५.
सुनीति जी की बातों ने पायल के दिल को छू लिया था।
वो चुपचाप उनकी गोदी में सिर रखे उनकी ओर देखने लगती है। उसकी आंखों में एक नई समझ और गहरी संवेदना उभर आई थी।
'कैसे मां ने इतने साल... पापा के बिना बिता दिए होंगे?' पायल का मन जैसे खुद से ही सवाल कर रहा था।
'क्या मां को भी किसी की जरूरत नहीं होती? कोई ऐसा... जो उनका दर्द बांट सके, जो उन्हें भी बेफिक्र होकर रोने का, हंसने का मौका दे सके? मैं तो बस उनकी खुशी देखती हूं,
लेकिन उनके दिल के भीतर के अकेलेपन का कभी एहसास ही नहीं किया...'
पायल की नजर सुनीति जी के चेहरे पर ठहर जाती है। उस मासूम, मजबूत चेहरे पर जो हमेशा मुस्कुराता रहता था,
पर अब उसे उस मुस्कान के पीछे छुपा खालीपन साफ दिख रहा था।
पायल के गले में कुछ अटकने लगता है। उसने सुनीति जी का हाथ कसकर थाम लिया, जैसे उन्हें ये एहसास दिलाना चाहती हो कि, "मां, आप अकेली नहीं हैं। मैं हूं ना आपके साथ हमेशा..."
मां-बेटी दोनों कुछ देर वैसे ही चुपचाप बैठे रहे। बोलते तो कुछ भी नहीं थे, लेकिन उस खामोशी में हजारों अनकही बातें बह रही थीं। जैसे उनके दिल एक-दूसरे को बिना शब्दों के सब कह रहे हों।
पायल को कही खोया हुआ देख सुनीति जी ने पायल के चेहरे के आगे हाथ हिलाया। पायल जेसे नींद से जागी हो उस तरह हड़बड़ाते हुए मां से कहती है की, "मां आपने कभी दूसरी शादी क्यू नही करी?" यह सुनते ही एक पल के लिए सुनीति जी खामोश हो गई और हैरानी से पायल को देखने लगी। पायल को भी एहसास होता है की वह क्या कह गई। सुनीति जी कुछ देर वही खामोशी से पायल को देखती रही फिर बिना कुछ कहे अपने रुम मे चली गई। उनको इस तरह जाता हुआ देख पायल की आंखो मे नमी आ जाती है। लेकिन पायल की हिम्मत ही नही हुई की वह सुनीति जी के पास जाकर बात कर सके। उसे अपने आप पर ही गुस्सा आ रहा था।
पायल वही सोफे पर बैठी रह गई, सुनीति जी के अचानक उठकर चले जाने के बाद जैसे पूरा कमरा खाली-खाली लगने लगा था। उसका दिल अजीब सी बेचैनी से भर गया था।
उसके होंठ कांपे, लेकिन आवाज गले में ही अटक गई थी।
वह चाहकर भी उन्हें रोक नहीं सकी।
'मैंने ऐसा सवाल क्यों कर दिया...? क्या जरूरत थी मां के जख्म कुरेदने की...? उन्होंने तो कभी अपनी तकलीफ का बोझ मुझ पर नहीं डाला, फिर मैंने क्यों उनके दिल को दुखाया?'
पायल की आंखें भर आईं थीं। उसने सिर घुटनों पर टिका लिया और खुद को कसकर पकड़ लिया, जैसे खुद से ही माफी मांग रही हो। उसके मन में पछतावे का एक तूफान उठ रहा था।
कमरे में एक अजीब सी चुप्पी फैल गई थी, जो पायल के दिल में और भी टीस पैदा कर रही थी। उसकी नजर बार-बार उस कमरे की ओर जा रही थी, जहां सुनीति जी चुपचाप चली गई थीं।
'काश मां को समझा पाती कि मेरा सवाल किसी गलत इरादे से नहीं था... मैं तो बस उनके अकेलेपन को महसूस करके कुछ कहना चाहती थी...' पायल ने धीरे से सोचते हुए कहती हैं,
'मुझे मां से माफी मांगनी होगी, लेकिन कैसे...? क्या वह मेरी बात समझ पाएंगी?'
