The Risky Love - 11 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 11

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The Risky Love - 11

तामसिक क्रिया की तैयारी...

अब आगे.............

गामाक्ष रात के अंधेरे में मंदिर के तहखाने वाले कमरे से वो किताब चुरा रहा था , जिसे देखकर आदिराज चौंकते हुए कहते हैं......" इस गामक्ष ने पैशाची विद्या की किताब क्यूं चुराई....?...."
आदिराज को विहल देखकर अमोघनाथ उन्हें करते हुए कहता है......" आदिराज जी..! आप शांत हो जाइए नहीं तो आप अपनी शक्तियों पर से नियंत्रण खो देंगे...."
" अमोघनाथ मेरी शक्तियों की परवाह नहीं मुझे , , इस गामाक्ष ने आधी रात को ये चोरी क्यूं की...?...कहीं ये भी तो पैशाची शक्तियों को तो प्राप्त नहीं करना चाहता....?..." 
" आदिराज जी ! मैंने आपसे पहले ही कहा था , मुझे इस गामक्ष की हरकतें सही नहीं लगती , , आप पहले पूरी घटना देख लिजिए...."
अमोघनाथ के कहने पर आदिराज गामाक्ष के किताब चोरी  के बाद की घटना देखते हैं....
गामक्ष उस किताब को लेकर एक पुराने किले के खंडहर में पहुंचकर उसको पढ़ते हुए , क्रिया करने लगता है , , एक साल के अंतराल पर वो उस पैशाची क्रिया में सफल होने लगा था , , जिससे वो एक बार फिर से मंदिर के तहखाने वाले कमरे में जाकर ,  उस घेरे में से उस बेताल की आत्मा कैद वाली शीशी ले जाता है , , !
जिसे देखकर आदिराज की आंखें गुस्से से लाल हो जाती है और उसे खत्म करने के लिए उठने लगते हैं तभी अमोघनाथ उन्हें समझाता है पहले आगे तो देख इस गामाक्ष ने और क्या किया है....
आदिराज के गुस्से की वजह से उनकी प्राकट्य शक्ति धुंधली हो जाती है जिससे वो बीच के दृश्य को समझ नहीं पाए थे और सीधा उसके आगे की घटना का पता चलता है , जिसमें वो हर मावस को दो कुंवारी कन्या की रूह बलि से प्रेतराज को उपहार में सौंपने लगा था जिससे हर महीने उसकी शक्ति में वृद्धि होने लगी थी , , और इसी पैशाची शक्तियों के कारण वो किला अदृश्य हो चुका था , , 
आदिराज अपने गुस्से की वजह से आगे की घटनाएं से बाहर निकल आते हैं , , अब आदिराज ने बिना देर किए उस यज्ञ कुंड को जला दिया था , जिससे वो यज्ञ करने के लिए बैठ जाते हैं और उसमें अपने मंत्रों की आहूति देने लगते हैं , , अचानक इस विधि को देखकर अमोघनाथ भी चुपचाप उनके सामने बैठ जाता हैं , , 
यज्ञ की अग्नि धीरे धीरे पीले रंग से होकर लाल रंग में बदल जाती हैं , जिसे देखकर आदिराज काफी ज्यादा खुश दिखने लगते हैं , अब उस आग लपटों में से एक आकृति उभरने लगती है , जो धीरे धीरे किसी बड़े से इंसान के चेहरे में बदल जाती हैं  , , 
उस आकृति को देखकर अमोघनाथ काफी हैरान था लेकिन आदिराज तुरंत हाथ जोड़कर उससे पूछते हैं...." हे ! यक्षसे .... हमारा पूरा गांव एक बड़े संकट में है , मैं उस पैशाची शक्ति प्राप्त करने वाली किताब की रक्षा नहीं कर पाया और वो किताब एक ग़लत मनुष्य के हाथ लग गई , , उसकी पैशाची शक्तियों को खत्म करने के लिए कोई उपाय बताइए...." 
यक्षसे कहते हैं.." आदिराज , वो शक्तियां तुम्हारे सामर्थ्य से बाहर है , उसकी शक्तियां कम हो सकती है वो भी तुम्हारे एक अनुष्ठान से जोकि वो क्रिया पूर्णतः तामसिक है , , इसलिए तुम उस क्रिया को इस क्षेत्र से बाहर ही करना , अन्यथा यहां की सकारात्मक शक्तियां और वो नकारात्मक शक्तियां आपसी विद्रोह से एक भयानक रूप ले सकती है....."
