Dil ne jise chaha - 22 in Hindi Love Stories by R B Chavda books and stories PDF | दिल ने जिसे चाहा - 22

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दिल ने जिसे चाहा - 22

रुशाली एग्ज़ाम सेंटर से बाहर निकली तो चेहरा चमक रहा था।
"थैंक गॉड... पेपर बहुत अच्छा हुआ!" उसने गहरी साँस ली।

मन किया तुरंत मयूर सर को कॉल करे —
"सर को बताऊँ कि आज पेपर कितना अच्छा गया..."
लेकिन फिर उसने खुद को रोका —
"नहीं… ये ख़ुशी कल सामने जाकर शेयर करूँगी।"

वो शाम खामोश रही… पर रुशाली का दिल अंदर से गुनगुना रहा था।

---

अगली सुबह

सुबह रुशाली ने हल्का पीला सूट पहना, बाल खुले रखे, होंठों पर हल्की मुस्कान थी। जैसे ही घर से बाहर निकली, मोबाइल बज उठा।
"Tring-tring..."

स्क्रीन पर नाम चमका — Dr. Akdu।

"गुड मॉर्निंग सर!" रुशाली की आवाज़ में एक अलग सी रौनक थी।
"गुड मॉर्निंग रुशाली… मैं तुम्हें पिक कर लेता हूँ, तुम बाहर ही रुक जाओ।"

रुशाली के दिल की धड़कन तेज़ हो गई —
"मतलब आज सर मुझे खुद लेने आएंगे… एक हफ़्ते बाद मुलाक़ात होगी..."

थोड़ी देर बाद गाड़ी रुकी। मयूर सर उतरे… और जैसे ही रुशाली की नज़र उन पर पड़ी, दिल ने बस कह दिया — “एक हफ्ते से ये आँखें तरस गई थी इनको देखने के लिए…”

"गुड मॉर्निंग सर, कैसे हैं आप?"
"वेरी गुड मॉर्निंग रुशाली… बिल्कुल ठीक। और तुम? पेपर कैसा गया? लग रहा है कि बन ही जाओगी गवर्नमेंट ऑफ़िसर!" मयूर सर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।

रुशाली खिलखिला दी —
"जी सर, पेपर तो अच्छा हुआ… पर अब देखना है कि नाम मेरिट लिस्ट में आता है या नहीं।"

मयूर सर ने आत्मविश्वास से कहा —
"Don't worry, तुम्हें ये जॉब ज़रूर मिलेगी।"

रुशाली की आँखों में चमक और गहराई दोनों थीं।

"चलो, अब हॉस्पिटल चलते हैं।" मयूर सर ने गाड़ी स्टार्ट की।

जैसे ही दोनों हॉस्पिटल पहुँचे, मयूर सर ने कहा,
"पहले वार्ड में राउंड लगाते हैं।"

रुशाली उनके साथ चली।
मयूर सर हर पेशेंट से बड़ी विनम्रता से बात कर रहे थे, हर किसी की परेशानी को ध्यान से सुन रहे थे। रुशाली देखती रही…

"इतने सीनियर होकर भी कितने ज़मीन से जुड़े हुए हैं… कितना नम्र स्वभाव है… कोई घमंड ही नहीं।"

रूशाली का मन बस उन्हें निहारने को चाहता।
कभी डॉक्टर, कभी गाइड, कभी जैसे कोई अपना...

तीन वॉर्ड के राउंड के बाद लंच का समय हो गया।
मयूर सर ने कहा, "रुशाली, चलो लंच साथ में करते हैं।"
"जी सर," रुशाली ने मुस्कुराकर कहा।

कैंटीन में बैठकर दोनों ने खाना ऑर्डर किया।
मयूर सर ने मुस्कराकर कहा,
"रुशाली, तुम तो हमेशा मेरे बारे में जानने की कोशिश करती रहती हो… आज तुम अपने बारे में बताओ।"

रुशाली हँसी, "पूछिए सर, क्या जानना चाहते हैं?"

मयूर सर ने कहा, "मुझे तो पता है तुम्हारा बर्थडे अगले हफ़्ते है… लेकिन ये बताओ तुम्हारे गोल्स क्या हैं? तुम्हें क्या पसंद है?"