काफी देर से दादी मां चुपचाप एक कोने में बैठी सब कुछ देख और सुन रही थीं। उनकी अनुभवी आंखें पायल की बेचैनी और आंखों में छुपे पछतावे को भलीभांति पढ़ चुकी थीं। जब उन्होंने देखा कि पायल खुद से ही हारती जा रही है, तो वे धीमे कदमों से उसके पास आती है।
पायल अपने भीतर सिमटी हुई थी। दादी मां ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। उनके स्पर्श में एक ऐसा सुकून था,
जिसने पायल के भीतर उठते तूफान को थोड़ी राहत दी।
हल्की मुस्कान के साथ दादी मां ने कहा, "मेरी लाडो! उदास मत हो। तुने कुछ गलत नहीं कहा, पर कहने का तरीका और वक्त दोनों ही गलत थे।"
उनके शब्दों में न कोई डांट थी, न कोई शिकवा, बस सच्चाई और ममता का मीठा सा एहसास था। पायल ने दादी मां की गोदी में सिर रख दिया, जैसे बचपन में छोटी-छोटी बातों पर रोकर राहत पाती थी।
दादी मां ने धीरे-धीरे उसके बालों में उंगलियां फेरते हुए उसे समझाया कि कैसे प्यार से कही गई बातें भी कभी-कभी
समझने में तकलीफ देती हैं अगर समय और भाव सही न हो।
उनकी बातें पायल के दिल तक उतर रही थीं, और उसे महसूस हो रहा था कि माफी के लिए सिर्फ शब्द नहीं, दिल से निकली सच्ची भावना की भी जरूरत होती है।
पायल ने दादी मां की झुर्रीदार हथेलियों को अपने नन्हे हाथों में थाम लिया। उसकी आंखों में एक मासूम-सी बेचैनी थी, जो उसके सवाल से साफ झलक रही थी।
धीमे स्वर में उसने पूछा, "मतलब दादी मां... आप नाराज नहीं हैं न मुझसे?"
दादी मां के होठों पर हल्की मुस्कान उभरती है, जिसमें वर्षों का धैर्य और ममता छिपी थी। उन्होंने पायल के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कहा, "नहीं बेटा, मैं तो तुझसे नाराज हो ही नहीं सकती। बल्कि मैं तो खुद भी इसी चिंता में डूबी रहती हूं कि सुनीति अकेले... अपने जीवन का सफर कैसे तय करेगी?"
पायल ने हैरानी से दादी मां को देखा, जैसे उसके मासूम दिल ने इस संभावना को अब तक कभी छुआ ही न था। वह जल्दी से कहती हैं कि, "अकेली मतलब? हम हैं न मां के साथ!
मैं हमेशा मां के साथ रहूंगी!" उसकी आंखों में विश्वास था।
दादी मां ने गहरी सांस ली, उनकी आंखों में हल्की नमी की परछाईं झलक रही थी। उन्होंने बड़ी नरमीयत से कहा, "बेटा, अब इन बूढ़ी हड्डियों में पता नहीं कितनी जान बाकी है। और एक दिन तू भी पराए घर चली जाएगी... फिर पता नहीं सुनीति कैसे रहेगी अकेली?"
यह सुनकर पायल की पलकों पर नमी तैर गई। दादी मां के शब्दों ने उसके दिल को छू लिया था। वह चुपचाप दादी मां के कंधे से लग गई, जैसे उस एक लम्हे में वह दादी मां का सारा दर्द खुद में समेट लेना चाहती हो। कमरे में एक खामोशी फैल गई थी, जहां शब्दों की जगह सिर्फ रिश्तों की गहराई बोल रही थी।
दादी मां की बातों ने पायल के दिल को छू लिया था। वह और भी ज्यादा उदास हो गई। उसकी आवाज कांपते हुए बाहर निकली, "दादी मां! आपको कुछ नहीं होगा... मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगी। और रही मेरी बात, तो मैं कभी भी आप दोनों को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।"
पायल की मासुम बात सुनकर दादी मां के चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान आती है, जिसमें आशीर्वाद भी था और एक अनकहा दर्द भी। उन्होंने स्नेह से पायल के सिर पर हाथ फेरा और भर्राए हुए स्वर में कहा, "मेरी प्यारी सोनचिरैया, सभी लड़कियां शादी से पहले ऐसा ही कहा करती हैं। पर कब वे पराए घर चली जाती हैं, कब उनकी दुनिया बदल जाती है,
किसी को पता ही नहीं चलता..."
यह कहते-कहते दादी मां की आंखों में नमी उतर आई। उनकी झुर्रियों से भरे चेहरे पर एक गहरी वेदना तैरने लगी थी, जो बीते वर्षों की अनकही कहानियां बयां कर रही थी।
पायल ने दादी मां की आंखों में छलकती बूंदों को देखा तो उसका दिल भर आया। वह धीरे से दादी मां के गालों तक बढ़ी,
अपनी नन्ही उंगलियों से उनकी आंखों की कोर पर फैली नमी को पोंछते हुए मासूमियत से पूछ बैठी, "दादी मां! आप रो रही हो क्या?"
