भाग 1: प्यार की शुरुआतदिल्ली की तंग गलियों में रहने वाली आकांक्षा एक सीधी-सादी, पढ़ने-लिखने वाली लड़की थी। वह एक प्राइवेट कंपनी में काम करती थी और उसके सपनों में बस एक ही नाम था – धीरू। धीरू एक जांबाज नौजवान था, जिसे मोहल्ले के लोग दिल से चाहते थे। वह न सिर्फ मजबूत और निडर था, बल्कि दिल से भी बहुत साफ था।धीरू और आकांक्षा की मुलाकात एक सड़क हादसे में हुई थी, जब आकांक्षा को एक बाइक सवार ने टक्कर मार दी थी और धीरू ने उसे समय पर अस्पताल पहुंचाकर उसकी जान बचाई थी। तभी से आकांक्षा के दिल में धीरू के लिए एक खास जगह बन गई थी। धीरे-धीरे यह दोस्ती प्यार में बदल गई। उनके बीच वादा हुआ था – "कुछ भी हो जाए, हम एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे।"उनके इस रिश्ते को जानता था उनका सबसे करीबी दोस्त विक्की – जो उनके प्यार का सच्चा साथी था। तीनों की दोस्ती मिसाल बन गई थी।
भाग 2: गुनाह और साज़िश
मगर हर कहानी में एक तूफान होता है। मोहल्ले में एक नाम था – गोलू ठाकुर। वह एक गैंग का लीडर था, जो हर इलाके में अवैध वसूली करता था। गोलू की नजरें आकांक्षा पर थीं। वह जबरदस्ती उसे अपने साथ रखना चाहता था। लेकिन आकांक्षा ने साफ मना कर दिया।
गोलू ने इसे अपनी बेइज्जती समझा और बदला लेने की ठान ली। उसने धमकी दी, “अगर तू मेरी नहीं बनी, तो तेरा वो हीरो भी तुझे नहीं बचा पाएगा।”
धीरू को जैसे ही इस बात का पता चला, उसका खून खौल उठा। उसने गोलू को साफ कह दिया – “अगर आकांक्षा की तरफ देखा भी ना, तो तेरी आंखें निकाल दूंगा।”
इस चेतावनी के बावजूद, गोलू बाज नहीं आया। एक रात, जब आकांक्षा अपनी कंपनी से वापस लौट रही थी, गोलू और उसके 50 गुंडों ने उसे घे
र लिया।
भाग 3: अंतिम लड़ाई
धीरू को जैसे ही खबर मिली, उसने एक पल की भी देरी नहीं की। विक्की को साथ लेकर, वह उस जगह पर पहुंचा जहां आकांक्षा को कैद किया गया था – एक वीरान गोदाम।
धीरू ने अकेले ही 50 गुंडों पर धावा बोल दिया। उसकी आंखों में सिर्फ एक ही आग थी – आकांक्षा को बचाना। उसके हाथ में कोई हथियार नहीं था, मगर उसके इरादे लोहे जैसे मजबूत थे।
पहला गुंडा गिरा, फिर दूसरा... फिर तीसरा... देखते ही देखते 20 से ज़्यादा गुंडे बेहोश होकर गिर गए। विक्की भी लड़ रहा था, मगर धीरू की रफ्तार कुछ और ही थी।
गोलू ने देखा कि उसका पूरा गैंग बर्बाद हो रहा है। उसने पीछे से धीरू पर वार किया – छुरी सीधी उसकी पीठ में घुस गई। खून बहता रहा, मगर धीरू रुका नहीं। उसने गोलू को गर्दन से पकड़कर हवा में उछाल दिया और ज़मीन पर पटक दिया।
लेकिन इस वार के बाद धीरू की हालत बिगड़ने लगी। उसके शरीर में जान बची थी, मगर अब सांसें धीमी पड़ रही थीं।
विक्की ने देखा तो चीख उठा – “धीरू... भाई... रुक मत! हम जीतने वाले हैं।”
धीरू ने मुस्कराकर आकांक्षा की तरफ देखा – जो कोने में रो रही थी, डर से कांप रही थी। उसकी आंखों में डर नहीं, सिर्फ प्यार था।
धीरू ने कहा, “मैंने अपना वादा निभा दिया... तुझे बचा लिया।”
और उसी वक्त, उस
की सांसें थम गईं।
भाग 4: विक्की का प्रलय
धीरू की मौत ने विक्की को तोड़ दिया। वह जानता था कि अब इस बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देगा। वह उठ खड़ा हुआ और चीखते हुए सभी बचे हुए गुंडों पर टूट पड़ा।
उसने एक-एक करके सबको मारा। खून, आंसू, और बदले की आग – विक्की ने अकेले ही गोलू की पूरी गैंग का खात्मा कर दिया।
पुलिस आई, मीडिया आई, लेकिन जब तक कोई पहुंचता – धीरू जा चु
का था।
भाग 5: अधूरा प्यार
आकांक्षा ने धीरू के पार्थिव शरीर को गले लगाकर रोते हुए कहा,
“तू चला गया... पर मेरा दिल यहीं छोड़ गया। मैंने तुझसे प्यार किया था, और करूंगी – मरते दम तक।”
उसने धीरू के नाम की चूड़ी पहनी, उसके नाम का सिंदूर लगाया, और उसकी याद में जीने की कसम खाई।
विक्की ने धीरू की आखिरी ख्वाहिश को निभाने की कसम खाई – उस मोहल्ले को गुंडों से मुक्त रख
ने की।
भाग 6: यादें और बलिदान
हर साल, उस गोदाम में एक मोमबत्ती जलाई जाती है। जहां धीरू ने अपना आखिरी दम तोड़ा था। लोग उसे याद करते हैं – एक बहादुर, सच्चा प्रेमी, और एक योद्धा के रूप में।
आकांक्षा आज भी उसे हर रोज याद करती है – उसकी तस्वीर के सामने बैठकर।
वह कहती है –
“तेरा प्यार अधूरा नहीं है धीरू...
तू मेरे हर लम्हे में जिंदा है।
जिसने अपनी जान देकर मुझे बचाया,
उसका नाम मैं अपने दिल में सजाए रखूंगी –
मर
ते दम तक।”