७.
सुबह की पहली सुनहरी किरण जैसे ही खिड़की से भीतर आई, उसका हल्का सा स्पर्श पायल के मासूम चेहरे पर पड़ा। नींद की नरम चादर में लिपटी पायल के चेहरे पर वो किरन जैसे किसी चित्रकार की तरह उजास भर गई हो। उसकी मासूमियत, उसकी नर्मी और उस पर पसरी शांति को देखकर कोई भी ठहर सा जाए, और यही तो हो रहा था।
दरवाजे के पास खड़ी सुनीति जी बड़ी ही ममता भरी निगाहों से अपनी बेटी को निहार रही थीं। उनका दिल किसी भंवर की तरह उलझा हुआ था। बहुत कुछ कहना था, पर शब्दों की डोर थामे वह चुपचाप खड़ी रहीं। उनकी उंगलियां खुद-ब-खुद पायल के सिर पर चली गई, जैसे कोई अशब्द आशीर्वाद उसकी आत्मा तक पहुंचा देना चाहती हो। एक लंबी सांस लेकर उन्होंने पलटकर दरवाज़ा बंद किया और ऑफिस के लिए रवाना हो गई बिना कोई शब्द कहे, बिना कोई शिकायत जताए।
कई मिनटों बाद जब पायल की नींद खुली, तो सबसे पहला नाम उसके होंठों से निकला, “मां...”
पर घर में जैसे सन्नाटा उतर आया था। उनकी कोई आहट नहीं थी। पायल को कुछ बेचैनी सी हुई। वह तुरंत उठकर पूरे घर में मां को ढूंढने लगती है, रसोई, आंगन, पूजा घर हर कोना देखा, पर मां कहीं नहीं थीं।
उसकी आंखों में हल्की सी घबराहट तैरने लगी। वह तेज़ी से सीढ़ियां उतरते हुए नीचे आई और आवाज़ दी, “दादी मां!”
दादी मां उसे देखकर धीरे-धीरे चलती हुई पास आई, और पायल ने तुरंत ही सवाल दाग दिया, “दादी मां! मां कहां हैं? मैंने सब जगह देख लिया, कहीं नहीं दिख रही हैं।”
उसकी आवाज़ में घबराहट थी, और आंखों में मां की गैर-मौजूदगी से उपजा खालीपन। पायल का मन अनजाने डर से घिरने लगा था, क्योंकि एक दिन की खामोशी कभी-कभी हज़ार सवाल पैदा कर देती है।
“अरे, वो तो कब की ऑफिस चली गई है,” दादी मां ने नर्म आवाज़ में कहा, और पास के सोफे पर बैठते हुए अपनी थकी टांगों को आराम दिया।
पायल का चेहरा अचानक ही बुझ-सा गया। उसने धीरे से पूछा, “मुझसे मिले बिना ही... क्या मां अब भी नाराज़ है मुझसे?”
दादी मां ने एक गहरी सांस ली और उसके चेहरे की उदासी को देखती हुई बोलीं, “नाराज़ नहीं है बेटा, बस... परेशान है। तुम्हारी कही कुछ बातों ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया है। मां है वो, दिल पर ज़रा भी आंच आए तो ज़ख्म बन जाता है।”
पायल चुप हो गई। उसकी नज़र ज़मीन पर टिकी रही और मन में कई भाव एक साथ घुमड़ने लगे। पछतावा, बेचैनी, और मां को समझ न पाने की कसक। वो कुछ कहना चाहती थी, लेकिन शब्द गले में ही अटक गए।
तभी, सन्नाटे को तोड़ती हुई फोन की रिंग बजती है।
पायल ने चौंक कर फोन उठाया, और दूसरी तरफ़ की बात सुनने के बाद उसका चेहरा एकदम बदल जाता है।
फोन रखकर वह दादी मां की ओर मुड़ी और बोली, “दादी मां, मुझे एक ज़रूरी काम है, मैं जल्दी तैयार हो जाती हूं।”
दादी मां कुछ पूछ पातीं, उससे पहले ही पायल तेज़ क़दमों से बाथरूम की ओर चली गई। उसकी चाल में अब उदासी के साथ एक अजीब-सी बेचैनी भी थी, मानो किसी फ़ैसले ने उसके भीतर तूफ़ान ला दिया हो।
