रुशाली और मयूर सर की ज़िन्दगी अब पहले जैसी सामान्य लगने लगी थी।
कोई बड़ी हलचल नहीं, कोई खास बदलाव नहीं, लेकिन दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता बनने लगा था — ऐसा रिश्ता जो शब्दों का मोहताज नहीं था।
अब तक मयूर सर ने उस सवाल का जवाब नहीं दिया था जो कभी रुशाली ने उनसे पूछा था।
पर अब शायद रुशाली को जवाब की ज़रूरत भी नहीं थी।
क्योंकि मयूर सर का बर्ताव, उनकी नजरें, उनकी चिंता, हर चीज़ ये कह रही थी कि वो रुशाली को दिल से चाहने लगे हैं...
बस ये बात कभी लफ्ज़ों में नहीं आई थी, और शायद कभी आएगी भी नहीं।
कभी ना कहे जाने वाले जज़्बात
"कुछ रिश्ते होते हैं, जो नाम नहीं मांगते,
बस साथ निभाने की खामोश रस्म निभाते हैं।
ना इज़हार होता है, ना इंकार,
बस हर दिन एक एहसास छोड़ जाते हैं।"
रुशाली अब मयूर सर को समझने लगी थी।
वो जानती थी कि मयूर सर के लिए उनका परिवार सबसे पहले है।
और शायद यही वजह थी कि वो इज़हार नहीं करते, क्योंकि उनका दिल बंटा हुआ था — एक तरफ़ अपनों की जिम्मेदारियाँ, और दूसरी तरफ़ एक नए जज़्बात की परछाई।
वक़्त आगे बढ़ा...
दिन बीतते गए।
रुशाली और मयूर सर के बीच बातचीत होती रही, हँसी-मज़ाक चलता रहा, लेकिन कहीं अंदर ही अंदर एक बेचैनी भी पनप रही थी।
क्योंकि शायद अब कुछ बदलने वाला था।
फिर एक दिन... हॉस्पिटल का ही एक सामान्य सा दिन था।
मयूर सर अपनी फाइलों में व्यस्त थे, जब रुशाली उनके केबिन में दाखिल हुई।
मयूर सर: रुशाली…तुम्हारे चेहरे पर आज कुछ अलग ही टेंशन दिख रही है। सब ठीक तो है?
रूशाली: (धीरे से) जी सर… सब ठीक है। बस… मुझे आपसे एक हफ़्ते की छुट्टी चाहिए।
मयूर सर: (थोड़ा चौंककर) एक हफ़्ता? अचानक? वजह?
रूशाली: (संकोच से) सर… मैंने गवर्नमेंट जॉब के लिए अप्लाई किया था… अगले हफ़्ते उसका एग्ज़ाम है। थोड़ी तैयारी करनी है… इसलिए छुट्टी लेना चाहती हूँ।
(मयूर सर का चेहरा पल भर को उतर जाता है। वो मुस्कुराने की कोशिश करते हैं, पर मुस्कान अधूरी है।)
मयूर सर: अच्छा… तो मतलब ये जॉब मिलते ही तुम ये नौकरी छोड़ दोगी… और शायद… मुझे भी भूल जाओगी?
रुशाली: (भौंहें चढ़ाते हुए) सर, ये आप क्या कह रहे हैं? आप सच में ऐसा सोचते हैं?
मयूर सर: (हल्का सा मज़ाक बनाते हुए, मगर आँखों में छुपा डर साफ़ है) अरे… मैं तो बस सोच रहा था… अगर तुम यहाँ नहीं रहोगी, तो ये कुर्सी भी उदास हो जाएगी।
रूशाली: (गंभीर होकर) सर… आपसे एक सवाल पूछूँ?
मयूर सर: (नज़रें झुकाकर) पूछो।
रुशाली: (धीरे से) याद है… मैंने एक दिन आपसे अपने दिल की बात कही थी… और आज तक आपने कोई जवाब नहीं दिया। शायद मैं आपके लिए सिर्फ़ एक दोस्त हूँ… दोस्त ही सही लेकिन क्या आप मुझे भूल जाएँगे?
