The Risky Love - 6 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 6

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The Risky Love - 6

अतीत की सच्चाई.. 1

अब आगे.......... 

" पहले तुम सब यहां बैठो , सफर से आए हो तक गए होगे..."
" नहीं मां अब आराम से बैठने का टाइम नहीं है जल्दी ही अदिति को बचाना होगा...." 
देविका जी खटोले को बिछाती हुई कहती हैं......" तुम सब बैठो , कांची इन सबके लिए चाय और कुछ खाने के लिए लेकर आ...".
" जी मासी.." कांची वहां से रसोईघर में चली जाती हैं लेकिन आदित्य घबराते हुए कहता है....." मां हमें कुछ नहीं खाना बस जल्दी से बताइए सच्चाई क्या है और हम अदिति को कैसे बचा सकते हैं.....?..."
देविका जी आदित्य की बात को सुनकर कहती हैं....." हां आदित्य मैं बताती हूं ,,,!... फिर विवेक और इशान की तरफ देखकर पूछती है....." तुमसे से उस पिशाच ने किसे अपने नाखूनों से चोट पहुंचाई है...." 
देविका जी बात सुनकर तीनों हैरानी से एक दूसरे को देखते हैं फिर विवेक कहता है......." आंटी जी , उस पिशाच ने मुझे ही चोट पहुंचाई है लेकिन आपको कैसे पता...."
देविका जी विवेक को देखकर कहती हैं....." तुम बहुत बहादुर हो लड़के , , जो उस पिशाच के सामने आ गए....." आगे देविका जी अपने आप से कहती हैं....." तुम अदिति को चाहते हो , और उसे बचाने यहां तक आ गए अमोघनाथ जी कुछ सोच ही तुम्हारे बारे में बताया होगा , , उम्मीद करती हूं तुम आदित्य के साथ मिलकर अदिति को बचा लोगे..."
" मां , कहां खो गई ...?... बताओ जल्दी..."
देविका जी अपने विचारों से बाहर आकर कहती हैं....." ठीक है सुनो .... जिसे तुम पिशाच कह रहे हो वो साधारण सा पिशाच नहीं है वो एक काली शक्तियो का राजा है , सारे पिशाच उससे डरते हैं लेकिन वो खुद पिशाच नहीं था वो एक तांत्रिक था , , लेकिन तुम्हारे पापा के कारण वो खुद एक पिशाच शरीर में फंस गया और उसकी शक्तियां कम हो गई है...."
आदित्य समझते हुए कहता है...." मां , ये पिशाच नहीं है तांत्रिक था , लेकिन ये सब हुआ कैसे वो बताओ और पापा ने इसे पिशाच कैसे बना दिया..."
" ठीक है बताती हूं....आज से ठीक सोलह साल पहले क्या हुआ था वो सुनो....तुम्हारे पापा एक वैदिक ज्योतिष और काली माता के बड़े भक्त थे , उन्हीं की पूजा विधि करके तुम्हारे पापा ने कुछ सिध्दियां हासिल की थी जिससे वो पूरे गांव वालों की हर मुसिबत का समाधान कर देते थे , , वहीं गामाक्ष और अमोघनाथ जी तुम्हारे पापा के साथ ही उनका काम किया करते थे यूं मान लो की वो उनके सेवक के रूप में काम किया करते थे , , लेकिन एक दिन जब तुम्हारे पापा कुछ विशेष पूजा अर्चना करने के लिए देवागिरी की पहाड़ियों पर गये थे , जहां से लौटते समय उन्हें कोई बेताल की गुफा मिली थी....
फ्लैशबैक ........
आदिराज , गामाक्ष और अमोघनाथ तीनों देवागिरी की पहाड़ियों से आते वक्त किसी की आवाज सुनकर रुक जाते हैं....
" ठहरो मुसाफिर , , इस वक्त कहां जा रहे इस , ..."
आदिराज हैरानी से चारों तरफ देखते हुए कहता है..." कौन हो तुम ..?. हमारे रास्ते में बाधा क्यूं बन रहे हो...?..जो भी हो सामने आओ..... नहीं तो तुम्हें यहीं खत्म कर देंगे...."
