Dheeru and Divya's love story started in the jungle and ended there in Hindi Travel stories by Dhiru singh books and stories PDF | धीरु और दिव्या की जंगल में शुरू हुई मोहब्बत और वहीं खत्म हुई प्रेम कहानी

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धीरु और दिव्या की जंगल में शुरू हुई मोहब्बत और वहीं खत्म हुई प्रेम कहानी



धीरु एक सीधा-सादा, शांत स्वभाव का लड़का था, जो उत्तराखंड के एक छोटे से पहाड़ी गांव में रहता था। उसका जीवन जंगलों, नदियों और प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ा हुआ था। वह रोज़ सुबह उठकर पास के जंगल में जाता, लकड़ियां इकट्ठा करता, पक्षियों को दाना डालता और जड़ी-बूटियों की तलाश करता। उसकी दुनिया बड़ी सादी थी—बिना मोबाइल, बिना शोरगुल, सिर्फ प्रकृति का संगीत।

एक दिन गांव के पास के जंगल में एक रिसर्च टीम आई। वे लोग वन्यजीवों पर अध्ययन कर रहे थे। इसी टीम में थी दिव्या—एक सुंदर, तेज़-तर्रार और आत्मनिर्भर युवती जो दिल्ली से आई थी। दिव्या की आंखों में जंगल को जानने और समझने की जिज्ञासा थी, और उसके दिल में प्रकृति से प्रेम। वह आधुनिक तो थी, लेकिन उसके दिल में एक अजीब सा खालीपन था जिसे वह खुद भी समझ नहीं पाती थी।

धीरु और दिव्या की पहली मुलाकात तब हुई जब दिव्या जंगल में रास्ता भटक गई और उसका कैमरा बैग एक झाड़ी में अटक गया। धीरु ने दूर से देखा और बिना कुछ कहे उसकी मदद की। दिव्या ने मुस्कुराकर धन्यवाद कहा, और कुछ पल के लिए दोनों की आंखें मिलीं। कुछ था उस पहली नज़र में—एक अपनापन, एक भरोसा, जो शब्दों में नहीं कहा जा सकता।

उसके बाद कई बार दिव्या जंगल में रिसर्च के दौरान धीरु से टकराती रही। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे की आदत बन गए। धीरु दिव्या को जड़ी-बूटियों के नाम सिखाता, पक्षियों की आवाज़ें पहचानना बताता, और पेड़ों की उम्र गिनने के तरीके समझाता। वहीं दिव्या उसे दुनिया की बातें बताती—दिल्ली के ट्रैफिक की, इंटरनेट की, और अपने अकेलेपन की भी।

जंगल अब उनके मिलने का गवाह बनने लगा था। झरने के किनारे बैठकर वे घंटों बातें करते, कभी पहाड़ की चोटी पर सूरज ढलने का इंतज़ार करते, तो कभी बारिश में भीगते हुए हँसते-हँसते भागते। दिव्या को धीरु की सादगी बहुत भाने लगी थी, और धीरु दिव्या के आत्मविश्वास और जीवन की ऊर्जा से आकर्षित हो चुका था।

एक दिन, झरने के किनारे, दिव्या ने धीरु से पूछा, “क्या तुम मुझसे प्यार करते हो?”
धीरु ने मुस्कुराकर कहा, “अगर जंगल की हवा को प्यार करना होता है, तो हां, मैं तुमसे वैसा ही प्यार करता हूं—बिना किसी शर्त के।”
दिव्या की आंखों में आंसू आ गए। उसने पहली बार किसी से ऐसा प्यार महसूस किया जो सिर्फ दिल से जुड़ा था, बिना किसी स्वार्थ के।

पर कहते हैं ना, प्यार जितना सच्चा होता है, परीक्षा भी उतनी ही कठिन होती है।

एक दिन रिसर्च के आखिरी चरण में दिव्या को एक बाघिन के घायल होने की सूचना मिली। वह अकेली ही कैमरा लेकर जंगल के अंदर चली गई, जबकि धीरु ने उसे मना किया था। उस दिन मौसम खराब था, बादल घिरे हुए थे और हवा में अजीब बेचैनी थी।

जब बहुत देर हो गई और दिव्या नहीं लौटी, तो धीरु उसे ढूंढने जंगल में गया। उसने देखा कि दिव्या एक चट्टान के पास फंसी हुई थी, जहां बाढ़ का पानी तेज़ी से बढ़ रहा था। धीरु ने दौड़कर उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन अचानक चट्टान फिसल गई और दोनों पानी में गिर गए।

गांववालों ने बाद में तलाशी अभियान चलाया। दो दिन बाद उन्हें सिर्फ दिव्या का बैग मिला, और नदी के किनारे धीरु की टूटी हुई चप्पल। दोनों के शरीर कभी नहीं मिले।

उसके बाद से गांव वालों का मानना है कि वे दोनों आज भी जंगल में हैं। कुछ लोग कहते हैं कि रात के समय जब झरने के पास हवा चलती है, तो उसमें हँसी की हल्की सी गूंज सुनाई देती है। कोई कहता है कि पेड़ों की शाखाएं हिलकर कोई कहानी कहती हैं—धीरु और दिव्या की अधूरी मोहब्बत की।

वह जंगल अब सिर्फ एक वन क्षेत्र नहीं, बल्कि एक प्रेम गाथा का प्रतीक बन चुका है। कई प्रेमी जोड़े वहां जाते हैं और वादा करते हैं कि वे धीरु और दिव्या की तरह एक-दूसरे से सच्चा प्यार करेंगे, चाहे हालात जैसे भी हों।

इस कहानी में कोई महल नहीं था, कोई अमीर-गरीब का फर्क नहीं था, कोई दुनिया से लड़ने वाली कहानी नहीं थी। यह बस दो आत्माओं की जुड़ाव की कहानी थी, जो प्रकृति की गोद में जन्मी और उसी में विलीन हो गई।

धीरु और दिव्या का प्यार कोई फिल्मी कहानी नहीं थी, न ही उसमें कोई नायक या खलनायक था। वह एक सच्चा, निश्छल और पवित्र प्रेम था—जैसे पहाड़ों पर गिरती बर्फ, जैसे झरनों की सच्ची बूँदें। एक ऐसा प्यार, जो शब्दों से परे था, और जो आज भी उस जंगल की हर हवा में महकता है।

शायद वे दोनों अब कहीं किसी और रूप में हैं—शायद एक चिड़िया और एक तितली बनकर एक-दूसरे के साथ उड़ते हैं। पर उनकी प्रेम कहानी, हमेशा के लिए उस जंगल की मिट्टी में दर्ज हो गई है।