Chapter 4: चुप रहने की मजबूरी
क्लास का लास्ट पीरियड था। लड़कों का झुंड एक ही बेंच पर बैठा था — वैसे ही जैसे हर दिन बैठते थे। हँसी-मज़ाक, आवाज़ें, कभी एक-दूसरे को चिढ़ाना, तो कभी टीचर की नकल करना। पर इस शोर के पीछे कुछ चेहरे थे जो हर रोज़ चुप रहते थे। ना कोई शिकायत, ना ही कोई सवाल। वो सिर्फ "हां में सिर हिलाने वाले लड़के थे।"
कहानी उन्हीं चुप रहने वालों की है…
एक लड़का – नाम था "अंशु"। चेहरे पर हँसी, लेकिन आँखों में नींद की कमी। उसकी आंखें बता रही थीं कि कई रातों से चैन से सोया नहीं है।
"क्यों रे भाई, कल देर तक गेम खेला क्या?" – मनीष ने पूछा।
अंशु ने हँसते हुए कहा, "नहीं यार... बस ऐसे ही नींद नहीं आई।"
पर किसी ने नहीं पूछा "क्यों नहीं आई?"
क्योंकि लड़कों से ये सवाल नहीं पूछे जाते।
उनसे उम्मीद की जाती है कि वो "strong" रहें, "mard" बनें, "रोए नहीं, बोले नहीं, बस झेले..."
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उस रात की बात…
अंशु अपने कमरे में लेटा था। मोबाइल की स्क्रीन की रोशनी में उसकी आँखें जल रही थीं, लेकिन दिमाग में सवालों की भीड़ थी।
पापा को खुश कैसे करूँ?
मम्मी को दवाई के पैसे कैसे दूँ?
छोटे भाई की फीस भरने के लिए कहां से लाऊँ?
कोई लड़की इन सवालों में नहीं थी।
कोई मोहब्बत नहीं, कोई फ़्लर्ट नहीं।
बस जिम्मेदारियाँ थीं — उम्र से ज्यादा बड़ी, हालात से ज्यादा भारी।
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लड़कों की ज़िंदगी में ‘Option’ नहीं होता…
सुबह उठकर उसे मज़दूरी पर जाना था। कॉलेज में हँसना था, सबको गले लगाना था, मज़ाक उड़वाना था, और फिर शाम को लौटकर दुकान पर बैठना था।
अंशु जैसे लड़कों की ज़िंदगी में कोई ड्रामा नहीं होता।
उनके पास सपनों की लिस्ट होती है, लेकिन समय नहीं।
उनके पास गाने होते हैं, लेकिन सुनने की फुर्सत नहीं।
वो बस चलते हैं… बिना शिकायत, बिना रुकावट…
क्योंकि लड़कों को रोने की इजाजत नहीं होती।
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उस दिन कुछ टूट गया…
एक दिन कॉलेज में रिजल्ट आया। अंशु फेल हो गया।
सबने मज़ाक उड़ाया —
"अरे लौंडा फेल हो गया… अब तो बाप की दुकान ही संभाल!"
किसी ने नहीं पूछा कि "पढ़ा क्यों नहीं?"
वो कैसे बताता कि
रात भर दुकान पर बैठकर हिसाब करता था।
कि उसके पास किताबें नहीं थीं।
कि उसने खुद की पढ़ाई छोड़ दी थी ताकि छोटे भाई की स्कूल की फीस भर सके।
उस दिन वो बहुत हँसा,
बहुत ज़ोर से…
क्योंकि रोने की जगह नहीं थी।
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सिर्फ अंशु ही क्यों?
मोहित भी वहीं बैठा था – स्मार्ट, हँसमुख, स्टाइलिश। लेकिन उसके स्टाइल के पीछे एक छुपी कहानी थी।
उसकी माँ कैंसर से जूझ रही थी।
घर की हालत खस्ता थी।
लेकिन इंस्टा पर सब कहते, "Bro तू तो luxury में जी रहा है।"
क्योंकि उसे अपने दर्द की तस्वीरें पोस्ट करनी नहीं आती थीं।
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लड़के बस हँसते रहते हैं…
जब माँ बीमार हो, लड़का कहता है – “मैं संभाल लूंगा।”
जब बहन की शादी में पैसे ना हों, लड़का कहता है – “मेरी पढ़ाई बाद में…”
जब दिल टूटे, लड़का कहता है – “चल कोई नहीं यार…”
लेकिन भीतर एक कोना हमेशा अधूरा रह जाता है।
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एक और लड़का था – रवि
उसने प्यार किया था – सच्चा, बेमिसाल। लड़की ने छोड़ दिया। वजह?
“तुम financially stable नहीं हो…”
वो चुप रहा।
कोई लड़का इस पर आंसू नहीं बहाता।
बस एक सिगरेट और एक लंबी ख़ामोशी – यही उसका जवाब था।
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समाज का ताना – ‘लड़कों के पास तो आज़ादी होती है!’
क्या सच में?
लड़का अगर Emotional हो – "ये क्या लड़की जैसा रो रहा है?"
लड़का अगर Expressive हो – "Attention seeker!"
लड़का अगर शांत हो – "Attitude दिखाता है..."
मतलब लड़का कुछ भी करे, गलत ही कहलाता है।
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रातों के राजा – लड़के
कितनी बार लड़के रात को अकेले बैठे सोचते हैं —
"काश कोई होता जो पूछता – तू ठीक है?"
पर किसी को फर्क नहीं पड़ता…
क्योंकि लड़कों से उम्मीद की जाती है कि वो खुद ही strong बने रहें,
अपने जख्म खुद सिलें,
और दूसरों को हँसाने की मशीन बनें।
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जो दिल से टूटता है, वो चुप होता है…
अंशु अब कॉलेज नहीं आता।
मोहित अब इंस्टा पर फोटो नहीं डालता।
रवि अब रिश्तों से डरता है।
और बाकी लड़के अब भी हँस रहे हैं।
क्योंकि हँसी ही उनका कवच है।
क्योंकि अगर वो रोने लगे तो पूरी दुनिया बिखर जाएगी…
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और अंत में…
इस दुनिया को लगता है लड़के Strong होते हैं,
पर सच्चाई ये है कि वो सबसे ज़्यादा अकेले होते हैं।
उनकी जिंदगी की किताब में किसी ने दर्द के पन्ने नहीं पढ़े,