" आपके बताए अनुसार ही हम उस क्रिया को इस पवित्र क्षेत्र से बाहर करेंगे आप बताइए..." 
यक्षसे आगे बताते हैं....." मैं तुम्हें वो क्रिया बता सकता हूं किंतु..." यक्षसे कहते हुए रूक जाते हैं जिससे आदिराज उनके किंतु का कारण पूछते हैं...." किंतु क्या यक्षेस ...?...."
यक्षेस थोड़ा हिचकिचाते हुए कहते हैं....." किंतु इस क्रिया के दौरान तुम्हारी मृत्यु भी हो सकती है क्योंकि इस क्रिया में तुम्हारे रक्त की आवश्यकता भी होगी..."
यक्षसे की बात सुनकर अमोघनाथ घबरा जाता है लेकिन आदिराज बिना डरे कहते हैं...." इस बात का अनुमान मुझे बरसों पहले ही हो चुका था , आप केवल मुझे इसकी विधि और सामाग्री बता दीजिए , बाकी मेरे अकेले के बलिदान से पूरी दुनिया बच सकती है मुझे कुछ नहीं चाहिए...." 
अमोघनाथ  दुःखी मन से कहता है...." आदिराज जी , आप ऐसा मत किजिए...."
आदिराज उसे हाथ के इशारे से चुप रहने के लिए कहते हैं और यक्षसे आदिराज की निडरता देखकर मुस्कुराते हुए कहते हैं...." आदिराज , तुम्हारे इसी परोपकारी स्वभाव के कारण तुमने हर दैव प्रसन्न किया है इसलिए हम तुम्हें ये वरदान देंगे  , तुम्हारी बेटी जोकि वनदेवी का रुप है आने वाली नीलमावस पर उस पैशाची पुरुष का अंत कर सकती हैं किंतु उसे जबतक के लिए इस प्रदेश से दूर रखना होगा , तुम्हारा अनुष्ठान उसे कमजोर बना देगा ख़त्म नहीं कर सकता...."
" जैसा आप कहेंगे वैसा ही होगा..." 
यक्षसे आदिराज को अनुष्ठान की सामग्री बताकर कहते...." ये क्रिया तुम्हें आधी रात के समय ही करन  है , वो अपने परिवार को अपने साथ रखकर ताकि तुम्हारी क्रिया के दौरान उन्हें कोई क्षति न पहुंचे  और हां आखिरी की विधि में तुम अमोघनाथ की बेटी के हाथ पूरी करना ताकि उसकी आंतरिक शक्ति से जो उस कन्या का निर्माण होगा वो ही उसे अस्तित्व विहीन कर सकती हैं... , उसे ही तुम्हें उस बलि स्थान तक पहुंचाना होगा...."
आदिराज हां में सिर हिला देते हैं और यक्षसे उसी अग्नि कुंड में चले जाते हैं , उनके जाने के बाद यज्ञ की अग्नि समाप्त हो जाती है.......
अब आदिराज अमोघनाथ के साथ मिलकर दिन रात पांच दिनों अंदर एक एक करके जंगलों में से सारी तामसिक क्रिया की सामग्री इक्ट्ठा कर लेते हैं....
आदिराज अपनी पत्नी और दोनों बच्चों के साथ उस अनुष्ठान के स्थल पर पहुंच जाते हैं , अमोघनाथ भी अपनी बेटी चेताक्क्षी के साथ वहां पहुंच जाता है .....
आदिराज अब उस खाली भूमि के बीच में जाकर एक सियार की खाल बिछाकर उसपर नवजात शिशु के मृत शरीर की कंकाली खोपड़ी रख देते हैं....फिर उसके चारों तरफ से उस भूमि को रोली में मिले अक्षत से लकीरें बनाने लगते हैं जिससे किसी भी अनचाही नकारात्मक शक्ति का उस घेरे में प्रवेश न हो सके.....
घेरा पूरा करने के बाद आदिराज अपने परिवार को सुरक्षा मंत्र से एक अलग घेरे में बैठा देते हैं और खुद अमोघनाथ और उसकी बेटी के साथ उस घेरे में पहुंच जाते हैं....... उनके घेरे में प्रवेश करते ही जोर से हवाएं चलने लगती है......
 
.….............to be continued..........