा अकेले छोड़कर जाने की , अदिति मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा ..."
विवेक उस ब्रेसलेट को वापस रखकर आगे बढ़ता है , , 
दूसरी तरफ चेताक्क्षी अपनी क्रिया में पूरी तरह तल्लीन थी लेकिन अभी तक उसके हाथ कुछ नहीं लगा , , आदित्य की भी ऊर्जा शक्ति खत्म होने लगी थी , मंत्रों को बोलते बोलते वो काफी तक चुका था , लेकिन उस मिट्टी की मूर्ति में एक पर रोशनी होती तो दूसरे पल ही वो उम्मीद खत्म हो जाती , ,चेताक्क्षी काफी ज्यादा गुस्से में कहती हैं....." बाबा क्या इस गामाक्ष की क्रिया को रोका नहीं जा सकता...?..."
अमोघनाथ जी उसे समझाते हुए कहते हैं...." चेताक्क्षी धीरज से सोचो क्या पता कोई उपाय समझ आ जाए , देखो आदित्य को , हम तो इतने मंत्रों को उच्चारित कर सकते हैं लेकिन ये नहीं कर सकता , इसकी हालत काफी बिगड़ रही है इसलिए जल्दी कुछ और सोचो चेताक्क्षी...."
 
उधर विवेक अब एक दुसरे जंगल में कदम रख चुका था , यहां का दृश्य भी उसको उलझन में डाल रहा था , पेड़ के साइज उससे भी छोटे थे , नदीयो का पानी सर्पीले आकार में बह रहा था , विवेक अभी चारों तरफ देख ही रहा था तभी एक बड़े से जाल ने उसे पूरी तरह जकड़ लिया , जिससे वो वहीं नीचे घुटनों के बल‌‌ बैठ जाता है और अपने आप को उस जाल से बाहर निकालने की कोशिश करता है..... जैसा कि उस चिड़िया ने बताया था , वहां छोटे छोटे बौनो की पूरी फौज खड़ी उसे घूर रही थी , उन सबकी आंखें लाल थीं और दांत बाहर की तरफ निकले हुए थे , जिन्हें देखने पर वो छोटे छोटे राक्षस जैसे लग रहे थे , , तभी उनका मुखिया चिल्लाता है ...." जाओ महाराज को सुचित करो , आज किसी प्राणी ने हमारी शांति भंग की है , ...." विवेक हैरानी सा उन्हें देखते हुए कहता है.......
 
उधर चेताक्क्षी अमोघनाथ जी की बात पर सहमति जताते हुए कहती हैं....." बाबा अब तो केवल एक ही उपाय संभव है..."
अमोघनाथ जी हैरानी से पूछते हैं......" क्या चेताक्क्षी.....?..."
 
..............to be continued............