Chhaya - Bhram ya Jaal - 5 in Hindi Horror Stories by Meenakshi Mini books and stories PDF | छाया भ्रम या जाल - भाग 5

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छाया भ्रम या जाल - भाग 5

भाग 5
अगले कुछ दिन हर किसी के लिए भारी थे. डर और बेचैनी ने उनके रोज़मर्रा के जीवन पर हावी होना शुरू कर दिया था. हर छोटी सी बात उन्हें किसी अदृश्य, भयावह उपस्थिति का एहसास कराती थी. उन्होंने विवेक के सुझाव के अनुसार अपनी-अपनी डायरियों में अजीबोगरीब घटनाओं को नोट करना शुरू कर दिया था. हर शाम, वे एक-दूसरे से वीडियो कॉल पर जुड़ते और अपनी ऑब्ज़र्वेशंस साझा करते, उनके चेहरों पर चिंता और थकान साफ झलक रही थी.
छाया के लिए यह एक अजीब अनुभव था. उसे अपने अपार्टमेंट में हर छोटी चीज़ पर शक होने लगा था. कभी उसे लगता जैसे कोई उसकी पीठ पीछे खड़ा है, कभी चीज़ों की हल्की खड़कने की आवाज़ आती, जो हवा से ज़्यादा ठोस लगती थी. उसने अपनी डायरी में लिखा, "आज सुबह, मेरे दरवाज़े का हैंडल अपने आप थोड़ा सा घुमा. मैंने सोचा हवा होगी, पर खिड़कियां बंद थीं और मौसम शांत था." इस घटना ने उसके मन में एक गहरा डर बिठा दिया था – क्या कोई अदृश्य चीज़ उसके घर में घुसपैठ कर रही थी, या यह केवल उसकी कल्पना थी जो अब हद से ज़्यादा बढ़ गई थी? उसे अब हर परछाई में एक खतरा नज़र आता था.
विवेक अपनी डायरी में तकनीकी गड़बड़ियों को नोट कर रहा था. "आज मेरे स्मार्टवॉच का टाइम ज़ोन अपने आप बदल गया. फिर ठीक हो गया. जैसे कोई मेरे डिवाइस के कंट्रोल में हेरफेर कर रहा हो." वह उन अजीब तीन बीप वाले कोड को भी नोट करता रहा, जो कभी-कभी उसके हेडफ़ोन में सुनाई देते थे, बिल्कुल बेतरतीब ढंग से. उसने अपने सिस्टम की हर फ़ाइल को स्कैन किया था, लेकिन कोई वायरस या हैक का निशान नहीं था. यह डिजिटल घुसपैठ इतनी सहज और रहस्यमयी थी कि उसे अपनी तकनीकी विशेषज्ञता पर भी शक होने लगा था.
श्रीमती शर्मा की डायरी में घर की व्यवस्थित चीज़ों के साथ-साथ एक और अजीब चीज़ का ज़िक्र था. "रात में, मुझे कभी-कभी बेसमेंट से आती हुई धीमी, भयानक फुसफुसाहट सुनाई देती है. जैसे कई आवाज़ें एक साथ कुछ बोल रही हों, लेकिन समझ नहीं आता क्या. यह बस एक डरावनी भावना है." उनकी आवाज़ में हमेशा एक अजीब सा डर रहता था. वह अक्सर अपनी बालकनी से नीचे ज़मीन को देखती रहती थीं, जैसे उसमें कोई गहरा राज़ छिपा हो, जिसकी आहट उन्हें महसूस होती थी.
रिया की डायरी डिजिटल हमलों से भरी थी. "आज मेरे ईमेल से मेरे कॉलेज ग्रुप को एक अजीब सा मैसेज चला गया, जिसमें सिर्फ़ कुछ बेतरतीब अक्षर थे. मैंने नहीं भेजा था!" उसने बताया. "और मेरे फ़ोन पर कुछ अनजान नंबरों से मिस्ड कॉल आ रहे हैं, जिन पर वापस कॉल करने पर अजीब सी स्टैटिक आवाज़ आती है – जैसे कोई बहुत दूर से साँस ले रहा हो." रिया को अब अपने ऑनलाइन दोस्तों से बात करने में भी डर लगता था, उसे लगता था कि कोई उसकी डिजिटल पहचान को चुराकर उसका इस्तेमाल कर रहा है, जिससे उसके असली दोस्त भी उससे दूर होते जा रहे थे.
जैसे-जैसे वे अपनी ऑब्ज़र्वेशंस साझा कर रहे थे, विवेक को एक पैटर्न नज़र आया. "देखो, हम सबके साथ जो हो रहा है, वह सिर्फ़ हमारे घरों तक सीमित नहीं है," विवेक ने अपनी स्क्रीन पर कुछ डेटा दिखाते हुए कहा. "छाया के दरवाज़े का हैंडल, मेरे गैजेट्स, रिया के डिजिटल अकाउंट्स... यह सब एक पैटर्न फॉलो करता है. यह 'अव्यवस्था को व्यवस्थित करने' या 'गुपचुप घुसपैठ' का ही एक बड़ा रूप है. और श्रीमती शर्मा की फुसफुसाहट... वह भी इसी का हिस्सा है."
"पैटर्न?" छाया ने पूछा, उसकी आवाज़ में उत्सुकता और डर का मिश्रण था. "कौन सा पैटर्न?"
