१०.
अबीर को यह समझ ही नहीं आया था कि लड़कियां उन पर पड़ने वाली हर एक नजर को, हर एक साए को बड़ी ही आसानी से भांप लेती हैं। पायल की एक सीधी बात ने उसे चुप कर दिया था। कुछ पल वही खामोश खड़े रहकर, वह धीरे-धीरे कदमों से लौट गया… शायद यह सोचता हुआ कि कभी पायल उसे खुद से दूर न कर दे।
इधर पायल घर के भीतर थी, लेकिन मन कहीं और उलझा हुआ था। वह धीरे से मां को पुकारते हुए उनके कमरे की ओर बढ़ जाती है। कमरे के भीतर हल्की-सी पीली रोशनी जल रही थी और सुनीति जी पलंग पर बैठी एक पुरानी फ़ोटो एल्बम के पन्ने पलट रही थीं, कभी मुस्कुरा रही थीं, तो कभी किसी तस्वीर पर ठहर जा रही थीं ।
पायल दरवाज़े पर बिना कुछ बोले खड़ी थी। मां को इस तरह अपनी यादों में खोया देख उसके भीतर अपराधबोध की लहर दौड़ जाती है। उसे एहसास होता है कि उस एक सवाल ने शायद मां के दिल में दबे कई ज़ख्म कुरेद दिए हैं।
मां के सामने जाने की उसकी हिम्मत नहीं हुई… और वो बिना कुछ बोले उल्टे क़दमों से अपने कमरे की ओर लौट जाती है।
कमरे में आकर वह खुद को जैसे कैद कर, बालकनी में आकर आसमान की ओर देखती है… चांद अधूरा था और तारें बिखरे हुए। उस बिखराव में भी पायल अपने पापा को ढूंढती है, जैसे हर तारा उनसे कोई बात कर रहा हो,
उसकी आंखें भर आती है… एक नमी जो धीरे-धीरे गालों पर उतर आई। पर तभी पीछे से एक जानी-पहचानी और सुकून भरी आवाज़ आती है।
"क्यों आज इतनी लेट हो गई बेटा?"
पायल चौंक पलटकर देखती है कि, सुनीति जी दरवाज़े पर खड़ी थीं। उनके चेहरे पर कोई शिकवा नहीं था, न ही किसी नाराज़गी का नामोनिशान। जैसे कुछ हुआ ही नहीं… जैसे उन्होंने अपनी हर पीड़ा को चुपचाप पी लिया हो।
पायल बस उनकी तरफ देखती रह गई…
सुनीति जी को अचानक अपने सामने देख पायल एक पल को सिहर उठी। हड़बड़ाते हुए वह अपनी नम हो चली आंखों को पोंछ खुद को सामान्य करते हुए कहती हैं कि, "मां... आप? आप कब आई?"
सुनीति जी हल्के-से मुस्कराई, लेकिन उनकी आंखों में भी नमी थी, उस दर्द की जिसे उन्होंने हमेशा छुपाया था, वह कहती हैं कि, "जब तूम अपने आंसू छुपा रही थी, तभी आई थी..."
उनकी आवाज़ में ममता के साथ एक अपनापन भी था।
पायल कांपती आवाज़ में कहती हैं कि, "मां... आप मुझसे नाराज़ तो नहीं हैं न?"