तभी एक पेड़ पर किसी की परछाईं नजर आती है जो धीरे धीरे किसी इंसान में बदल जाती है......" हे ! दिव्य पुरुष , मेरी भूल को क्षमा करना , मैं आपको डराना नहीं चाहता था , मैं बेताल जाति का प्रेत विरूनाभ हूं  , , मैं आते जाते मुसाफिर को अपना भोजन बनाया करता हूं लेकिन आपकी तेजस्वी शक्ति ने मुझे भयभीत कर दिया है इसलिए मुझे क्षमा करना....."
" ठीक है , मैं तुम्हें क्षमा करता किंतु अब हमारे रास्ते से हट जाओ हमें शीघ्र ही अपने गांव जाना है..."
" बिल्कुल जाइएगा किंतु भौंर होने पर अभी ये मार्ग खतरों से भरा हुआ है , हे ! दिव्य पुरुष मैं तो आपकी ख्याति जान चुका हूं किंतु आगे जो प्रेत आपको मिलेंगे वो आपको छल से मार देंगे इसलिए कृपा करके आज आप यही मेरी गुफा में विश्राम करिए कल प्रातः होते ही यहां से चले जाइए...."
अमोघनाथ धीरे से आदिराज से कहते हैं..." आदिराज जी ! मुझे तो इसकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है कहीं ये इसका तो कोई छल नहीं है....और वैसे किसी प्रेत जाती पर विश्वास नहीं करना चाहिए...."
आदिराज अमोघनाथ की बातों पर सहमति जताते हुए कहते हैं...." तुम ठीक कह रहे हो अमोघनाथ लेकिन हमारे पास आगे जाने का समय नहीं है रात्रि काफी हो चुकी है इसलिए हमें यही रैन बसेरा करना पड़ेगा.....तुम चिंता मत करो , मैं इसे इसके इरादों में कामयाब नहीं होने दूंगा..." 
गामक्ष चुपचाप इन दोनों की बातें सुन रहा था , उसके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था और अपने आप से कहता है....." हमें इसकी गुफा में जाना चाहिए क्या पता , कुछ अलग शक्ति हाथ लग जाए ..." गामाक्ष इतना सोचकर आदिराज से कहता है....." आदिराज जी , हमें इसका कहा मान लेना चाहिए और वैसे भी आप जैसे शक्तिशाली के सामने ये क्या कर सकता है...."
आदिराज गामाक्ष की बात से सहमत हो जाते हैं और उस विरूनाभ से कहते हैं...." ठीक है हम तुम्हारे साथ चलते हैं लेकिन ध्यान रहे हमारी साधना में कोई व्यवधान उत्पन्न मत करना...."
विरूनाभ हां में सिर हिलाते हुए कहता है...." जी बिल्कुल चलिए...." 
विरुनाभ उन्हें लेकर अपनी गुफा में पहुंचता है, जो बाहर से देखने पर सामान्य सी लग रही थी लेकिन अंदर काफी विशाल भवन निर्माण हो रखा था , जिसे चारों तरफ मशालो की रोशनी से जगमगा रखा था , विरूनाभ के अंदर पहुंचते ही उसकी पत्नी ने उनको बड़े आदर से स्वागत किया और फिर उनके सामने कुछ फल वगैरह रखें , जिन्हें खाने के बाद विरूनाभ ने सबको एक उचित स्थान पर उनके रात में सोने का इंतजाम किया और खुद अपने कमरे में चला गया....
रात काफी गहरा चुकी थी , चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था केवल जंगल की तरफ से भेडि़यों और उल्लूओ की आवाजें गूंज रही थी , वहीं गामाक्ष अपने बिस्तर से उठकर देखता है कि दोनों सो चुके हैं इसलिए वो चुपचाप वहां से बाहर निकल आता है.....
बाहर आते ही उसकी नज़र सामने के नजारे पर थी जिसे देखकर वो काफी हैरान  हो चुका था.....
 
..............to be continued........