Ek Ladki ko Dekha to aisa laga - 22 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 22

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एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 22

रिद्धान की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। सबकुछ धुँधला-सा लग रहा था। उसने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई — अजनबी-सा कमरा, लेकिन दीवार पर जो तस्वीर टंगी थी, उसे देखते ही उसका दिल थम गया।


वो तस्वीर प्रकृति की थी।


“मैं… यहाँ… कैसे?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।

उसने सिर पकड़ लिया, दर्द से कराह उठा।

“कल… क्या हुआ था… मैं यहाँ कैसे आया?”


इतना ही सोच रहा था कि दरवाज़ा खुला।

प्रकृति अंदर आई — हाथ में नींबू पानी का गिलास।

उसकी आँखें सूजी हुई थीं,  जैसे बहुत रोकर आई को  ,  पलकों पर अब भी नमी बाकी थी।

“ये लो, इससे आराम मिलेगा,” उसने बिना उसकी आँखों में देखे गिलास आगे बढ़ा दिया।


रिद्धान ने गिलास थाम तो लिया, लेकिन रख दिया।

उसका दिल बेचैन था।

“प्रकृति… क्या हुआ? तुम ठीक तो हो न?”


वो उसकी तरफ़ बढ़ा, मगर प्रकृति दो क़दम पीछे हट गई।

नज़रें झुका लीं, और दबे स्वर में बोली—

“ये पी लो… और अपने घर  जाओ। मुझे देर हो रही है।”


बिना कुछ और कहे वो कमरे से बाहर चली गई।

रिद्धान का हाथ हवा में ही रह गया, और उसकी आँखों में बेचैनी गहरी होती चली गई।


“कल रात… क्या हुआ? मैंने कुछ… किया? नहीं… नहीं!”

वो खुद से बड़बड़ाने लगा।

“तो फिर ये इतनी परेशान क्यों है?”

वो पूरी जद्दोजहत से याद करने की कोशिश कर थम है कि कल क्या हुआ था, पर उसे कुछ याद जुबा रहा।

वो उसके कमरे की तरफ़ बढ़ा, दरवाज़ा खटखटाने ही वाला था कि उसका फ़ोन बज उठा।

स्क्रीन पर नाम चमका — Lawyer calling.


रिद्धान ने गहरी साँस ली, अपना कोट उठाया और बाहर निकल गया।

पीछे से प्रकृति ने महसूस किया कि वो जा चुका है।

उसके दिल में अजीब-सी खालीपन की टीस उठी, मगर उसने खुद को सँभाल लिया।



---


बाहर, गाड़ी में बैठा रिद्धान फ़ोन पर बोला—

“हाँ, कहो।”


“मैंने तुम्हें टेक्स्ट किया था, मिला?”

रिद्धान ने फ़ोन चेक किया।

स्क्रीन पर मैसेज था—

‘प्रकृति के खिलाफ कोई केस नहीं बनता। तुम चाहो भी तो उसे जेल नहीं भेज सकते।’


उसकी साँस अटक गई।

उसके होंठ कड़े हो गए।

लेकिन आवाज़ ठंडी थी—

“ठीक है, मैं इस केस को दूसरे ऐंगल से देखता हूँ।”


लॉयर की आवाज़ आई—

“मुझे लगता है तुम्हें सीधे प्रकृति से बात करनी चाहिए। शायद वही तुम्हें कोई क्लू दे।”


रिद्धान के कदम, जो कैब की तरफ़ बढ़ रहे थे, अचानक रुक गए।

“प्रकृति…” उसके ज़ेहन में उसकी छवि कौंध गई।


“हो सकता है, जैसा तुम सोच रहे हो वैसा कुछ हो ही न,” लॉयर ने समझाया।


रिद्धान चुप हो गया।

वो कैब में बैठने ही वाला था कि उसकी नज़र सामने पड़ी।


प्रकृति।

वो घर से निकल रही थी। चेहरा परेशान, कदम तेज़।


रिद्धान का दिल धक से रह गया।

“ये कहाँ जा रही है? कोई प्रॉब्लम तो नहीं…? मुझे देखना चाहिए।”


उसने ड्राइवर से कहा—

“उस कार का पीछा करो।”



---


प्रकृति एक दरवाज़े के सामने आकर रुकी।

उसने बेल बजाई।


दरवाज़ा खुला — सामने कबीर।


प्रकृति की आँखों में दर्द और गुस्सा दोनों तैर गए।

“तो मेरा शक सही था… तुम यहीं थे।

तुमने मुझसे झूठ बोला, कबीर।”


कबीर हक्का-बक्का रह गया।

“न-नहीं… जो तुम सोच रही हो वैसा—”


“Exactly!!! वैसा कुछ है ही नहीं जैसा मैंने सोचा था,” उसकी आवाज़ काँप उठी।

“ये सब चल क्या रहा है, कबीर?

तुमने मुझे रिज़ाइन करने से रोका…

तुम्हारा दोस्त मुझे नफ़रत की हद तक बर्बाद करना चाहता है…

ये सब हो क्या रहा है?”


उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े।

“हाँ… नफ़रत नहीं, वो तो मुझे जेल भेजना चाहता है!

मुझे तबाह करना चाहता है!”


कबीर की आँखें और फैल गईं।

“क…क्या?! तुम्हें कैसे… उसने बताया?”


प्रकृति की हँसी कड़वी थी।

“अच्छा… तो तुम्हें भी सब पता था।

यहाँ सबको सब पता है…

सिवाय उस इंसान के… जिसकी ज़िंदगी दाँव पर लगी है।”


उसका गला भर आया, और वो फूट-फूटकर रो पड़ी।


कबीर हड़बड़ाकर आगे बढ़ा।

“प्रकृति… अंदर आओ। प्लीज़।

वरना लोग सोचेंगे कि मैंने तुम्हें रुलाया है।”


उसने धीरे से उसका कंधा थाम लिया।



---


गाड़ी में बैठा रिद्धान सब देख रहा था।

उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।


उसने देखा— प्रकृति और कबीर…

और फिर प्रकृति उसके साथ अंदर चली गई।


दरवाज़ा बंद हो गया।


रिद्धान की साँस अटक गई।

उसके अंदर ग़ुस्से, दर्द और जलन का तूफ़ान उठ गया।


उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं।

आँखों में प्यास और शक जलने लगे।

“ये… ये क्या हो रहा है?

प्रकृति… और कबीर… साथ…?”


वो समझ नहीं पा रहा था कि चीखे, तोड़े, या बस वहीं बैठकर बिखर जाए।


उस पल उसकी सारी दुनिया जैसे किसी ने मुट्ठी में कस ली थी।


ड्राइवर गाड़ी रघुवंशी मेंशन ले चलो । 

और वो दिल पर पत्थर रख कर आगे चला गया,

मुझे तकलीफ क्यों हो रही है , मैं तो वैसे भी उसे बर्बाद करने जा रहा हूँ, तो वो कुछ भी करे।