धीरू एक साधारण सा लड़का था — दिल से बहुत साफ़, सपनों से भरा हुआ। वह एक छोटे शहर में अपने मां-बाप के साथ रहता था। पढ़ाई में होशियार था, और दिल से बहुत ही मासूम। कॉलेज के पहले दिन उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी — सोनम। बड़ी-बड़ी आंखें, शांत मुस्कान, और हर बात में एक सादगी। पहली ही नज़र में धीरू को लग गया, यही है जिससे वो पूरी ज़िंदगी बात करना चाहेगा।सोनम शहर की थी, लेकिन उसमें कोई घमंड नहीं था। दोनों की दोस्ती जल्द ही गहराई लेने लगी। लाइब्रेरी की मुलाकातें, कैंटीन की चाय, और हल्की-फुल्की हँसी... सब कुछ धीरे-धीरे मोहब्बत में बदलता गया।धीरू ने अपने दिल की बात कह दी — कांपती आवाज़ में, डर के साथ। सोनम कुछ पल चुप रही, फिर मुस्कुराई और बोली, “मुझे भी तुझसे कुछ खास लगाव हो गया है।”उनका प्यार परियों की कहानी जैसा नहीं था, लेकिन बेहद सच्चा था। दोनों का सपना था — साथ जॉब पाना, शादी करना, और एक छोटा सा घर।लेकिन किस्मत को ये मंज़ूर न था।सोनम के घरवालों को उनका रिश्ता मंज़ूर नहीं था। "कास्ट", "सोसाइटी", "इज़्ज़त" — ये सब दलीलें दे कर उसकी शादी कहीं और तय कर दी गई।धीरू ने बहुत मिन्नतें कीं, सोनम ने भी लड़ाई लड़ी — पर हार गए।आख़िरी बार जब दोनों मिले, सोनम ने आंसुओं में कहा,“धीरू, अगर मैं जन्मों तक भी जीऊँगी, तो भी दिल सिर्फ़ तेरा रहेगा। लेकिन इस जन्म में... मैं तेरा नहीं बन सकी।”धीरू कुछ नहीं बोला। बस उसका हाथ पकड़ कर कहा,“तेरा नाम मेरी सांसों में रहेगा सोनम... जब तक मैं ज़िंदा हूँ... और शायद उसके बाद भी।”वो दिन उनकी आख़िरी मुलाकात थी।सालों बीत गए...धीरू अब एक शांत, परिपक्व और सम्मानित शिक्षक बन चुका था। उसका जीवन अब किताबों, बच्चों और खामोश यादों के साथ चलता था। मगर हर साल 14 फरवरी को, वो पुरानी डायरी ज़रूर खोलता, जिसमें सोनम की तस्वीर और उसकी चिट्ठियाँ आज भी महकती थीं।एक दिन स्कूल में एक सेमिनार रखा गया — "प्यार की परिभाषा पर"। वहां एक महिला अपनी बेटी के साथ आई — वो थी सोनम। उम्र ने उसके चेहरे पर रेखाएँ दी थीं, लेकिन आंखों में वही पुरानी चमक थी।स्टेज पर धीरू खड़ा था, बच्चों को सच्चे प्रेम का मतलब समझा रहा था। तभी उसकी नज़र सोनम से मिली। दोनों की आंखें कुछ पल के लिए थम गईं।कोई शब्द नहीं बोले, पर बहुत कुछ कह दिया गया।सोनम की बेटी ने पूछा, “मम्मा, ये कौन हैं?”सोनम ने धीरे से जवाब दिया,“जिससे मैंने सच्चा प्यार किया था... और जिसने बिना पाये भी मुझे हमेशा मोहब्बत दी।”धीरू मुस्कराया — उस अधूरी मोहब्बत को देखकर, जो अब यादों में पूरी हो चुकी थी।प्यार कभी मरता नहीं... बस वक्त के साथ खामोश हो जाता है। सालों बीत गए...
धीरू अब एक शांत, परिपक्व और सम्मानित शिक्षक बन चुका था। उसका जीवन अब किताबों, बच्चों और खामोश यादों के साथ चलता था। मगर हर साल 14 फरवरी को, वो पुरानी डायरी ज़रूर खोलता, जिसमें सोनम की तस्वीर और उसकी चिट्ठियाँ आज भी महकती थीं।
एक दिन स्कूल में एक सेमिनार रखा गया — "प्यार की परिभाषा पर"। वहां एक महिला अपनी बेटी के साथ आई — वो थी सोनम। उम्र ने उसके चेहरे पर रेखाएँ दी थीं, लेकिन आंखों में वही पुरानी चमक थी।
स्टेज पर धीरू खड़ा था, बच्चों को सच्चे प्रेम का मतलब समझा रहा था। तभी उसकी नज़र सोनम से मिली। दोनों की आंखें कुछ पल के लिए थम गईं।कोई शब्द नहीं बोले, पर बहुत कुछ कह दिया गया।
सोनम की बेटी ने पूछा, “मम्मा, ये कौन हैं?”सोनम ने धीरे से जवाब दिया,“जिससे मैंने सच्चा प्यार किया था... और जिसने बिना पाये भी मुझे हमेशा मोहब्बत दी।”
धीरू मुस्कराया — उस अधूरी मोहब्बत को देखकर, जो अब यादों में पूरी हो चुकी थी।
प्यार कभी मरता नहीं... बस वक्त के साथ खामोश हो जाता है।