काले रंग की सादगीभरी लेकिन दिलकश कुर्ती और उस पर पहनी गई सफेद पटियाला सलवार में पायल की खूबसूरती एक अलग ही निखार लिए हुए थी। कानों में झूमते छोटे-छोटे झुमके उसकी मासूमियत को और भी निखार रहे थे। माथे की छोटी सी बिंदी और होंठों पर हल्के गुलाबी रंग की रंगत, जैसे उसकी भीगी-भीगी सी खामोशियां भी कुछ कह रही हों। उसकी आंखों में हल्की उदासी थी, पर फिर भी उसके चेहरे पर एक गंभीर ठहराव था।
आज उसकी चाल में जल्दी थी, पर दिल में भारीपन। बिना नाश्ता किए ही वह दादी मां के पास गई, उनके चरणों को छूकर आशीर्वाद लिया और धीमे स्वर में बोली, “दादी मां, मैं चलती हूं... ज़रूरी काम है।”
दादी मां ने उसके माथे पर हाथ रखा, लेकिन पायल की निगाहें दरवाज़े की ओर थीं, कहीं किसी उम्मीद की तलाश में।
घर से निकलते वक्त उसने एक बार मां को फोन किया। उंगलियां कांप रहीं थीं और आंखों में आशा थी कि मां शायद कुछ कहें, एक बार आवाज़ दें... पर फोन की घंटी कुछ सेकंड तक बजी और फिर, ‘कॉल डिस्कनेक्टेड’।
इस एक क्षण ने पायल के भीतर की भावनाओं को झकझोर दिया। उसकी आंखों में कुछ पल के लिए नमी सी तैर गई। होंठों पर आई हल्की मुस्कान फीकी पड़ गई। उसने फोन को बैग में रखा, गहरी सांस ली और खुद को संभालते हुए दरवाज़े से बाहर निकल गई।
उसके कदम भले ही तेज़ हों, पर दिल कहीं मां की एक आवाज़ के लिए आज भी रुकना चाहता था।
लेट होने की झुंझलाहट और ठंड का असर दोनों ने मिलकर पायल की सुबह को और मुश्किल बना दिया था। उसने स्कूटी को स्टार्ट करने की दो-तीन नाकाम कोशिशें कीं, पर हर बार इंजन बस घर्र-घर्र की आवाज़ करके चुप हो जाता। आखिरकार थककर उसने स्कूटी को वापस लॉक किया और तेज़ी से बस स्टॉप की ओर बढ़ गई।
उसके कदम भले ही जल्दी में थे, पर दिल अभी भी हल्का भारी था। सुनीति जी की चुप्पी, उनके फोन काटने की बेरुख़ी यह सब उसके चेहरे की मुस्कान में कहीं गुम हो गया था।
बस स्टॉप पर पहुंचकर पायल ने लंबी सांस ली और खुद को शांत करने की कोशिश की। वह 2 नंबर की बस का इंतजार कर रही थी, पर यह नहीं जानती थी कि उसकी नज़रों से थोड़ी दूरी पर कोई और भी खड़ा है, जो उसी बस का नहीं उसी का इंतजार कर रहा था।
अबीर।
वो एक कोने में खड़ा, जैसे बस नहीं, किसी ख्वाब को आने की राह देख रहा था। और जब उसकी निगाहें पायल पर पड़ीं, तो जैसे वक्त वहीं ठहर गया।
हवा से पायल के खुले बाल उड़कर उसके गालों से टकराते, उसे हल्का परेशान करते, और वह बार-बार उन्हें एक प्यारी अदा से अपने कानों के पीछे सुलझा देती। अबीर की निगाहें बस उसी पर थीं। वो उसकी हर हरकत को ऐसे देख रहा था जैसे कोई कवि अपनी कविता को महसूस करता है। उसकी आंखों में नज़ाकत, मासूमियत और एक गहरा आकर्षण था।
हवा का हल्का झोंका आया और पायल के चेहरे पर फिर से शरारती बालों की लटें बिखर गई। वह हल्का सा परेशान होते हुए, बड़ी नजाकत से उन्हें अपनी उंगलियों से कानों के पीछे करती, और उसी पल उसके चेहरे पर कुछ पल के लिए आई झुंझलाहट एक प्यारी मुस्कान में बदल जाती।
अबीर की नज़रें जैसे उस हर हरकत में डूबती जा रही थीं। उसकी आंखों में वो भाव थे, जो शब्दों में कह पाना मुश्किल था, मोह, आकर्षण या शायद कुछ और गहरा।
अबीर के पास खड़ी रोशनी, उसकी तल्लीनता को कब तक नज़रअंदाज़ करती? वो जलन से तपती निगाहों के साथ अबीर की तरफ हल्के व्यंग्य से मुस्कराकर कहती हैं कि, "बहुत सुंदर है न वो?"
अबीर का ध्यान टूटा, पर आंखें अब भी पायल पर ही थीं। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी, जिसमें सच्चाई भी थी और गहराई भी, "बहुत," उसने बिना उसकी ओर देखे जवाब दिया।
रोशनी कुछ पल खामोश रही, फिर कहती हैं कि, "मैं रोशनी हूं... और आप उन्हें इतनी देर से देख रहे थे, तो बस यूं ही पूछ लिया।"
अबीर ने पहली बार उसकी तरफ देखा और हल्का मुस्कराया,
"हाय, मैं अबीर हूं।"
उनकी बातचीत में औपचारिकता थी, लेकिन पायल की नज़र में कुछ और ही था।
वो दूर खड़ी, बस का इंतज़ार करती हुई, जैसे अचानक दुनिया की सबसे असहज जगह पर खड़ी हो गई हो। उसकी नज़रों ने अबीर और रोशनी को देखा, उनकी मुस्कुराहट, उनकी बातचीत, और अबीर की वह आंखें जो कुछ पल पहले सिर्फ पायल को देख रही थीं... अब किसी और की ओर थीं।
पायल का दिल कसक उठा। उसके मन में एक अजीब सी टीस उठी, और वह मन ही मन बड़बड़ाती है, "सब लड़के एक जैसे ही होते हैं... लड़की देखी नहीं कि बातों में लग जाते हैं।"
उसकी आंखों में हल्की नाराज़गी थी, पर कहीं गहराई में कुछ और भी था, शायद जलन, शायद possessiveness, या शायद ये पहली बार था जब उसने खुद को अबीर के लिए कुछ महसूस करते हुए पाया।
अबीर ने पायल की तिरछी नज़रों को भली-भांति महसूस कर लिया था। उसकी आंखों में जलन, नाराज़गी और एक न समझ आने वाली बेचैनी साफ़ झलक रही थी।
"ओह... तो इसको जलन हो रही है?" अबीर के चेहरे पर शरारती मुस्कान आती है। वह जानबूझकर रोशनी से और पास आकर बात करने की कोशिश करता है। हंस-हंस कर कुछ यूं बातें करने लगा मानो वही उसकी दुनिया हो।
पायल वहीं खड़ी सब देख रही थी। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो चला था। पर फिर भी उसकी आंखें बस अबीर पर ही थीं।
हर पल जैसे खुद को समझा रही थी, “क्या फर्क पड़ता है? मुझे क्या लेना देना?” पर मन मानने को तैयार नहीं था।
तभी कुछ दूरी पर से किसी ने पायल को पुकारा, "पायल!"
वो अमिता थी, हाथ हिलाते हुए दौड़ती आई। अबीर ने भी उस आवाज़ को सुना। उसके होंठों पर हल्की मुस्कान फैल गई।
"ओह! तो मिस मैडोना का नाम पायल है..." अबीर ने रोशनी की ओर देखकर कहा, "वैसे नाम भी उतना ही प्यारा है जितनी वो खुद। नाम बड़ा सूट करता है इन्हें।"
रोशनी हंसते हुए कहती हैं कि, "क्या तुम पागल हो? बिना नाम जाने ही प्यार कर बैठे?"
अबीर ने एक खास अंदाज़ में कंधे उचका कर कहा, "अरे बहेना! हम तो पहली मुलाकात में ही दिल दे बैठे थे। नाम में क्या रखा है, दिल मिलने चाहिए। प्यार तो बस हो जाता है!"
रोशनी ने आंखें घुमाते हुए हंसते हुए कहती हैं कि, "अच्छा जी, बातें तो बड़ी फ़िल्मी करते हो आप!"
अबीर के चेहरे पर शरारती मुस्कान और गहरी हो जाती है, "क्योंकि कहानी भी तो फिल्मी ही बन रही है..."
और दूसरी तरफ, पायल के दिल में कुछ और ही तूफान चल रहा था... दोनों की बातें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। रोशनी किसी तरह अबीर का ध्यान अपनी तरफ बनाए रखने की कोशिश कर रही थी, और अबीर... वो तो बस पायल की हर हरकत पर नज़र गड़ाए हुए था, फिर भी जताया ऐसे जैसे उसकी पूरी दुनिया अभी रोशनी के इर्द-गिर्द ही घूम रही हो।
दूसरी तरफ पायल, जो अमिता से बात तो कर रही थी, पर उसकी आंखें बार-बार अबीर की ओर खिंच जा रही थीं।
अमिता ने उसका ध्यान भटकता हुआ देख ही लिया।
हल्की मुस्कान के साथ वो कहती हैं कि, "तेरा ध्यान कहां है पायल? मैं इधर बात कर रही हूं और तू उधर..."
पायल कुछ कहती हैं कि इतने में 2 नंबर की बस धीरे-धीरे बस स्टॉप पर आकर रुकती है। पायल और अमिता जल्दी से चढ़ने लगीं। बस की सीढ़ियां चढ़ते हुए भी पायल की नजरें उस पर ही थीं... अबीर अब भी रोशनी से बात कर रहा था। पायल का चेहरा और भी ज़्यादा खीझ गया।
"इसमें ऐसा क्या है जो लड़कियां इसके आस-पास मंडराती रहती हैं?" पायल ने मन ही मन कहा और जानबूझकर अबीर की तरफ पीठ घुमाकर खिड़की की तरफ बैठ गई।
अबीर ने देखा कि पायल की आंखों में खामोश शिकायतें थीं...
"ओह... तो मिस झुंझलाहट को जलन हो रही है?"
अबीर मुस्कराया और उसने जानबूझकर बस में चढ़ना टाल दिया।
बस चल पड़ी और पायल अब भी शीशे से बाहर झांक रही थी।
अबीर वहीं खड़ा, बस को जाते हुए देखता रहा, "आज तुम्हारी नज़रें बहुत कुछ कह गई पायल... और मुझे तुमसे यूं खेलना अच्छा लग रहा है।"
बस के भीतर...
पायल मुड़कर एक बार फिर खिड़की से झांकता है, अबीर अब भी वहीं खड़ा था... पर अब उसकी नजरें सीधा उसकी आंखों में थी।
दोनों के बीच एक खामोश सी भाषा ने जन्म लिया था... जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं थी।
क्रमशः