📖 अध्याय 1: बचपन का बोझ
(आयुष की कहानी)
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"लड़कों को बचपन में ही मर्द बना दिया जाता है, जबकि वो भी बस एक बच्चा होता है..."
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🌧️ प्रस्तावना (Emotional Opening)
कितनी अजीब बात है ना...
बचपन जहाँ खेल और खिलौनों का होना चाहिए,
वहाँ कुछ बच्चों के हिस्से सिर्फ ताने, ज़िम्मेदारियाँ और रोने की मनाही आती है।
क्यों?
क्योंकि वो "लड़का" है।
लड़का यानी वो, जिसे बचपन में भी यह कह दिया जाता है—
"मर्द बन, रोता क्यों है?"
"तू क्या लड़की है?"
"तुझे तो परिवार संभालना है, अब से ही सीख!"
लेकिन क्या कभी किसी ने उससे पूछा कि,
"क्या वो तैयार है इतना कुछ सहने के लिए?"
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🧒 आयुष की सच्ची सी परछाई — एक कहानी
आयुष सिर्फ 9 साल का था।
एक मामूली शहर के एक तंग से घर में पलता हुआ लड़का।
उसकी दुनिया बस इतनी सी थी: स्कूल, माँ की गोद और गर्मियों में खेलने की छूट।
लेकिन एक दिन सब बदल गया...
उसके पापा की अचानक हार्ट अटैक से मौत हो गई।
अब घर में बस माँ, आयुष और एक छोटी बहन बची थी।
माँ टूट चुकी थी — और उसके साथ आयुष भी।
लेकिन माँ ने रोने की इजाज़त नहीं दी।
उसने आयुष को गले नहीं लगाया, उल्टा कहा —
> "अब तू ही घर का मर्द है, तुझे ही सब संभालना है।"
9 साल का वो बच्चा जो खुद आधा स्कूल का होमवर्क माँ की मदद से करता था,
उसे अब बर्तन धोना, बहन को संभालना, दूध लाना और पढ़ाई करना — सब एकसाथ करना था।
खेलना?
रोना?
सपने देखना?
वो सब अब एक कमज़ोरी कहलाने लगा।
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🔥 "मर्द बन, बेटा!" — एक ज़हर जो धीरे-धीरे चढ़ता गया
हर बार जब वो गलती करता, माँ चिल्लाती —
> "अगर तू ही टूट गया तो हम क्या करेंगे?"
"तू लड़का है, कमजोर मत बन!"
स्कूल में दोस्त उसका मज़ाक उड़ाते थे —
> "तू तो झाड़ू लगाता है क्या!"
"औरतों जैसे काम करता है!"
धीरे-धीरे आयुष बोलना भूल गया।
हँसना छोड़ दिया।
और एक दिन…
उसने खुद से कहना शुरू किया —
> "शायद मैं वाकई कुछ भी नहीं हूँ…"
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⚖️ लेकिन क्या गलती उसकी थी?
नहीं!
गलती उसकी नहीं थी।
गलती थी उस समाज की जो लड़कों के लिए संवेदना नहीं रखता।
जब लड़की रोती है, तो उसे गले लगाया जाता है।
जब लड़का रोता है, तो उसे डांटा जाता है।
जब लड़की थकती है, उसे आराम दिया जाता है।
जब लड़का थकता है, उसे कहा जाता है — “कमज़ोर मत बन।”
आयुष को बचपन में ही समझा दिया गया था कि
"Feelings दिखाना = कमजोरी"
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📉 आगे की कहानी… और वो लड़का कहां है आज?
आज आयुष 23 साल का है।
एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता है।
सब कहते हैं — "वाह! क्या लड़का है!"
लेकिन किसी को नहीं पता…
कि हर रात वो बिना आँसू बहाए रोता है।
क्योंकि उसे रोना आता ही नहीं।
उसने 9 साल की उम्र में ही अपने आँसू बंद कर दिए थे।
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🧠 मन की बातें – लड़कों के मन की सच्चाई
क्या आप जानते हैं?
हर 4 में से 3 आत्महत्या करने वाले पुरुष होते हैं।
पुरुषों का डिप्रेशन कभी सामने नहीं आता, क्योंकि वो बोलते ही नहीं।
हर तीसरा पुरुष कभी न कभी भावनात्मक शोषण का शिकार होता है, लेकिन वो मानते नहीं क्योंकि समाज मानेगा नहीं।
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💔 जब लड़का प्यार माँगता है… तो उसे तमाचा मिलता है
आयुष जैसे लाखों लड़के हैं —
जिन्हें बचपन में सिर्फ इतना चाहिए था —
थोड़ी सी मोहब्बत, थोड़ी सी समझ।
पर मिला क्या?
"बाहर जाओ, काम करो!"
"लड़के रोते नहीं हैं!"
"तू ही घर का सहारा है अब!"
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🪞 ये कहानी सिर्फ आयुष की नहीं है… ये हम सब की है
हर उस लड़के की जो आज हँसता हुआ दिखता है,
लेकिन अंदर से टूटा हुआ है।
जो हर दिन बिना बोले सब सहता है।
जो कभी किसी से नहीं कहता —
"मैं थक गया हूँ…"
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🔚 अंतिम शब्द (Chapter का सार)
> "मर्द बनो" — ये कहना आसान है…
पर कभी सोचा है, उस बच्चे पर क्या बीतती है जिसे मर्द बनने के लिए उसका बचपन मारना पड़ता है?
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📌 अगला चैप्टर क्या होगा?
Chapter 2: रोना मना है — “लड़के नहीं रोते” की झूठी सीख