९.
पायल को अब सब कुछ बहुत साफ़-साफ़ समझ आ गया था। जैसे ही मन की उलझनें सुलझीं, उसकी आंखों में एक अलग सी चमक उभर आई थी।
वह हल्के से सिर को खिड़की के कांच से टिकाकर बाहर देखने लगी। सड़क किनारे भागती ज़िंदगी के छोटे-छोटे टुकड़े उसकी आंखों में उतर रहे थे। कहीं कोई दुकानदार अख़बार समेट रहा था, कहीं स्कूली बच्चे टिफ़िन लेकर बस का इंतज़ार कर रहे थे, और कहीं कोई बुज़ुर्ग छड़ी के सहारे धीरे-धीरे चल रहा था।
मन अब भी कुछ सोच रहा था, लेकिन चेहरे पर अब बेचैनी नहीं, एक शांति थी।
कुछ ही देर में बस ऑफिस के स्टॉप पर आकर रुकती है। पायल अपनी बैग संभाल उठ खड़ी हुई। अमिता अब भी अपनी सीट पर बैठी थी।
“मैं यहीं उतर रही हूं,” पायल ने कहा।
“ठीक है, मुझे थोड़ी दूर और जाना है। पहुंच कर कॉल करना।” अमिता ने सिर हिलाया,
पायल मुस्कुराती है, “ज़रूर,” कहकर वह उतर जाती है।
बस धीरे-धीरे आगे बढ़ गई, और पीछे छोड़ गई पायल को,
वह गहरी सांस लेकर ऑफिस की इमारत की तरफ देख अपने कदमों को तेज़ी से आगे बढ़ा देती है। अब कोई उलझन नहीं थी। वो अब खुद से भाग नहीं रही थी।
पायल ऑफिस में अपने केबिन की ओर बढ़ जाती है। रास्ते में कुछ सहकर्मियों से हल्की-सी मुस्कान के साथ सिर हिला कर अभिवादन किया, लेकिन उसकी आंखें और मन दोनों ही आज कहीं गहरे विचारों में उलझे थे। केबिन में बैठते ही उसने खुद को काम में डुबा लिया। जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, कंप्यूटर स्क्रीन पर फाइलें बदलती रहीं, लेकिन उसके ज़ेहन में आज कुछ और ही खिंच रहा था।
शाम ढलने को थी।
कमरे की खिड़की से सुनहरी धूप धीरे-धीरे अंदर आ रही थी, अब वो तेज़ धूप नहीं रही, बल्कि नरम और ठंडी सी लगने लगी थी। जैसे वो भी पायल की बेचैनी को छू कर कुछ सुकून देना चाहती हो।
पायल एक गहरी सांस लेकर अपनी कुर्सी से थोड़ा पीछे हटकर खिड़की की ओर देखती है।
सामने आसमान में सूरज अपनी आखिरी किरणें बिखेर रहा था। वो पल कुछ ऐसा था, न पूरी तरह दिन, न ही पूरी तरह रात।
उस पल में पायल के चेहरे पर हल्की मुस्कान खिल गई थी।
वह
देखती है कि सूरज अपनी जगह से धीरे-धीरे नीचे जा रहा है, लेकिन जाते-जाते भी वो अपने पीछे उजास छोड़ रहा था।
"शायद मैं भी कुछ ऐसा ही कर सकती हूं..." पायल ने मन ही मन सोचा।
जैसे-जैसे सूरज की रौशनी हल्की होती जा रही थी, वैसे-वैसे पायल के भीतर एक अलग ही चमक भर रही थी। वह अपनी डायरी की ओर हाथ बढ़ाती है, जो हमेशा उसकी डेस्क पर एक कोने में रखी रहती थी।
उसमें वह लिखतीं है कि, "कुछ बदलाव बाहर से नहीं आते, उन्हें भीतर से लाना पड़ता है। और शायद अब समय आ गया है।"
उसके चेहरे पर सुकून था, लेकिन आंखों में अब दृढ़ता भी थी।
सूरज अब पूरी तरह ढल चुका था। लेकिन पायल के भीतर एक नई सुबह दस्तक दे चुकी थी।
काम खत्म करके पायल ने एक गहरी सांस ली। दिनभर की भागदौड़, मेल्स, फाइलें, मीटिंग्स, सब जैसे एक पल में पीछे छूट गए थे। वो अपने डेस्क से उठी, बैग उठाया और ऑफिस के गलियारे से होते हुए बाहर निकल आई थी।
बाहर की हवा में हल्की नमी थी, उसके कदम बस स्टॉप की ओर बढ़ गए थे। वही पुरानी, 2 नंबर की बस… जो हर दिन की तरह आज भी वक्त पर आ गई थी। वह एक खाली सीट पर जाकर बैठ, इयरफोन कानों में लगा लेती है।
एकाएक उसके मन में मां की आवाज़ गूंजने लगी थी,
"आज फिर देर हो गई पायल?"
"क्या खाया पूरे दिन?"
