भाग्य का खेल (अगला भाग)
हील टॉप की ठंडी हवाएँ और तेज़ हो चुकी थीं, लेकिन उन दोनों के बीच जो आग जल रही थी, वो उन हवाओं से कहीं ज्यादा गर्म थी। संजना हर्षवर्धन की बाहों में सिमटी हुई थी, उसकी साँसें अब भी तेज़ थीं, लेकिन उनमें अब कोई घबराहट नहीं थी—बस एक अजीब सा सुकून और अधूरे एहसास की तड़प।
हर्षवर्धन ने उसकी कमर को अपनी उँगलियों से हल्के से सहलाया, जिससे संजना का पूरा शरीर सिहर उठा। उसने अपनी आँखें धीरे से बंद कर लीं, जैसे वो इस एहसास में खुद को पूरी तरह डुबो देना चाहती हो।
उसने हर्षवर्धन की शर्ट को कसकर पकड़ लिया, जैसे अगर उसने छोड़ा तो कहीं वो खो जाएगी। हर्षवर्धन ने धीरे से उसकी ठुड्डी को ऊपर किया और उसकी आँखों में झाँका।
उसके होठों पर एक हल्की मुस्कान आई, लेकिन उससे पहले कि वो कुछ कह पाती, हर्षवर्धन ने उसे अपने और करीब खींच लिया। अब उनके बीच कोई दूरी नहीं थी। उसकी गर्म साँसें संजना के चेहरे से टकरा रही थीं, और हर बीतता पल उनके बीच की आग को और भड़का रहा था।
संजना ने अपनी पलकें झुका लीं, लेकिन हर्षवर्धन की उँगलियाँ उसके चेहरे पर फिर से सरसराने लगीं। वो उसकी नाक से फिसलते हुए उसके होठों तक आ गईं। हर्षवर्धन ने उसकी नर्म त्वचा को हल्के से छुआ और फिर उसके होठों पर अपना दावा ठोक दिया।
उनका चुंबन धीमा था, मगर उसमें इतनी गहराई थी कि पूरा माहौल उसके एहसास में खोने लगा। संजना ने खुद को पूरी तरह हर्षवर्धन के हवाले कर दिया। उसकी उँगलियाँ हर्षवर्धन के बालों में उलझने लगीं, और उसने उसे और करीब खींच लिया।
हर्षवर्धन ने उसकी कमर को और कस लिया और अपने चुंबन को और गहरा कर दिया। चाँदनी रात में उनकी साँसों की आवाज़ हवाओं के संगीत में घुलने लगी।
जब उन्होंने खुद को अलग किया, तो दोनों की साँसें तेज़ थीं। हर्षवर्धन ने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और हल्की मुस्कान के साथ उसकी आँखों में झाँका।
संजना मुस्कुराई और अपनी उँगलियाँ हर्षवर्धन के चेहरे पर फिराने लगी।
हर्षवर्धन ने उसे अपनी बाहों में भर लिया, और दोनों वहीं चट्टान पर बैठे रहे, एक-दूसरे की गर्मी में खोए हुए। हील टॉप की हवाएँ अब भी चल रही थीं, लेकिन उन दोनों को अब किसी और चीज़ का एहसास नहीं था। उनकी दुनिया बस एक-दूसरे में ही सिमट चुकी थी…
हील टॉप की हवाएँ और उनकी मोहब्बत
हील टॉप की ऊँचाई पर बैठे हर्षवर्धन और संजना, एक-दूसरे की गर्माहट में खोए हुए थे। पहाड़ों की ठंडी हवाएँ उनके चारों ओर घूम रही थीं, लेकिन उनके दिलों की तपिश हर एहसास को फीका कर रही थी। हर्षवर्धन की बाँहों में सिमटी संजना ने गहरी साँस ली और हल्का-सा मुस्कुराई।
"तुम्हें पता है, यहाँ आकर ऐसा लग रहा है जैसे हम पूरी दुनिया से अलग किसी दूसरी ही दुनिया में आ गए हैं," संजना ने हल्की आवाज़ में कहा।
लेकिन तभी एक तेज़ ठंडी हवा का झोंका आया, जिसने संजना के शरीर में एक ठिठुरन भर दी। वह हल्का-सा सिहर गई और अपनी शॉल को कसकर पकड़ लिया।
हर्षवर्धन ने तुरंत महसूस किया कि संजना अचानक ठंडी हवाओं से परेशान होने लगी थी। उसने उसके चेहरे को ध्यान से देखा—उसकी गुलाबी नाक, काँपते होंठ, और हल्की सिहरन ने सब कुछ कह दिया।
"क्या हुआ?" हर्षवर्धन ने चिंतित होकर पूछा।
संजना ने अपने हाथों को रगड़ते हुए कहा, "बस... ये हवाएँ अब बहुत ठंडी लगने लगी हैं।"
हर्षवर्धन ने बिना कुछ कहे अपनी जैकेट उतारी और उसे संजना के कंधों पर डाल दी। "तुम्हें पहले ही कह देना चाहिए था, पागल लड़की।"
गाईज में स्टोरी मिनिया ऐप्स पर भी लिखती हूँ , वहाँ भी जाकर मेरी नोवेल पढे, सुनीता सूद नाम से मेरा प्रोफाइल है, साथ ही चाहे तो मैं यही पोस्ट में भी उसकी फोटो डाल दूरी,
काहानी अच्छी लग रही है तो आगे पढते रहे 💗💗💗💗