Dil ne jise chaha - 17 in Hindi Love Stories by R B Chavda books and stories PDF | दिल ने जिसे चाहा - 17

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दिल ने जिसे चाहा - 17

सुबह की पहली किरण... और धड़कनों का तेज़ होना

आज की सुबह कुछ अलग थी...

रुशाली की आंखें अलार्म से पहले खुल गई थीं। चेहरे पर मुस्कान थी, आंखों में चमक थी, और दिल... धक-धक कर रहा था।

रुशाली (खुद से बड़बड़ाते हुए, मुस्कुराते हुए):
"आज तो मयूर सर का बर्थडे है... आज उन्हें मेरा बनाया हुआ कार्ड मिलेगा... और शायद मेरा दिल भी।"
"भगवान करे उन्हें लंबी उम्र मिले, सारी खुशियाँ मिले... और हाँ, अगर थोड़ी सी जगह उनके दिल में मेरे लिए भी हो, तो और क्या चाहिए!"

वो बिस्तर से उठी और गुनगुनाने लगी...
ना जाने क्यों आज हर चीज़ खूबसूरत लग रही थी। कपड़े, आईना, मौसम... और अपनी धड़कनों की आवाज़।

 "कुछ दिन हैं बस ख़ुशबू जैसे,
आज का दिन भी वैसा ही है,
ना जाने क्या खो जाएगा या मिल जाएगा,
पर दिल कह रहा है – ये दिन याद रखा जाएगा…"

जल्दी-जल्दी तैयार होकर रुशाली घर से निकली।
दिल में सिर्फ़ एक ही नाम – "मयूर सर"

रास्ते भर वो सोचती रही...

"क्या उन्हें मेरा कार्ड पसंद आएगा?"
"क्या वो समझेंगे कि मैंने जो लिखा है, वो सिर्फ़ एक wish नहीं है, मेरा इज़हार है?"

उसे लग रहा था जैसे आज कोई नई शुरुआत होने वाली है...

जैसे ही वह अस्पताल पहुंची, वो सीधा मयूर सर के केबिन की तरफ़ बढ़ी।

दरवाज़ा खुला... और रुशाली का दिल रुक सा गया।

मयूर सर आज कुछ अलग ही लग रहे थे।

काली शर्ट, फोल्डेड स्लीव्स

हाथ में क्लासिक ब्लैक वॉच

ब्राउन पैंट, चमकते जूते

और चेहरा... वही शांत, वही प्यारी सी मुस्कान...


रुशाली (मन में):
"हे भगवान... आज तो सर इतने अच्छे लग रहे हैं कि क्या ही कहूं।"
"वैसे तो वो हर दिन अच्छे लगते हैं... लेकिन आज... बस नज़रे हटती ही नहीं..."

रुशाली (धीरे से मुस्कुराकर):
"Good morning sir... और... Wishing you a very happy birthday!" 😊

मयूर सर:
"Thank you, रुशाली... बहुत शुक्रिया।"

कुछ सेकंड के लिए नज़रे मिलीं।
रुशाली का दिल धड़क रहा था... लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा:

"Sir, एक छोटा सा तोहफ़ा भेजा है WhatsApp पर... प्लीज़ देखिए ना!"

मयूर सर ने फोन निकाला।
PDF खोली।
रुशाली की लिखी लाइन पढ़ी… और चेहरा गंभीर हो गया।

एक लंबा सन्नाटा।

मयूर सर (धीरे से):
"Thank You... रुशाली…"

बस इतना कहा।
ना कोई तारीफ़… ना सवाल… ना हँसी… बस एक "Thank you" और गंभीर सा चेहरा।

रुशाली (नरमी से):
"Sir… आपको कार्ड पसंद नहीं आया क्या?"

मयूर सर ने रुशाली की आंखों में देखा… कुछ बोलना चाहा… लेकिन फिर निगाहें झुका लीं।

मयूर सर:
"रुशाली… तुमने कार्ड में जो लिखा… वो क्यों लिखा?"

रुशाली (गंभीर होकर):
"क्योंकि वो सच है, सर।
मैं आपके लिए जो महसूस करती हूँ… और मैंने सोचा… आज कह दूं। कि आप मेरे लिए कितने खास है!"

मयूर सर का चेहरा थोड़ा और गंभीर हो गया।

मयूर सर:
"रुशाली... तुम मुझे अच्छे से नहीं जानती।
मेरी शादी तय हो चुकी है।"

रुशाली (हैरान होकर):
"क्या...? लेकिन... सर..."