सुनीति जी एक लंबी सांस लेकर उसके पास आकर पायल के पास बैठ उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहती हैं कि, "नाराज़ नहीं हूं बेटा। शायद मैंने ही थोड़ा ज़्यादा रिएक्ट कर दिया। तू अपनी जगह बिल्कुल सही थी... बस तेरे सवाल ने मुझे कुछ देर के लिए अंदर तक हिला दिया। समझ नहीं आया कि क्या जवाब दूं।"
वह थोड़ा रुककर पायल की आंखों में देख कहती हैं कि, "मुझे पता है बेटा, तूने तेरे पापा के जाने के बाद कितनी जिम्मेदारियां संभाली हैं। तूने मुझे और मां को एक पल भी ये महसूस नहीं होने दिया कि घर में मर्द नहीं है। लेकिन कहीं न कहीं तूने भी तो उस खालीपन को महसूस किया होगा न? जिस तरह से तू सब कुछ अकेले सहती रही, वैसे ही शायद मैं भी..." यह कहते-कहते सुनीति जी की आंखों में नमी उतर आई थी।
पायल अब खुद को रोक नहीं पाई। वह झट से अपनी मां को गले से लगा लेती है, जैसे वह सारा अपराधबोध, सारा डर और सारे गिले शिकवे उसी आलिंगन में समेट देना चाहती हो। मां-बेटी के बीच उस पल सिर्फ एक खामोशी थी, लेकिन वह खामोशी बहुत कुछ कह रही थी।
पायल अपनी मां का हाथ थामते हुए भावुक होकर कहती हैं कि,"मां! पापा की कमी हम सब को ही महसूस हुई है... लेकिन आपने जिस तरह हमें संभाला है, हमें कभी ये महसूस नहीं होने दिया कि हमारी जिंदगी से कुछ कम हो गया है। आपने तो जैसे खुद को ही भुला दिया, सिर्फ हमारे लिए।"
सुनीति जी की आंखों में एक हल्की-सी चमक और नमी साथ-साथ तैर रही थी, लेकिन पायल जानती थी कि अब उन्हें और भावुक नहीं करना है।
फिर जैसे माहौल को हल्का करने के लिए पायल मुस्कुराते हुए कहती हैं कि, "मां, बहुत भूख लगी है। चलिए, खाना खा लेते हैं। दादी मां भी इंतजार कर रही होंगी। हमें यूं अकेले बैठा देख वो जरूर कहेंगी, 'पता नहीं मां-बेटी क्या खिचड़ी पका रही हैं अकेले में!'"
सुनीति जी हंस पड़ीं। उनकी हंसी सुनकर पायल को सुकून मिलता है वही सुकून, जिसकी उसे सख्त ज़रूरत थी। यही तो चाहती थी पायल, कि उसकी मां फिर से वैसे ही मुस्कुराए जैसे पहले मुस्कुराया करती थीं।
थोड़ी ही देर में तीनों दादी मां, सुनीति जी और पायल डाइनिंग टेबल पर खाने के लिए एक साथ बैठे हुए थे। टेबल पर भिंडी की सब्ज़ी, गरमागरम चपातियां, जीरा राइस और दाल फ्राय रखी थी।
"अरे वाह, मां! आपने तो मेरी पसंद की पूरी थाली सजा दी!" पायल ने थाली को देखकर चहकते हुए कहा।
सुनीति जी मुस्कुराते हुए कहती हैं कि, "हां बेटा... पिछले कुछ दिनों से घर का माहौल थोड़ा भारी-भारी सा था न, तो सोचा इसी बहाने सब कुछ फिर से अच्छा हो जाए।"
दादी मां भी प्यार से मुस्कुराते हुए कहती हैं कि, "अब अच्छा नहीं, बहुत अच्छा है। देखो तो, हमारे घर की रौनक लौट आई।"
पायल मुस्कुराते हुए मां और दादी मां दोनों को देखती है, और मन ही मन ये वादा करती है कि, "अब कभी इस घर की रौनक फीकी नहीं पड़ने दूंगी।"
तारा देवी अपनी प्यारी मुस्कान के साथ कहती हैं कि, "जो होना था वो हो गया, अब सब अच्छा होगा। चलो अब खाना शुरू करो वरना ठंडा हो जाएगा।" उनके इस कहने भर से माहौल में जो हल्की उदासी थी, वो जैसे छूमंतर हो गई थी।
तीनों, सुनीति जी, पायल और तारा देवी हंसते मुस्कुराते हुए खाना खाने लगते हैं।
खाना खाते हुए ही पायल धीरे से कहती हैं कि, "कल से मेरी कॉलेज शुरू हो रही है, तो मुझे सुबह जल्दी निकलना होगा।"
पायल की बात सुनते ही तारा देवी का चेहरा थोड़ा गंभीर हो जाता है। वह रोटी का कौर हाथ में लेते हुए कहती हैं कि, "कितना कुछ करेगी तू बेटा? ऑफिस करेगी या पढ़ाई? दोनों एक साथ कैसे संभालेगी?"
