प्रकृति ने जैसे-तैसे उसे कैब तक पहुँचाया।
उसका सिर उसके कंधे पर गिरा हुआ था, साँसों में शराब की तीखी गंध, पर आँखों में किसी अनकहे दर्द की परछाई।
दिल ही दिल में उसने सोचा—“ये लड़का बाहर से कितना सख्त है… लेकिन भीतर से कितना टूटा हुआ।”
कैब में बैठते ही फोन बज उठा।
कबीर का नाम देखकर उसने झट से कॉल उठाया।
“हैलो कबीर, (फोन उठाते ही उसने किसी रट्टू तोते तरह सब कुछ कबीर को बता शायद उसे इस बात कर डर था कि कोई उसे गलत न समझ ले)
कबीर ख़ुद शॉक में था उसे समझ हीं नहीं आया कि क्या बोले, जिस रिधान को वो जनता था वो ऐसा तो नहीं था ।
उसने बात को आगे बढ़ाया और बोली :मैं रिद्धान को उसके घर छोड़ने जा रही हूँ।”
उसकी आवाज़ में थकान और बेचैनी दोनों थीं।
दूसरी तरफ से कबीर ने खुद को संभाला और बोला—
“नहीं प्रकृति! उसे उसके घर बिल्कुल मत ले जाना। उसकी दादी की हालत पहले ही बहुत खराब है। अगर उन्होंने उसे इस हाल में देखा… वो और टूट जाएँगी।
प्रकृति कन्फ्यूजन में: इसके घर नहीं तो कहां...!???
कबीर : मैं भी अभी शहर से बाहर हूँ, वरना मैं ही आ जाता ।। प्लीज़, अभी के लिए तुम उसे अपने घर ले जाओ।”
प्रकृति ने पल भर को आँखें मूँद लीं।
“अपने घर…? मतलब पूरी रात इसे यहाँ रखना होगा…”
दिल में हल्की सी घबराहट हुई, पर फिर उसने ठंडी साँस ली—
कबीर शायद चाहता कि प्रकृति और रिधान एक साथ टाइम स्पेंट करे ।
वो बोला ; अच्छा ठीक है इतनी रात हो गई , शहर से बहुत दूर हूँ ड्राइव करना भी सेफ नहीं , फ्लाइट तो मिलेगी इतनी जल्दी ।।। पर मैं आने का ट्राई करता हूँ।
प्रकृति: मुझे ऐसा क्यों लग रहा है के तुम कुछ छिपा रहे हो।
कबीर : मैं कुछ छिपाऊंगा ..... तुम टेंशन मत लो मै आता हूँ ।
प्रकृति: रहने दो .......“ठीक है, मैं संभाल लूँगी।”
प्रकृति ने कैब से जैसे-तैसे रिद्धान को अपने घर तक पहुँचाया।
दरवाज़ा बंद करते ही उसने राहत की साँस ली—पर सामने रिद्धान बुरी तरह से लड़खड़ा गया।
वो उसे सँभालने के लिए झट से बढ़ी, और वो पूरे वज़न के साथ उसी पर गिर पड़ा।
और नतीजा ये हुआ कि वो उसके सीने से सटकर , इसके ऊपर जा गिरी उसकी गर्म साँसें प्रकृति की गर्दन से टकरा रही थीं।
वो हड़बड़ा गई—
“रिद्धान… प्लीज़… संभलो।”
लेकिन रिद्धान आधे होश में, धीमे से बुदबुदाया—
“तुम… आई हो न… मुझे छोड़कर मत जाना…”
प्रकृति का दिल अजीब तरह से काँप गया।
उसने मुश्किल से उसे उठाकर सोफ़े पर बैठाया।
उसके चेहरे को देखते ही वो चौंक गई—
माथा तप रहा था, आँखें लाल थीं।
“ये तो सचमुच बीमार है…”
उसके होंठों से निकला।
वो पानी लेने के लिए आगे बढ़ी पर तभी उसने पीछे से उसकी उँगलियाँ अपनी कलाई पर कसती हुई महसूस कीं।
रिद्धान ने उसे रोक लिया था।