रुशाली ने थोड़ी देर सोचा और बोली,
"सर, फिलहाल तो बस इस एग्ज़ाम का रिज़ल्ट अच्छा आ जाए… मैं सेलेक्ट हो जाऊँ। उसके बाद ही आगे के गोल्स हासिल कर पाऊँगी।"

मयूर सर ने दृढ़ आवाज़ में कहा,
"तुम ज़रूर पास होगी रुशाली। तुम मेहनती हो, करियर ओरिएंटेड हो… तुम वो सब हासिल करोगी जो चाहती हो।"

रूशाली की आँखों में हल्की चमक आ गई,
"जी सर, मैं अपने दम पर अपना नाम बनाना चाहती हूँ… मैं चाहती हूँ कि मैं किसी के लिए इंस्पिरेशन बनूँ।"

मयूर सर ने भावुक होकर कहा,
"हाँ रुशाली, तुम ज़रूर करोगी। और अगर तुम्हें इस सफर में कभी मेरी ज़रूरत पड़ी, तो तुम मुझे कभी भी बता सकती हो।"

रुशाली ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"आपकी इस बात से लगता है कि आप मेरे उस सवाल का जवाब नहीं देंगे… और आप उसी लड़की से शादी करेंगे, जिसे आपके परिवार ने आपके लिए चुना है… राइट?"

मयूर सर चुप रहे। सिर्फ़ प्लेट में रखा खाना देखने लगे।
"खाना अच्छा है…" मयूर सर ने विषय बदल दिया।

रुशाली के चेहरे पर हल्की उदासी छा गई।
दोनों चुपचाप लंच ख़त्म कर गए।

लंच के बाद मयूर सर ने कहा,
"अब हमें डेंगू पेशेंट की रिपोर्ट देखनी हैं।"

रुशाली लैब से रिपोर्ट लेकर आई और मयूर सर को दी।
मयूर सर ने कहा,
"रुशाली, ये रिपोर्ट पेशेंट के परिवार को दे आओ। वो अब दूसरे वॉर्ड में हैं… वहाँ मेरी ड्यूटी नहीं है।"

रुशाली रिपोर्ट दे आई और वापस आई तो मयूर सर ने देखा—
वो चुप थी, गुमसुम।

"रुशाली, क्यों चुप हो?" मयूर सर ने पूछा।
"कुछ नहीं सर," उसने धीमे से कहा।

मयूर सर ने माहौल हल्का करने की कोशिश की,
"अच्छा ये बताओ, तुम्हें तुम्हारे बर्थडे पर क्या गिफ्ट चाहिए?"

"कुछ नहीं।" रुशाली का जवाब साफ़ था।
"अरे, कुछ तो होगा न?"
"नहीं सर… और क्या मैं अब जा सकती हूँ? वैसे भी छुट्टी का समय हो गया है।"

मयूर सर ने सिर हिलाया,
"हाँ, जा सकती हो।"

रुशाली के जाते ही मयूर सर के मन में उथल-पुथल मच गई—
"ये क्यों इतनी नाराज़ हो गई? पर मैं क्या कर सकता हूँ… मेरे हाथ में कुछ नहीं…"

रुशाली घर पहुँची ही थी कि मोबाइल पर मैसेज आया—
"Rushali, I know what you want to know… but I can't explain you… hope you understand."

रुशाली ने मैसेज पढ़ा… और रिप्लाई नहीं किया।
बस खिड़की से बाहर आसमान की ओर देखने लगी।

"क्यों दिल की बातें कह नहीं पाते,
क्यों ख्वाहिशें जुबां तक आकर रुक जाती हैं।
वो पास होकर भी कितने दूर हैं,
क्यों नज़रें सब कहकर भी चुप रह जाती हैं।"

"रिश्तों के बीच जो लकीर खींच दी गई,
वो शायद मिट नहीं सकती…
पर दिल तो वही चाहेगा,
जिसे चाहने की आदत हो चुकी।"


आगे क्या होगा?

Rushali का रिज़ल्ट आने वाला था।
उसका बर्थडे भी क़रीब था।

क्या Rushali सेलेक्ट होगी?
क्या Mayur Sir उसके बर्थडे पर कुछ ख़ास देंगे?

"जानने के लिए पढ़ते रहिए — दिल ने जिसे चाहा — अगला भाग..."