इससे पहले कि पायल कुछ कह पाती, सुनीति जी मां की बात को बड़े ही शांत लहजे में संभालते हुए कहती हैं कि, "मां... काम पायल की मजबूरी है, और पढ़ाई उसका सपना। ये दोनों इसके लिए ज़रूरी हैं। ये जो भी करना चाहती है करने दीजिए, वैसे भी... शादी के बाद कहां कुछ कर पाएगी अपने मन का?"
सुनीति जी की बात में एक हल्की कसक थी, जो उनके अपने अधूरे सपनों से जुड़ी हुई थी। तारा देवी सुनीति जी की आंखों में वह कसक पढ़ लेती है।
वह गहरी सांस लेकर पायल की तरफ देखकर कहती हैं कि,
"ठीक है, जो भी करना... पूरे मन से करना। पर ध्यान रखना, खुद को कभी थकने मत देना। हम हैं तुम्हारे साथ, हमेशा।"
पायल मुस्कुराकर दोनों को देखती है, उसकी आंखों में चमक थी, वह चहकते हुए कहती है कि, "आप दोनों को कभी निराश नहीं करूंगी।"
तीनों एक-दूसरे की आंखों में वो नमी, वो प्यार, वो समझ बांटते हुए खाना खा रहे थे।
तारा देवी सुनिती जी की बातो से सहमत होकर पायल को इजाजत दे देती है। खाना खाकर मां का हाथ बटा कर पायल अपने रुम मे आ जाती हे। पायल के चेहरे पर अब एक सुकून भरी मुस्कान थी। मां से अनबन का जो बोझ पूरे दिन उसकी सांसों पर भारी था, अब वो हल्का होकर जैसे हवा में घुल चुका था।
रात की नर्म चांदनी जैसे ही खिड़की से भीतर आने लगी, पायल भी अपने मन की खिड़कियों को खोल देती है,
मां का रूठना, फिर बिना कुछ कहे माफ कर देना, पायल को एहसास हो गया था कि रिश्तों में सबसे जरूरी होता है "समझना" और "समय देना"।
वह अपने रुम की खिड़की खोल बाहर झाँकती है। हल्की हवा उसके बालों को छूकर जा रही थी, वह अपने ख्यालों मे खोई हुई पायल बालकनी मे लगे झूले पर बैठ ठंडी हवाओं को महसूस कर रही थी। कल का दिन केसा होगा यही सब सोचते हुए वह झूले पर ही सो जाती है।
प्यास लगने से सुनीति जी की आंखे खुल जाती है पर पानी का जग खाली देख वह किचन कि तरफ जाती हे। वापस आते वक्त पायल के रुम की लाइट चालू देख सुनिती जी मन ही मन कहती हैं कि, "यह लड़की कभी अपना ध्यान नही रखती। 12 बज रही है तब भी अभी तक जग रही है।" इतना कहते हुए सुनितीजी के कदम अपने आप ही पायल की रुम की तरफ बढ गए। रुम के अंदर देखा तो बेड पर पायल नही थी। कहा गई ये लड़की अब, कहते हुए बालकनी की तरफ बढ जाती है।
पायल को यू सोता हुआ देख उसके मासूम चेहरे को कुछ देर निहारती रही। सुनिती जी अपनी आंखो का काजल लेकर पायल के कान के पीछे लगा देती है। ओर चादर लेकर पायल को ओढ़ा देती है, पायल को देख सुनिती जी कहती है कि, -"मे तेरे पापा की कमी तो दुर नही कर सकती पर हर एक मुमकिन प्रयास करुंगी तेरे सारे सपने पूरे करने की।"
सुनिती जी कुछ देर इसी तरह पायल के बारे मे सोचकर वही रुक अपने कमरे मे आ जाती हे। पर उन्हें यह नही मालुम था की आने वाला कल क्या तूफान लेकर आने वाला है।
क्रमशः