धीरु एक शांत, गम्भीर स्वभाव का लड़का था, जो हमेशा दूसरों की मदद करने को तत्पर रहता था, लेकिन खुद के लिए कभी कुछ नहीं चाहता था, उसका चेहरा हमेशा मुस्कान से भरा होता था, लेकिन उस मुस्कान के पीछे एक बहुत गहरा दर्द छिपा था, एक ऐसा दर्द जिसे उसने कभी किसी को नहीं बताया, वो दर्द था उसकी जिंदगी से जुड़ी वो सच्चाई, जिसे जानकर शायद हर कोई टूट जाता, लेकिन धीरु ने अपने जीवन को एक मिशन बना लिया था — लोगों को खुशी देना, उनके दुख को अपने अंदर समेट लेना, और खुद गुमनाम सा होकर कहीं दूर रह जाना, कॉलेज में जब उसने दाखिला लिया तो उसकी सादगी, व्यवहार और आत्मीयता से पाँच लड़कियाँ उसकी तरफ आकर्षित हो गईं, सबकी अपनी-अपनी वजहें थीं, लेकिन एक बात सामान्य थी — वो सब धीरु को सच्चा दिल से चाहने लगी थीं, पहली थी काव्या, एक तेज़-तर्रार लेकिन दिल की बेहद कोमल लड़की, जिसे लगा कि धीरु की खामोशी में एक गहराई है जो उसे हर किसी से अलग बनाती है, दूसरी थी सृष्टि, जो खुद बहुत ज़्यादा बोलती थी, पर जब भी धीरु के पास आती, उसकी ज़ुबान रुक जाती, जैसे उसका मन बिना शब्दों के धीरु से संवाद कर लेता हो, तीसरी थी नेहा, जिसे पहली ही नज़र में प्यार हो गया था, उसे लगा था कि वो जब भी धीरु को देखती है, उसे अपना भविष्य नज़र आता है, चौथी थी अन्वी, जिसे कभी किसी लड़के से मोह नहीं हुआ था, लेकिन धीरु की निःस्वार्थता और सबके लिए समर्पण देखकर वो खुद को रोक नहीं पाई, और पांचवीं थी मीरा, जो अपने टूटे हुए अतीत से बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी और उसे धीरु में वो सुकून दिखा था जो उसे कभी किसी ने नहीं दिया, ये पाँचों लड़कियाँ अलग थीं, पर एक बात समान थी — धीरु उनके दिल के सबसे कोमल हिस्से में बस चुका था, मगर धीरु… वो हमेशा दूरी बनाए रखता, कभी किसी को करीब नहीं आने देता, वो सबकी मदद करता, मुस्कुराता, लेकिन जैसे ही कोई उसकी भावनाओं को जानने की कोशिश करता, वो और दूर चला जाता, कोई उसे अपना समझता, वो एक दीवार खींच देता, वो सबका था, पर किसी एक का नहीं, धीरे-धीरे पाँचों को एहसास हुआ कि धीरु हर किसी से कुछ छिपा रहा है, लेकिन उनमें से कोई भी ये नहीं जान पाई कि वो असल में क्यों खुद को सबके प्यार से दूर रखता है, दिन बीतते गए, कॉलेज खत्म हुआ, सब अपनी-अपनी जिंदगियों में आगे बढ़ गईं, पर दिल में धीरु की यादें वैसे ही ताज़ा थीं, किसी ने शादी नहीं की, किसी ने किसी और को अपनाया नहीं, क्योंकि दिल के किसी कोने में एक उम्मीद थी कि शायद एक दिन धीरु लौटेगा, शायद तब वो कहेगा कि उसने भी किसी को चाहा था, शायद वो बताएगा कि क्यों हर किसी से भागता रहा, फिर एक दिन, एक कॉल आया — "धीरु अब इस दुनिया में नहीं रहा", जैसे ही यह खबर पहुँची, पाँचों लड़कियाँ एक-दूसरे से बेख़बर, उस छोटे से गाँव पहुँची जहाँ धीरु का अंतिम संस्कार हो चुका था, वहाँ सिर्फ एक बूढ़ा डाक्टर था, जो पिछले छह वर्षों से धीरु के साथ रह रहा था, वो उन्हें देख कर रो पड़ा और बोला, “तुम सब वही हो ना जिनके लिए वो जीता था… जिनसे वो खुद को दूर करता था… पर जिनके लिए वो हर रोज़ दुआ करता था”, लड़कियाँ चौंकी, “क्या मतलब?”, डाक्टर ने कहा, “धीरु को ब्लड कैंसर था, तीसरे स्टेज पर पता चला था, जब वो सिर्फ 21 साल का था, उसी दिन उसने तय कर लिया था कि वो किसी से प्यार नहीं करेगा, किसी के करीब नहीं आएगा, क्योंकि उसे पता था कि वो ज़्यादा समय तक जिंदा नहीं रहेगा, वो नहीं चाहता था कि उसका दर्द किसी और का बन जाए, वो नहीं चाहता था कि कोई उसकी मौत का ग़म लेकर जिए, इसलिए वो सबको मुस्कान देता रहा, लेकिन खुद हर रात दर्द से तड़पता रहा”, ये सुनकर पाँचों लड़कियाँ स्तब्ध रह गईं, आंखों से आंसू बहने लगे, वो जो उन्हें खुद से दूर करता रहा, वो उन्हें खुद की तकलीफ से बचा रहा था, डाक्टर ने एक पुरानी डायरी निकाली और कहा, “ये उसकी आखिरी इच्छा थी, कि जब वो ना रहे, तब ये डायरी तुम सबको पढ़ने को मिले”, पांचों ने मिलकर उस डायरी को खोला, उसमें लिखा था — “काव्या, तुम्हारी आंखों की चमक मुझे हर उस अंधेरे से बाहर निकाल लाती थी, जिसमें मैं हर रोज़ डूबता था, पर मैं तुम्हारे उस उजाले को अपने अंधेरे में नहीं खींच सकता था… सृष्टि, तुम्हारी बातों ने मुझे हर बार जीने की वजह दी, पर मैं नहीं चाहता था कि तुम्हारे शब्द मेरी ख़ामोशी में खो जाएं… नेहा, तुम्हारा वो पहला लम्हा, जब तुमने मुझे देखा था, मुझे आज भी याद है, मैं भी तुम्हें उसी पल चाह बैठा था, पर तुम्हारा भविष्य अंधेरे में क्यों जाता… अन्वी, तुम्हारे साथ मुझे पहली बार लगा कि कोई मुझे मेरे बिना कुछ मांगे अपनाना चाहता है, पर मैं अपना टूटा हुआ वजूद तुम्हें नहीं दे सकता था… मीरा, तुम्हारे दुख को देखकर मैं खुद को पहचानता था, तुम्हारा सुकून बनना चाहता था, पर मैं खुद बेचैनियों का समंदर था… तुम सबको छोड़कर जाना मेरे लिए मरने से भी कठिन था, लेकिन तुम्हें अपने साथ लेकर मर जाना मेरे बस में नहीं था… इसीलिए मैं भागा… मैं तुम सबसे दूर हुआ… ताकि जब मेरी सांसें थमें, तो तुम्हारा दिल न टूटे… पर शायद अब भी तोड़ ही गया… माफ करना”, पांचों लड़कियाँ उस डायरी को सीने से लगाए फूट-फूट कर रो पड़ीं, वो जिसे वो खुदगर्ज़ समझती थीं, वो जिसे सबका दिल तोड़ने वाला समझती थीं, असल में वो सबसे बड़ा त्यागी निकला, उसने सबके प्यार को इसलिए नहीं अपनाया क्योंकि वो उन्हें अपने साथ टूटते हुए नहीं देखना चाहता था, अगले दिन उन सबने मिलकर गाँव में एक स्कूल खोलने का संकल्प लिया — "धीरु शिक्षा केंद्र", जहां हर गरीब बच्चे को मुफ्त पढ़ाई मिलेगी, क्योंकि धीरु हमेशा बच्चों को पढ़ाता था, उनकी फीस खुद भरता था, अब पांचों उसी मिशन को आगे बढ़ा रही थीं, धीरु उनके साथ नहीं था, पर उसकी आत्मा, उसका प्यार, उसकी मुस्कान, और उसका त्याग हर बच्चे की मुस्कुराहट में ज़िंदा था, वो पांचों कभी धीरु की हो नहीं सकीं, पर उन्होंने कभी किसी और को भी नहीं अपनाया, उन्होंने अपने जीवन को अब धीरु के अधूरे सपने को पूरा करने में लगा दिया, वो लड़का जो किसी का न होकर सबका था, आज भी हर किसी के दिल में ज़िंदा था, उसका प्यार अधूरा था, पर उस अधूरेपन में भी एक अजीब सी पूर्णता थी — वो जो किसी को नहीं मिला, लेकिन सबको दे गया।