मयूर सर (धीरे से):
"हाँ, भले ही मुझे वो रिश्ता पसंद हो या न हो, लेकिन... मेरा परिवार बहुत मानता है इस बात को।
मैं उन्हें कभी नाराज़ नहीं कर सकता।
और... तुम डॉक्टर नहीं हो... ना ही हमारी जाति एक है।
मेरे घरवाले कभी ये रिश्ता मंज़ूर नहीं करेंगे।"

रुशाली (थोड़ी उम्मीद के साथ):
"तो क्या... आपको भी मैं पसंद नहीं हूँ?"

(मयूर सर कुछ नहीं बोलते... लेकिन उनके चेहरे पर दर्द साफ़ था)

मयूर सर (मन में):
"काश... कह सकता कि हाँ, मुझे भी तुमसे प्यार हो गया है।
लेकिन मैं अपने दिल से ज़्यादा अपने परिवार की इच्छाओं को मानता हूँ..."

रुशाली (धीरे से):
"क्या आपकी सगाई हो चुकी है?"

मयूर सर:
"नहीं... अभी तक नहीं।"

रुशाली:
"तो फिर एक मौका तो दीजिए ना सर...
शायद मैं आपको और आपके परिवार को खुद से प्यार करने पर मजबूर कर दूँ।"

मयूर (थोड़ी सख्ती से):
"नहीं, रुशाली... ये मुमकिन नहीं।"

तुम बहुत अच्छी हो... लेकिन ये कहानी अब यहीं खत्म होनी चाहिए।"

रुशाली बिना कुछ बोले बाहर निकल गई।
ना सवाल... ना शिकायत... बस दिल की एक परत और टूट गई थी।

उसकी आंखों में आंसू तो नहीं थे,
पर उसकी चुप्पी सब कुछ कह गई।

अंदर मयूर सर भी कुछ पलों तक जड़ से बैठे रहे ।
उनका दिल भीतर से कुछ महसूस कर रहा था —
एक अजीब सी खुशी... और साथ ही एक गहरा दर्द।

खुशी इस बात की कि जो बात उनको कहनी चाहिए थी,
वो रुशाली ने कह दी।

लेकिन दुख इस बात का कि

"काश हालात कुछ और होते...
काश मैं कह पाता कि,

"हाँ... मैं भी चाहता हूँ उसे।
शायद उस दिन से जब पहली बार उसने मुझे मुस्कुराकर 'गुड मॉर्निंग' कहा था।
शायद उस दिन से, जब उसने पहली बार बिना कहे मेरी थकान समझ ली थी…"

लेकिन सुकून के साथ एक टीस भी थी।

"काश... ये इतना आसान होता।
काश मैं कह पाता कि...
हाँ, रुशाली... मैं भी तुमसे प्यार करने लगा हूँ।"

मयूर सर की आंखों में थोड़ी सी नमी थी,
पर चेहरे पर वही संयम था, जो एक डॉक्टर के चेहरे से उतरता ही नहीं।

उन्होंने अपने आप से कहा:

"मैं selfish नहीं हो सकता।
मैं अपने परिवार की उम्मीदें तोड़ नहीं सकता।
मुझे उसकी भावनाओं की कद्र है… और शायद इसलिए उसे खुद से दूर रखना ही सबसे सही होगा।"

पर फिर भी...
दिल के किसी कोने में रुशाली की मासूम सी आंखें बार-बार आ रही थीं।

मयूर सर सोचने लगे…

"क्या गलत था इसमें?
क्यों मेरी चाहत अधूरी रहनी चाहिए?
क्यों हर रिश्ता जाति, प्रोफेशन और समाज के तराज़ू पर तौलना ज़रूरी है?"

"एक तरफ़ दिल... एक तरफ़ फ़र्ज़...
और इन दोनों के बीच फँसी एक चाहत!.."


उस वक़्त दोनों अपनी-अपनी जगह पर चुप थे।
रुशाली अपने आंसुओं से लड़ रही थी,
और मयूर सर अपने फैसलों से।

पर एक बात दोनों के बीच सच्ची थी —
"चाहत..."

हाँ, रुशाली की चाहत इज़हार में थी,
और मयूर सर की... इनकार में छिपी थी।

आगे क्या होगा?

क्या मयूर के दिल की दीवारें टूटेंगी?

क्या परिवार की रस्में मोहब्बत से हार जाएंगी?

जानने के लिए पढ़िए – "दिल ने जिसे चाहा – भाग 18"