"यह पैटर्न हमारे व्यक्तिगत स्पेस और डिजिटल दुनिया, दोनों पर एक ही समय में हमला करता है," विवेक ने समझाया. "यह हमें असुरक्षित और अकेला महसूस कराता है. और यह हमें भ्रमित भी करता है."
तभी रिया ने कहा, "लेकिन मुझे एक और चीज़ भी अजीब लगी. मेरे सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट्स पर पुरानी तस्वीरें हैं, जिनमें लोग हमारे अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स के आस-पास खड़े हैं, लेकिन वे तस्वीरें बहुत पुरानी लगती हैं... जैसे वे तब की हैं जब यह बिल्डिंग बनी भी नहीं थी. वे एक वीरान, ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर खड़े हैं, जो अब हमारी बिल्डिंग वाली जगह लगती है. उन तस्वीरों में लोग अजीब से दिख रहे हैं, जैसे किसी दर्द या डर में हों, और उनके चेहरे धुंधले हैं."
यह सुनकर सब चौंक गए. यह तो और भी अजीब था. अतीत की तस्वीरें?
श्रीमती शर्मा की आँखों में डर और बढ़ गया. "हाँ... मुझे भी कुछ ऐसा ही याद आ रहा है," उन्होंने धीमी, काँपती आवाज़ में कहा. "पुरानी बातें... इस ज़मीन से जुड़ी हुई. कुछ बहुत बुरा हुआ था यहाँ, बहुत-बहुत साल पहले. मुझे बस इतना याद है कि इस जगह से दूर रहने को कहा जाता था. मेरे बड़े-बुज़ुर्ग कहते थे कि यहाँ नीचे कुछ बुरा सोया हुआ है, जो कभी-कभी जाग जाता है. मुझे जब भी इस जगह आती थी, मुझे एक अजीब सी खिंचाव महसूस होता था, जैसे ज़मीन के नीचे कुछ खींच रहा हो."
सब एक-दूसरे को देखने लगे. 'इस ज़मीन से जुड़ी बातें?' 'बहुत बुरा हुआ था?' 'नीचे कुछ बुरा सोया हुआ है?' यह विचार बेहद परेशान करने वाला था. क्या यह सिर्फ़ एक प्रेत बाधित बिल्डिंग नहीं थी, बल्कि ज़मीन खुद ही कुछ भयावह राज़ छुपा रही थी? उनके सामने अब एक अज्ञात, प्राचीन खतरा था जिसकी जड़ें इतिहास में गहरी थीं.
विवेक ने कहा, "हमें बेसमेंट में जाना होगा. मुझे लगता है कि यह सब उस 'केंद्रीय कंट्रोल रूम' या 'सेंट्रल एक्सेस पॉइंट' से जुड़ा है जिसके बारे में प्लान में ज़िक्र है. शायद वहीं से इस ज़मीन की ऊर्जा को नियंत्रित किया जा रहा है, या वहीं इसका सबसे गहरा प्रभाव है."
"बेसमेंट?" श्रीमती शर्मा डर से काँप गईं. "नहीं! वहाँ मत जाओ. वह जगह... वह ज़मीन का सबसे गहरा घाव है. वहाँ सिर्फ़ अँधेरा है और चीखें. मैंने हमेशा महसूस किया है कि उस जगह के नीचे कुछ दबा हुआ है, जो कभी-कभी ऊपर आता है. कोई जीवित आदमी वहाँ से सुरक्षित नहीं लौटेगा." उनका चेहरा डर से पीला पड़ गया था, जैसे उन्होंने अतीत में कुछ ऐसा देखा हो जिसकी याद मात्र से रूह काँप जाए.
छाया को भी बेसमेंट का विचार डरावना लगा, लेकिन एक अजीब सी दृढ़ता उसके अंदर आ गई थी. उसे पता था कि भागने से कोई फायदा नहीं होगा. "अगर हमें इसे रोकना है, तो हमें वहीं जाना होगा जहाँ से यह सब शुरू हुआ. हमें इस रहस्य का सामना करना होगा. अगर हम नहीं गए, तो यह हमें यहीं पर अंदर से खत्म कर देगा."
अगले दिन, उन्होंने बेसमेंट में जाने की योजना बनाई. विवेक के पास बिल्डिंग के कुछ पुराने मेंटेनेंस प्लान थे, जिनसे उसे बेसमेंट का एक अंदाज़ा था. वे जानते थे कि यह एक खतरनाक कदम था, लेकिन उन्हें लगा कि यही एकमात्र रास्ता है. रात के अँधेरे में, वे टॉर्च और अपने डर को साथ लेकर, उस जगह की ओर बढ़े जहाँ से उनकी दुनिया का यह दुःस्वप्न शुरू हुआ था. हर कदम पर उन्हें लग रहा था कि वे किसी अदृश्य खाई की ओर बढ़ रहे हैं. उन्हें नहीं पता था कि वहाँ उनका सामना किस भयानक सच से होने वाला था, या क्या वे कभी वापस आ पाएंगे. लेकिन एक बात तय थी - यह लड़ाई सिर्फ़ उनकी जान बचाने की नहीं थी, बल्कि उनकी  और दुनिया की वास्तविकता को बचाने की थी.

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