"घर आओ तो कुछ ढंग का बना देती हूं..." पायल हल्का मुस्करा देती है। मां की बातें ही थीं जो उसकी हर थकान को मिटा देती थीं।
लेकिन उसे क्या पता था… उस सीट के ठीक पीछे, एक और कहानी उसकी अपनी खामोश नज़रों से बुनी जा रही थी।
अबीर… जो शब्दों में दिल के भाव उतार लेने का जादू जानता था। और पिछले कुछ दिनों से, उसके शब्दों की कहानी में बस एक ही चेहरा था, पायल का।
कोई गलत मंशा नहीं थी उसकी। वो कोई पीछा करने वाला, या ताक-झांक करने वाला इंसान नहीं था। वो तो बस एक कलाकार था… और पायल, उसके किरदार की वो नायिका, जिसकी हर मुस्कान, हर उदासी, हर उलझन उसकी कलम को जान डाल देती थी।
बस में बैठी पायल की खामोश आंखों में वो कुछ तलाश रहा था, कोई बीता हुआ लम्हा, कोई अनकहा सवाल।
और वहीं दूसरी ओर, अपनी जेब से छोटी-सी डायरी निकालकर, अबीर चुपचाप लिख रहा था,
"आज उसकी आंखों में कुछ और गहराई थी। जैसे दिनभर की थकावट भी किसी इंतज़ार में तब्दील हो गई हो। शायद मां की कोई बात याद आ गई हो, या शायद किसी और की..."
अबीर जानता था, ये एकतरफा रिश्ता है। पायल नहीं जानती कि कोई उसकी दुनिया को इस कदर पढ़ने की कोशिश कर रहा है। और यही डर उसे रोज़ एक नई सीमा तक खींच कर ले जाता था।
बस तेज़ गति से चल रही थी। रास्ते पीछे छूट रहे थे… लेकिन अबीर के लिए वक्त वहीं थम गया था, पायल की झपकी लेती पलकों के बीच।
"वैसे आप सभी सोच रहे होंगे कि जब अबीर बस में पायल के साथ चढ़ा ही नहीं था, तो पूरा दिन वो पायल के आसपास कैसे था... और सबसे बड़ी बात, पायल को इसका एहसास भी नहीं हुआ?"
तो चलिए, उस राज़ से भी परदा उठा ही देते हैं...
दरअसल, अबीर ने ये सब पहले से ही प्लान कर रखा था।
उसे मालूम था कि अगर वो सामने रहेगा, तो पायल एक पल को भी चैन से नहीं रह पाएगी। और अबीर फिलहाल उसे तंग नहीं करना चाहता था,
अबीर के कुछ पुराने और गहरे रिश्ते पायल के ऑफिस तक भी जुड़े हुए थे।
पायल के बॉस मिस्टर पाठक, अभिमन्यु जी अबीर के पिता के करीबी दोस्त रह चुके थे। अबीर जब उनके पास पहुंचा, तो उनके लिए उसे पहचानना मुश्किल नहीं था।
धीरे-धीरे बातचीत को घुमाते हुए उसने पायल के ऑफिस, उसके शेड्यूल और डिपार्टमेंट तक की जानकारी ले ली थी, वो भी ऐसे कि मिस्टर पाठक को कुछ अजीब न लगे।
बस स्टॉप पर उसका खड़ा रहना भी एक प्लान का हिस्सा था, वो चाहता था कि पायल को लगे कि अबीर अब उसकी जिंदगी से बाहर हो गया है,
पर हकीकत ये थी कि...
अबीर पूरे दिन पायल के आसपास ही था।
कभी किसी कैब में बैठकर ऑफिस बिल्डिंग के सामने खड़ा,कभी किसी कैफ़े के कोने से नज़र रखता हुआ,तो कभी ऑफिस के कैंटीन में पायल की सीट से दूर बैठा हुआ एक अनजान चेहरा बनकर।
पायल को जरा भी अंदाजा नहीं हुआ कि उसकी हर मुस्कान, हर थकान, और हर अनकहा पल, किसी की आंखों में दर्ज हो रहा था।
और जब पायल खिड़की से डूबते सूरज को देख रही थी,
तो कुछ ही दूरी पर, एक दूसरी इमारत की छाया में खड़ा अबीर,
उसे ऐसे देख रहा था मानो ज़िंदगी को देख रहा हो...
थोडी ही देर में राणीप बस स्टॉप आ जाता हे जहा अधिकतर बस ओर टैंपो रुकते है। वहां उतर कर पायल पैडल ही अपने घर की तरफ जाने लगती है। अबीर अब भी उसके पीछे ही था। जबतक पायल घर पहुँच न जाए तब तक अबीर केसे पायल को अकेला छोड़ सकता था।
पायल सड़क पार कर गली की ओर मुड़ जाती है और अबीर उसके पीछे कुछ मीटर की दूरी बनाए, बिल्कुल चुपचाप चल रहा था।
कुछ ही मिनटों में वो दोनों उस कॉलोनी तक पहुंच जाते हैं जहां पायल रहती है। कॉलोनी की एक पुरानी गली के मोड़ पर, एक गुलमोहर के पेड़ की छांव के नीचे, उसका घर था।
पायल घर के मेन गेट के सामने रुकती है। वह अपने बालों को पीछे करते हुए अबीर की तरफ बिना देखे ही कहती हैं कि, "सुबह से साए की तरह घूम रहे हो मेरे पीछे। पर अब तुम घर जा सकते हो।"
अबीर ठिठककर वहीं रुक जाता है।
उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान तैर गई थी, लेकिन आंखों में हैरानी और सवाल थे, "पायल को पता कैसे चला कि मैं पूरे दिन उसके आसपास था?"
पायल बिना मुड़े, अपने घर के भीतर चली गई, दरवाज़ा उसके पीछे धीरे से बंद हो गया था। और अबीर... अबीर उस बंद दरवाज़े को कुछ पल तक देखता रहा। फिर धीरे से बुदबुदाता है, "तो उसे सब पता था..."
वो अपनी जेब में हाथ डालकर घूम गया, पर उसके चेहरे पर एक राहत थी, जैसे किसी ने उसकी मौजूदगी को स्वीकार कर लिया हो।
क्रमशः