(मयूर सर कुछ कह नहीं पाते। उनकी नज़रें रुशाली के चेहरे पर टिक जाती हैं, मगर होंठ ख़ामोश रहते हैं।)
रुशाली: (हल्का मुस्कराकर, मगर आँखें नम) सर, मैं गारंटी देती हूँ… चाहे मैं आपके पास रहूँ या न रहूँ… आप हमेशा मेरे दिल में रहेंगे। पर… क्या आप मुझे याद रखेंगे?
(कमरे में कुछ सेकंड की ख़ामोशी… घड़ी की टिक-टिक साफ़ सुनाई दे रही है।)
मयूर सर: (धीरे से) रुशाली… छुट्टी ले लो। और हाँ — ये एग्ज़ाम तुम पास करोगी। मेहनत करने वालों को कोई नहीं रोक सकता… मेरी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ हैं।
रुशाली: (थोड़ी मुस्कान के साथ) थैंक यू सर…
(रुशाली उठकर बाहर जाती है। दरवाज़ा धीरे से बंद होता है। मयूर सर कुर्सी पर बैठे-बैठे खाली नज़र से दरवाज़े को देखते रह जाते हैं।)
(अगले कुछ दिन रुशाली हॉस्पिटल में नहीं आती। हॉस्पिटल का हर कोना खाली-खाली लगता है।)
कॉरिडोर से कोई हँसी की आवाज़ नहीं आती।
फाइलें वैसे ही रखी हैं, मगर साइन करवाने के लिए रुशाली नहीं।
चाय का कप आता है, मगर अब वो ठंडा हो जाता है — पीने वाला साथी नहीं है।
(एक शाम, मयूर सर खिड़की से बाहर देखते हुए खुद से बातें करते हैं।)
मयूर सर (मन में):
"रुशाली… तुम सच में चली जाओगी क्या?
मैं तो हमेशा चाहता था कि तुम आगे बढ़ो…"
कभी-कभी किसी के जाने की तैयारी, दिल को तोड़ देती है।
मयूर सर ने रात को हॉस्पिटल से घर जाते वक्त कार की खिड़की से बाहर देखा।
हर रास्ता, हर मोड़ जैसे यही पूछ रहा था...
"क्या वो फिर कभी मिलेगी?"
"क्या आज जो है, वो हमेशा रहेगा?"
रुशाली घर पर किताबें फैलाकर बैठी है। दिन-रात पढ़ाई में लगी है। पर बीच-बीच में उसका ध्यान भटक जाता है।)
रुशाली सोच रही थी…
क्या ये रिश्ता वक्त और दूरी झेल पाएगा?
क्या मयूर सर उसे भूल जाएंगे?
पर उसने खुद को समझाया –
“अगर दिल से जुड़ा है रिश्ता,
तो दूरियाँ क्या कर पाएंगी।
वक्त भले ही बदल जाए,
पर यादें तो साथ निभाएंगी।”
(रात को देर तक पढ़ाई करते-करते खिड़की से आसमान देखती है। तारे गिनते-गिनते वही खयाल आते हैं — सर अभी क्या कर रहे होंगे? उन्होंने खाना खाया होगा?
(कभी-कभी मोबाइल पर कॉल आता है — “रुशाली, एग्जाम्स की तैयारी कैसी चल रही है?” मयूर सर का लहज़ा हमेशा की तरह सामान्य, पर उनकी आवाज़ में छुपी चिंता रुशाली सुन लेती है।)
एग्ज़ाम का दिन
(रुशाली सेंटर के बाहर खड़ी है। दिल जोर-जोर से धड़क रहा है। फोन में मयूर सर का मैसेज आता है – “Best of luck, मुझे पूरा यक़ीन है कि तुम शानदार करोगी।”
[जारी है…]
अगले भाग में:
क्या रुशाली का एग्ज़ाम सफल होता है?
अगर एग्जाम सफल रहा तो रुशाली जॉब छोड़ देगी क्या?
या फिर किस्मत दोनों को फिर पास लाएगी?