भाग्य का खेल
घने जंगल से किसी तरह अपनी जान बचाकर भागते हुए, हर्षवर्धन और संजना की साँसे अब भी तेज़ थीं। अंधेरे से घिरा जंगल, जंगली जानवरों की आवाजें और पीछे छूटती अनदेखी परछाइयाँ अब भी उनके ज़हन में गूँज रही थीं। हर्षवर्धन ने बिना कोई वक्त गँवाए कार का दरवाज़ा खोला और तेजी से संजना को अंदर बैठाया। उसकी आँखों में अब भी खौफ था, चेहरे पर बाल बिखरे हुए थे, और पूरे शरीर में एक अनजान सी बेचैनी दौड़ रही थी। हर्षवर्धन ने अपनी कार स्टार्ट की और जैसे किसी तूफान की तरह सड़क पर दौड़ा दी।
कार की रफ्तार के साथ ही संजना का दिल भी उतनी ही तेज़ धड़क रहा था। वो अब भी उस भयानक मंजर से बाहर नहीं निकल पाई थी। उसकी उंगलियाँ सीट को कसकर पकड़ चुकी थीं, और उसकी साँसें बेकाबू थीं। हर्षवर्धन ने एक पल के लिए उसकी ओर देखा। उसकी डरी हुई आँखों में वो सवाल था, जिसका जवाब शायद उनके पास भी नहीं था,
"संजना, तुम ठीक हो?" हर्षवर्धन ने उसकी ओर देखते हुए पूछा।
संजना ने बस उसकी ओर देखा, मानो उसके पास शब्द ही न हों। वो कुछ बोलना चाह रही थी, लेकिन डर ने उसकी जुबान को जकड़ रखा था।
हर्षवर्धन ने फिर से सड़क पर ध्यान दिया और कार की स्पीड बढ़ा दी। उसे इस वक्त सिर्फ एक ही जगह याद आ रही थी— हील टॉप। वो जगह जहाँ से पूरा शहर दिखाई देता था, जहाँ ठंडी हवा उनकी थकी हुई रूहों को सुकून दे सकती थी।
कुछ ही मिनटों में, हर्षवर्धन ने कार को हील टॉप पर रोका। हल्की ठंडी हवा गालों को छू रही थी, और आसमान में चाँद अपनी चांदनी बिखेर रहा था। जैसे ही उसने कार रोकी, संजना ने बिना कुछ कहे खुद को उसकी बाहों में छुपा लिया।
हर्षवर्धन कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गया। उसकी धड़कनें भी तेज़ हो गईं। संजना का इतना करीब आना, उसकी साँसों की गर्माहट, और उसकी कंपकंपाती हथेलियाँ हर्षवर्धन को अंदर तक महसूस हो रही थीं।
"हर्ष... मैं बहुत डर गई थी..." उसकी आवाज़ काँप रही थी।
हर्षवर्धन ने उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे अपनी बाहों में और कस लिया।
"मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा, संजना। तुम मेरे साथ हो, और जब तक मैं हूँ, कोई भी तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचा सकता।" उसकी आवाज़ में दृढ़ता थी, लेकिन उसके स्पर्श में एक अलग नरमी थी।
संजना ने धीरे-धीरे अपना चेहरा उठाया। उसकी आँखों में अब भी डर था, लेकिन अब उस डर के पीछे एक अलग सा एहसास भी छिपा था। हर्षवर्धन की आँखें उसकी आँखों में गहरी उतरने लगीं। दोनों के बीच एक पल के लिए सन्नाटा छा गया, लेकिन वो खामोशी बहुत कुछ कह रही थी।
हवा और भी तेज़ हो चुकी थी। संजना के बाल उड़कर उसके चेहरे पर आ रहे थे। हर्षवर्धन ने बहुत ही नर्मी से उसके चेहरे से बाल हटाए, उसकी आँखों में झाँकते हुए।
"तुम बहुत हिम्मत वाली हो, संजना," हर्षवर्धन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
संजना ने पहली बार हल्की मुस्कान दी। "अगर तुम मेरे साथ न होते तो शायद मैं..."
"श्श्श..." हर्षवर्धन ने उसकी बात को अधूरा छोड़ते हुए उसके होंठों पर उंगली रख दी। "अब कुछ नहीं होगा। अब हम यहाँ हैं, साथ में।"
संजना की आँखों में आँसू थे, लेकिन अब वो डर के नहीं, किसी और एहसास के थे। उसने धीरे-धीरे अपनी हथेलियाँ हर्षवर्धन की हथेलियों पर रखीं। हर्षवर्धन ने अपनी पकड़ को और मजबूत किया और धीरे-धीरे उसके चेहरे के करीब आ गया।
"क्या तुम मुझ पर भरोसा करती हो?" उसने फुसफुसाते हुए पूछा।
संजना ने बिना कुछ कहे सिर हिलाया।
और उसी पल, जैसे ही चाँद की रोशनी उन दोनों पर पड़ी, हर्षवर्धन ने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसके माथे पर हल्की-सी किस कर दी।
संजना की आँखें बंद हो गईं। उसके होठों पर एक सुकून भरी मुस्कान थी। वो अब डर से बाहर आ चुकी थी। उसने अपनी बाँहें हर्षवर्धन के चारों ओर डाल दीं, और दोनों चाँदनी रात में, ठंडी हवा के बीच एक-दूसरे की बाहों में खो गए।
शहर की रोशनी नीचे टिमटिमा रही थी, लेकिन उस हील टॉप पर, सिर्फ दो दिलों की धड़कनों की आवाज़ थी...
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