Chapter 8: डिप्रेशन, अकेलापन और आत्महत्या – लड़कों की मानसिक स्वास्थ्य की अनकही कहानी
"मर्द रोते नहीं..."
"तू लड़का है, थोड़ा तो मजबूत बन..."
"अरे डिप्रेशन-विप्रेशन लड़कियों को होता है, तू तो लड़का है!"
समाज के यही तीन वाक्य लड़कों की मानसिक सेहत को सबसे गहरी चोट देते हैं — बिना खून बहाए, बिना चीख के, एक चुप्पी में डुबोते हुए।
एक मुस्कान के पीछे छिपा तूफान
वो लड़का जो हँस रहा है, जो सबको खुश करता है, जिसकी स्टोरी पर सबसे ज़्यादा हँसी वाले इमोजी आते हैं — कभी उसके डायलॉग के पीछे छिपी खामोशी को सुना है?
शायद नहीं... क्योंकि उसने कभी कहा ही नहीं।
लड़कों को सिखाया जाता है, "कमजोरी मत दिखाना", लेकिन कोई ये नहीं सिखाता कि कमजोरी को कैसे सहना है।
हर रोज़ एक अकेली रात, हर दिन भीड़ में अकेलापन, हर चैट में "seen" और हर कॉल में "busy"... धीरे-धीरे इंसान अंदर से खाली होता जाता है।
अकेलापन – जब दोस्त बहुत होते हैं, पर दिल सुनसान होता है
लड़कों का अकेलापन सबसे खतरनाक होता है — वो खुलकर रो नहीं सकते, खुलकर बात नहीं कर सकते, और जो थोड़ा बहुत बोलने की कोशिश करें, तो उन्हें जवाब मिलता है –
"दिमाग मत खराब कर यार, तू तो मज़ाकिया है!"
रात के 3 बजे, जब पूरी दुनिया सो रही होती है, वो लड़का अपनी खामोश दीवारों से बात कर रहा होता है।
उसकी आँखों के नीचे काले घेरे सिर्फ नींद की कमी नहीं, वो दर्द की कहानी हैं — जो किसी ने सुनी ही नहीं।
मानसिक स्वास्थ्य = लड़कियों का मुद्दा? लड़कों का नहीं?
कई घरों में आज भी लड़कों की उदासी को "नखरा" समझा जाता है।
"क्या परेशानी है तुझे? सब तो अच्छा है!"
हां, बाहर से सब अच्छा है – लेकिन अंदर?
जो लड़का ऑफिस में हँस रहा है, कॉलेज में सबसे मिल रहा है, शायद उसी के कमरे में पड़ी एक रेजर ब्लेड, एक छत की कुंडी, या एक नींद की गोली उसकी सबसे करीबी दोस्त बन चुकी होती है।
आत्महत्या – जब कोई कहता है, 'अब और नहीं सहा जाता'
हर साल हजारों लड़के चुपचाप दुनिया छोड़ देते हैं — बिना शोर के, बिना किसी नोट के।
क्यों?
क्योंकि जब उन्होंने मदद मांगी, तो उन्हें मज़ाक बना दिया गया।
जब उन्होंने कहा, "मैं ठीक नहीं हूँ,"
तो उन्हें जवाब मिला – "सब ठीक हो जाएगा।"
पर कुछ 'ठीक' नहीं हुआ... और वो हमेशा के लिए खामोश हो गया।
परिवर्तन कहाँ से शुरू हो?
हमें समझना होगा –
लड़कों को भी सुनने वाला चाहिए।
उन्हें भी रोने का हक चाहिए।
उन्हें भी "ठीक न होने" की आज़ादी चाहिए।
मानसिक स्वास्थ्य कोई जेंडर का मुद्दा नहीं, ये इंसान की ज़रूरत है।
अगर कोई लड़का कहे – "मैं अकेला हूँ..." तो उसे गले लगा लो।
उसके 'ठीक हूँ' के पीछे क्या छिपा है, उसकी आँखों में पढ़ो।
और अगर आप खुद वो लड़का हैं — जो अंदर से टूट चुके हैं —
तो ये याद रखो...
> "तुम्हारी जान की कीमत किसी से भी कम नहीं है, और तुम्हारी आवाज़ सुनने वाला कोई न कोई हमेशा रहता है — बस एक बार, बोलकर तो देखो।"
तुम्हारी जान की कीमत किसी से भी कम नहीं है, और तुम्हारी आवाज़ सुनने वाला कोई न कोई हमेशा रहता है — बस एक बार, बोलकर तो देखो।"