उसके इस सवाल में मासूम चिंता थी, एक बेटी-सी मासूम ममता थी, जिसने दादी मां के दिल को और भी पिघला दिया था।
कमरे में उस पल एक भावुक खामोशी पसर गई थी, जिसमें सिर्फ दिलों की धड़कनों की आवाजें गूंज रही थीं।
दादी मां पायल की मासूम चिंता को देखकर हल्के से मुस्कुरा उठती है। उन्होंने प्यार से पायल के गाल को थपथपाते हुए कहा, "अरे नहीं पगली, ये तो बस यूं ही... मुझे मेरा बचपन याद आ गया। कैसे मैं भी अपनी मां के सामने ऐसी ही बातें किया करती थी।"
दादी मां की आवाज में बीते समय की एक मीठी टीस थी, जो पायल के कोमल मन को छू गई थी। वह चुपचाप दादी मां को देखती रही।
पायल को अब भी चिंतित देख दादी मां ने उसका माथा चूमते हुए कहा, "लाडो! अब चलो अपने कमरे में। रात बहुत हो गई है। जाओ, आराम करो।"
लेकिन पायल की बेचैनी इतनी आसानी से कहां कम होने वाली थी? वह झट से बोल पड़ी, "पर दादी मां... मां को इस हालत में...?"
वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि दादी मां ने बीच में ही उसकी बात को बड़े प्यार से रोक दिया, "तू निती की चिंता मत कर, बेटा। सुबह तक सब ठीक हो जाएगा।
अब तू जा और आराम से सो जा।"
पायल ने थोड़ा नासमझी भरे अंदाज में हामी भरी और फिर मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है दादी मां। आइए, मैं आपको आपके कमरे तक छोड़ देती हूं।"
दादी मां ने उसके इस छोटे से ख्याल पर स्नेह से उसे निहारा फिर पायल ने उनका हाथ अपने हाथों में लिया, जैसे एक छोटी बच्ची अपने खिलौनों को थामती है, और बड़े प्यार से दादी मां को सहारा देती हुई धीरे-धीरे उनके कमरे की ओर बढ़ चली।
कमरे के हर कोने में इस पल एक मीठी, अपनत्व भरी गरमाहट फैल रही थी जैसे रिश्तों का स्नेह एक नर्म ओढ़नी बनकर दोनों पर बिछ गया हो।
पायल दादी मां को उनके कमरे तक छोड़कर चुपचाप अपने कमरे में लौट आई। कमरे में हल्की-हल्की चांदनी खिड़की से भीतर आ रही थी, लेकिन पायल का मन किसी अनजाने अंधेरे में डूबा हुआ था। वह बिना कुछ सोचे सीधे अपने बेड पर लेट जाती है।
काफी देर तक वह बस करवटें बदलती रही, पर नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। दिल में अजीब सी बेचैनी थी, जो उसे चैन से सोने नहीं दे रही थी।
थककर आखिर वह उठकर बैठ गई। बेड के पास रखी टेबल पर उसकी नजर गई, जहां पापा की मुस्कुराती हुई तस्वीर रखी थी। पायल ने बड़े प्यार से वह तस्वीर अपने हाथों में उठा ली,
जैसे कोई प्यारी सी अमानत हो।
वह तस्वीर को अपने सीने से लगा कर देर तक निहारती रही।
उसकी आंखें भर आई थी, पर होठों पर एक धीमी सी मुस्कान भी थी। एक अनकहा रिश्ता, जो शब्दों के बिना भी सब कुछ कह जाता था।
पायल ने तो बचपन में ही अपने पापा को खो दिया था।
पर आज भी, जब भी कोई दर्द, कोई उलझन उसे घेरती,
तो वह बिना किसी हिचक के पापा की तस्वीर से अपनी सारी बातें कर लेती थी। जैसे वो तस्वीर ही उसकी सबसे बड़ी हमराज़ हो।
पर आज कुछ अलग था। आज उसके दिल का बोझ कुछ ज़्यादा भारी था। कई सवाल, कई डर, और मां के अकेलेपन का दर्द... सब मिलकर उसके मन को घेर रहे थे।
काफी देर तक तस्वीर से बात करने के बाद,
पायल ने आंसू भरी आंखों से एक मजबूत फैसला किया।
"मैं कभी शादी नहीं करूंगी। सारी ज़िंदगी अपनी मां के साथ रहूंगी, उन्हें कभी अकेला महसूस नहीं होने दूंगी।"
यह सोचकर उसने पापा की तस्वीर को प्यार से चूमा, और उसे सीने से लगाकर धीरे-धीरे आंखे मूंद लीं। कमरे में पसरे सन्नाटे के बीच उसकी इस मासूम कसम ने एक नये सफर की शुरुआत कर दी थी। एक ऐसी राह, जो त्याग, प्रेम और जिम्मेदारी से भरी थी।
क्रमशः