उसकी आँखों में नशे की धुंध थी, लेकिन उनमें एक अजीब मोहब्बत और डर भी छिपा था।
“मत जाओ… तुम जाओगी तो मैं… टूट जाऊँगा…”
प्रकृति पल भर को थम गई।
उसका दिल धड़क उठा।
वो धीरे से उसके हाथ पर अपनी हथेली रखकर बोली—
“मैं कहीं नहीं जा रही… बस पानी लेकर आ रही हूँ।”
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रातभर प्रकृति उसके पास बैठी रही।
कभी ठंडी पट्टियाँ उसके माथे पर रखती, कभी उसके बिखरे बालों को ठीक करती।
कभी वो करवट बदलता, तो उसका हाथ कसकर पकड़ लेता।
उसकी आँखें बार-बार उसके चेहरे पर टिक जातीं।
वो सोचती—
“ये वही लड़का है जो मुझे पल भर में तोड़ देता है… और आज.... मुझे रुकने के लिए बोल रहा है ।
क्यों लगता है जैसे मेरी किस्मत इससे किसी अनदेखे धागे से बँधी हुई है…”
उसका माथा पोंछते-पोंछते वो अनजाने में उसके बहुत क़रीब चली आई।
इतना क़रीब कि उसकी साँसें उसके होंठों को छूने लगीं।
वो एक पल के लिए ठहर गई…
दिल ने ज़ोर से धड़कना चालू कर दिया , धड़कन इतनी तेज हो के उसके खुद के कानों तक जा रही है
पर अगले ही पल उसने खुद को पीछे खींच लिया।
उसकी आँखें नम हो गईं।
इसी कशमकश में सुबह हो गई
सुबह सुबह रिधान की आंख खुली ,धुंधली और हल्की,
उसने अपने साइड में प्रकृति को सोफे के नीचे सोते हुए देखा,उसने सोफे पर से रख रखा है , बाल खुले सूरज की रोशनी थोड़ी थोड़ी उसके चेहरे पर पड़ रही है।
रिधान जैसे अभी भी होश में नहीं है।
कितना खूबसूरत सपना है..!!! काश ये सच हो, काश मेरी आंख न खुले ।
और वो फिर सो गया।
कुछ देर में प्रकृति की भी आंख खुली, उसने देखा रिधान अभी सोया , उसने माथे पर हाथ रखा ।
बुखार तो नहीं है ।
तभी फोन वाइब्रेट हुआ।
ये रिधान का फोन था
प्रकृति ने झुंझलाकर उठाया—
Lawyer का मैसेज था।
"रिद्धान, केस रिव्यू कर लिया है। प्रकृति के खिलाफ़ कोई चार्ज साबित नहीं हो सकता। चाहो भी तो उसे जेल नहीं भेज सकते।,
आगे मैसेज आया।
में जनता हूँ तुम उसे सलाखों के पीछे देखना चाहते हो, तभी तुमने प्राइवेट डिटेक्टिव से पर्सनली अपॉइंट किया है ,पर अभी कुछ नहीं हो सकता ।
प्रकृति का पूरा शरीर सन्न रह गया।
उसके होंठ सूख गए।
आँखें रिद्धान पर गईं—जो उसकी हथेली थामे बच्चे की तरह सो रहा था।
आँसू उसके गालों पर ढलक आए।
“जेल.....! प्राईवेट डिटेक्टिव..... !!
ये सब क्या......( उसकी सिसकियां निकल गई )
रिद्धान… आखिर मैं हूँ क्या तुम्हारे लिए…?”
उसका दिल पहली बार सचमुच टूट गया।
उसने सिर झुका लिया और धीरे से उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बस इतना कहा—
“काश… तुम वैसा ही सोचते जैसा महसूस करते हो…”
उसके हाथ से फोन गिर गया, वो तुरंत वहां से किचन में चली गई।
फोन की आहट से रिधान की भी नींद टूट गई ।